छिनाल निरंकुश पूंजी के लिए कुच्छ भी करेगा,यही है कारपोरेट केसरिया हिंदू राष्ट्र का एजंडा!
पलाश विश्वास
Sensex Up 310 Points With FIIs showing no signs of tiring and global geopolitical tensions abating, the Sensex seems set to scale new highs
देश में भले ही मानसून संकट हो और अल निनो का खतरा हो।प्राकृतिक आपदाओं का सिलसिला जारी है।इन प्राकृतिक आपदाओं से बड़ी कयामत है बेलगाम सांढ़ संस्कृति।बाजार में आज सातवें दिन जबरदस्त जोश देखने को मिला। बाजार रिकॉर्ड क्लोजिंग देने में कामयाब रहा।इसी से सुधार राजसूय की बुलेट ट्रेन की गति और वेग को समझ लीजिये।जाहिर है कि नई सरकार की तरफ से चलाए जा रहे आर्थिक सुधार कार्यक्रमों की वजह से अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटने की उम्मीद में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने भारतीय शेयर बाजार में तगड़ा निवेश किया।
छिनाल पूंजी के स्किनी सेक्सी आइटम डांस को भारतीय अर्थ व्यवस्था की पूरी नीली फिल्म बना दिया गया है।
बाटमलैस इकानमी बिना किसी मूलभूत सुधार के सेंनसेक्स और निफ्टी पर टिकी है, जो एकमुशत माइक्रो माइनारिटी भारतीय वर्णवर्चस्वी सत्ता वर्ग और नस्ली जायनी अमेरिका इजराइल के हितों के सूचक हैं,भारतीयअर्थव्यवस्था के कतई नहीं।
यही वजह है कि सांढ़ों का कार्निवाल समय है यह केसरिया और दसों दिसाओं में कमल विस्फोट के मध्य एशियाई और अमेरिकी बाजार से मिले शानदार संकेतों के बल पर घरेलू बाजार दौड़ लगा रहे हैं। आज बेंचमार्क सूचकांकों में शुरुआती तेजी बाजार बंद होने तक बरकरार रही और लगातार 7 सत्रों बढ़त बनाते हुए बाजार रिकॉर्ड ऊंचाई पर बंद हुआ। इस दौरान निवेशकों आईटी शेयरों में जमकर मुनाफा वसूली की। इस बीच 50 शेयरों वाला निफ्टी दिनभर के कारोबार में एक बार 7,809.20 के स्तर पर भी पहुंचा।
इसी बीच भारत ने वर्ल्डबैंक से सस्ती दरों पर लोन देने की गुजारिश की है। कल वित्त मंत्री अरुण जेटली ने दिल्ली में वर्ल्डबैंक के प्रेसिडेंट जिम योंग किम से मुलाकात की। भारत वर्ल्डबैंक से सबसे ज्यादा कर्ज लेने वाला देश है। फिलहाल 85 प्रोजेक्ट्स के लिए देश ने वर्ल्ड बैंक से 2400 करोड़ डॉलर से ज्यादा का कर्ज लिया हुआ है।
भारत में वर्ल्डबैंक प्रेसिडेंट जिम योंग से मुलाकात में अरुण जेटली की कोशिश ये भरोसा पाने की थी कि वर्ल्डबैंक भारत की विकास योजनाओं के लिए अपना सहयोग जारी रखे ताकि मोदी सरकार अगले 2-3 साल में 7 से 8 फीसदी ग्रोथ का लक्ष्य हासिल कर सके। वर्ल्डबैंक के प्रेसिडेंट ने कहा कि वो गरीबी हटाने के मोदी सरकार के लक्ष्य में सहयोग करेंगे।
किसी को कहीं भी ठोंक देने की आजादी।
न संविधान,न लोकतंत्र और न कानून का राज नागरिकों की सुरक्षा के लिए एक्टिवेटेड है और हर कोई निहत्था सत्ता चक्रव्यूह में मारे जाने को डीफाल्ट।
नमो सुनामी के बाद अब सुधार सुनामी है।जनता की समझ में जो बाते आ नहीं रही हैं,बाजार की रचनाएं हैं वे अत्यंत कूट। बाजार को अपना स्वर्ग मिल ही गया है और स्वर्ग सिधारने की बारी जनगण की है।
सांढ़ों का यह कमाल का धमाल समझें कि तेजी के रुझान के साथ बाजार में आज भी काफी उतार-चढ़ाव दिखा। आज खुलते ही निफ्टी रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया। बाजार में आज सातवें दिन जबरदस्त जोश देखने को मिला। सुबह के कारोबार में तो निफ्टी ने ऊंचाई के सभी रिकॉर्ड को तोड़कर 7,809 का स्तर छू लिया। लेकिन फिर मुनाफावसूली हावी हुई और बाजार निगेटिव जोन में पहुंच गया। हालांकि दोपहर बाद वापस खरीदारी लौटी और बाजार रिकॉर्ड क्लोजिंग देने में कामयाब रहा।
कल ही हमने बगुला आयोगों और बगुला कमिटियों पर समकालीन तीसरी दुनिया के आलेख की किंचित चर्चा की है।अब यह सिलसिला खंडित विपर्यस्त हिमालय के चप्पे चप्पे पर अविराम हो रहे भूस्खलन का तरह देश का रोजमर्रे का कामकाज है।
मसलन जस्टिस काटजू का महाविस्पोट हस्तक्षेप पर हुआ और जजों की नियुक्ति में घोटाला का मामला सामने आ गया तो संसद में जैसे कि दस्तूर भी है,बाकी मुद्दे हाशिये पर रखकर खूब बवाल हुआ।
अब लोगों की समझ में नहीं आता कि सत्ता का रंग बदला है,चेहरे बदल गये हैं,तंत्र मंत्र यंत्र सत्ता वर्ग का फिर वहीं है।
यूपीए पर आरोपित घोटाले का बचाव कर रही केसरिया कारपोरेट सरकार और इसी बचाव के तहत एक और बगुला आयोग।
हिंदुत्व का अमेरिका से प्रेम जितना है,उससे ज्यादा प्रेम इजराइल से है।
संसद में पहले तो शर्मनाक तरीके से चर्चा रोकी जा रही थी,लेकिन जब चर्चा हुई तो विदेश मंत्री का वही स्टैंड बन गया जो इजरायली ब्रीफिंग के मुताबिक है।
ममता बनर्जी के हर वाक्य में अम्मा ,दुआ,खुदा,इंसाल्ला,मुबारक की बौछार।लेकिन गाजा के मसले पर उनकी जुबान बंद।
जिस संसद में गाजा पर चर्चा नहीं होती,वहां हो क्या रहा है,देखें।गौरतलब है कि इजराइल की ओर से ऑपरेशन प्रोएक्टिव एज के तहत गाजा पट्टी पर दो सप्ताह से जारी हमले के कारण 600 से ज्यादा फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं और 3,720 अन्य घायल हुए हैं। एक अधिकारी ने यह जानकारी दी।
हमेन इजरायली हमले के संदर्भ में मलेशियाई विमान हादसे और नाइन इलेवेन की चर्चा पहले की है और बतया कि डालर वर्चस्व को चुनौती देने के ब्रिक उपक्रम के मुकाबले युद्ध अपराधी बतौर पेश किये जा रहे हैं राष्ट्रपति पुतिन तो भारत चीन छायायुद्ध भी तेज।
अब देखिये,अमेरिका ने कहा है कि मलेशियाई एयरलाइंस के विमान MH17 हादसे के पीछे रूसी सरकार के हाथ होने का सबूत नहीं मिला है। लेकिन ऐसी स्थिति पैदा करने के लिए निश्चित रूप से रूस ही जिम्मेदारी है। अमेरिकी खुफिया एजेंसी के शीर्ष अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट में सावधानीपूर्वक बताया कि पूर्वी यूक्रेन में हथियारबंद रूसी समर्थित विद्रोही इस घटना के असली जिम्मेदार हैं। हालांकि रूसी सरकार की प्रत्यक्ष भूमिका के कोई सबूत नहीं मिले हैं। इस बात के कोई सबूत नहीं मिले हैं कि जिस मिसाइल से हमला किया गया था, वह रूस से आया था या नहीं।
नई दिल्ली में शिवसेना सांसदों द्वारा रोजे के दौरान एक मुस्लिम कैटरिंग कर्मचारी को महाराष्ट्र सदन में जबर्दस्ती रोटी खिलाए जाने का वीडियो सामने आया है। वीडियो में शिवसेना सांसद राजन विचारे कर्मचारी के मुंह में रोटी ठूंसते दिखाई दे रहे हैं। विचारे ने सफाई दी है कि वह केवल यह कह रहे थे कि रोटी खाने लायक नहीं है, तुम इसे तोड़ कर दिखाओ। इस मसले पर बुधवार को संसद के दोनों सदनों में भी जबरदस्त हंगामा हुआ और कार्यवाही कई बार स्थगित ...
