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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Tuesday, December 16, 2014

H L Dusadh Dusadh मैं संघ परिवार के चौतरफे हमले से उद्भ्रांत हो गया हूँ.


मैं संघ परिवार के चौतरफे हमले से उद्भ्रांत हो गया हूँ.
मित्रों! 4 से 11 दिसंबर तक कुछेक कारणों से मैं देश-दुनिया से कट कर रहा गया था.सही मायने में परसों दिल्ली पहुँचने के बाद ही नए सिरे से सूचनाओं से तब जुड़ पाया जब गत एक सप्ताह के अख़बारों को ध्यान से पढ़ा . उसके एक दिन पहले भरतपुर में था जहां टीवी देखने का अवसर सुलभ हुआ जिससे 'अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस' पर एक लेख लिख दिया.किन्तु परसों जब दिल्ली पहुंचकर गत दिनों के अख़बारों पर नजर दौड़ाया तो संघ पारिवार के तीन दर्जन संगठनों के चौतरफे हमले को देखकर मैं अभूतपूर्व रूप से परेशान हो उठा.आपको बता दूं संघ परिवार की चाल को मैं इतना बेहतर समझता हूँ की जो बात उनके पेट में रहती है उसे मैं शब्द का रूप दे देता हूँ.यही कारण है मैं संघ के खिलाफ भारत की हिस्ट्री की सबसे बड़ी किताब 999 पृष्ठीय 'सामाजिक परिवर्तन में बाधक :हिंदुत्व'लिखने सफल रहा.इस किताब के बाद हिंदुत्व विरोधी जो दूसरी सबसे बड़ी किताब है,वह प्रभाष जोशी की है जो 654 पृष्ठों की है.मेरा खुद का कांफिडेंस है कि वैचारिक रूप से तमाम हिंदुत्ववादी साधू-संतो-संगठनों –बुद्धिजीवियों को अकेले ध्वस्त करने में सक्षम हूँ.अपनी खुद की तारीफ के जरिये मेरा मकसद आपको उस खतरे की ओर संकेत करना है जो संघ परिवार ने गत कुछ दिनों में खड़ा कर दिया है.यह खतरा कितना बड़ा है इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि गत मेरे गत 30 घंटे इस उधेड़ –बन में खर्च हो गए कि कहाँ से उनका जवाब दूं.मुझे इस दौरान कमसे कम दो आर्टिकल लिख लेना चाहिए था,पर इतना उद्भ्रांत हो गया हूँ कि कुछ कन्सेंरेट ही नहीं कर पा रहा हूँ.
पिछले एक सप्ताह से मेरी प्राथमिकता में था टाइम मैगजीन का 'पर्सन ऑफ़ द ईयर' का सम्मान.आपको याद दिला दूं कि एक दिसंबर तक पर्सन ऑफ़ ...के वोट में 'फर्ग्युसन प्रोटेस्ट' नंबर एक पर था .किन्तु छः दिसंबर को मोदी नंबर -1 पर आ गए.अगर टाइम मैगजीन के संपादक मंडल ने अपने विवेक से काम नहीं लिया होता तो 1930 में गाँधी के पर्सन ऑफ़ द इयर बनने के बाद मोदी दुसरे भारतीय बन जाते .किन्तु 8 दिसंबर को जब रिजल्ट आया सर्वाधिक वोट पाकर मोदी पाठकों की पसंद के लिहाज पर नंबर पर जरुर रहे ,पर टाइम के सम्पादकीय मंडल ने न-1 बनाया 'इबोला' रहत कार्य में जुटे डाक्टरों और नर्सों को.आपको पता है ही कि पश्चिमी अफ्रीका के सिएरा लिओन,गिनी और लाइबेरिया में लगभग साढ़े छः हजार लोग इबोला से आक्रांत होकर मौत के शिकार बन चुके हैं जिन्हें राहत देने के सिलसिले में लगभग 350 डाक्टर और नर्स खुद मौत के शिकार बन गए.इबोला के बाद दूसरे नंबर पर रहा अमेरिकी दलितों के खिलाफ वहां न्यायपालिका के अन्याय के विरोध में उठा 'फर्ग्युसन प्रोटेस्ट'.सर्वाधिक वोट पाने वाले मोदी संभवतः आठवें नंबर पर चले गए.अगर टाइम वाले अपने विवेक का परिचय नहीं दिए होते तो मोदी ही पर्सन ऑफ़ ...होते फिर तो सवर्णवादी मीडिया इसका जो इस्तेमाल करती आप संघ विरोधी मित्र पागल ही हो जाते.इस पर अब तक लेख न लिख पाने का जो मलाल है,उसका अनुमान कुछ् ही लोग लगा सकते हैं.
