फिर देश बोलेगा और आपको सुनना होगा!
Posted by Reyaz-ul-haque on 11/02/2015 07:46:00 PM
देश चला रहे शख्स के संवेदनशील मामलों पर चुप रहने और उनके सहयोगियों की गैरजिम्मेदाराना बयानबाज़ी पर मानव अधिकार कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी का लेख.
आज देश के हर क्षेत्र के नामचीन लोग यह कह रहे है कि देश में सहिष्णुता का माहौल नहीं है, लोग डरने लगे हैं. अविश्वास और भय की स्थितियां बन गई हैं, फिर भी सत्ता प्रतिष्ठान के अधिपति इस बात को मानने को राजी नहीं दिखाई दे रहे हैं. साहित्यकारों द्वारा अवार्ड लौटाए जाने को उन्होंने साज़िश करार दिया है. उनका कहना है कि ये सभी साहित्यकार वर्तमान सत्ता के शाश्वत विरोधी रहे हैं तथा एक विचारधारा विशेष की तरफ इनका रुझान है, इसलिए इनकी नाराजगी और पुरस्कार वापसी कोई गंभीर मुद्दा नहीं है.
सत्ताधारी वर्ग और उससे लाभान्वित होने वाले हितसमूह के लोग हर असहमति की आवाज़ को नकारने में लगे हुए हैं. ऐसा लगता है कि नकार इस सत्ता का सर्वप्रिय लक्षण है. शुरुआती दौर में जब वर्तमान सत्ता के सहभागियों के अपराधी चरित्र पर सवाल उठे और एक मंत्री पर दुष्कर्म जैसे कृत्य का आरोप लगा तो सत्ताधारी दल ने पूरी निर्लज्जता से उसका बचाव किया और उन्हें मंत्रिपद पर बनाए रखा. इसके बाद मानव संसाधन जैसे मंत्रालय में अपेक्षाकृत कम पढ़ी लिखी मंत्री महोदया के आगमन पर बात उठी तो वह भी हवा में उड़ा दी गयी. ललित गेट का मामला उठा और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे तथा विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का इस्तीफ़ा माँगा गया तब भी वही स्थिति बनी रही. व्यापमं में मौत दर मौत होती रही मगर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान निर्भयता से शासन का संचालन करने के लिए स्वतंत्र बने रहे.
महंगाई ने आसमान छुआ. सत्ता के सहयोगी बेलगाम बोलते रहे, मगर फिर भी प्रधानमंत्री ने कुछ भी कहना उचित नहीं समझा दहाड़ने वाले मोदी लब हिलाने से भी परहेज़ करने लगे. गोमांस के मुद्दे पर जमकर राजनीति हुई, सिर्फ संदेह के आधार पर देश भर में तीन लोगों की जान ले ली गयी. एक पशु जिसे पवित्र मान लिया गया, उसके लिए तीन तीन लोग मार डाले गए. पर इसका सिंहासन पर कोई असर नहीं पड़ा. सत्ताधारी दल के अधिकृत प्रवक्ता इन हत्याओं की आश्चर्यजनक व्याख्याएं करते रहे, कई बार तो लगा कि वे हत्याओं को जायज ठहराने का प्रयास कर रहे है. भूख और गरीबी के मुद्दे गाय की भेंट चढ़ गए, फिर भी प्रधानमंत्री नहीं बोले. शायद मारे गए लोगों की हमदर्दी के लिए मुल्क के वजीरे आज़म के पास कोई शब्द तक नहीं बचे थे, इस सत्ता का कितना दरिद्र समय है यह?
तर्कवादी, प्रगतिशील, वैज्ञानिक सोच के पैरोकार और अंधविश्वासों के खिलाफ़ जंग लड़ रहे तीन योद्धा नरेंद्र दाभोलकर, कामरेड गोविन्द पानसरे एवं प्रोफेसर कलबुर्गी मारे गये. यह सिर्फ तीन लोगों का क़त्ल नहीं था, यह देश में तर्क, स्वतंत्र विचार और वैज्ञानिक सोच की हत्या थी, मगर प्रधानमंत्री फिर भी नहीं बोले.
