ब्राह्मणवाद से आज़ादी ! जातिवाद से आज़ादी ! मनुवाद से आज़ादी ! जय भीम जय भीम !
कन्हैया की गिरफीतरी से साथ ही यह नारे जेएनयु ही नहीं बल्कि प्रगतिशील (?) या फिर वामपंथ से हर विरोध के सबसे केन्द्रीय नारे थे l शायद में गलत हो सकता हूँ ? या फिर यह मेरे पूर्वाग्रह भी हो सकते हैं l
क्योंकि यह चारों ही नारे बहुत ही गंभीर आग्रह रखते हैं l कोर्पोरेट और सांप्रदायिक फासीवादी दुश्मन हमेशा से चिन्हित हैं l वह हमेशा से हमारे सामने दुसरे छोर में हैं l बहुत स्पष्ट विभाजन रेखा है l
लेकिन इन चारों नारों को आत्मसात करना और उसे ज़मीनी हकीकत में बदलने के प्रयास का मतलब है कि सामने के वार ही नहीं बल्कि अपने भीतर खाने के भी विरोध का सामना करना है l
इन चारो नारों को आत्मसात करने का मतलब है कि ब्राह्मणवाद की पूरी संस्कृति को चुनौती देना है l
जातिवाद महज़ सामाजिक विन्यास नहीं है बल्कि देश के संसाधनों पर एक छोटे से सामाजिक वर्ग का मालिकियत को चुनौती देना है l और अगर आप खुद भी उसी सामाजिक वर्ग का हिस्सा हैं तो इन नारों को आत्मसात करने के साथ ही दोनों छोरों के प्रति जवाबदेही भी है और अपने परिवार से लेकर आपने समाज की तीखी प्रतिक्रिया का सामना भी करना है l
बिलकुल
फैसला करो कि तुम किस तरफ हो !
सामाजिक न्याय या फिर पारम्परिक सामाजिक व्यवस्था और पारिवारिक आग्रह ????????
इस लड़ाई में खुद से , अपने परिवार से अपने समाज से और फिर पूरी सामाजिक राजनैतिक व्यवस्था से एक साथ मुकाबला करना होगा l
फिर हजारों वर्षों से आप के समाज के दमन के शिकार दबे कुचले वर्ग आप पर विशवास भी आसानी से नहीं करेंगे l उनका विश्वास जीतना भी एक बड़ी या सबसे बड़ी चुनौती होगी l
उनके घाव बहुत गहरे हैं l
जातिवाद - ब्राह्मणवाद की लड़ाई पूंजीवाद - फासीवाद की लड़ाई से कई गुनी ज्यादा लम्बी हैं l
तो फिर क्या आप तैयार है कहने को ..... जय भीम -भगत सिंह ! |
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