हस्तक्षेप के संचालन में छोटी राशि से सहयोग दें
एक जरूरी अपील
हस्तक्षेप.कॉम कुछ संजीदा पत्रकारों का स्वैच्छिक प्रयास है। इसकी शुरूआत वर्ष 2010 के उत्तरार्द्ध में अमलेन्दु उपाध्याय ने की थी।
शुरूआत करते समय महसूस किया जा रहा था कि तथाकथित मुख्य धारा का मीडिया अपनी प्रासंगिकता खोता जा रहा है और मीडिया, जिसे लोकतंत्र का चौथा खंभा कहा जाता है, उसकी प्रासंगिकता अगर समाप्त नहीं भी हो रही है तो कम तो होती ही जा रही है। तथाकथित मुख्य धारा का मीडिया या तो पूंजीपतियों का माउथपीस बन कर रह गया है या फिर सरकार का। हाशिए पर धकेल दिए गए आम आदमी की आवाज इस मीडिया की चिन्ता नहीं हैं, बल्कि इसकी चिन्ता में राखी का स्वयंवर, राहुल महाजन की शादी, राजू श्रीवास्तव की फूहड़ कॉमेडी और सचिन तेन्दुलकर के चौके छक्के शामिल हैं। कर्ज में डूबे किसानों की आत्महत्याएं अब मीडिया की सुर्खी नहीं नहीं रहीं, हां 'पीपली लाइव' का मज़ा जरूर मीडिया ले रहा है। वैसे भी मीडिया की मौत हो चुकी है।
ऐसे में जरूरत महसूस की गई एक वैकल्पिक मीडिया की। लेकिन महसूस किया जा रहा है कि जो वैकल्पिक मीडिया आ रहा है उनमें से कुछ की बात छोड़ दी जाए तो बहुत स्वस्थ बहस वह भी नहीं दे पा रहे हैं। अधिकांश या तो किसी राजनैतिक दल की छत्र छाया में पनप रहे हैं या फिर अपने विरोधियों को निपटाने के लिए एक मंच तैयार कर रहे हैं।
इसलिए हमने महसूस किया कि क्यों न एक नया मंच बनाया जाए जहां स्वस्थ बहस की परंपरा बने और ऐसी खबरें पाठकों तक पहुचाई जा सकें जिन्हें या तो राष्ट्रीय मीडिया अपने पूंजीगत स्वार्थ या फिर वैचारिक आग्रह या फिर सरकार के डर से नहीं पहुंचाता है।
इसी उद्देश्य को लेकर अगस्त 2010 में हमने हस्तक्षेप.कॉम को लाँच किया।
ऐसा नहीं है कि हमें कोई भ्रम हो कि हम कोई नई क्रांति करने जा रहे हैं और पत्रकारिता की दशा और दिशा बदल डालेंगे। लेकिन एक प्रयास तो किया ही जा सकता है कि उनकी खबरें भी स्पेस पाएं जो मीडिया के लिए खबर नहीं बनते।
ऐसा भी नहीं है कि हमारे वैचारिक आग्रह और दुराग्रह नहीं हैं, लेकिन हमने वादा किया था,जिसे निभाया भी, कि खबरों के साथ अन्याय नहीं करेंगे। मुक्तिबोध ने कहा था 'तय करो कि किस ओर हो तुम'। हमें अपना लक्ष्य मालूम है और हम यह भी जानते हैं कि वैश्वीकृत होती और तथाकथित आर्थिक उदारीकरण की इस दुनिया में हमारा रास्ता क्या है? इसलिएअगर कुछ लोगों को लगे कि हम निष्पक्ष नहीं हैं तो हमें आपत्ति नहीं है।
हमने यह जानते हुए हस्तक्षेप प्रारंभ किया था कि पोर्टल चलाना कोई हंसी मजाक नहीं है और जब तक कि पीछे कोई काली पूंजी न हो अथवा जिंदा रहने के लिए आपके आर्थिक रिश्ते मजबूत न हों, या फिर आजीविका के आपके साधनों से अतिरिक्त बचत न हो, तो टिकना आसान नहीं है। लेकिन मित्रों के सहयोग से रास्ता पार होगा ही! अभी तक अपने संसाधनों से हमने इसे संचालित किया है, परंतु अब आगे संचालित करने में दिक्कतें हैं।
इस समय हमारे गूगल+ पर 2,16,000 फॉलोवर्स हैं। फेसबुक पेज पर 14000 फॉलोवर्स हैं। ट्विटर पर 3400 फॉलोवर्स हैं, जबकि 78000 प्रतिमाह यूनिक विजिटर्स हैं।
हम हस्तक्षेप को मुख्यधारा में अनुपस्थित जनसुनवाई का मंच बनाना चाहते हैं। जाहिर सी बात है कि खबरों के प्रस्तुतिकरण का जो रास्ता हमने चुना है, उसमें बाजार से हमें सहयोग नहीं मिल सकता और अपने निजी संसाधनों से यह स्वरूप बनाए रखकर भी आगे चला पाना संभव नहीं है, क्योंकि अब आर्थिक संसाधन भी जुटाने पड़ेंगे और मानवीय श्रम भी (सहयोगी)। हालांकि जिस प्रकार पाठकों की आशाएं हमसे बढ़ी हैं, उसमें हमें विस्तार ही करना पड़ेगा जिसके लिए इंफ्रास्ट्रक्चर भी बढ़ाना है, नए पूर्णकालिक साथी भी बढ़ाने हैं और पाठकों की लगातार बढ़ती संख्या को देखते हुए अच्छा और महंगा सर्वर भी लेना पड़ेगा। जैसे-जैसे पाठकों की संख्या बढ़ती जाएगी, वैसे-वैसे सर्वर पर खर्चा बढ़ता जाएगा, इसलिए फिलहाल की परिस्थितियों में हम पाठकों की संख्या बढ़ने पर खुश होने के स्थान पर चिंतित होने लगते हैं।
