हिंदुत्व का एजंडा फर्जी,यह देश बेचने का नरसंहारी एजंडा
हमें हिंदुत्व की बजाये फासीवादी नरसंहारी मुक्तबाजार के किले पर हमला करना चाहिए।क्योंकि हिंदुत्व के नकली किले पर हमले से वे जनता को वानरसेना में तब्दील करने में कामयाब है।
राम मंदिर स्वर्ण मृग है और हम मृगमरीचिका से उलझे हैं और अबाध पूंजी के रंगभेदी वर्चस्व के खिलाफ हम कोई लड़ाई शुरु भी नहीं कर सके हैं।
मराठी और बांग्ला के बाद आप चाहें तो हर भाषा और हर बोली में होगा हस्तक्षेप।
अगर इस देश के दलित बहुजन स्त्री और छात्र युवा तेजी से केसरिया कायाकल्प की दिशा में बढ़ रहे हैं तो हम उनसे संवाद और विमर्श भी रोक देंगे तो आगे आत्मध्वंस का उन्मुक्त राजपथ है।हम हर माध्यम,हर विधा,हर भाषा के जरिये लोकसंस्कृति और विबविध बहुल सांस्कृतिक विरासत की जमीन पर खड़े होकर अगर वैकल्पिक सूचना तंत्र को खड़ा करते हुए जनपक्षधरता के मंच को मजबूत बना सकें तो हमारा हस्तक्षेप सार्थक होगा और इसके लिए हमें आप सबका समर्थन और सहयोग चाहिए।
पलाश विश्वास
नागपुर यात्रा की उपलब्धियां छोटी छोटी हैं,लेकिन इससे हमें कमसकम दो कदम आगे बढ़ाने के रास्ते अब खुले नजर आने लगे हैं।
हिंदुत्व का एजंडा फर्जी,यह देश बेचने का नरसंहारी एजंडा है।
राम मंदिर स्वर्ण मृग है और हम मृगमरीचिका से उसझे हैं और अबाध पूंजी के रंगभेदी वर्चस्व के खिलाफ हम कोई लड़ाई शुरु बी नहीं कर सके हैं।
हमें हिंदुत्व के बजाये फासीवादी नरसंहारी मुक्तबाजार के किले पर हमला करना चाहिए।क्योंकि हिंदुत्व के नकली किले पर हमले से वे जनता को वानरसेना में तब्दील करने में कामयाब है।
मराठी और बांग्ला के बाद आप चाहें तो हर भाषा और हर बोली में होगा हस्तक्षेप।
नागपुर के इंदोरा इलाके के बेझनबाग में अखंड भारत वर्ष के एकदम केद्रीय बिंदू के बेहद नजदीक मराठी दैनिक जनताचे महानायक के दसवें वार्षिकमहोत्सव के मौके पर नागपुर की बेहद बदनाम कट्टर अंबेडकरी जनता के मध्य विशाल मंच पर बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर और महात्मा गौतम बुद्ध की मूर्तियों के सान्निध्य में जाति उन्मूलन के प्रस्थानबिंदू से वैकल्पिक मीडिया के साथ अंबेडकरी आंदोलन की युगलबंदी हस्तक्षेप के युवा संपादक अमलेंदु उपाध्याय और महानायक के कर्मठ संपादक सुनील खोब्रागडे की अगुवाई में शुरु हो गयी।
उत्पीड़ित वंचित बहुसंख्य जनता के सक्रियसहयोग और समर्थन के बिना किसी भी काल में किसी भी देश में बदलाव के ख्वाबों को अंजाम देना संभव नहीं हुआ है।हमारे बदलाव के ख्वाब अंबेडकरी आंदोलन की जनोन्मुख परिवर्तनकामी दिशा के बिना बपूरे नहीं हो सकते तो हस्तक्षेप के मराठी संस्करण अंबेडकरी आंदोलन के मुखपत्र दैनिक जनतेचा महानायक के साथ गठजोड़़ के साथ शुरु हो पाना हमारे लिए एक निःशब्द क्रांति की शुरुआत है।
इसीके साथ बंगाल से बाहर जो पांच से सात करोड़ दलित बंगाली शरणार्थी हैं,सभी भारतीय राज्यों में विस्तृत उनके अखिल भारतीय संगठन निखिल भारत बंगाली उद्वास्तु समन्वय समिति के सक्रिय समर्थन के साथ बांग्ला हस्तक्षेप की शुरुआत भी हमारी छोटी उपलब्धि कही जा सकती है।
समिति के अध्यक्ष डां.सुबोध विश्वास मंच पर हाजिर थे।बंगाल से बी भारत विभाजन के बाद निस्कासित दलितों की इतनी बड़ी आबादी अब तक राज्यवार सत्ता दलों के मुताबिक या केंद्र सरकार की अनुकंपा मुताबिक मूक वधिर जीने को मजबूर रही है।इनकी नागरिकता छीन लेने और सर्वत्र आदिवासी भूगोल में बसाये गये इस विशाल जनसमूह की चीखों को हम देश के हर कोने से दर्ज करने की कोशिश में लगे हैं।
मैं अछूत दलित बंगाली शरणार्थी परिवार से हूं और जाति से ब्राह्मण अमलेंदु उपाध्याय हस्तक्षेप में मेरे हस्तक्षेप का जिस हद तक समर्थन करते रहे हैं और इस रीयल टाइम पोर्टल पर बाबासाहेब के मिशन को जैसे फोकस किया है और इसके साथ ही सुनील खोब्रागडे और डा.सुबोध विश्वास अपनी अपनी राजनीति को दरकिनार करते हुए वैकल्पिक मोर्चे पर नागपुर वाशिंदा अंबेडकरी जनता के सात जिस खुले दिमाग से हमारे साथ है,उससे उम्मीद जगती है कि हम अलग अलग बंटी हुी जनता को अंततः गोलबंद करके समता और न्याय के निर्णायक लक्ष्य हासिल करने की दिशा में अब मजबूती से कदम रख पायेंगे।
