मोंटेक सिंह शौचालय में बैठते हैं या अजायबघर में?
♦ अभिरंजन कुमार
बिहार के बेटे बिंदेश्वर पाठक के सुलभ शौचालय के बारे में तो आपने खूब सुना होगा। आज हम आपको बताते हैं मोंटेक सिंह अहलुवालिया के दुर्लभ शौचालय के बारे में। जी हां, योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आजकल हमारे-आपके पैसे से दुर्लभ शौचालय बनवा रहे हैं। महंगाई और भ्रष्टाचार को अपना कंठहार बनाकर घूमने वाली केंद्र की यूपीए सरकार भले ही कह रही है कि वो अपने खर्चे में कटौती करेगी, लेकिन मोंटेक सिंह साहब ने योजना भवन के दो शौचालयों की मरम्मत में 35 लाख रुपये खर्च कर दिये।
यूं देखा जाए, तो सिक्के का दूसरा पहलू भी है, जिसके लिए हमें मोंटेंक सिंह साहब का फूल-मालाओं से अभिनंदन करना चाहिए। वो ये कि अगर दो शौचालयों के मरम्मत मात्र में वो 35 लाख रुपये खर्च कर डालते हैं, तो अगर उन्हें इतने ही नये शौचालय बनवाने होते, तो कम से कम 35 करोड़ रुपये खर्च करते। इस लिहाज से उनका शुक्रगुजार भी हुआ जा सकता है कि प्रभो, आपने हमारे 34 करोड़ 65 लाख रुपये बचा लिये, वरना अगर आप नये शौचालय भी बनवा लेते और उन पर 35 करोड़ भी खर्च कर देते, तो हम आपका क्या बिगाड़ लेते। ये हम पर आपका एहसान है कि आपने सिर्फ 35 लाख रुपये खर्च किये।
वैसे भी मोंटेक सिंह साहब देश की योजनाएं बनाते हैं। ये कोई हंसी-खेल का काम नहीं है। इसके लिए अपार एकाग्रता और शांत वातावरण की जरूरत होती है। हमें पूरा यकीन है कि अब वो जब 35 लाख के शौचालय में बैठेंगे तो उनका दिमाग ज्यादा चलेगा और नये-नये आइडियाज आएंगे।
वैसे मोंटेक सिंह साहब के बारे में जितना कहा जाए, उतना ही कम है। ये वही महापुरुष हैं, जिन्होंने यह थ्योरी दी कि गांव का एक व्यक्ति प्रतिदिन अगर 22 रुपये और शहर का व्यक्ति 26 रुपये कमाता है, तो वह गरीब नहीं है। मोंटेक साहब का मानना है कि 22 रुपये में एक गांव-वाला न सिर्फ दोनों वक्त रोटी, सब्जी, चावल, दूध, अंडे, फल, मांस-मछली वगैरह खा सकता है, बल्कि इसी पैसे में वो जूते-मोजे-कपड़े-लत्ते, आने-जाने, दवा-दारू, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई वगैरह अपनी तमाम जरूरतों को भी पूरा कर सकता है। इस हिसाब से अगर देखें, तो जितने पैसे में मोंटेक साहब के शौचालयों की मरम्मत हुई है, उतने पैसे में एक लाख साठ हजार लोगों की एक दिन की तमाम जरूरतें पूरी हो सकती हैं। इसका मतलब ये हुआ कि बिहार के छपरा, कटिहार और दानापुर जैसे शहरों में रहने वाली समूची आबादी की एक दिन की तमाम जरूरतें इतने पैसे में पूरी हो सकती हैं।
और मोंटेक साहब के शौचालय इतने हसीन हुए तो क्या, उनके तो विदेश दौरों पर एक दिन में दो लाख रुपये से ज्यादा खर्च होते हैं। हो सकता है कि कुछ लोग इस पर मोंटेक सिंह की आलोचना करना चाहेंगे, लेकिन हमें तो लगता है भाई कि आलोचना मत कीजिए, बैठकर अपनी किस्मत को कोसिए। अगर हम और आप भी मोंटेक सिंह की तरह ज्यादा पढ़-लिख लिये होते, तो हम भी आज 35 लाख के शौचालय में बैठकर राष्ट्र-चिंतन कर रहे होते। इसलिए शौचालय-शिरोमणि मोंटेक सिंह अहलुवालिया को सलाम कीजिए और इस बात की मांग कीजिए कि उनके शौचालय को पर्यटन-स्थल घोषित किया जाए, ताकि हम और आप जब आगे से अपने बच्चों को दिल्ली घुमाने ले जाएं तो उन्हें लाल किला, इंडिया गेट और कुतुब मीनार दिखाने से पहले मोंटेक बाबा के शौचालय भी जरूर दिखा आएं।
(अभिरंजन कुमार। वरिष्ठ टीवी पत्रकार। इंटरनेट के शुरुआती योद्धा। एनडीटीवी इंडिया और पी सेवेन में वरिष्ठ पदों पर रहे। इन दिनों आर्यन टीवी के संपादक। दो कविता संग्रह प्रकाशित: उखड़े हुए पौधे का बयान और बचपन की पचपन कविताएं। उनसे abhiranjankumar@yahoo.co.in पर संपर्क किया जा सकता है।)
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