बहरहाल मित्रों संक्षेप में यही कहूँगा कि संघ परिवार की घर वापसी से लेकर राम मंदिर का मुद्दा गर्माने का तात्कालिक लक्ष्य झारखण्ड और कश्मीर में चुनावी सफलता है ,पर दूरगामी लक्ष्य यूपी की सत्ता हथियाना तथा अमानवीय हिन्दू बाड़े को तोड़ कर दूसरे संगठित धर्म में जाने वालों पर अंकुश लगाना है.किन्तु मेरे ख्याल से संघ के तीन दर्जन संगठनों का वर्तमान में मुख्य लक्ष्य यूपी की सत्ता दखल है.बिना यूपी दखल किये दिल्ली की सत्ता संघियों के लिए अधूरी है.यूपी ही हिन्दू धर्म-संस्कृति की ह्रदय-स्थली है,जहां हिन्दू अर्थात सवर्ण कई सदियों तक अरब विजेताओं के तलवारों के साये में घुटने टेक कर जीने के लिए मजबूर रहे.अब वे अंग्रेजों के सौजन्य से मिली संसदीय प्रणाली के जरिये मध्य युग के विजेताओं से बदला लेना चाहते हैं.पर मित्रों यह आकलन मेरा नहीं आम बुद्धिजीवियों का है.किन्तु संघ की नश-नश से वाकिफ दुसाध के अनुसार तो संघ के तीन दर्जन संगठनों का असल मकसद बहुजन समाज में हर क्षेत्र में उभरती भागीदारी की चाह को दूसरी दिशा में डाइवर्ट करना है.इसका दृष्टान्त आज इंडियन एक्सप्रेस में छपा योगी आदित्य नाथ का बयान है जिसमे उन्होंने कहा है राम मंदिर अभियान हिन्दू एकता की परिणति था. जबकि सारी दुनिया जानती है कि राम मंदिर अभियान हिन्दुओं अर्थात सवर्णों की मंडल के जरिये मूलनिवासियों के एक खास अंग ओबीसी को मिले एक क्षेत्र विशेष में मिले हिस्सेदारी के खिलाफ था जिसमे धर्म के नशे में मत्त खुद मूलनिवासी हिन्दुओं के शिकार बन गए.वैसे मेरी अंग्रेजी निहायत ही कमजोर है इस्ल्ये पूरे दावे के साथ नहीं कह सकता की आदित्य नाथ ने वही कहा जो अर्थ उनकी बातों का मैं लगाया हूँ.
बहरहाल यूपी जैसे सर्वाधिक महत्वपुर्ण राज्य की सत्ता दखल की दिशा में संघ के जो ढेरों शिशु संगठन आगे बढ़ रहे हैं उसमें मुझ जैसों के लिए सर्वाधिक चिंता विषय यह है कि संघ को रोकने की जिम्मेवारी उस मुलायम सिंह यादव पर है जो भाजपा के विकास के लिए कमसे कम ४०% जिम्मेवार खुद हैं एवं जिनके सामने 'जय श्रीराम' का विकल्प सिर्फ 'जय श्रीकृष्ण' है. मुलायम सिंह की यह कमजोरी ही हमारे चिंता का मुख्य सबब है.नेताजी की कमजोरियों के बावजूद मूलनिवासी समाज सवर्णवादियों के चौतरफे हमले से परेशान नहीं होता यदि बहनजी अपना निज मान-अभिमान त्याग कर मुलायम के साथ मिलकर हिंदुत्ववादियों द्वारा बहुजन भारत पर खड़ा किये जा रहे संकट के प्रतिकार के लिए सामने आतीं. 
तो मित्रों,सवर्णों अर्थात हिंदुत्ववादियों द्वारा खड़ा किया गया संकट बहुत गहरा है.अब इससे निपटने की जिम्मेवारी उन मूलनिवासी बुद्धिजीवियों पर है जिन्हें मेन-स्ट्रीम मीडिया(प्रिंट हो या इलेक्ट्रोनिक) में कोई कोई जगह नहीं है.आपको मेरे इस पोस्ट से यह जानकार हताशा होगी कि मैं यह मान चूका हूँ कि हमलोग शक्ति के स्रोतों पर 80-85 पर्तिशत कब्ज़ा जमाये अल्पजन हिन्दुओं अर्थात सवर्णों के सामने विविध कारणों से एक हारी हुई लड़ाई जीतने का असंभव सा प्रयास करने जा रहे हैं,हमें अपना प्रयास दो गुनी ताकत से शुरू कर देना चाहिए.बहरहाल मैं उद्भ्रांत होने के बावजूद कल कथित 'घर वापसी'पर अपने लेख के जरिये अपना प्रयास शुरू करने जा रहा हूँ.और आप?आप अपनी लड़ाई शुरू करें,उम्मीद है कुछ विवेकवान सवर्ण मित्र भी आपका साथ देंगे.

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