हम मुक्तबाजार के तिलिस्म में बेतरह उलझे हुए हैं।नागपुर के रंगकर्मी और सर्वोदय आंदोलन के कार्यकर्ता रविजी ने कहा कि सत्ता और राष्ट्र का नरसंहारी स्वरुप दरअसल मुक्तबाजार का विशुध पूंजीवादी अवतार है जो चरित्र से धर्म और नैतिकता के खिलाफ है और यह धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद दरअसल मुक्तबाजार है और मुक्तबाजार के राष्ट्रद्रोही सिपाहसालारों का एजंडा हिंदुत्व नहीं है और न वे कोई रमामंदिर बनानने जा रहे हैं।उनका एजंडा देश बेचने का एजंडा है।
हम इससे सहमत है और हम मानते हैं कि हिंदुत्व का एजंडा उनका है ,कहते हुए इस देश की आम जनता की आस्था से उनकी खिलवाड़ और धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद के मुकतबाजारी देश बेचो कारोबार के पक्ष में उन्हें हम धर्मोन्मादी ध्रूवीकरण का मौका दे रहे हैं।हमें हिंदुत्व के बजाये फासीवादी नरसंहारी मुक्तबाजार के किले पर हमला करना चाहिए।
अगर इस देश के दलित बहुजन स्त्री और छात्र युवा तेजी से केसरिया कायाकल्प की दिशा में बढ़ रहे हैं तो हम उनसे संवाद और विमर्श भी रोक देंगे तो आगे आत्मध्वंस का उन्मुक्त राजपथ है।हम हर माध्यम,हर विधा,हर भाषा के जरिये लोकसंस्कृति और विबविध बहुल सांस्कृतिक विरासत की जमीन पर खड़े होकर अगर वैकल्पिक सूचना तंत्र को खड़ा करते हुए जनपक्षधरता के मंच को मजबूत बना सकें तो हमारा हस्तक्षेप सार्थक होगा और इसके लिए हमें आप सबका समर्थन और सहयोग चाहिए।
हमारे पास संसाधन कम है और फिलहाल हमें एक ही स्रवर से काम करना पड़ेगा और इसीमें विभिन्न भाषाओं और बोलियों में भारतीय जनता की रोजमर्रे का जिंदगीनामा दर्ज कराना पड़ेगा।अब हमारा लक्ष्य उत्तर प्रदेश है जहां से हम बहुत जल्द हस्तक्षेप उर्दू में भी शुरु करने जा रहे हैं।हमें जैसे जैसे जिस जिस भाषा और बोली से समर्तन और सहयोग मिलता रहेगा,हम उनके लिए नेटव्रक और स्पेस बढ़ाते रहेंगे और पूरी मदद मिली तो अलग अलग सर्वर भी लगा लेंगे।
नागपुर से चलकर हम वर्धा विश्विद्यालय गये,जहां गर्मियों की छुट्टियां चल रही हैं और ज्यादातर शोध छात्र वहीं जमे हुए हैं।विभिन्न सांस्कृतिक वैचारिक अस्मिता पृष्ठभूमि के सात जुड़े इन छात्रों ने जिस अंतरंगता से जनप्रतिबद्ध वैकल्पिक मीडिया,माध्यम और विधा के हमारे प्रस्ताव पर विमर्श में शामिल हुए हैं,उससे हमारी कोशिश रहेगी कि हम देश के हर विश्वविद्यालय के छात्रों और शिक्षकों को हस्तक्षेप से जोड़ लें।छात्र समाज ही वर्गहीन जातिविहीन शोषणविहीन समता और न्याय के प्रति और जनप्रतिबद्ध समाज का आइना है और तमाम विश्वविद्यालयों में लिंगभेद न्यूनतम है और कमोबेश विमर्श का लोकतंत्र भी वहां है।
इसके विपरीत सामाजिक परिदृश्य मुक्तबाजार के अखंड राज में अत्ंयंत भयंकर है।कमसकम वर्धा हिंदी विश्वविद्यालय के छात्रों ने अंबेजकरी जनता को सोथ लेकर अंबेडकरी मिशन के तहत जाति उन्मूलन के मिशन के तहत जनप्रतिबद्ध वैकल्पिक मीडिया की हमारी परिकल्पना का समर्थन किया है तो इसके लिए हम छात्र और युवासमाज के प्रति आभारी हैं और हमें पूरा विश्वास है कि मौजूदा व्यवस्था बदलने में यह नई पीढ़ी कोई कसर बाकी नहीं रहने देगी।
कोलकाता में लौटने पर पता चला कि कोलकाता के मध्य केंद्रीय स्थल पर नेताजी और रवींद्रि के चरणचिन्हों से परिष्कृत ऐतिहासिक भरत सभा हाल में पांच जून को रोहित वेमुला और चूनी कोटाल को याद करते हुए छात्रों युवाओं की पहल पर जाति उन्मूलन के लिए नागरिक कन्वेंशन का आयोजन हुआ है जो मनुस्मृति दहन से निःसंदेह ज्यादा क्रांतिकारी है।
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