सतीश जमाली नहीं रहे! कहानी तो वे ही निकालते थे!
पलाश विश्वास
अभी अभी जनवादी लेखक संघ के ताजा स्टेटस से पता चला कि सतीश जमाली नहीं रहे।हम बचपन से कविताएं लिखते रहे हैं बांग्ला में।नैनीताल में गुरुजी की प्रेरणा से हिंदी में लिखना शुरु हुआ तो कहानी लिखने की हिम्मत जुटाने में करीब दो साल बीत गये।कहानी हमारी बीए प्रथम वर्, से छपनी शुरु हो गयी।
ताराचंद्र त्रिपाठी के घर में कपिलेश भोज और मैं संग संग रहते थे।
भोज इंटर से ही लगातार कहानियां लिख रहा था और मुझ पर लगातार दबाव बनाये हुए था कि मैं भी कहानी लिखूं।तो नई कहानी के बारे में जानने समझने के लिए उन दिनों इलाहाबाद से प्रकाशित कहानी पत्रिका के अंकों के पाठ का सिलसिला शुरु हुआ।चूंकि श्रीपत राय इसके संपादक थे।
यूं तो पिताजी बांग्ला पत्रिका देश के साथ साथ साठ के दशक में छपने वाली पत्रिका उत्कर्ष के आजीवन सदस्य थे और बांग्ला और हिंदी कहानियों के बारे में मेरी डरी सहमी राय बनी हुई थी और मैं समझ रहा ता कि कविताएं लिखना ज्यादा आसान है लेकिन कहानियों के पचड़े में पड़ना नही चाहिए।
नई कहानी के दिग्गजों को पढ़ने से पहले,नैनीताल में होते हुए शिवानी,बटरोही,बल्लभ डोभाल,शेखर जोशी और शैलेश मटियानी को पढ़ने से पहले मैंने इंटर ेसे ही विश्वसाहित्य के लगभग सभी कहानीकारों को पढ़ डाला था।हिंदी में नई कहानी को समझने का प्रयास कहानी पत्रिका से शुरु हुआ।
तब हिंदी जगत के बारे में गुरुजी के अलावा हमारे गाइड कपिलेश भोज ही थे।भोज ने कह दिया कि श्रीपत जी की उम्र हो गयी है तो सतीश जमाली ही कहानी संपादित करते हैं।इसी बीच गुरुजी के निर्देश के मुताबिक ज्ञान रंजन को पड़ने के बाद मोहन राकेश राजेंद्र यादव और कमलेश्वर से हमारा मोहभंग हो गया था।
बतौर लेखक सतीश जमाली को बाद में जाना।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मैं पीएचडी के लिए गया था और डां.मानस मुकुल दास के मातहत अंग्रेजी कविता पर शोध करने का इरादा लेकर मैं नैनीताल के पहाड़ों से सीधे इलाहाबाद पहुंचा था।मटियानी जी के घर में जगह नहीं थी तो 100 लूकर गंज में शेकऱ जोशी के घर रुका तो इलाहाबाद की पूरी साहित्यिक बिरादरी से रुबरु हो गया।लूकरगंज में ही मंगलेश डबराल और वीरेन डंगवाल रहते थे।वहीं नीलाभ और उनके पिता उपेंद्र नाथ अश्क रहते थे।
शेखर जी से दूधनाथ सिंह की खास दोस्ती थी तो भैरव जी,अमरकांत,नरेश मेहता,रवींद्र कालिया ममता कालिया,मार्केंडय से उनके ताल्लुकात बेहद पारिवारिक थे।कहानी के दफ्तर में मंगलेश जी के साथ सतीश जमाली के साथ मुलाकात हुई।उनका चेहरा काफी हद तक ओम पुरी जैसा लगता था।तब तक उनका लिखा भी पढ़ चुका था।
नई पीढ़ी के रचनाकारों को सत्तर के दशक में ज्ञानरंजन से जितनी प्रेरणा मिली,बजरिये कहानी सतीश जमाली ने भी उन्हें काफी हद तक प्रभावित किया।
ऐसे संपादक लेखक के अवसान पर बहुत खराब लग रहा है।
जनवादी लेख संघ का स्टेटस इस प्रकार हैः
सतीश जमाली नहीं रहे
(21.06.2016)
हिंदी के महत्वपूर्ण कथाकार और 'कहानी' तथा 'नयी कहानियाँ' पत्रिका के सम्पादन से सम्बद्ध रहे श्री सतीश जमाली के निधन की सूचना अत्यंत दुखद है. इन दिनों कानपुर में रह रहे सतीश जमाली कुछ दिन पहले अपने पुश्तैनी शहर पठानकोट गए थे जहां बताते हैं कि ठोकर लगने से उन्हें चोट आयी थी और नाक से खून आने लगा था. दिल्ली लाकर एम्स में उन्हें भरती कराया गया. यहाँ वे कुछ दिन कोमा में रहे, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें बचाया न जा सका. आज सुबह उनका निधन हुआ. वे लगभग 77 वर्ष के थे.
श्री सतीश जमाली 'जंग जारी', 'नागरिक', 'बच्चे तथा अन्य कहानियां', 'ठाकुर संवाद', 'प्रथम पुरुष' जैसे कहानी-संग्रहों और 'प्रतिबद्ध', 'थके-हारे', 'छप्पर टोला' तथा 'तीसरी दुनिया' जैसे उपन्यासों के लिए जाने जाते हैं. साहित्यिक पत्रकार के रूप में तो उनकी पहचान थी ही.
जनवादी लेखक संघ दिवंगत कथाकार को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है.
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