अब राम के नाम विध्वंसलीला पर सिनेमा असंभव,देख लें इसे तुरंत
सिनेमा और दृश्य माध्यमों पर अंकुश के लिए बन रहा है नया कानून
पलाश विश्वास
परसो मैंने आनंद पटवर्धन की फिल्म राम के नाम दोबारा देखी यूट्यूब पर।संघ परिवार की अनंत रामलीला समझने की दृष्टि से आज के नरसंहारी अश्वमेध समय में जब पेशावर में हुए नरसंहार के खिलाफ देशभर में मोमबत्ती जुलूस प्रतियोगिता है,असम के मारे गये बच्चों के लिए एक अदद मोमबत्ती भी नहीं है,तब इस फिल्म को देखे बिना हिंदुत्व के 2021 तक असम से जारी शत प्रतिशत हिंदूकरण मोहत्सव का असली खेल समझ में नहीं आयेगा।
गुगल पर यूट्यूब में तुरंत खोलेंः
In the Name of God / Ram Ke Naam (1991) Documentary Film by Anand Patwardhan
In the Name of God / Ram Ke Naam (1991) Documentary ...
www.youtube.com/watch?v=RgPIKwXRNEg
Apr 19, 2014 - Uploaded by Harish Udayakumar
More Information: https://en.wikipedia.org/wiki/Anand_P... http://www.patwardhan.com/films/Ramke... https ...
'In the Name of God' (Ram Ke Naam) - A film by Anand ...
www.youtube.com/watch?v=XlaiWCfgDEc
क्योंकि : टीवी चैनलों, केबल नेटवर्क के बढ़ते दायरे, नयी डिजिटल प्रौद्योगिकी के आगमन एवं पाइरेसी में बढोत्तरी तथा थियेटरों में लोगों की संख्या में कमी जैसे सिनेमा क्षेत्र में हो रहे परिवर्तनों के मद्देनजर चलचित्र विधेयक में संशोधन किया जा रहा है। इस पर जल्द ही मंत्रिमंडलीय टिप्पणी प्रस्तुत की जायेगी।
सारा किस्सा उस कसम से शुरु होता है,राम की सौगंध खाते हैं ,मंदिर वहीं बनायेंगे।
सारा किस्सा कमंडल बना मंडल का है जो सामाजिक बदलाव को सिरे से असंभव बना देने के खेल है और बाबरी मस्जिद तोड़कर भव्य राममंदिर बनाने की जिद है।उस जिद को आनंद ने फ्रेम दर फ्रेम लेंसकैद कर दिया है।
इस फिल्म में सोमनाथ से संघ परिवार के लौह पुरुष लालकृष्ण आडवानी की अपराजेय रथयात्रा है,जिसमें हिंदू साम्राज्यवाद के विजय अभियान का उद्घोष है और उसी का परिणाम हैं देश व्यापी दंगे,जो निरंतर अबाध पूंजी की तरह जारी हैं ।
और उसी का परिणाम है गुजरात नरसंहार और उसी का परिणाम है आदिवासियों के खिलाफ जारी सलवाजुड़ुम,जिसकी ताजा कड़ी असम में बच्चों का निर्मम नरसंहार है।
भारत में हिंदुत्व की सुनामी किसी नरेंद्र मोदी या किसी अमित साह ने शेयर बाजार की सांढ़सवारी करते हुए रच दी,ऐसी जिनकी धारणा है,वे इस फिल्म को जरुर देखें और लाकृष्ण आडवाणी की ऐतिहासिक भूमिका और मनुष्यता के विरुद्ध,प्रकृति के विरुद्ध,सभ्यता के विरुद्ध अक्षम्य उनका युद्ध अपराध को नये सिरे से याद करें।
संघ परिवार दरअसल अब भी इन्हीं लौहपुरुष की रामलीला है।
संघ परिवार के सिपाहसालार को खुल्ले में खेलने की इजाजत नहीं होती।उनके सारे ब्रह्मास्त्र भूमिगत हैं।
वे नश्वर प्राणियों को नेतृत्व का मंच देते हैं,जिनके डूबने से संघ परिवार की संस्थागत व्यवस्था में कोई हलचल होती नहीं है।
नरंद्र मोदी तो हिंदुत्व अश्वमेध का अश्व है,उसका प्राण नहीं।
प्राण तो आडवाणी में बसा है।
चेहरा वाजपेयी है,जो भारत रत्न है।
मरोणापरांत जाकर कहीं,मदन मोहन मालवीय के कृतित्व और व्यक्तित्व का महिमामंडन हुआ है।
वैसे ही वीर सावरकर और नाथूराम गोडसे का किस्सा है।
हम जो समझते हैं कि आडवाणी का किस्सा खत्म है और वे हाशिये पर हैं,यह सरासर गलत है वे अब भी संघ परिवार के अचूक ब्रह्मास्त्र हैं जो फिलहाल भूमिगत है।
उस दुस्समय का सिलसिला जारी है।हिंदुत्व के झंडेवरदार जुनूनी लोग विधर्मियों की क्या कहें ,मनुष्यता के भूगोल पर हिंदू आबादी को सबसे ज्यादा खतरे में डाल रही है।
प्रतिरोध के सिनेमा आंदोलन के साथियों से निवेदन है कि इस फिल्म को गली गली मोहल्ला दिखाने का जुगाड़ करें।
अब ऐसी फिल्में बनेगी नहीं।
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