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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Saturday, December 22, 2012

जहां रेल यात्रा रोजमर्रे की नरक यंत्रणा है!

जहां रेल यात्रा रोजमर्रे की नरक यंत्रणा है!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास


दक्षिण चौबीस परगना की आम जनता के लिए रेलयात्रा रोजमर्रे की नरक यंत्रणा  है ।भारत विभिन्न संस्कृति की भूमि है और रेल न केवल देश की परिवहन संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने में मुख्य भूमिका निभाता है अपितु बिखरे हुए क्षेत्रों को एक सूत्र में बांधने और राष्ट्रीय एकीकरण में भी महत्वपूर्ण कार्य करता है।सुंदरवन इलाके में रेलयात्रा करने पर यह धारणा तुरंत ही ध्वस्त हो जाती है। दक्षिण कोलकाता से बाहैसियत सांसद ममता बनर्जी ने एक बार नही दो दो बार रेलवे महकमा संभाला।अपने कार्यकाल में उन पर रेल मंत्रालय कोलकाता से संभालने के आरोप लगे। बंगाल में वे लगातार ​​रेलवे परियोजनाओं का शिलान्यास और विकास के जरिये अपनी प्रतिबद्धता साबित करती रही। उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद तृणमूल कोटे से दिनेश त्रिवेदी औरर उन्हें हटाये जाने के बाद मुकुल राय रेलमंत्री रहे। पर दक्षिण परगना के लोगो को रेलयात्रा की नरकयंत्रणा से कोई राहत नहीं ​​मिली। लेडीज स्पेशल का तोहफा जरूर मिला, पर भयंकर भीड़ वाली ट्रेनों में सफर करने के लिे आज भी लोग मजबूर हैं और अब इस नरकयंत्रणा से निजात पाने के कोई आसार नहीं हैं।​

सियालदह दक्षिण शाखा में सिग्नलिंग व्यवस्था का आधुनिकीकरण भी नहीं हुआ। आंधी पानी में कभी भी रेलसेवा बाधित होने से सुंदरवन के दुर्गम इलाकों के यात्री अक्सर किस मुसीबत का सामना करते होंगे, इसका सिर्फ अंदाजा लगाया जा सकता है।ओवरहेड तार टूट कर गिरने के कारण सियालदह दक्षिण शाखा में ट्रेन सेवा घंटों ठप होना आम बात है। फिर मरम्मत की व्यवस्था भी बीरबल की खिचड़ी जैसी है।
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​दरअसल सियालदह दक्षिण शाखा का कोई माई बाप नहीं है।सियालदह दक्षिण से बजबज, नामखाना , डायमड हारबर और कैनिंग कुल चार लाइनों पर ट्रेनें ट्रेनें दौड़ती हैं, जो दक्षिण चौबीस परगना के अपेक्षाकृत पिछड़े इलाके में जीवन और आजीविका के पर्याय हैं। सुंदरवन को पर्यटन के लिए खोलने के लिए भी इन लाइनों का राष्ट्रीय  महत्व है। नामखाना और डायमंड हारबर रेलवे लाइनें तो गंगासागर तीर्थ से देश को जोड़ती हैं। आम भारतीय की आस्था की भी लाइफ लाइन है सियालदह दक्षिण शाखा।

दक्षिण कोलकाता के पार्क सर्कस, बालिगंज, ढाकुरिया, यादवपुर, संतोषपुर, टालीगंज, लेक गार्टन, बेहाला, खिदिरपुर, अलीपुर, कालीघाट, गड़िया जैसे इलाके भी इसी शाखा की ट्रेनों पर निर्भर हैं। मेट्रो के न्यू गड़िया स्टशन चालू हो जाने पर भी इस शाखा पर दबाव घटा नहीं है। यादवपुर विश्वविद्यालय इस लाइन पर होने की वजह से छात्रों और शिक्षकों को इसी लाइन का उपयोग करना होता है। पर हालत यह है कि इस शाखा की ट्रेनों में आप कहीं  से न आराम से चढ़ सकते हैं और न उतर सकते हैं।नामखाना तक चार पांच घंटे, और कैनिंग व डायमंड हारबर तक दो ढाई घंटे के सफर में भीड़ इतनी ज्यादा होती है कि आपको सीटों के बीच दो दो, तीन तीन पांत में खड़े होकर सफर करना पड़ता है। रेलवे लाइनों के दोनों तरफ राजनीतिक ​
​संरक्षण से हुए व्यापक अतिक्रमण और झुग्गी झोपड़ियों की कतारों की वजह से ट्रेनें तेज गति से चल ही नहीं सकतीं। रेललाइन पर लोग रोजमर्रे के काम निपटाते हैं, बच्चों के लिए वह खेल का मैदान है तो औरतों के लिए बैठकखाना। ट्रेनें वैसे भी बहुत कम हैं। सिंगल लाइन होने के कारण कम से कम घंटेभऱ के इंतजार ट्रेन के लिए मामुली अनुभव है। यात्रिययों की सुरक्षा का भी बंदोबस्त नहीं है। एक सोनार पुर और नये बने न्यू गड़िया स्टेशन छोड़कर बाकी तमाम स्टेशनों पर ट्रेनों की प्रतीक्षा में गंदगी और भीड़ के बीच घंटों इंतजार घुटनभरी रेलयात्रियों की रोजमर्रे की जिंदगी है।