इस मामले में पाठकों को बता देना जरुरी है कि भारत नाटो का सदस्य नहीं है।अमेरिकी युद्धक अर्थव्यवस्था में यह महादेश मुक्तबाजारी उपनिवेश के अलावा कुछ भी नहीं है।
हाट लाइन बतौर एफडीआई बेलगाम है।
हाट लाइन बतौर भारत अमेरिका परमाणु संधि है,जो भारतीय महादेश को युद्धक्षेत्र में बदलने के जरिये अमेरिकी तेल युद्ध का सीमांत विस्तार है,जिसपर टिकी है अमेरिकी युद्धक अर्थव्यवस्था।
विश्वव्यापी युद्ध गृहयुद्ध के कारोबार में देश बेचो,संप्रुता झोंको सत्ता वर्ग के मार्फत अमेरिका के आतंकविरोधी युद्ध ही दक्षिण एशिया को युद्धक्षेत्र में तब्दील करके दुनिया के सबसे बड़े उपभोक्ता बाजार को कब्जाना है।
भारत नाटो का सदस्य नहीं है।
भारत यूरोपीय देशों की तरह अमेरिका का खास भी नहीं है।
इजराइल की तरह खासमखास तो कतई नहीं।
प्रवासी भारतीय तकनीकी दक्षता से अमेरिकी तंत्र और राजकाज का हिस्सा बनतेे जा रहे हैं बहुत तेजी से,लेकिन अमेरिका व्यवस्था में जायनी इजरायली वर्चस्व के आगे केसरिया कारपोरेट अमेरिकी लाबी न पिद्दी है और न पिद्दी का शोरबा।
भारत नाटो का सदस्य नहीं है।
इजरायली हितों को नजरअंंदाज करने की हैसियत अमेरिका की भी नहीं है।
भारत नाटो का सदस्य नहीं है।लेकिन अमेरिकी स्ट्रटेजी में जो हैसियत बागी ऱूस,चीन,दक्षिण अफ्रीका,आस्ट्रेलिया, जापान और तमाम लातिन एशियाई देशों की है,अगवाड़ा पिछवाड़ा खोलकर भी भारत को वह हैसियत नहीं हो सकती अमेरिका की नजर में क्योंकि अब हम स्वतंत्र संप्रभु देश ही नहीं रह गये हैं।
अमेरिका की नजर में क्योंकि यह देश अब अमेरिकी छिनाल पूंजी का है और हमारे पुज्यनीय राष्ट्रनेता सकल खान बंधुओं और सुंदरतम अभिनेत्रियों की तरह अमेरिका फैशनबाज ब्रांड एंबेसैडर हैं।
अमेरिका की नजर में क्योंकि वे न राजनेता हैं ,न रायनयिक ।नीदर पोलिटिशियन नार स्टेटे्समैन।
अमेरिका की नजर में क्योंकि वे महज बिजनेस फ्रेंडली हैं यानी पुरकश बनिया पार्टी।
अमेरिका की नजर में क्योंकि भारत की सरकार अब ईस्टइंडिया कंपनी है,जो संजोग से रानी विक्टोरिया के अवसान की वजह से व्हाइट हाउस के ही आधीन है।
लेकिन नाटो में ही शामिल है मध्यएशिया के तेलयुद्ध ज्वालामुखी के मुहाने बसा देश तुर्की।लेकिन अमेरिकी नाकाबंदी से बेपरवाह होकर तुर्की के प्रेसीडेंट ने गाजा पर इजरायली हमलों की निरंतरता के विरुद्ध सीधे ऐलान कर दिया कि वे अमेरिकी प्रेसीडेंट से बातचीत बंद कर चुके हैं।
आज ही जनसत्ता में फलस्तीन संकट पर लिखा पुष्परंजन का संपादकीय आलेख अनिवार्य पाठ है किसी भी जनपक्षधर आंख के लिए।संपादक को प्रतिकूल परिस्थितियों में रीढ़ की हड्डी के लिए बधाई।
हम नाटो के सहयोगी देश नहीं हैं।
लेकिन हमारा विदेश मंत्रालयअब या तो नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास है या फिर इजराइली दूतावास।
राष्ट्रपति भवन,संसद और साउथ ब्लाक सिर्फ दिलवालों की दिल्ली की आलोकसज्जा है।हिंदू राष्ट्र में भारतीय लोकतंत्र का यही हश्र हुआ है।
अब केंद्रीय मंत्रिमंडल की भी शायद कोई हैसियत बची नहीं है।
योजना आयोग खत्म है।
नेशनल सैंपल सर्वे और सांख्यिकी विबाग की भी शव यात्रा पर्यावरण मंत्रालय,पुनर्वास मंत्रालय.खाद्य व आपूर्ति मंत्रालय,श्रम मंत्रालयों के साथ निकलने ही वाली है।
रेटिंग,परिभाषाएं,पैमाने और प्रतिमान,सौंदर्यशास्त्र और विधायें, विचारधाराएं, आदर्श,मूल्य,नैतिकता, आंकड़े और विश्लेषण,तथ्य,तकनीक,ज्ञान,अवधारणाएं,दर्शन और सूचनाएं सबकुछ आयातित।
सबकुछ अमेरिकी नस्ली हितों के मताबिक।
भारतीय वर्ण वर्चस्व के मुताबिक सबकुछ।
प्रस्थापित।
स्वयंसिद्ध प्रमेय या त्रिकोणमिति।
बगुला आयोगों और बगुला समितियों की सिफारिशों पर अधिसूचना या राजकीय शासनादेश से जारी है राजकाज।
गुजरात माडल लागू करने के लिए सबसे जरुरी है पर्यावरण की ह्त्या।
पीपीपी माडल में पर्यावरण रावण है और इस रावण के वध के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम शंबुक हत्यारा श्रीराम का आवाहन जरुरी है।
गुजरात माडल के पीपीपी उपक्रमों को चालू करने से पहले सभी सरकारी उपक्रमों का कत्लेआम का सि्लसिला शुरु हो गया।
अटल शौरी ने जो विनिवेश रोडमैप बना दिया,उसका तेजी सेकार्यान्वयन हो रहा है।प्रगति वेग इतना बुलेट है कि सारे बैंकों के प्राइवेट हो जाने में तीन चार साल से ज्यादा लगने वाला नहीं।
प्रतिरक्षा भी अब निजी कंपनी के हवाले हैं।
श्रमकानूनों की तरह वित्तीयसुधार बिना पार्लियामंटरी अनुमोदन लागू किये जा रहे हैं डिजिटल बायोमेट्रिक प्रणाली से।
गुजरात माडल के तहत एफडीआई अब पवित्र गंगा की अविरल धारा है।
एफडीआई आपके बेडरूम में कब लागू हो जाये,इसका भी बाशौक इंतजार कर सकते हैं।
कायदेकानून बिगाड़ने के लिए इस बजट सत्र का इस्तेमाल भी होना है और तमाम संशोधन कारपोरेट विधेयकों के मसविदा तैयार हैं।
छिनाल निरंकुश पूंजी के लिए कुच्छ भी करेगा,यही है कारपोरेट केसरिया हिंदू राष्ट्र का एजंडा!
