Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Thursday, June 7, 2012

सबूत बता रहे हैं कि केंद्रीय हिंदी संस्‍थान में कुछ गड़बड़ है!

http://mohallalive.com/2012/06/07/report-on-kendriya-hindi-sansthan-with-facts-and-figures/

 आमुखमोहल्ला दिल्लीमोहल्‍ला लाइव

सबूत बता रहे हैं कि केंद्रीय हिंदी संस्‍थान में कुछ गड़बड़ है!

7 JUNE 2012 ONE COMMENT

केंद्रीय हिंदी संस्‍थान के उपाध्‍यक्ष अशोक चक्रधर जी के वित्त प्रेम को लेकर हमने एक रिपोर्ट (कृपा की मूसलाधार बारिश में कब तक नहाएंगे अ. चक्रधर) परसों प्रकाशित की थी। अशोक जी के एतराज पर हमने 18 घंटे के लिए उसे ऑफलाइन मोड में डाल दिया था। हमारे पास सिर्फ विश्‍वसनीय सूचना थी, सबूत की हार्ड कॉपी नहीं थी। हमने इन 18 घंटों में कई सारे ऐसे दस्‍तावेज इकट्ठे किये जो बताते हैं कि देश भर में कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए अशोक जी केंद्रीय संस्‍थान से भुगतान लेते हैं। मसलन…

 26, 27, 28 फरवरी, 2012 को गेल इंडिया के कार्यक्रम में भाग लेने के लिए मुंबई गये थे और 50,000 रुपये संस्थान से लिये। (देखें दस्‍तावेज एकदस्‍तावेज दो)

 उसी तरह 26 से 29 नवंबर 2011 को वे हिंदुस्‍तान पेट्रोलियम के एक कार्यक्रम में मुंबई गये और इस यात्रा में 28 अप्रैल को उपयोग में लायी गयी एक प्राइवेट टैक्‍सी का 2400 रुपये का भुगतान केंद्रीय हिंदी संस्‍थान से लिया। (देखें दस्‍तावेज एक)

 19 अक्‍टूबर 2010 को जीवंती फाउंडेशन चैरिटी ट्रस्‍ट के कार्यक्रम में भाग लेने के लिए वे मुंबई गये और इस यात्रा के लिए केंद्रीय हिंदी संस्‍थान से तीस हजार रुपये अग्रिम भुगतान की राशि ली। (देखें दस्‍तावेज एक)

 यहां कि विदेश दौरे के लिए भी अशोक जी ने केंद्रीय हिंदी संस्‍थान का ही वित्त सहयोग लिया। पिछले महीने भारतीय विद्या भवन के एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए वे सिडनी गये और टिकट का भुगतान केंद्रीय हिंदी संस्‍थान से कराया। साथ ही बाकी खर्चों के लिए एक लाख रुपये का चेक भी लिया। (देखें दस्‍तावेज एक)

ऐसी कई यात्राओं के दस्‍तावेज मोहल्‍ला लाइव के पास मौजूद हैं, जो किसी भी किस्‍म की कानूनी कार्रवाई की स्थिति में सामने लाया जाएगा।

मोहल्‍ला लाइव के मॉडरेटर अविनाश को लिखे अपने पत्र में अशोक जी ने आरोपों से आहत होने की स्थिति में कानूनी रास्‍ता अख्तियार करने का इशारा भी किया है। पर दिलचस्‍प ये है कि जिस जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के बारे में वे पूरे विश्‍वास से कहते हैं कि जयपुर यात्रा के लिए संस्‍थान का कोई धन खर्च नहीं किया है, उस यात्रा के लिए वे तीस हजार रुपये की राशि संस्‍थान से एडवांस के तौर पर लेते हैं।


पूरा आवेदन देखने के लिए इमेज पर चटका लगाएं। साथ ही यह दस्‍तावेज भी देखें : जेएलएफ की यात्रा के दौरान ड्राइवर के लिए भुगतान का आदेश पत्र


जिन संस्‍थानों, कंपनियों के कार्यक्रम में अशोक जी भाग लेने के लिए जगह जगह आते-जाते रहे हैं, वे अपने वक्‍ताओं-अतिथियों के आने-जाने-रहने का पूरा खर्च वहन करते हैं। ऐसी स्थिति में "अगर" इन यात्राओं के लिए अशोक जी केंद्रीय हिंदी संस्‍थान सहित मेजबान संस्‍थानों, कंपनियों से भत्ता लेते रहे हैं, तो यह वित्तीय बेईमानी का एक शर्मनाक उदाहरण होगा, जिसकी जांच होनी चाहिए। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल वाले प्रसंग में अशोक जी के उत्तर और संस्‍थान से मिले भुगतान के दस्‍तावेज से जाहिर भी होता है कि वित्तीय बेईमानी की गयी है।

मजे की बात यह है कि भुगतान संबंधी सारे आवेदन उपाध्‍यक्ष के निजी सहायक राजीव वत्‍स के नाम से किये गये हैं और उसकी संस्‍तुति खुद उपाध्‍यक्ष महोदय ने ही की है। यानी जो पैसे मांग रहा है, वही आदेश भी दे रहा है कि पैसे दिये जाएं।

बहरहाल, हम यहां अशोक जी का पत्र प्रकाशित कर रहे हैं और कुछ दस्‍तावेजों की स्‍कैन कॉपी भी पेस्‍ट कर रहे हैं।

प्रिय अविनाश जी,

तथ्यविहीन रिपोर्टिंग तो आपने मुझसे बिना पूछे कर ही दी थी, पर आलेख हटा दिया है, उसके लिए आभारी हूं। आपकी जानकारी के लिए बताऊं कि जयपुर यात्रा के लिए मैंने संस्थान का कोई धन खर्च नहीं किया है। सूचनाएं देने वाले अकर्मण्यों से रसीद मांग लें।

उपाध्यक्ष कार्यालय मेरे घर में नहीं है। एक दूसरा फ्लैट पूरी तरह से संस्थान के काम के लिए समर्पित है, जिसका कोई किराया मैं संस्थान से नहीं ले रहा हूं। पूरे संस्थान में वाई फाई कनेक्शन केवल उपाध्यक्ष कार्यालय में है। मैं चाहता हूं कि पूरा संस्थान हाई टेक हो। क्या आप बिना इंटरनेट के अपनी पत्रिका चला सकते हैं? मेरी सहयोगियों की टीम सर्वाधिक सक्रिय है।

सूची लिंक एकलिंक दो ] में जो सुविधाएं हैं, वे नयी आवश्यकताओं के अनुसार मुझे प्रदत्त की गयी हैं। आईआईसी की सुविधा भी हिंदी के प्रचार और प्रसार के लिए संस्थान ने दी, जिस सुविधा का सार्थक उपयोग पहले के उपाध्यक्षों ने किया है। सुरा सेवन का कोई बिल संस्थान के पास नहीं होगा। संस्थान का दायित्व वैश्विक है, मैं निस्वार्थ भाव से अधिकाधिक समय देता हूं। मुझे लगता है आलस्य ही आरापों को जन्म दे रहा है।

काश हिंदी के हित में सोच सकारात्मक हो सके और काम करने वाले लोगों को काम करने दिया जाए। झूठे आरोपों से हर कोई विचलित होता है और वह भी न्याय की शरण में जा सकता है। सद्भाव से बड़ी कोई चीज नहीं होती। मिलने पर बतियाएंगे।

सस्नेह, अशोक

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...