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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Tuesday, August 6, 2013

Vidya Bhushan Rawat कँवल भारती की गिरफ्तारी उत्तर प्रदेश सरकार की हताशा विद्या भूषण रावत

कँवल भारती की गिरफ्तारी उत्तर प्रदेश सरकार की हताशा 

विद्या भूषण रावत 

आज सुबह जब कँवल भारती जी की गिरफ्तारी की खबर पता चली तो अंदाज लग गया के उत्तर प्रदेश में कैसी सरकार चल रही है. जिन लोगो ने आपातकाल में इंदिरागांधी की निरंकुशता का विरोध किया और जो अपनी 'महानता' के गुणगान किये फिरते हैं वेही आज बिलकुल निरकुंश और तानाशाही की और अग्रसर दिखाई दे रहे हैं और किसी भी प्रकार की वैचारिक भिन्नता को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं. 

सबसे पहले तो वह सोशल मीडिया को गरियाते हैं और कहते हैं के इसकी कोई ताकत नहीं है और यह केवल बद्बोलो का आपसी वार्तालाप है, इनका दुनियादारी और ग्रास्स्रूट्स से कोई मतलाब नहीं लेकिन सपा जैसी ग्रामीण परिवेश में ढली पार्टी यदि फेसबुक अपडेट से घबरा गयी तो मतलब साफ़ है के हम सही रस्ते पर चल रहे हैं. मतलब यह भी की सोशल मीडिया से लोगो में खासकर मीडिया और राजनैतिक दलों में घबराहट है क्योंकि इसकी पहुँच को वे जानते हैं और यह के आज ये ओपिनियन मेकर का काम कर रहा है और लोग खबरों को जानने के लिए अखबार जरुर पढ़ते होंगे लेकिन विचारों के लिए वह अब सोशल मीडिया की और रुख कर रहे हैं. इसलिए हमें तो ख़ुशी होनीचाहिए के सरकार में बैठे लोग सोशल मीडिया को गंभीरता से ले रहे हैं. 

आखिर कँवल जी के अपडेट में ऐसा क्या था के कोई दंगा फसाद होने के चांसेस थे जैसा की पुलिश की ऍफ़ आई आर कहती है ? क्या कंवलजी ने किसी को माँरने की धमकी दी या किसी धर्मस्थल को तोड़ने की या किसी की दिवार गिराने की कोशिश की जो उन पर लोगो को भड़काने के आरोप लगाए गए हैं. मुझे उम्मीद है कभी सुप्रीम कोर्ट इस बारे में निर्देश करेगा की सत्ताधारियों को आने वाले समय में सोशल मीडिया को कैसे हैंडल करना चाहिए।

असल में सत्ताधारी तिलमिला गए हैं और वोह किसी भी प्रकार की आलोचना को स्वीकार नहीं कर पा रहे है. टी वी स्टूडियो में बैठे बड़े पत्रकारों को वो हाथ भी नहीं लगा सकते जो सबह शाम अखिलेश के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं और पुरे राजनैतिक तंत्र को गेरुआ बनाने की कोशिशो में लगे हुए हैं और दुर्गा नागपाल के बहाने जिस तरीके से सरकारी बाबु लोगो और मीडिया का नया गठबंधन दिखाई दे रहा है उससे धर्मनिरपेक्ष जातिविरोधी अम्बेडकरवादी प्रगतिशील ताकते ही लड़ सकती हैं लेकिन मुलायम सिंह यादव की पार्टी के अति उत्साहित नेताओं ने कँवल भारती जैसे साहित्यकार को सबक सिखाने की जो कोशिश की है वोह उनकी पार्टी को भारी पड़ेगी और इसका लाभ हिंदुत्व की सेना लेने की कोशिश करेगी . 

समाजवादी पार्टी को सेकुलरिज्म से कोई मतलब नहीं वो तो उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की 'सुरक्षा' की लम्बरदार है और इसलिए वह हर एक ऐसा काम करेगी जहाँ यह दिखाई दे के मुसलमानों का 'भला' हो रहा हो चाहे वह सचर आयोग की सिफ़ारिशो को लागु करे या नहीं। वोह बताये की उत्तर प्रदेश पुलिश और प्रशाशन में कितने मुसलमान हैं ? असल में इस प्रकार के घटनाक्रम मुसलमानों का लाभ कम और हानि ज्यादा करते हैं क्योंकि वो सांप्रदायिक ताकतों को और मौका देते हैं लेकिन मुलायम और उनकी पार्टी भी मुसलमानों की राजनीती की करती है लेकिन अफ़सोस के देश के १५-२० करोड़ मुसलमानों में उसे जनता में काम करने वाले इमानदार मुस्लिम नेता नहीं दिखाई देते ?

कँवल भारती की गिरफ्तारी की कड़ी निंदा की जानी चाहिए और लेखको, साहित्यकारों, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं को सड़क पर आना होगा क्योंकि सत्ताधारी अब साम दाम दंड भेद की रणनीति की अपना रहे है. उनका टारगेट आम आदमी है और वे उनको डरा धमका कर उनका मुह बंद करना चाहते हैं. अभिव्यक्ति की आज़ादी पर इतना खतरा कभी नहीं था जितना आज दिखाई देता है और आज साथ खड़े होने का वक़्त है, आज लोहिया को याद करने का वक़्त है और उनकी क्रांतिकारी बात को भी बताने का वक़्त है के सोशल मीडिया के समय में जनता 'पांच साल इंतज़ार नहीं करेगी'. अब धैर्य रखने का और चुप रखने का वक़्त नहीं, जुबान खोलनी पड़ेगी। हम सब अभिव्यक्ति की आज़ादी इस संघर्ष में साथ साथ हैं।

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