ऩई सरकार ने सत्ता संभालते ही पर्यावरण,समुद्र तटसुरक्षा,श्रम,भू अधिग्रहण,स्थानीय निकाय और पंचायत,खनन कानूनों को ताक पर रखकर सारी लंबित परियोजनाओं को हरी झंडी दे दी।
सेज महासेज सजने लगे।
स्मार्ट सिटीज कोयला खानों की भूमिगत आग के दावानल में तब्दील हो जाने की तरह है तो गलियारे और हीरक बुलेटचतुर्भुज अलग।
मुक्ता बाजार में सत्ता वर्ग और बाकी जनता के मध्य कोई दूसरा वर्गद होता ही नहीं।
हैव्स और हैव नाट्स के बीच ध्रूवीकृत देश और इस परिदृस्य को अंधियारे में छुपाने के लिए तमाम सेक्सी विबाजक रेखाेएं, धर्म, जाति और अस्मिताओं की।
जोसफ बर्नाड, नई दिल्ली से नवभारत टाइम्स में लिखते हैंः
मोदी सरकार ने चालू वित्त वर्ष के बचे आठ महीनों में इकॉनमी को गति देने और रेल व आम बजट में घोषित प्रस्तावों और योजनाओं को अमलीजामा पहनाने के लिए 14 सूत्री अजेंडा बनाया है। इस अजेंडे पर तेजी से काम करने के लिए प्रधानमंत्री खुद मंत्रियों के साथ बैठकें करेंगे। फिलहाल सभी मंत्रालयों को यह अजेंडा भेजा गया है, उनसे इस बारे में राय पूछी गई है। साथ ही, यह भी कहा गया है कि अगर उन्हें इस पर कोई आपत्ति नहीं है, तो इस इकनॉमिक अजेंडे को पूरा करने में उनकी भूमिका तय होगी, जिसे उन्हें सही तरीके से निभाना है। सभी मंत्रालयों से कहा गया है कि आम बजट में जितनी घोषणाएं की गई हैं, उन्हें ध्यान से स्टडी करें और बजट पारित होने के बाद यह निश्चित करें कि वे सारे प्रस्ताव किसी भी सूरत में लागू हों। जिससे कि लोगों को यह संदेश दिया जा सके कि मोदी सरकार बाकी सरकारों से अलग है। बजट सत्र 14 अगस्त को समाप्त हो रहा है। वित्त मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, 15 अगस्त के बाद किसी भी दिन मोदी बैठक बुला सकते हैं। इसके बाद इकनॉमिक अजेंडे को पूरा करने का काम शुरू हो जाएगा।
यह है इकनॉमिक अजेंडा
. मोदी के आर्थिक अजेंडे में सबसे प्रमुख है सड़क समेत इंफ्रास्टक्चर में सुधार करना और इसमें निवेश के साथ ज्यादा नौकरियां भी पैदा करना
. एफडीआई की सीमा बढ़ाने के लिए जल्द कदम उठाना और जहां एफडीआई की सीमा को बढ़ाया गया है, उसमें ज्यादा निवेश लाने का प्रयास करना
. टैक्स कलेक्शन बढ़ाने पर जोर देना, जिससे कि वित्तीय घाटे को कम किया जा सके
रेल इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार करना, लंबी दूरी की कॉल दरों को लोकल कॉल के समान करना
. हेल्थ सेक्टर में निवेश के साथ हेल्थ इंस्टिट्यूट को बढ़ाना, लेबर लॉ को उदार बनाना
. ब्लैकमनी रोकने के लिए हर वित्तीय लेन-देन में पैन नंबर को अनिवार्य बनाना
. रेल और आम बजट के प्रावधानों और प्रस्तावों को किसी भी हाल में लागू करना, क्रियान्वयन रिपोर्ट पीएम ऑफिस को देना।
निश्चित तौर पर हमारा लक्ष्य वित्तीय घाटे को कम करके जीडीपी के परिप्रेक्ष्य में 4.1 प्रतिशत पर लाना है। यहभी सुनिश्चित करना है कि आर्थिक सुधारों की रफ्तार धीमी न पड़े।
- अरविंद माया राम , वित्त सचिव
जाहिर है कि अस्मिताओ के स्थाई बंदोबस्त के तहत दलित कारोबारियों के चेंबर डिक्की यानि दलित इंडियन चेंबर्स ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री ने बजट में दलित कारोबारियों को मिले 100 करोड़ के फंड का फायदा उठाने की तैयारी शुरू कर दी है। डिक्की ने ऐसे कारोबारियों के डेटाबेस के साथ फंड लागू करने वाली एजेंसी आईएफसीआई के साथ बैठक भी की है।
दलित कारोबारियों को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने बजट में 200 करोड़ रुपये का फंड देने का एलान किया था। इस फंड के इस्तेमाल पर हलचल शुरू हो गई है। ये फंड दलित समुदाय के लोगों को बिजनेस शुरू करने के लिए दिया जाएगा। ऐसे कारोबारियों की पहचान का जिम्मा लिया है दलित कारोबारियों के चेंबर डीआईसीसीआई यानि दलित इंडियन चेंबर्स ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री ने। डिक्की ने फंड के नियम कायदों पर आईएफसीआई यानि इंडस्ट्रियल फाइनेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया से चर्चा भी की है। डिक्की चेयरमैन को उम्मीद है कि अगले 3 महीने में ये फंड काम करना शुरू कर देगा।
इस फंड के लिए कौन से दलित कारोबारी पात्र होंगे, कैसे उनको लोन दिया जाएगा इस पर आईएफसीआई फैसला लेगा। आईएफसीआई ने इसके लिए बैंकिंग सेक्रेटरी जी एस संधु के साथ बैठक भी की है। डिक्की ने सरकार से ये भी मांग की है कि एसएमई के लिए 10,000 करोड़ रुपये के फंड में से 2300 करोड़ रूपये दलित कारोबारियों को अलग से दिए जाएं।
हालांकि ये फंड ऐसे कारोबारियों के लिए है जो अपना कारोबार शुरू करना चाहते हैं। लेकिन डिक्की आईएफसीआई से मांग कर रहा है कि इस फंड के जरिए सभी तरह के कारोबारियों की मदद की जाए। बहरहाल, अगर आप दलित हैं और आपके पास बिजनेस का एक शानदार आइडिया है तो इस फंड के जरिए मदद पाने के लिए info@dicci.org पर संपर्क कर सकते हैं।
जबकि हकीकत तो यह है कि अमेरिकी उपनिवेश भन चुके देश के अल्ट्रा हाई नेटवर्थ हाउसहोल्डर्स की तादाद पिछले एक साल में 16 फीसदी बढ़ी है। साल दर साल आधार पर वित्त वर्ष 2014 में अल्ट्रा हाई नेटवर्थ हाउसहोल्ड की संख्या 16 फीसदी बढ़कर 117000 हो गई है। कोटक वेल्थ मैनेजमेंट ने देश के अमीरों के खर्च करने की आदतों और बदलते ट्रेंड पर एक रिपोर्ट जारी की है।
टॉप ऑप द पिरामिड नाम से निकाली गई इस रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2014 में अमीरों ने आमदनी का 45 फीसदी खर्च किया है, जबकि इसके पिछले साल 30 फीसदी ही खर्च किया था। दरअसल इकोनॉमी में सुधार से खर्च और निवेश का नजरिया बदला है। अमीरों ने सबसे ज्यादा खर्च गहने खरीदने पर किया है। सैर सपाटे पर खर्च बढ़ा है लेकिन छोटी ट्रिप पर जोर रहा।
