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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Tuesday, December 16, 2014

पहाड़ी प्रकृति दगड़ सामजस्य करिक जड्डु कटद छा

     पहाड़ी  प्रकृति दगड़ सामजस्य करिक जड्डु कटद छा 

                                         टटकरि मा :भीष्म कुकरेती 

(यद्यपि मै पाकिस्तान में कल आतंकवादी हमले के  बारे में लिखना चाहता था किन्तु आपको ,  मुझे और आतंकवादियों को पता है कि पाकिस्तान में दहशतगर्दी प्रेमी और भारत में सेक्युलर पार्टी सुधरेंगी नही इसलिए उस घटना पर नही लिखा। ) 
 अजकाल जनि हिमाला मा ह्यूं पड़ कि टीवी अर अखबार जड्डु ,  ठंड , कोल्ड तैं गाळी दीण मिसे गेन।  क्वी ठंड का कहर बुलणु च , क्वी ठंड तैं  राक्षस नाम दीणु च त क्वी जड्डु तैं यमराजौ भुला -भैजि -ससुर बुलणु च। 
  पहाड़ी मनिख कबि जड्डु ,  ठंड , कोल्ड तैं गाळि नि दींद , ठंड का वास्ता गैरमुनसिब शब्द पहाड़ी भाषाओं मा नि छन , इख तलक कि पाकिस्तानी कश्मीरी बि  ठंड तैं फिटकार नि दींद कि आज ऐगे पर भोळ नि ऐ। हमर पहाड़ी भाषौं मा अंग्रेजी भाषा ज की कविता रेन रेन गो अवे जन बेकार कविता बि नि छन। 
हम पहाड़ी दांत बजै ल्यूला , दाडि कीट द्योला , हथ बोटि द्योला पर मजाल  च कि हम जड्डु तैं बुर -भलु बोल दिवां धौं ! 
पहाड़ी लोग खराब नि हूंदन , पहाड़ी लोग प्रकृति कुण दुर्बचन नि बखदन , पहाड़ी लोग ह्युंवाळी पहाड्यूं तैं बि पुजदन अर तबि त डांडि -कांठ्यूं खासकर हिंवाळि  पहाड्यूं तैं पुराणि गढवळि अर संस्कृत मा कैलास बुले जांद छौ। 
पहाड़ी लोग रुड्यूं  मा दिन बितांद छा अर जड्डु मा दिन कटद छा , याने प्रकृति दगड़ सामंजस्य करिक जड्डु से पार पांद था। हम प्रकृति दगड़ लड़दा नि छा , हमम कम कपड़ा ह्वेक बि हम प्रकृति दगड़ लड़दा नि छा पर प्रकृति का हिसाब से हम अपण सरैल तैं उब -उन्द करदा छा। 
पहाडुं मा ठंडक दगड़  सामजस्य बैठाणो तरकीब खुजए जांद छयो।  बागौ दगड़ लड़ो , भूतौ दगड़ लड़ो जन शब्द हम सुबेर स्याम सुणदा छा किंतु हमन कबि ना त स्वाच अर ना ही ब्वाल कि ठंडौ दगड़ लड़ो। प्रकृति लड़नै चीज नी च अपितु प्रकृति तो हमरि दगड्याणि च।  तबि त गढ़वाळम अर हौरि जगा बि इन बुले जांद कि गर्म्युं मा गर्मन इथगा मोरिन   पर कबि नि सुणयांद कि ठंड्युं मा लोग , लौड़ -गौड़ मरीन। 
 हम प्रकृति दगड़ लड़दा नि छा।  जनि जड्डु बिंडी ह्वे ना कि हम अफु तैं सिकोड़िक छुट कर दींदा छा अर जड्डु कुण बुल्दा छा तू ही बड़ु।  इनमा जड्डु बि चुप ह्वे जांद छौ कि जब ये मनिखौन अफु तैं छुट मानि आल तो ये तैं ज्यादा क्या तंग करण ?
हमर खाणक मा बि बदलौ ऐ जांद छौ अर हम कंडाळी , मर्सू , गौथ , तिल , उस्यायुं खीरा , भट्ट , भंगुल , बसिंगु आदि की मात्रा बढ़ै दींदा छा अर हम तैं ठंड से अनावश्यक युद्ध नि करण पोड़द थौ। हम भौत  सा बौणौ  जै माँ इनर्जी ज्यादा हो  वीं पैदावार पर निर्भरता बढ़ै दींदा छा अर  यांसे प्रकृति दगड़ युद्ध करणो नौबत नि आदि छे। कणमणौ लीसु हम एइ बगत खांद छा। 
हम ठंड से बचणो उपाय खुज्यांद छया ना कि ठंडौ दगड़ लडणौ तरीका।  अचकाल मीडिया की भाषा गलत ह्वे गे जु हम तैं प्रकृति दगड़ लडणौ बान हुसक्यांद जब कि हम तैं प्रकृति दगड़ सामंजस्य बढ़ाणो प्रेरणा मिलण चयांद छे। 


17 /12 /14 Copyright Bhishma Kukreti , Mumbai India 

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