|| इन्द्रप्रस्थ में भीम बुद्ध को पुकारता है ||
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कितनी आग है उनके भीतर
जो मरे हुए की देह को राख होने तक आग में जलाते हैं
यही है उनकी परम्परा यही है उनका अनुष्ठान
किसी के जीवन और किसी देह को आग में जलाना
जलाते रहना ...
जीवित या ज़िंदा रहे आने के लिए
जूझते लोगों द्वारा
सदियों पहले ठुकरा दी गयी
एक मृत भाषा में
लगातार खाते कमाते
ठगते, लूटते और लगातार जीतते
शव-भोगियों का दावा है,
सिर्फ वही जीवित हैं
और हैं वही समकालीन
वही हैं अतीत के स्वामी
भविष्य के कालजयी
उन्हीं की हैं फौजें, पुलिस ,
न्यायालय..सूचना-संचार,
राज्य और राष्ट्र के समस्त संसाधन
वही लगातार लिखते हैं
वही लगातार बोलते हैं
अंधी और ठग और बर्बर हो चुकी
एक बहुप्रसारित असभ्य भाषा से उठाते हुए
हज़ारों मरे हुए शब्द
लाखों मानवघाती हिंस्र विचार
डरावने कर्मकांड
सिद्धार्थ,
मत जाना इस बार कुशीनगर
मत जाना सारनाथ वाराणसी
वहां राख हो चुकी है प्राकृत
पालि मिटा दी गयी है
अपभ्रंश में क्षेपक हैं, वाक्यों में विकार
वहां की राजभाषा में तत्सम का विष है
सुनो,
श्रावस्ती से हो कर कहीं और चले जाओ
कतरा कर
अब जो भाषा और विचार वहां है
और जो संक्रामक हो कर उधर उत्तर में व्याप्त है
उसकी भाषा और मंतव्य में
जितनी हिंसा और आग है
जितना है अम्ल
और जितनी है वुभुक्षा उस दावाग्नि से कैसे निकल पाओगे ?
तथागत , सुनो !
नहीं बचेगा उससे
यह तुम्हारा जर्जर बूढ़ा शरीर
मत जाना सारनाथ,
अशोक के सारे चिह्न उन्होंने
लूट लिये हैं
सुरक्षित नहीं है अब
न नालंदा , न कुशीनगर, न कौसाम्बी
कहीं चले जाना वन-प्रांतर
आ जाना दक्षिण
छुप कर
या पूरब
या फिर
हस्तिनापुर
या इन्द्रप्रस्थ
पहुँचना वहां अपने भिक्खु शिष्यों के पास
दुष्ट कुरु शासकों ने लाक्षागृह में घेर लिया है उन्हें
स्थल-स्थल पर द्रोणाचार्य के सशस्त्र कुरु-प्रहरी हैं
वहां कहीं कृष्ण है अहीर योगीश्वर
वहीं हैं व्यास
वहीं वाल्मीकि
तुम्हारे आगमन के उपरान्त
लिखी जायेगी
एक नयी गीता
जिसकी मूल पांडुलिपि में इसबार
नहीं होगा कोई 'स्मृतियों' का संघातक उच्छिष्ट जीवाणु
कोई विषैला रोगाणु
हम सब अपनी-अपनी
मौन, चिंतित ,
डूबी हुई प्रार्थना में डूबे
निरंतर प्रतीक्षा में हैं.
आ जाओ, बुद्ध,
भीम हस्तिनापुर से पुकारता
है तुम्हें इस बार .... !
यह पुकार
तुम तक पहुँच रही है न ?
-- उदय प्रकाश, ७ मार्च, २०१६
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