देश भर में दलित उत्पीड़न की वारदातों में बढ़ोतरी हुई, दक्षिण में विल्लपुरम से लेकर राजस्थान के डांगावास तथा हरियाणा के सुनपेड़ तक दलितों का नरसंहार हुआ, दलित नंगे किए गए, महिलाओं को बेइज्जत किया गया, दलित नौजवान मारे गए, मोदी जी को उनके आंसू पूंछने की फुर्सत नहीं मिली. हर जनसंहार पर सत्ता के अहंकारियों ने या तो पर्दा डालने की कोशिश की या उससे अपने को अलग दिखाने की कवायद की. एक केन्द्रीय मंत्री ने तो मारे गए दलित मासूमों की तुलना कुत्तों से कर दी और हंगामा होने पर यहाँ तक कहने में भी कोई संकोच नहीं किया कि जब मैं मीडिया से बात कर रहा था, तब वहां से कुत्ता गुजरा, इसलिये मैंने उसका नाम ले लिया, अगर भैंस निकल आती तो भैंस का नाम ले लेता! यह गाय, भैंस सरकार है या देश की सरकार है?
महिलाओं की अस्मत पर खतरे कम नहीं हुए, बल्कि बढ़े हैं. डायन बता कर हत्या करने, अपहरण, बलात्कार के मामलों में कई प्रदेश भयंकर रूप से कुख्यात हुए. मासूमों से दुष्कर्म और उनकी निर्मम हत्याओं की देशव्यापी बाढ़ आई हुई है, जिनकी जिम्मेदारी है इन्हें रोकने की, वो सत्तासीन लोग उलजलूल बयानबाज़ी करके पीड़ितों के घाव कुरेदते रहे फिर भी हमारे महान देश के पंतप्रधान मौनी बाबा बने रहे. लोग यह कह सकते है कि उनका ज्यादातर समय बाहर के मुल्कों की यात्रा में बीता है, इसलिए वो पर्याप्त ध्यान नहीं दे पाए. मगर जब घर में आग लगी हो तो कोई घूमने नहीं जाता सिवाय हमारे प्रधानमंत्री जी के.
मोदीजी आप किस तरह के प्रधानमंत्री हैं. क्या वाकई आपको कुछ भी पता नहीं है, या आपको सब कुछ पता है और आप ऐसा होने देना चाहते हैं. आपके देश में साहित्यकार धमकियों के चलते लिखना छोड़ देते हैं, तर्क करने वाले मार दिये जाते हैं. पड़ोसी मुल्क के कलाकार अपने फन की प्रस्तुति नहीं कर सकते हैं. कहीं खेल रोके दिये जाते हैं तो कहीं किसी के चेहरे पर स्याही छिड़की जाती है. प्रतिरोध के स्वरों को विरोधी दल की आवाज कह कर गरियाया जाता है. जाति और धर्म के नाम पर मार काट मची हुई है. वंचितों के अधिकार छीने जा रहे हैं. अल्पसंख्यकों को भयभीत किया जा रहा है. बुद्धिजीवियों को हेय दृष्टि से देखा जा रहा है, मगर आप है कि 'मेक इन इंडिया', 'डिजिटल इंडिया' और 'विकास' का ढोल पीट रहे हैं. जब पूरा मुल्क ही अशांत हो तो वह कैसे विकास करेगा? कैसा विकास और किनका विकास? किनके लिए विकास? सिर्फ नारे, भाषण और नए नए नाम वाली योजनाओं की शोशेबाजी, आखिर इस तरह कैसे यह देश आगे बढ़ेगा. यह देश एक भी रहेगा या बांट दिया जायेगा. कैसा मुल्क चाहते हैं आपके नागपुरी गुरुजन? शुभ दिनों के नाम पर कैसा अशुभ समय ले आए आप? और आपके ये बेलगाम भक्तगण जिस तरह की दादागिरी पर उतर आये हैं वे आपातकाल नामक सरकारी गुंडागर्दी से भी ज्यादा भयानक साबित हो रही है.