अमीरों का सैर के साथ शॉपिंग पर जोर रहा और एडवेंचर ट्रैवल का क्रेज ज्यादा रहा है। अमीरों की नजर स्पेस टूरिज्म पर भी है। वहीं घूमने-फिरने और शॉपिंग के अलावा सामाजिक कल्याण पर भी जोर दिया गया है। अमीरों ने गरीबों की पढ़ाई के लिए ज्यादा दान किया है। अमीरों का कारोबार के अलावा रियल एस्टेट आमदनी का सबसे बड़ा जरिया रहा है। अमीरों के बीच पीई फंड्स के जरिए निवेश को लेकर ज्यादा उत्साह नजर आया है। 26 फीसदी लोगों ने प्राइवेट इक्विटी फंड में निवेश किया है।
माना जा रहा है कि देश के अमीर ज्यादा जोखिम वाला निवेश करने को भी तैयार हैं। इकोनॉमी और सरकार में हुए बदलाव से देश के अमीर खुश हैं। नई सरकार बनने और निवेश बढ़ने से इकोनॉमी में मजबूती के संकेत हैं।
टॉप ऑप द पिरामिड नाम से निकाली गई इस रिपोर्ट पर कोटक महिंद्रा बैंक के ज्वाइंट एमडी सी जयराम का कहना है कि आने वाले दिनों में अल्ट्रा एचएनआई की ओर से इक्विटी में ज्यादा एसेट एलोकेशन संभव है। निवेशकों को इकोनॉमी में भरोसा बढ़ा है, इसलिए इस साल के लिए इक्विटी में ज्यादा निवेश का सुझाव दिया गया है।
कल ही हमने स्पेक्ट्रम विनियंत्रण विनियमन के जरिये घोटाला रफा दफा करने की उत्तर आधुनिक पद्माभ प्राविधि की चर्चा की।
कैग रपटों से आर्थिक नीतियों की निरंतरता माध्यमे कारपोरेट बिल्डर प्रोमोटर राज कायम रखने की औपनिवेशिक गुलाम सरकारों के रास्ते सबसे बड़ी अड़चनें मीडिया,न्याय प्रणाली और कैग जैसी लोकतांत्रिक संस्थाने हैं।
मीडिया में भी शत प्रतिशत एफडीआई,शत प्रतिशत हायर फायर तो न्याय प्रणाली में मनपसंद जजों का प्लांटेशन।
कैग रपटो से ही अंबानी साम्राज्य का भेद खुलता है कभी कभार।
कैग से कोयला और स्पेक्ट्राम घोटालों का भी भंडाफोड़ हुआ।
स्पेक्ट्रम शेयरिंग की बेनजीर व्यवस्था दरअसल कंपनियों को कैग जैसी संस्थाओं के मुकाबले इम्म्यून बनाने का वैक्सीन है।
इसके अलावा टेलीकॉम रेगुलेटर ट्राई ने नए डीटीएच लाइसेंस पर सिफारिशें जारी कर दी हैं। ट्राई ने डीटीएच लाइसेंस 10 साल से बढ़ाकर 20 साल करने की सिफारिश की है। इसके अलावा डीटीएच कंपनियों के लिए क्रॉस-होल्डिंग पॉलिसी को बदलने का प्रस्ताव है। नया डीटीएच लाइसेंस हर 10 साल में रिन्यू करने और सेटटॉप बॉक्स पोर्टेबल बनाने का भी प्रस्ताव है।
ट्राई ने नए लाइसेंस के लिए 10 करोड़ रुपये की एकमुश्त एंट्री फीस लगाने की सिफारिश की है। वहीं डीटीएच और केबल कंपनियां पेरेंट कंपनी को हर ग्राहक के हिसाब से रेट देंगी। नई डीटीएच लाइसेंस फीस एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू 8 फीसदी करने की सिफारिश की गई है। डीटीएच ऑपरेटरों को नए सेट-टॉप बॉक्स नियमों का पालन करना होगा। ट्राई ने 1 डीटीएच या केबल कंपनी के लिए सिर्फ 1 ही ब्रॉडकास्टर कंट्रोल की सिफारिश की है।
ट्राई की सिफारिशों पर टाटा स्काई के एमडी और सीईओ हरित नागपाल का कहना है कि ट्राई की सिफारिशों से मौजूदा लाइसेंस पर पूरी तरह से सफाई आई है। ट्राई की सभी सिफारिशों को जल्द से जल्द लागू करना चाहिए।
सरकार जल्द ही एक ऐसा बैंक खोलने जा रही है जिसमें पैसे नहीं आइडियाज जमा होंगे। सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि 9 अगस्त को डीपीआर बैंक खोला जाएगा जिसमें प्रोजेक्ट से जुड़े सुझाव लिए जाएंगे।
डीपीआर बैंक आइडिया और इनोवेशन का बैंक होगा, डीपीआर बैंक में प्रोजेक्ट से जुड़े सुझाव लिए जाएंगे। अगले 10 साल में शुरू होने वाले प्रोजेक्ट का डीपीआर तैयार किया जाएगा। डीटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करना बड़ी मुश्किल है और मंत्रालय से गलत डीपीआर देने वालों की लिस्ट बनाने को कहा गया है।
हाईवे के किनारे ट्रांसमिशन लाइन, ऑप्टिकल फाइबर बिछाने के प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा है। ट्रांसमिशन लाइन का किराया टोल टैक्स के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल हो सकता है।
नितिन गडकरी के मुताबिक रेलवे के किसी प्रोजेक्ट की मंजूरी लेना सबसे मुश्किल काम है और जमीन अधिग्रहण की मंजूरी बिना इंडस्ट्री को प्रोजेक्ट के लिए अर्जी नहीं देनी चाहिए। 80 फीसदी जमीन अधिग्रहण के बिना टेंडर नहीं निकाला जाएगा। सरकार 15 अगस्त के पहले सभी अटके प्रोजेक्ट आगे बढ़ाने की कोशिश करेगी।
देश की विकास दर वर्ष 2014-15 मेें 6 फीसदी रहेगी। यह कहना हमारा नहीं। हावर्ड विश्वविद्यालय की एक प्रोफेसर गीता गोपीनाथ का कहना है। प्रोफेसर गीता ने कहा है कि सरकार के काम काज व बेहतर राजकाज की वजह से विकास छ फीसदी पर पहुंचेगा। यही नहीं यह भी कहा है कि आने वाले वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर करीब 7-8% हो सकती है। अगर तीव्रता से काम करे. रुकिए.....अभी एकदम से पढ़कर भ्रम में मत पड़ जाइए। दरअसल प्रोफेसर गीता गोपीनाथ कह रही हैं कि यदि मोदी सरकार तीव्रता से काम करती है तो विकास दर इतना पहुंचेगी।
विदेशी निवेशक भारतीय बाजारों पर कितने बुलिश हैं। गोल्डमैन सैक्स निफ्टी के लिए 8600 का लक्ष्य दे रहा है तो बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच ने दिसंबर तक ही सेंसेक्स के 27,000 तक जाने की बात कही है। ऐसे में उन शेयरों में आपकी स्ट्रैटेजी क्या होनी चाहिए जिनमें एफआईआई का पैसा लगा है।संदीप सभरवाल के मुताबिक बाजार की तेजी देखते हुए लगता है कि इसी महीने निफ्टी 7900 तक जा सकता है।
बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक पिछले कुछ दिनों से भारतीय शेयर बाजार में अपना निवेश लगातार बढ़ा रहे हैं। लेकिन किसी भी कंपनी में विदेशी निवेश की सीमा तय होने के कारण ऐसे निवेशक उन शेयरों में ज्यादा पैसा नहीं लगा पाएंगे, जो अर्थव्यवस्था में सुधार आने के कारण अभी और उछल सकते हैं। कोटक सिक्योरिटीज के संस्थागत इक्विटी विभाग की कल की एक रिपोर्ट के मुताबिक विदेशी निवेशकों ने अपनी निवेश सीमा की करीब तीन चौथाई रकम पहले ही उपभोक्ता खपत, वित्तीय और औद्योगिक क्षेत्रों से जुड़ी कंपनियों के शेयरों में लगा चुके हैं। सैफुल्ला रईस ने इस रिपोर्ट में लिखा है, 'हमें लगता है कि विदेशी निवेश सीमा के कारण दूसरे क्षेत्रों के ब्लूचिप शेयरों में निवेश करना मुश्किल हो सकता है। एफआईआई अपनी सीमा का 70 फीसदी निवेश पहले ही कर चुके हैं, इसलिए सबसे उम्दा औद्योगिक शेयर उनकी पहुंच से बाहर रह सकते हैं और सीएनएक्स निफ्टी जूनियर में ही उनकी रकम लगने की संभावना है।'
हालांकि ज्यादा से ज्यादा निवेशक भारत आ रहे हैं। बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच ने आज बताया कि उभरते बाजारों के वैश्विक (जीईएम) फंड भारत को खासी तवज्जो दे रहे हैं। लेकिन उसके विश्लेषक ज्योतिवद्र्घन जयपुरिया और आनंद कुमार भी कह रहे हैं कि वैश्विक फंडों से भारत में विदेशी निवेश का प्रवाह अब घट सकता है। कोटक की रिपोर्ट के मुताबिक निफ्टी पर सूचीबद्घ कंपनियों में विदेशी निवेशकों की 23 फीसदी हिस्सेदारी है। यह आंकड़ा खुदरा निवेशकों के लिए उपलब्ध शेयरों का करीब 45 फीसदी है। कंपनियों के शेयरों में विदेशी स्वामित्व की तय सीमा का यह करीब 60 फीसदी है।
इस साल विदेशी निवेशक करीब 71,109 करोड़ रुपये की शुद्घ लिवाली कर चुके हैं, जबकि बेंचमार्क सूचकांक इस दौरान 22 फीसदी चढ़े हैं। ये निवेशक अब अपना दायरा फैला रहे हैं। इसलिए 114 ब्लूचिप कंपनियों के शेयरों में अपना निवेश घटाकर उन्होंने 172 मिड और स्मॉल कैप कंपनियों में हिस्सेदारी बढ़ाई है। निफ्टी सूचकांक पर सूचीबद्घ 50 में से 33 कंपनियों में उनका निवेश बढ़ा है। ओसवाल सिक्योरिटीज के उपाध्यक्ष रिकेश पारेख ने कहा कि आईपीओ, क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट योजना और सरकारी विनिवेश कार्यक्रम के जरिये बाजार को अतिरिक्त विदेशी निवेश मिल सकता है।
इक्विटीरश के कुणाल सरावगी की राय (http://hindi.moneycontrol.com/mccode/news/article.php?id=104372)
टाटा स्टील में 545 रुपये का स्टॉपलॉस लगाकर बने रहना चाहिए। टाटा स्टील में 570 रुपये के आसपास एक रेसिस्टेंस है। अगर शेयर 570 रुपये के रेसिस्टेंस लेवल को पार करता है तो 600 रुपये तक के भाव आते दिख सकते हैं।
कोटक महिंद्रा बैंक में 915 रुपये के आसपास का स्टॉपलॉस रखकर निवेश बनाए रखने की राय होगी। 1000-1020 रुपये तक के स्तर मिल सकते हैं।
पूरे आईटी सेक्टर पर सकारात्मक नजरिया बना हुआ है। विप्रो लगातार आउटपरफॉर्मर रहा है और इसमें निचले स्तरों से अच्छा स्ट्रक्चर बना हुआ है। बाजार में कोई करेक्शन आने पर भी विप्रो आउटपरफॉर्म करेगा। विप्रो में मौजूदा निवेश बरकरार रखने की राय होगी और एक्सापायरी तक विप्रो अच्छा रिटर्न देगा।
एंजेल ब्रोकिंग के मयूरेश जोशी की राय
लंबी अवधि के निवेशकों को एक्साइड इंडस्ट्रीज में बने रहना चाहिए। इनके नतीजे काफी उत्साहजनक रहे हैं। अगर इसमें अगले 2 साल तक निवेश रखा जाएं तो बेहतरीन रिटर्न मिल सकते हैं।
टाटा पावर में निश्चित रुप से बने रहना चाहिए। पावर सेक्टर पर जिस तरह का सरकार का रुख है, उसे देखते हुए टाटा पावर में फायदेमंद निवेश होगा। वहीं जेएसडब्ल्यू एनर्जी भी एक मल्टीबैगर शेयर साबित हो सकता है, इसमें लंबी अवधि के लिए पूंजी लगाई जा सकती है।
एयरलाइन शेयरों में अभी नए निवेश से दूर रहना चाहिए। लेकिन अगर किसी का मौजूदा निवेश है तो फिलहाल जेट एयरवेज में लंबी अवधि तक बने रहना होगा।
आज आईटी और टेक्नोलॉजी शेयरों में जबर्दस्त खरीदारी से बाजार में जोश देखने को मिला है। बीएसई का आईटी इंडेक्स 2 फीसदी से ज्यादा चढ़कर बंद हुआ है। वहीं बीएसई का टेक्नोलॉजी इंडेक्स 1.75 फीसदी तक मजबूत हुआ है। हालांकि मेटल, फार्मा और पावर शेयरों में बिकवाली देखने को मिली। वहीं आज मिडकैप और स्मॉलकैप शेयरों की भी पिटाई हुई है। बीएसई का स्मॉलकैप इंडेक्स तो 0.5 फीसदी से ज्यादा टूटकर बंद हुआ है।
आज इकोनामिक टाइम्स के संपादकीय पर गौर करेंः
Jul 23 2014 : The Economic Times (Kolkata)
Spectrum Norms to Ward Off CAG Terror
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Trai's guidelines on spectrum-sharing mark an improvement on the current state of affairs but fall far short of what is desirable. They impose all kinds of arbitrary restrictions that limit utilisation of spectrum far below what technology and commercial conduct permit. This is unfortunate. India started off by offering operators tiny slivers of spectrum that did not allow optimal network design. Operators have had to carry out excessive investment to service their growing customer base because of this scarcity of the raw material of telecom. Yet, thanks to the policy of making spectrum available with minimal upfront costs, till the auctions started, and intense competition among a large number of licensees, consumers got some of the cheapest tariffs in the world.
