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Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Thursday, March 31, 2016

फासिस्ट ताकतों का बाप अब अमेरिका है तो मां इजराइल। नवउदारवाद के बच्चे और मसीहावृंद उन्हींकी संतानें हैं। फासिज्म का चेहरा सिर्फ संघ परिवार नहीं,अमेरिका और इजराइल भी उसमें शामिल हैं! पलाश विश्वास

फासिस्ट ताकतों का बाप अब अमेरिका है तो मां इजराइल।

नवउदारवाद के बच्चे और मसीहावृंद उन्हींकी संतानें हैं।

फासिज्म का चेहरा सिर्फ संघ परिवार नहीं,अमेरिका और इजराइल भी उसमें शामिल हैं!

पलाश विश्वास

फासिज्म का चेहरा सिर्फ संघ परिवार नहीं,अमेरिका और इजराइल भी उसमें शामिल हैं!

फासिज्म अब ग्लोबल आर्डर है और हिंदुत्व सिर्फ उसका एक अदद रंग है।

जाति उन्मूलन अनिवार्य है और इंसानियत का मुल्क बनाना बेहद जरुरी है तो देश दुनिया को जोड़े बिना हम अपने अपने द्वीपों में सही सलामत मारे जाने को नियतिबद्ध है और किसी मसीहा हमें मुक्ति नहीं दिला सकता जबतक हम खुद मुक्ति संग्राम में शामिल न हों।

मेरे पिता जमीनी कार्यकर्ता थे और जैसे हमारे पुरखों की फितरत थी कि किसी मसले या मुद्दे को लेकर उनकी प्रतिक्रिया त्वरित होती थी और वे सीधे सत्ता से भिड़ जाते थे।ब्रिटिश राज के दौरान यह बार बार हुआ।तमाम आदिवासी और किसान विद्रोहों का कुल किस्सा यही है।दमन के जरिये सत्ता ने ऐसे तमाम विद्रोहों को रफा दफा कर लिया।


मेरे पिता ढिमरी ब्लाक किसान विद्रोह के नेता भी थे,जो नैनीताल की तराई में लालकुंआ रेलवे जंक्शन के पास तराई के सभी किसानों और भूमिहीनों की जल जमीन जंगल की लड़ाई थी और उस आंदोलन का नतीजा दमन के मुकाबले बिखराव में हुआ।


हमारे पुरखे हमेशा हारते रहे और लड़ते रहे और हमेशा सत्ता जीतती रही और आभिजात आधिपात्य ने अंततः प्रकृति से जुडे़,कृषि से जुड़े तमाम समुदायों,नस्लों और इलाकों पर एकाधिकार कायम कर लिया।पहले लड़ाकों का दानवीकरण हुआ और आजादी के बाद वही सिलसिला जारी है।


हारने की ऐसी बुरी लत लगी है कि हम जीतने का ख्वाब भी नहीं देखते।


एकमुश्त अंबेडकरी और कम्युनिस्ट पिता जब तक जिंदा थे,तब तक राजनीतिक मतभेद के बावजूद हमारी उनसेमुख्य बहस इसीको लेकर होती रही कि अगर लड़ना ही तो रणनीति और तैयारी के साथ क्यों न लड़े।


स्वाध्याय के बूते जितना वे जानते थे,मैं देश दुनिया से जुड़ने की उनकी कोशिशों की वजह से हमेशा कुछ ज्यादा जानता रहा हूं और पिता जमीनी हकीकत के हवाले से मेरी हर दलील को किताबी कहकर खारिज कर दिया करते थे।


भाववादी तौर तरीके से बुनियादी बदलाव की किसी परिकल्पना के बिना हम कोई भी लड़ाई जीत नहीं सकते क्योंकि सत्ता के आभिजात्य वर्ग के पास सत्ता के अलावा राष्ट्र का समूचा सैन्य तंत्र है और दमन पर उतारु उसकी फौजें लोकतंत्र और संविधान, कानून के राज,नागरिक और मानवाधिकार की बात रही दूर,मनुष्यता और प्रकृति की परवाह भी नहीं करता।