जनांदोलनों के साथ हस्तक्षेप का एक रिश्ता कायम हो सकता है। हम पहले भी जनांदोलनों की खबरें प्रमुखता से प्रकाशित करते रहे हैं। आगे भी जनांदोलनों की खबरें हमारे यहां और अधिक स्पेस पा सकती हैं, जो तथाकथित मुख्य धारा के मीडिया में नहीं मिलता। हम जनांदोलनों के साथियों को थोड़ा सा प्रशिक्षण देकर अपनी खबरों का नेटवर्क बढ़ाना चाहते हैं, जिससे देश भर में चल रहे जनांदोलनों की खबरें और तथ्य सही रूप में रियलटाइम में पाठकों तक पहुंचेंगी और सरकार या कॉरपोरेट्स द्वारा किए जा रहे दुष्प्रचार का उत्तर दिया जा सकता है।
जिस तरीके से तथाकथित मुख्य धारा का मीडिया सरकार और कॉरपोरेट घरानों का माउथपीस बनता जा रहा है, उससे आने वाले समय में सच का सामने आना और मुश्किल होता जाएगा, इसलिए वैकल्पिक मीडिया और जनांदोलन एक दूसरे का सहयोग करके एक ताकत बन सकते हैं।
आशा है आपका सहयोग मिलेगा। हमारा प्रयास होगा कि हम ऐसे पत्रकारों को स्थान दें जो अच्छा काम तो कर रहे हैं लेकिन किसी गॉडफादर के अभाव में अच्छा स्पेस नहीं पा रहे हैं। हम जनोपयोगी और सरोकारों से जुड़े लोगों और संगठनों की विज्ञप्तियों को भी स्थान देंगे।
यदि आप यह महसूस करते हैं कि हस्तक्षेप का एजेंडा उचित है और हस्तक्षेप जनपक्षधर पत्रकारिता का मंच है, तो हस्तक्षेप की वार्षिक सदस्यता लेकर, आजीवन सदस्यता लेकर,संरक्षक सदस्यता लेकर अथवा अपने संस्थान/ संगठन/ व्यक्तिगत कार्यक्रमों का विज्ञापन देकर मदद करें।
सदस्यता का विवरण
भारतीय पाठकों के लिए
वार्षिक सदस्यता 1000/-
आजीवन सदस्यता 10000/-
संरक्षक सदस्यता 100000/-
अप्रवासी भारतीयों व संस्थाओं के लिए
वार्षिक सदस्यता 50 डॉलर
आजीवन सदस्यता 500 डॉलर
संरक्षक सदस्यता 5000 डॉलर
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आप सदस्यता का भुगतान डिमांड ड्राफ्ट या चेक द्वारा कर सकते हैं। आप वायर ट्रांस्फर या NEFT के जरिए भी भुगतान कर सकते हैं। इसके लिए आप हमें amalendu.upadhyay(at)gmail.com पर सूचित कर दें, आपको बैंक खाते की डिटेल्स भेज दी जाएंगी।
अपने सदस्यों के नाम व पते हम हस्तक्षेप पर प्रकाशित भी करेंगे, यदि सदस्य को इस पर कोई आपत्ति नहीं होगी तो।
आप अधिक से अधिक वार्षिक सदस्य, आजीवन सदस्य व संरक्षक सदस्य बनाकर हमारी सहायता कर सकते हैं। हमारी योजना है हम समय-समय पर प्रकाशित होने वाला अपना साहित्य प्रिंटिंग कॉस्ट पर अपने सदस्यों को उपलब्ध कराएंगे।
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अति आवश्यक नोट – हस्तक्षेप केवल ऑनलाइन ही उपलब्ध है। हम मुख्यधारा के मीडिया के मुकाबले वैकल्पिक मीडिया बनने की ओर अग्रसर हैं। हमारी अपनी प्रतिबद्धताएं हैं, जनपक्षधरता है लेकिन हम जनांदोलन नहीं हैं, राजनीतिक दल भी नहीं हैं और न किसी राजनीतिक दल-एनजीओ के प्रतिनिधि या मुखपत्र भी नहीं हैं। हम हैं मीडिया ही। हमारी पत्रकारीय नैतिकता और उसूल भी हैं, जिन से हम कदापि समझौता नहीं करते हैं और अपनी संपादकीय नीति में किसी भी प्रकार का बाहरी हस्तक्षेप सहन नहीं करते हैं। इसलिए हमें सहयोग करने से पहले यह तय अवश्य कर लें कि आप हमारे एजेंडे को समर्थन दे रहे हैं और इस मदद के एवज में हमारी संपादकीय नीति पर किसी भी प्रकार का कोई दबाव नहीं होगा।
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