जापान में, १८६८ में राजसत्ता की बहाली के साथ संसदीय व्यवस्था लागू हुई. राजा मुत्सोहितो या मेइजी तब सोलह साल का किशोर था.लेकिन उसके सलाहकार और सत्ता के वास्तविक केन्द्र वे लोग थे, जो अपने देश को तत्कालीन ब्रिटेन की तरह एक शक्तिशाली और उससे भी समृद्ध राष्ट्र बनाने के लिए कृत्संकल्प थे. यह उनका ही योगदान है कि १८६८ तक टिहरी राज्य की सी निरंकुश और नितान्त पिछ्ड़ी हालत वाले जापान ने अगले ३६ वर्ष में इतनी समृद्धि और शक्ति प्राप्त कर ली कि उसने रूस को भी पराजित कर दिया.
द्वितीय विश्वयुद्ध में पूरी तरह विनष्ट हो चुके इस देश ने अगले ५० साल में अपनी राष्ट्रनिष्ठा और कर्मठता और लगन के बल पर अपने लोगों के जीवन को इतना समृद्ध, स्वस्थ और लोकधर्मी बना दिया है कि दुनिया का कोई भी देश उनके सामने नही टिकता. वह भी तब जापान के नाम से अभिहित होने वाले इस द्वीपसमूह के ६८५२ द्वीपों में अधिकतर में ज्वालामुखियों का डेरा है. केवल होकाइडो, होन्शू, क्यूसू, शिकोकू, और ओकिनावा ही मानव सन्निवेशों के उपयुक्त हैं प्रकृति ने इसे न अधिक खनिज दिये हैं और न तेल. धान और समुद्री जीवों के अलावा कोई विशेष भोज्य सामग्री. दिये हैं तो केवल भूकम्प, जो हर साल औसतन १५०० बार इसे कम या अधिक झकझोरते रहते हैं फिर भी जापान ही दुनिया का एक मात्र देश है जिसने केवल चालीस साल में ही अपने नागरिको की औसत आयु को दूना करने का कीर्तिमान स्थापित किया है. केवल अपने नेताओं और नागरिकों के श्रम, संकल्प,सहयोग और सत्यनिष्ठा के बल पर यह प्राकृतिक रूप से दरिद्र देश दुनिया का सिरमौर बना हुआ है.
दूसरी ओर हम हैं जिन्हें प्रकृति ने इतना दिया है कि जिसमें हजार जापान पल जायँ. पर क्या करें इस देश में नीचे से ऊपर तक इतने अजामिल और उनको बचाने वाले भगवान पैदा हो गये हैं. पूरे देश का भट्टा बैठ गया है.
जापान का भ्रष्ट प्रधान मंत्री तनाका जेल में अन्तिम श्वास लेता है. और हमारे देश में अपराध सिद्ध हो जाने पर भी, लालू और चौटालू शान से न केवल छुट्टा घूमते हैं अपितु ्राजनीति के पुरोधा बने हुए हैं
बन्धु! जापान को मिले नायक तो उस देश का एक-एक नागरिक का जीवन खुशहाल हो गया और हमें मिले चाटुकार परस्त, अपने से बाहर न देख सकने वाले, खलनायक, और जोकर, इसीलिए ८० प्रतिशत नागरिक जैसे तैसे अपने जीवन के दिन काट रहे हैं.
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