बढ़ती हुई असहिष्णुता और बिगड़ते सौहार्द पर देश के साहित्यकार, चित्रकार, फ़िल्मकार, उद्योगपति, अर्थशास्त्री, वैज्ञानिक, सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार, रिजर्व बैंक के गवर्नर और यहाँ तक कि राष्ट्रपति तक बोल रहे हैं. आप कब बोलेंगे? कब आपकी ये अराजक वानर सेना नियंत्रित होगी? चुप्पी तोड़िए पीएम जी, केवल रेडियो पर मन की बात मत कीजिए, देश के मन की बात भी समझिए और उसके मन से अपने मन की बात को मिला कर बोलिए, ताकि देशवासियों का भरोसा लौट सके. देश के बुद्धिजीवी तबके की आवाज़ों को हवा में मत उड़ाइए. असहमति के स्वरों को कुचलिए मत और अपने अंध भक्तों को समझाइए कि सत्ता का विरोध देशद्रोह नहीं होता है, और ना ही प्रतिरोध करने वालों को पड़ोसी मुल्कों में भेजने की जरूरत होती है. एक देश कई प्रकार की आवाज़ों से मिलकर बनता है. हम सब मिलकर एक देश है, ना कि नाम में राष्ट्रीय लगाने भर से कोई राष्ट्र हो जाता है.
भारत अपनी तमाम बहुलताओं, विविधताओं और बहुरंगी पहचान की वजह से भारत है. इसलिए यह भारत है क्योंकि यहाँ हर जाति, धर्म, पंथ, विचार, वेश, भाषा और भाव के व्यक्ति मिलकर रह सकते हैं. तभी हम गंगा जमुनी तहज़ीब बनाते हैं. सिर्फ गाय का नारा लगाने और गंगा की सफाई की बातें करने और देश विदेश के सैर सपाटे से राष्ट्र नहीं बनता, ना ही आगे बढ़ता है. सबको साथ ले कर चलना है तो भरोसा जीतिएगा. डर पैदा करके सत्ताई दमन के सहारे दम्भी शासन किसी भी मुल्क को ना तो कभी आगे ले गया है और ना ही ले जा पाएगा. उग्र राष्ट्रवाद के नाम पर फैलाया जा रहा कट्टरपंथ हमें एक तालिबानी मुल्क तो बना सकता है मगर विकसित राष्ट्र नहीं. यह आप भी जानते है और आपके आका भी, फिर भी अगर आप चुप रहना चाहते हैं तो बेशक रहिये, फिर यह पूरा देश बोलेगा और आप सिर्फ सुनेंगे.
गर्म हवा,कुछ भी नहीं बदला।नफरतें वहीं,सियासतें वहीं बंटवारे की,अलगाव और दंगा फसाद वहीं,चुनावी हार जीत से कुछ नहीं बदलता।
हमें फिजां यही बदलनी है!
Garm Hawa,the scorching winds of insecurity inflicts Humanity and Nature yet again!
पाकिस्तान बना तो क्या इसकी सजा हम अमन चैन,कायनात को देंगे और कयामत को गले लगायेंगे ?
बिरंची बाबा हारे तो नीतीश लालू के जाति अस्मिता महागबंधन की जीत होगी और मंडल बनाम कमंडल सिविल वार फिर घनघोर होगा और भारत फिर वही महाभारत होगा।फिर वहीं दंगा फसाद।
हमारे लिए चिंता का सबब है कि हमारे सबसे अजीज कलाकार शाहरुख खान को पाकिस्तानी बताया जा रहा है और उनकी हिफाजत का चाकचौबंद इतजाम करना पड़ रहा है।यही असुरक्षा लेकिन गर्म हवा है।सथ्यु की फिल्म गर्म हवा।
पलाश विश्वास
फिर देश बोलेगा और आपको सुनना होगा!
Posted by Reyaz-ul-haque on 11/02/2015 07:46:00 PMPl see my blogs;
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