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अभिव्यक्ति के लिए हम किसी भी तरह का जोखिम उठाने से हिचकेंगे नहीं,लेकिन माध्यम ही फेल हो जाये और ठूठ का कारोबार बन जाये तो माध्यम नया बनाने की जरुरत है और आगे बची खुची जिंदगी में अब तक जो दोस्ती जितनी भी कमायी है,उसीका भरोसा है कि कमसकम कुछ दोस्त तो हाथ में हाथ रखेंगे और कुछ मील और साथ चलेंगे य़हो सकता है तबतक कयामत का यह मंजर बदल जाये।
संपादकों ,प्रकाशकों और आलोचकों की कृपा का मैं मोहताज कभी नहीं रहा क्योंकि हम आम लोगों की बात कहना चाहते थे और सच कहना चाहते थे।हमने दरअसल रचा कुछ भी नहीं है।अखबारों में तब तक लिखा जब तक सच कहने लिखने की इजाजत थी।सिर्फ विज्ञापनों के बीच फीलर बनने के लिए या स्थापित,पुरस्कृत होने के लिए मैंने एक पंक्ति भी नहीं लिखी।
आज फिर जब नेट पर,सोशल मीडिया पर वही पहरा है और अभिव्यक्ति की मनाही है तो बेहतर होगा कि झूठ के कारोबार में शामिल हो जाने के बजाय यहां से भी आहिस्ते आहिस्ते हट जाउं।जब तक हूं सच के सिवाय कुछ नहीं कहना है।
शायद 20 अप्रैल,1980 को बिहार के धनबादसे जो अब झारखंड में है,मैंने अखबारों की नौकरी शुरु की थी।18 मई ,2016 को जब मैं रिटायर करुंगा,तो लगातार 36 साल अखबारों में मेरी नौकरी का सिलसिला खत्म हो जायेगा।
इस पूरी अवधि में मैंने विशुध पत्रकारिता की है।किसी किस्म की दलाली नहीं की और न मैनेजरी।जो सरकार और तेवर मेरे पहली दफा कलम पकड़ते वक्त स्कूली दिनों में थे,उन्ही के लिए आगे भी आपका सहयोग मिलेगा तो जनसुनवाई का सिलसिला बनाये रखने की हर कोशिश में बने रहने का इरादा है।बले ही मेरी कोी हैसियत नहीं है,लेकिनअपने दिलो दिमाग में जल रही मुहब्बत की लौ जिंदा रखने की भरपूर कोशिश रही है हमारी।
हमें मैनेजर या दलाल न बन सकने का कोई अफसोस नहीं है।
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