अर्थशास्त्र पर एकाधिकार और राजनीतिक सत्ता के दम पर सत्ता वर्ग हर आंदोलन और प्रतिरोध को खत्म कर देता है।हम तमाम भावों और भाववादों,मिथकों और धर्मोन्माद,अस्मिताओं और प्रतीकों के अमूर्त संसार मुक्त बाजार का कार्निवाल के हिस्से ही हैं जहां हर चेहरा या तो कंबंध है या सिर्ऎप मुखौटा।


हकीकत की जमीन पर खड़े होने का न हमारा विवेक है और न साहस और मनुष्य हम नामवास्ते हैं और दरअसल हम रीढ़विहीन विचित्र प्रामी हैं,जिसकी सारी संवेदनाएं मरी हुई बासी सड़ी गली मछलियां हैं।


व्यवस्था और राष्ट्र में परिवर्तन का यह कोई प्रस्थानबिंदू हो ही नहीं सकता बशर्ते कि हममें से कुछ लोग जुनून की हद तक बिल्कुल मेरे पिता की तरह सत्ता और आभिजात्य के चक्रव्यूह को अकेले अभिमन्यु की तरह तोड़ने की कोशिश करते रहे।


पिछले दिनों देशभर के मित्रों से आमने सामने और फोन और दूसरे माध्यमों पर मेरी बहस का प्रस्थानबिंदू यही रहा है कि अब समस्याएं,मुद्दे और मसले स्थानीय नहीं हैं।राष्ट्रीय भी नहीं है।


सारी समस्याएं ग्लोबल है और उनके मुकाबले सारी दीवारे गिराकर मोर्चाबंदी करने की अगर हमारी तैयारी नहीं है तो बेहतर हो कि इसी लूटतंत्र का हिस्सा बनकर जितना चाहे उतना बटोर लें या बजरंगी बनकर मोक्ष प्राप्त कर लें।


हम जात और धर्म ही पूछते रहेंगे तो हमें याद रखना चाहिए क्रयशक्ति पर वर्चस्व जिनका है,उनकी न कोई जाति है और न उनका कोई धर्म है।


उन सबमें रिश्तेदारी है चाहे उनकी जाति कोई हो या धर्म कोई हो या नस्ल या देश कुछ भी हो।


हम पीड़ित उत्पीड़ित अछूत वंचित मारे जाने को अभिशप्त लोग ही जाति धर्म के नर्क में रोज रोज महाभारत जी रहे हैं और वे हर महाभारत न सिर्फ रच रहे हैं,बिना प्रतिरोध जीत रहे हैं और हमारे संसार में विधवा विलाप के अलावा कोई वसंत राग नहीं है और न बहार है।


हमारे हिस्से में कोई जन्नत नहीं है और हम सिर्फ कयामतों के वारिसान हैं जो कयामतों की विरासत के शरीक हैं और अपनी तबाही का सामान जुटाने के लिए घमासान कर रहे हैं।हम अपने बच्चों को बलि चढ़ाने वाले हैवान हैं।


पूंजीवाद के पतन के साथ साथ लोककल्याणकारी राज्य का अवसान हो गया है और मुक्तबाजारी अर्थव्यवस्था और राजनीति दोनों सट्टाबाजी की मुनाफावसूली में तब्दील है जबकि देश गैस चैंबर और मृत्यु उपत्यका ही नहीं,बल्कि एक अनंत कैसिनो है।


इस महान जुआघर में हमारी जानमाल,जल जंगल जमीन से लेकर पूरी कायनात दांव पर है और इंसानियत का कोई वजूद ही नहीं है।


यह अभूत पूर्व संकट है कि सत्तावर्ग ग्लोबल है और हिंदुत्व एजंडा की तरह उनका हर कार्यक्रम ग्लोबल है विश्व बैंक,अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और संयुक्त राष्ट्रसंघ से लेकर नोबेल पुरस्कार और यूनेस्को तक कुल किस्सा यही है।


