हमारी सेना सियाचिन में माइनस से कई डिग्री नीचे के तापमान पर लड़ रही है । जबकि दूसरे देश की सेना आराम से अपने मैदानी इलाक़ों में बैठ कर घास छील रही है । लेकिन फिर हमारी सेना वहां लड़ किससे रही है ?
बार बार मुझे सियाचिन जाने की चुनौती क्या देता है बे ? मैं फ़ौज़ की नौकरी नहीं करता , जो वहां जाकर रहूँ । यह बात अलग है कि दुर्गम नैसर्गिक परिस्थितियों में रह कर काम कर रहे अपने हर सैनिक के प्रति मेरे मन में भरपूर सम्मान है । लिखने की तमीज़ सीख । और पहले तो पढ़ना सीख । लिखे हुए को उसी स्तर की अभिव्यंजना में समझना सीख । उल्लू के पट्ठे की तरह रिएक्ट न कर । लिखे हुए से कुढ़ कर कभी सियाचिन तो कभी पाकिस्तान जाने की बकता रहता है । जो व्यक्ति अपने मौलिक अधिकारों की बात उठाएगा , उसे तू सियाचिन भेजने की धमकी देगा ? और क्या हमारे सैनिक सियाचिन में इसलिए तैनात हैं कि तू साम्प्रदायिकता फैला कर देश तोड़ दे ? वैसे तुझे बता दू कि मैं सियाचिन , और उस जैसी ऊंचाईयों पर कई बार जाकर रहा हूँ । मेरा घर हिमालय में है । हम तो भैंस चराने भी 14 हज़ार फुट तक जाते रहे हैं । तू अपनी सोच ।
cartoon by Anil Uniyal
cartoartoon
जो मूर्ख देश के आंतरिक राजनैतिक विवादों की काट में बात बात पर सेना के त्याग और शौर्य का हवाला देने लगते हैं , उन्हें नहीं पता कि वे देश को किस प्रच्छन्न जोखिम में डाल रहे हैं । ऐ मूढ़ , न सिर्फ हमारे , अपितु हर देश की सेना सीमाओं पर विषम परिस्थियों मे रहती है । भारत में अनिवार्य नहीं बल्कि ऐच्छिक सैन्य सेवा है । हर व्यक्ति स्वेच्छा से सेना में भर्ती होता है । कृपया सेना को चुपचाप अपना काम करने दें । अपनी मूर्खता पूर्ण और ओछी देश भक्ति के जोश में सेना का अनावश्यक महिमा मण्डन न करें । इसका परिणाम पड़ोसी मुल्क आजतक भुगत रहा है , जहां संसद , न्यायपालिका , कार्यपालिका सब पर सेना हावी है । तुम साम्प्रदायिक उन्माद फैला कर देश को भीतर से तोड़ रहे हो । ऐसे में सेना बाहरी सीमाओं की हिफाज़त कैसे कर पाएगी । क्या तुम बात बात में सेना का हवाला देकर यह कहना चाहते हो की भारतीय सेना राष्ट्रीय धरोहर नहीं , अपितु तुम्हारा कैडर है ?सभ्य बनो , शिक्षित बनो , साक्षर बनो । मूर्खों जैसी बात न करो ।
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