The common good lies in regulation and licensing terms encouraging, not block ing, evolution of services to the latest te chnology platforms and business models that incorporate available technological possibilities. It is against this requireme nt that we have to measure the Trai regulations and government policy . And the latest sharing guidelines fall far short. Why not allow sharing among more than two operators? Why insist that an operator would not be able to share spectrum in a band that it did not possess prior to sharing? Why limit the kind of services that any operator can provide using shared spectrum? After all, the government only needs to ensure that it does not lose any revenue as a result of companies pooling their spectrum resources.
What Trai and the department of telecom are doing is, in everyday parlance, covering their backside. Maximising the common good is far from their topmost objective. They want to guard against being accused of causing notional revenue loss. It's time they stopped fearing CAG ghosts.
भारत पर बढ़ा अंतरराष्ट्रीय दबाव |
नयनिमा बसु / नई दिल्ली July 22, 2014 |
विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के व्यापार सरलीकरण समझौते (टीएफए) को कानूनी दस्तावेज का रूप देने के लिए तय 31 जुलाई की समयसीमा नजदीक आने के साथ ही भारत के ऊपर इस पर मुहर लगाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर से दबाव बढ़ गया है। हालांकि भारत इस बात का भरोसा मिलने तक टीएफए पर दस्तखत नहीं करने की अपनी रणनीति पर कायम है कि कृषि पर डब्ल्यूटीओ समझौते (एओए) के अंतर्गत खाद्य भंडारण और सब्सिडी के मुद्दे पर डब्ल्यूटीओ के सभी 159 सदस्य देशों के बीच चर्चा की जाएगी।
हालांकि भारत को अमेरिका, ब्राजील, चीन, अफ्रीका और विकासशील देशों के समूह जी-33 से यह भरोसा मिल चुका है कि खाद्य सुरक्षा पर आगे व्यापक स्तर पर चर्चा की जाएगी। जिनेवा में डब्ल्यूटीओ मुख्यालय के साथ संवाद में शामिल अधिकारियों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि भारत ने बीते सप्ताह के अंत तक संभवत: बाली बाद के कार्यक्रम के प्रति रुख साफ नहीं किया था।
नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर एक अधिकारी ने कहा, 'भारत ने अभी तक यह स्पष्ट नहीं किया है कि बाली बाद के कार्यक्रम पर उसका रुख क्या रहेगा। बीते सप्ताह तक अधूरा प्रस्ताव ही आया था। बाली के बाद से भारत ने बाली पैकेज पर चुप्पी बनाए रखी है, क्योंकि नई दिल्ली से दिशानिर्देश मिलने का इंतजार हो रहा था। भारत कई महीनों से कह रहा था कि इन मुद्दों पर वह बहस नहीं कर सकता, क्योंकि नई सरकार ने बाली वार्ताओं पर अपना रुख साफ नहीं किया है।'
एक अधिकारी ने कहा कि इस बार भारत अकेला पड़ गया है, क्योंकि ब्रिक्स, जी20, जी33 और अफ्रीकी समूहों सभी ने 31 जुलाई को टीएफए लागू करने की समयसीमा पर अपनी रजामंदी दे दी है। टीएफए जुलाई 2015 में लागू हो जाएगा। अधिकारी ने आगाह किया कि यदि इस बार भारत टीएफए पर मिला मौका गंवा देता है तो आगे हर किसी की खाद्य सुरक्षा के मसले पर बातचीत के लिए राजी करना 'बेहद मुश्किल' हो जाएगा।
सूत्र ने कहा कि वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) निर्मला सीतारामन ने बीते सप्ताह सिडनी में हुई जी20 की बैठक से इतर डब्ल्यूटीओ के महानिदेशक रॉबर्टो ऐज्वेडो, यूएसटीआर माइकल फॉरमैन और अन्य से मुलाकात की, जिसमें सभी ने उन्हें भरोसा दिलाया कि टीएफए पर काम पूरा होने के बाद खाद्य सुरक्षा पर जल्द से जल्द चर्चा की जाएगी। बातचीत में शामिल रहे एक अन्य अधिकारी ने कहा, 'अमेरिका और अन्य विकसित देशों सहित एक भी देश ने ऐसे संकेत नहीं दिए हैं कि वे बाली में किए गए वादों से पीछे हट रहे हैं।'
http://hindi.business-standard.com/storypage.php?autono=89683
वित्त मंत्री के लिए जीएसटी का लक्ष्य हुआ आसान |
वृष्टि बेनीवाल / नई दिल्ली July 17, 2014 |
देश में बहुप्रतीक्षित कर सुधार वस्तु और सेवाकर (जीएसटी) को लेकर अब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शासित राज्य मध्य प्रदेश और गुजरात विरोध नहीं करेंगे। राज्यों के असहज होने के अब दो साझे मसले हैं- प्रवेश शुल्क और पेट्रोलियम व अल्कोहल को जीएसटी के दायरे से बाहर रखना। पहली बार वित्त मंत्री बने अरुण जेटली को जीएसटी के गुण दोष के आधार पर बात करना होगा, जिसमें राजनीति कम होगी।
अधिकारियों के मुताबिक अब भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार केंद्र में है। गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री हैं और सरकार को भरोसा है कि वह मध्य प्रदेश और गुजरात को अपने पक्ष में कर लेगी। हालांकि सरकार इस बात को लेकर भी सचेत है कि राज्यों की साझा चिंता को दूर करना होगा, जिससे जल्द से जल्द जीएसटी मूर्त रूप ले सके। भाजपा शासित राज्यों का रुख भी नरम नजर आ रहा है।
गुजरात के वित्त मंत्री सौरभ पटेल ने कहा, 'हम जीएसटी का विरोध नहीं कर रहे हैं। हमारे राज्य में विनिर्माण होता है, जिससे बुनियादी ढांचा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर धन आता है। राज्य सरकारें स्वायत्तता को लेकर समझौता कर सकती हैं, लेकिन हमारे राजस्व की रक्षा होनी चाहिए। हमने केंद्र को एक प्रस्ताव सौंपा है। मुझे उम्मीद है कि बजट सत्र समाप्त होने के बाद से केंद्रीय वित्त मंत्री हमारे मसलों का हल निकालेंगे।'
हालांकि केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड के पूर्व चेयरमैन सुमित दत्त मजूमदार ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर के मानकों के मुताबिक जीएसटी को खपत आधारित कर माना जाता है। हाल ही में 'जीएसटी इन इंडिया' नामक पुस्तक लिख चुके मजूमदार कहते हैं, 'पहले विश्वास को लेकर संकट था। अब इस पर गुण दोष के आधार पर चर्चा होगी और केंद्र सरकार राज्यों को एकमत करने में सफल होगी।'
राज्य सरकारें राजस्व को होने वाले नुकसान और स्वायत्तता के मसले पर जीएसटी का विरोध कर रही हैं। गुजरात के विरोध की मुख्य वजह यह है कि जीएसटी जगह आधारित कर है, जिससे बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे खपत वाले राज्यों को फायदा होगा। पूर्ववर्ती सरकार ने आश्वासन दिया था कि अगर राज्यों को जीएसटी से कोई घाटा होता है तो वह राज्यों को इसकी भरपाई करेगी। लेकिन इससे गुजरात सहमत नहीं हुआ। मध्य प्रदेश इस आधार पर जीएसटी का विरोध कर रहा था कि इसे लागू करने पर संविधान के संघीय ढांचे को लेकर टकराव होगा।
राजस्व सचिव शक्तिकांत दास ने कहा, 'प्रवेश शुल्क, पेट्रोलियम और अल्कोहल को जीएसटी में शामिल किए जाने का मसला ही सिर्फ लंबित है। बैठक में दोनों पक्षों की ओर से इसी मसले पर लेन देन को लेकर चर्चा होनी है।' उन्होंने कहा कि केंद्र इसका पूर्ण समाधान चाहता है।
