Rajiv Nayan Bahuguna मेरे संपादक , मेरे संतापक ---७ ----------------------------------- बहुगुणा आख्यान
मेरे संपादक , मेरे संतापक ---७
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बहुगुणा आख्यान
हेमवती नंदन बहुगुणा ने मुझे और मैंने उन्हें पहली बार १९७५ में नवंबर महीने की चौदह तारीख को देखा .तब तक वह उत्तर प्रदेश के लोकप्रिय , लेकिन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी कि आँख की किरकिरी बन चुके थे . टिहरी में एक नहर परियोजना का शिलान्यास करने के बहाने आये थे . सदियों से दमित , दलित , कुंठित और तिरस्कृत पूर्व टिहरी रियासत की प्रजा ने उनमे अपना अभिनव स्वाभिमान देखा था . मै स्कूल में पढता था , लेकिन कुछ माह पहले ही चर्चित अस्कोट - आराकोट पदयात्र पूरी कर आया था . मेरे पिता और हेमवती नंदन बहुगुणा , दोनों तब तक एक दुसरे से लंबा और घातक वैचारिक युद्ध करने के बाद आत्म समर्पण कर् चुके थे . दोनों पर एक दुसरे के प्रति सोफ्ट कोर्नर अपनाने का आरोप लगना शुरू हो गया था . इन्ही सारे आरोपों के कारण , शायद मेरे पिता उनके टिहरी दौरे की खबर आते ही एक गुफा में ध्यानस्थ हो गए , अनिश्चित काल के लिए . ऐसा वह गाहे - ब- गाहे करते रहते थे . जब जब उनके पुराने राजनैतिक दोस्त व दुश्मन कांग्रेसी उन्हें घेरने का प्रयास करते . आखिर मेरे पिता भी पुराने कांग्रेसी रह चुके थे , और अपने दोस्तों की रग रग से वाकिफ़ थे . मंच पर लगभग दौड कर चढ़ कर उर्दू , हिंदी और गढवाली में सम्मोहक व्याख्यान देकर उन्होंने मुझे मोह लिया . यही जादू उन पर शायद मैंने भी किया , जब मै थोड़ी देर बाद उनसे मिला . इसके बाद हम दोनों उनकी मृत्यु तक एक दुसरे के प्रति निष्ठावान रहे
( दोस्तों , रिएक्शन कम दे रहे हो यार , मज़ा नहीं आ रहा क्या? )
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