जो विदेशी वित्तपोषित संस्थाएं है उनके कार्यकर्ता देश में नहीं विदेश से कार्य करती है तो हमारी सरकार और संसद का आधारक्षेत्र भी वाशिंगटन है।


हम किसी स्थानीय मोर्चे पर किलेबंदी से पाषाणकालीन हथियारों के दम पर जाति धर्म और नस्ल,भाषा और संस्कृति के गृहयुद्ध में निष्णात होकर वैश्विक सत्ता और वैश्विक सत्तावर्ग से लड़ ही नहीं सकते।


इसी वजह से हम हर जंग हारने के इतिहास की पुनरावृत्ति करते हैं बार बार और सत्ता से टकराने के बजाय आपस में कभी मंडल तोकभी कमंडल के नाम लड़ते हैं और लहुलुहान होते रहते हैं जबकि समस्याएं हमेशा जस की तस नहीं रहती,विकास दर और आंकड़ों,रेटिंग और तकनीक की तरह यूजर फ्रेंडली सशक्तीकरण समावेश और समरसता की आड़ में वे निरंतर जिटिल से जटिल होती रहती हैं।


संकट अभूतपूर्व है क्योंकि फासिज्म किसी एक देश का अंधराष्ट्रवाद नहीं है और यह एक वैश्विक तंत्र है,जिसकी पूरी संरचना मुक्तबाजार है।


फासिस्ट ताकतों का बाप अब अमेरिका है तो मां इजराइल।


नवउदारवाद के बच्चे और मसीहावृंद उन्हींकी संतानें हैं।


यह महज संदजोग नहीं है कि ट्रंप जो बकते हैं वह हमारे बजरंगी ब्रिगेड की किसी भी सिपाही या सिपाहसालार की मौलिक बकवास है और उसका सौंदर्यशास्त्र खुल्लमखुल्ला मनुस्मृति और रंग भेद दोनों हैं।


और फासिज्म से जुड़़े सारे संगठन विशुद्धतावादी नरसंहारी कि क्लाक्स क्लान है।


अब जैसे अमरीका ने कहा है कि परमाणु हथियारों और सामग्री की जिम्‍मेदारी से निगरानी करने में भारत की भूमिका महत्‍वपूर्ण है। प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी की वाशिंगटन यात्रा से पहले राष्‍ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के साथ बैठक में अमरीका के विदेश मंत्री जॉन कैरी ने कहा कि भारत विश्‍व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और प्रौद्योगिकी और ऊर्जा संबंधी अनेक मुद्दों पर अमरीका का सच्‍चा भागीदार है।


दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अमेरिकी साम्राज्यवाद का आचरण और इतिहास देख लीजिये और भारत को अस्थिर करने वाली तमाम गतिविधियों की फाइलें निकाल लीजिये तो इस बयान का आशय समझ में आयेगा।बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम में अमेरिकी सातवें नौसैनिक बेड़ा का मकसद भी भारत को इराक, अफगानिस्तान, वियतनाम,लातिन अमेरिका,सीरिया लीबिया जैसा कुछ बना देना ही था।


किसी कन्हैया के बयान पर हम सिखों के नरसंहार और गुजरात नरसंहार के अंतर को लेकर राष्ट्रीय विमर्श में शामिल हो जाते हैं बिना इसकी परवाह किये कि गुजरात नरसंहार और सिख संहार के सारे युद्ध अपराधी न सिर्फ छुट्टा घूम रहे हैं बल्कि वे देश और देश की जनता के भाग्य विधाता बन गये हैं जबकि पीड़ितों को न्याय अभी उसीतरह नहीं मिला जैसे भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों कि नियत पीढ़ी दर पीढ़ी विकलांग होते जाने की है और हम हरित क्रांति की कोख से पैदा इसी त्रासदी का विस्तार मनसेंटो साम्राज्य की ठेके पर खेती के जरिये करने जा रहे हैं जबकि हर साल तोक भाव से देशके कोने कोने में किसान आत्म हत्या करने को मजबूर हैं।