मुख्य रूप से असम, पश्चिम बंगाल, केरल, राजस्थान, तमिलनाडु और कर्नाटक पेट्रोलियम को जीएसटी के दायरे में लाने का विरोध कर रहे हैं क्योंकि इन राज्यों के राजस्व में पेट्रोलियम की हिस्सेदारी करीब 26 प्रतिशत है। इसके साथ ही इसमें कर प्रशासन आसान है, क्योंकि इसमें कारोबारियों की सीमित संख्या होती है। केंद्र का मानना है कि पेट्रोलियम अन्य उद्योगों के इस्तेमाल का बड़ा कच्चा माल है और इस पर करों में उतार चढ़ाव से उनकी पेट्रोलियम पर लागत में अंतर आएगा और इससे ऑडिट के दौरान राजस्व में होने वाली गड़बडिय़ां बढ़ेंगी। राज्यों के सामने यह प्रस्ताव रखा गया है कि जीएटी के तरह लगने वाले कर के अतिरिक्त वे इस पर अतिरिक्त लेवी लगा सकते हैं।
महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल जैसे कुछ बड़े राज्य चाहते हैं कि प्रवेश शुल्क ( यह स्थानीय क्षेत्र में सामानों के प्रवेश पर लगता है) को चुंगी के तर्ज पर जारी रखा जाए। राज्य के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति का भी यही विचार है। केंद्र सरकार चाहती है कि सभी तरह के प्रवेश शुल्क को जीएसटी में शामिल कर दिया जाए, जिससे सामानों की आवाजाही को लेकर कोई दिक्कत न हो। इस मसले पर संसद की स्थायी समिति भी सहमत है। इसके अलावा केंद्रीय बिक्री कर पर राज्यों को दिए जो वाले मुआवजे जैसे अन्य मसले भी हैं।
जेटली ने राज्यों से कहा है कि वह उन्हें 3 साल के दौरान होने वाले करीब 34,000 करोड़ रुपये की भरपाई करेंगे। छोटे कारबारियों पर दो प्राधिकरणों के दोहरे नियंत्रण से बचने के लिए राज्य सरकारें चाहती हैं कि 1.5 करोड़ तक के सालाना कारोबार पर प्रशासनिक नियंत्रण राज्य सरकारों का हो। केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड इस प्रस्ताव के विरोध में है, लेकिन केंद्र सरकार इस पर नरम रुख अपना सकती है।
राजस्व नुकसान को लेकर गुजरात की चिंता से अन्य राज्य भी इत्तेफाक रखते हैं। सभी ने अलग अलग समस्याएं बताई हैं। हरियाणा और पंजाब चाहते हैं कि खरीद कर जीएसटी के दायरे से अलग रहे। सरकार चाहती है कि संविधान संशोधन विधेयक और जीएसटी विधेयक इस साल संसद और राज्य विधानसभाओं में पारित हो जाए, जिससे जल्द से जल्द जीएसटी लागू किया जा सके। मजूमदार का कहना है, 'इसे लागू करने में कम से कम दो साल का वक्त लगेगा। बगैर मजबूत तकनीकी इंतजाम के जीएसटी को लागू करना असंभव होगा।'
http://hindi.business-standard.com/storypage.php?autono=89471
ul 23 2014 : The Economic Times (Kolkata)
Draft Regulatory Bill may be Taken Up in Winter Session
YOGIMA SETH SHARMA |
NEW DELHI |
The government is set to revive an initiative of its predecessor to make regulators of key sectors such as power, telecommunications and railways accountable to Parliament, a move that is expected to boost private investment in infrastructure.
Planning minister Rao Inderjit Singh has asked the infrastructure division of the Planning Commission to finalise the Draft Regulatory Reform Bill, 2013 by incorporating the views of different ministries, a senior government official told ET on condition of anonymity. The minister is keen to introduce the Bill in the winter session to revive investor confidence as soon as possible, the official added.
The draft Bill, if approved, will be applicable to sectors including oil and gas, coal, internet, broadcasting and cable television, posts, airports, ports, waterways, mass rapid transit system, highways, water supply and sanitation.
In 2009, the Congress-led UPA government had mooted a law to monitor the functioning of a large number of regulatory authorities in the country . The government's aim was to ensure orderly development of infrastructure services, enable competition and protect the interest of consumers through the regulators while securing access to affordable and quality infrastructure.
However, the Bill could not see the light of day during the term of the UPA government.
Last week, admitting that the regulatory commissions in the country were accountable to neither government nor Parliament, Singh said in Parliament, "The present legal framework on regulatory reforms needs some rethinking. Regulatory commissions in different sectors follow very divergent practices and require re-examin ation to have a uniform framework. Our government will undertake regulatory reforms in order to make them effective and answerable."
The government had set a target of $1-trillion investment in infrastructure during the 12th Five-year Plan (2012-17), half of which has to come from private players. The Regulatory Reform Bill is expected to draw private players that have been wary of investing in infrastructure development for want of transparency .
The key provisions of the draft Bill include an institutional framework for regulatory commissions, their role and functions, accountability to the legislature and interface with the markets and the people. Besides, their overall functioning would be subject to scrutiny by Parliament on a yearly basis and their decision could be challenged before the appellate authority.
Jul 23 2014 : The Economic Times (Kolkata)
Dalal St Rides High as Ukraine Crisis Eases
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MUMBAI OUR BUREAU |
Sensex Up 310 Points With FIIs showing no signs of tiring and global geopolitical tensions abating, the Sensex seems set to scale new highs
Indian stocks extended gains for a sixth straight day on Tuesday, tracking the strength in other Asian markets, as worries over tensions in Ukraine eased. Upsides in select blue chips such as Bharti Airtel, Reliance Industries and HDFC helped the Sensex end just below the record set earlier this month but the euphoria did not rub off on the broader market, although the benchmark did go back above the 26,000 mark.
Foreign institutional investors (FIIs) bought shares worth .
`412 crore on Tuesday, extending purchases to a fifth day.
They have bought equities worth .
`3,500 crore in the past four days to Monday.
"The rally seems to be sustainable because FII inflows are good and results so far have not been bad," said Rajesh Cheruvu, chief investment officer, RBS Private Banking India.
The BSE Sensex gained 1.21% to
close at 26,025.80 points. The NSE Nifty rose 1.09% to end at 7,767.85.
Both indices are less than a per cent away from record highs hit before the July 10 Union Budget.
Reliance Industries rose 3.2% on Tuesday, extending gains a second day after the company's firstquarter results beat estimates. Telecom stocks, led by Bharti Airtel, were among the top gainers after Idea Cellular's June quarter results exceeded forecasts.
Fund managers and analysts expect technology and consumer goods stocks to lead the market upsides over the next few days.