भारत में फासिज्म के मुकाबले के लिए भारत अमेरिका संबंध की विरासत को समझना बेहद जरुरी है  तो यह भी समझना अनिवार्य है कि फलीस्तीन का समर्थन करते रहने के बावजूद हमने फलस्तीन की कीमत पर इजराइल से प्रेम पिंगें किस अभिसार के लिए बढ़ा ली है।


भारतीय सत्ता से ही आपका मुकाबला नहीं है क्योंकि इस फासिस्ट सत्ता का प्राण पाखी उसीतरह अमेरिका और इजराइल में हैं जैसे हमारे तमाम आदरणीय राष्ट्रनेता अप्रवासी भारतीय हवा हवाई लख टकिया बूट सूट प्रजाति है,जिनके लिए भाड़ में जाये देश,बाड़ में जाये देश के लोग,विदेशी पूंजी और विदेशी हितों का अबाध प्रवाह बना रहे ताकि वे सुखीलाला की महाजनी के साथ साथ ब्रिटिश राज से तोहफे में मिली जमींदारियों और रियासतों का कारोबार लाशों के समंदर में और आसमान में भी जारी रख सकें।


अब इसे बी समझ लीजिये कि अमेरिका ने भारत की नेतृत्व क्षमता और जिम्मेदारपूर्ण रवैए की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए गुरुवार को कहा कि परमाणु हथियार और परमाणु सामग्री के जिम्मेदार प्रबंधन में भारत को अति महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है।


केरी ने कहा कि मौजूदा परिदृश्य में जहां हम देखते हैं कि कुछ ऐसे निर्णय लिए जा रहे हैं जिससे हथियारों की होड़ को तेज गति मिल सकती है तो ऐसे में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। हमने इस मसले को अन्य साझीदारों के समक्ष भी उठाया है। उन्होंने स्वच्छ ऊर्जा और कार्बन उत्सर्जन कम करने में भारत की भूमिका की तारीफ की ।

केरी ने उम्मीद जताई कि शिखर सम्मेलन सभी देशों को विश्व के प्रति उनकी जिम्मेदारी और उनके द्वारा उठाए गए कदमों के परिणाम की बेहतर समझ पैदा करेगा। डोभाल ने उम्मीद जताई कि आने वाले वर्षों में भारत-अमेरिका का संबंध नई ऊंचाइयों को छुएगा और इसे और मजबूती मिलेगी। भारत और अमेरिका के सामने कई समस्याएं एक जैसी हैं जैसे आतंकवाद, साइबर हमले और दोनों देश इससे निपटने के लिए साथ मिलकर काम कर रहे हैं।  


कैरी ने कहा कि पेरिस में जलवायु समझौता कराने में भारत के नेतृत्‍व के लिए अमरीका विशेष रूप से आभारी है। अमरीकी विदेश मंत्री ने कहा कि राष्‍ट्रपति ओबामा ने भारत के साथ संबंधों को इस शताब्‍दी का सबसे अहम संबंध बताया है, और उनके ऐसा कहने के पीछे कई कारण है। अमरीका के साथ सहयोग बढ़ने की आशा करते हुए श्री डोभाल ने कहा कि दोनों देश आतंकवाद जैसी समस्‍याओं से निपटने के लिए मिलकर काम करेंगे।


इस जलवायु विमर्श का हश्र हम बढ़ते हुए तापमान,बदलते मौसम के कयामती मंजर में पिघलते हुए ग्लेशियरों के साथ क्या समझते सुनामियों भूकंपों से बार बार घिरकर,तबाह होतर भी समझ नहीं पा रहे हैं और न इनसे निपटने की हमारी कोई इच्छा शक्ति है।

ANIVerified account@ANI_news

#WATCH: Statements by U.S. Secretary of State John Kerry and NSA Ajit Doval after their meeting in Washington.





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