Jul 23 2014 : The Economic Times (Kolkata) Israeli Briefing Shaped Swaraj's Stand on Gaza
PLAYING SAFE With Rajnath Singh and Sushma Swaraj expected to visit Israel later this year, India treads a cautious line on the ongoing conflict between Hamas and Israel It is not without any reason that Exter nal Af fairs Minister Sushma Swaraj decided to tread a cautious line on the ongoing conflict in Gaza which resulted in the Parliament not adopting any resolution on the burning issue. Not many are aware that Swaraj was the chief of India-Israeli Parliamentary Friendship Forum in the past and had visited Tel Aviv in this capacity . The former leader of the Opposition like other senior leaders of her party have old relations with the West Asian country . Both Home Minister Rajnath Singh and Swaraj are expected to visit Israel later this year. Sources told ET that Swaraj received brief from the Israeli Embassy in India on the ongoing conflict in Gaza. The Israeli side emphasized to the Minister that it was not a fight between the innocent Palestinians and their defence forces. Tel Aviv conveyed to the Indian establishment that it was a fight between a State and Hamas, a terror organization. The MEA too was briefed on the issue from the Israeli side, sources said. Senior Israeli diplomats also met BJP leaders to convey their government's position and reasons behind Tel Aviv's massive response in the Gaza strip, sources infor med. "Swaraj's position was justified as it did not signal any change on India's position on Palestine. This government also believes in a two-state solution and the MEA statement made it clear. But the current situation is not about Israel-Palestine peace ne gotiations. Tel Aviv is reacting to the Hamas strategy to target Israeli citizens," claimed an official speaking on the condition of anonymity . Speaking in Rajya Sabha yesterday Swaraj had said that "blood bath" and violence anywhere is condemned and wanted a joint message from the House instead of it being divided. She asserted that India's policy on Palestine issue remains unchanged even as it refused to take sides over the Gaza conflict by say ing that both sides should hold peace talks. Spokesperson of the Israeli Embassy in India Ohad Horsandi told ET that while Tel Aviv would not like to comment on internal political issues in India and Parliamentary proceedings in India. However, Horsandi claimed that it would not be correct to the current strife as Israeli-Palestine conflict. "The Israeli Defence Forces are not targeting Palestinians. They are targeting a terror outfit in the Gaza strip and their capabilities. The residents in the Gaza strip are being used as human shield by the Hamas resulting i n t h e c a s u a l t i e s, " c l a i m e d Horsandi. It is a well-known fact BJP had old and close links with Israel. Prime Minister Narendra Modi himself had visited Tel Aviv as the Chief Minister of Gujarat. So did Transport and Rural Development Minister Nitin Gadkari when he was the BJP Chief three years back. Gujarat in fact has old trade ties with Israel in the field of diamond. In fact diamond trading constitutes almost half of the total India-Israel business.
Jul 23 2014 : The Economic Times (Bangalore) Flipkart Just Placed an Order for $1b Cash Pile
Co said to have raised $1b, biggest by an Indian ecomm startup Flipkart will announce possibly as early as next week that it has raised over $1 billion (Rs 6,000 crore), the biggest ever fund-raising by an Indian ecommerce company, two people aware of the development said. Half of the amount will come from existing investors Tiger Global, Russian billionaire Yuri Milner's DST and Accel Partners while the rest will come from several new investors. Among those who are said to be interested in investing in India's largest online retailer are Singapore's sovereign wealth fund GIC and T Rowe Price. With this latest deal, India's biggest online retailer will have raised over $ 1.7 billion, valuing it at $ 5 billion. "The deal is done," one person said. "An announcement could be made in a week or two." A billion dollars in fresh funding is not just a first for the Indian startup ecosystem, but also among the biggest fund raises globally this year. In June this year, Silicon Valley-based Uber raised $1.2 billion in new funding at a valua tion of around $17 billion. "This is the war chest to consolidate Flipkart's position in the country—the sector needs long-term, patient investors who can back with big money," said the second person. Flipkart did not respond to an email query on the developments. Flipkart is rapidly scaling up its operations as it competes with an increasing ly aggressive Amazon.in and home-grown competitor Snapdeal that raised funds of $100 million (Rs 600 crore) in May from Temasek, BlackRock, Myriad, Premji Invest and Tybourne at an estimated valuation of $1 billion. Amazon has been pumping in money in its India ops. Amazon has rapidly expanded to over 25 product categories and has launched customer service initiatives like next-day and same-day delivery ahead of competition and has embarked on a massive marketing campaign. Flipkart, which crossed $1 billion in sales in March and even acquired online fashion retailer Myntra in May , has also launched customer service initiatives like same-day delivery in multiple cities and at-home trials for certain fashion categories. As orders cross the 5-million-amonth mark, Flipkart will have to continue investing in its backend operations in a cut-throat market. The company , along with other players like Amazon and Snapdeal, is also contin uing to discount heavily . Since 2013, top global investors have competed to pump money into India's online retail industry , which advisory Technopak estimates will expand from the current $2.3 billion to $32 billion (Rs 13,700 crore to Rs 1.9 lakh crore) in six years. Over the past four quarters ecommerce companies cornered 72% of the $1.3 billion (Rs 7,700 crore) that went into Indian technology companies across 266 deals, according to research firm CB Insights. India's e-commerce sector is on fire, especially after Amazon entered the country last June. With some of the biggest retailers in the world jostling to get a piece of action in India, e-commerce companies in the country are riding a wave. For instance, while eBay is banking on Snapdeal, both Amazon and Walmart are pushing aggressively to conquer what is fast becoming the last frontier for them. "It's crazy--but justifiable considering e-commerce in India has just hit the tipping point and companies with most market share will reap the biggest returns," said a top executive at one of the e-commerce companies. The Indian Internet infrastructure is improving, especially with more first time users coming from mobile phones, and helping the existing base of around 200 million online users grow exponentially . While still dwarfed in size when compared to China's over $200 billion ecommerce market, fast growing ecommerce startups such as Flipkart and Snapdeal are wooing new global and high profile investors with each new round of funding.
Jul 23 2014 : The Economic Times (Bangalore) For Your Eyes Only, e-comm Hits the Road
Online eyewear retailer Lenskart is sending out optometrists on bikes equipped with eye-tesing equipment to consumers in their homes, the latest example of ecommerce companies' growing sophistication as they try out innovative strategies to expand the market. The initiative was rolled out in Delhi last week and will be launched in Bangalore and other cities in this fiscal. "Almost 75% of those who need glasses do not know they need one," said Peyush Bansal, the 30-year-old founder of Valyoo Technologies that runs Lenskart. "We want to expand to this market and provide access to good quality eyecare." The company hopes to sign up over 100 optometrists in Delhi in the next few months and do 1,200 eye checkups a day in national capital. Other online retailers, especially in the singlecategory segment, are also providing offline services to expand their customer base. Babycare firm Firstcry and health & fitness portal Healthkart have set up offline stores. Lingerie site Zivame recently launched a try-and-buy programme, where customers can try on products at home before buying them. Even larger multi-category e-tailers like Flipkart are piloting similar initiatives. "These strategies are required for customers who are not comfortable buying online and still want to touch and feel before making the purchase," said Saurabh Srivastava, director at advisory firm PwC. Earlier this year, Lenskart had launched a similar car-based service. About 30 such car units are present in seven cities. However, the company realised that a bike-version will scale up faster. "The bike is a cheaper option for the optometrists, provides us better unit economics and works well in smaller centres," said Bansal, who founded the company in 2008.
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