सियालदह राणाघाट और सियालदह बनगांव लाइनों पर भी भीड़ कम नहीं होतीं। पर बारासात हासनाबाद लाइन जो  फिर उत्तर चौबीस परगना होकर सुंदरवन का दरवाजा खटखटाती है, दोहरी लाइनें होने की वजह से कम कष्टदायक है। इन शाखाओं के स्टेशनों के मुकाबले दक्षिण के स्टेशन तो कोलकाता की बदनाम गंदी बस्तियों से भी बदतर है।​बाकी शाखाओं की तरह दोहरी लाइन न होने की वजह से ही सियालदह दक्षिण की लंबी दूरी की मंजिलों तक सिरफ धीमी गति की ट्रेनों ही चलायी जा सकती है। तेज गेलोपिंग ट्रेनें इस शाखा के लिए कतई नहीं हैं।राणा घाट, कृष्णनगर,लालगोला,शांतिपुर, कटवा, बर्दवान, वनगांव, गेदे और खड़गपुर तक की यात्रा लोग जिस मजे में तय कर लेते हैं, ​​नामखाना, कैनिंग और डायमंड हारबर लाइनों पर उसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती।
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​अभी गंगासागर मेला शुरु होने में कोई खास वक्त नहीं है। अगर डायमंड हारबर और नाखाना लाइनों को दुरुस्त कर दिया जाये तो सीधे गंगासागर के दरवाजे तक एक्सप्रेस ट्रेनें पहुंच सकती हैं, जो आस्था के इस सफर को आरामदायक बना सकती है। पर रेलवे प्रशासन ने तो नामखाना तक लाइन का विस्तार करके बिना सेवा बेहतर किये अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली। कैनिंग से आगे बसंती होकर गोसाबा तक पहुंच सकती है भारतीय​ ​ रेल, जिससे सुंदरवन इलाके के लोगों का आजीविका के खातिर कोलकाता जाने की रोजमर्रे की मजबूरी कुछ आसान हो सकती है।

मालूम हो कि सियालदह मंडल राज्य( पश्चिम बंगाल) के छ:प्रमुख जिलों की सेवा कर रहा है, जिसकी परिसीमा के भीतर पश्चिम में हुगली नदी,उत्तर और पूर्व की ओर बांग्लादेश एवं दक्षिणी बाजू में सुंदरवन का सरहद आता है । मंडल को तीन भौगोलिक क्षेत्रों अर्थात् उत्तर एवं मेन, मध्य एवं दक्षिण में विभाजित किया गया है । इसकी सीमा का विस्तार उत्तर में लालगोला तक है, जिसका फैलाव मध्यवर्ती जंक्शन स्टेशनों शान्तिपुर, गेदे,कल्याणी, सीमान्ता तक और पूर्व में बनगांव तथा हसनाबाद तक हुआ है । दक्षिण में इसका क्षेत्र कैनिंग, नामखाना, डायमंड हार्बर तथा बजबज और पश्चिम में इसका क्षेत्र बाली हॉल्ट तक हुआ है ।

सर्कुलर रेल

दमदम जंक्शन से प्रारंभ होता है और प्रिंसेप घाट एवं माझेरहाट होते हुए बालीगंज तक जाती है । छावनी स्टेशन से नेताजी सुभाष चन्द्र बोस हवाई अड्डा तक ऊँचा उठाया गया एक नया कनेक्टीविटी तैयार किया गया है जो भारतीय रेल की एक अद्वितीय विशेषता है । मंडल, गेदे और पेट्रोपोल के माध्यम से बांग्लादेश के अंतर्राष्ट्रीय यातायात को संभालता है ।

खास बात है कि मंडल के अधिकारी और बंगाल के ममता बनर्जी समेत तमाम रेल मंत्रियों ने सियालदह दक्षिण के पिछड़े इलाके के ​​गरीब रेलयात्रियों की अभी तक कोई सुधि नहीं ली। जब अब्दुल गनी खान चौधरी मालदहव उत्तर को और रामविलास पासवान और ​​नीतीश कुमार उत्तर बिहार को बेहतरीन रेल सुविधाएं दिलाने में कामयाब रहे, तब सुंदरवन के अंत्यज इलाके के पिछड़े और गरीब​​ रेलयात्रियों के लिए वैसी ही रेलसेवा की अपेक्षा अब किससे करें?दिल्ली में रेल भवन के बजाय पूर्वी रेलवे के मुख्यालय कोलकाता में कामकाज संभालने वाली ममता ने ने कोलकाता को विशेष तोहफा देते हुए मेट्रो और उपनगरीय रेल सेवाओं का विस्तार करने की घोषणा की।लेकिन इससे सुंदरवन इलाके और दक्षिम २४ परगना की किस्मत बदली नहीं।

कोलकाता उपनगरीय रेलवे कोलकाता के उपनगरीय क्षेत्रों के लिए रेल प्रणाली है। इस प्रकार की रेलवे भारत में अत्यधिक प्रयोगनीय प्रणाली होती है। भारतीय रेल के विभिन्न मंडलों में से पूर्व रेलवे (भारत) और दक्षिणपूर्व रेलवे (भारत) का मुख्यालय कोलकाता में है। कोलकाता में दो प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं- हावड़ा जंक्शन और सियालदह जंक्शन। एक अन्य महत्त्वपूर्ण टर्मिनल चितपुर में बना है। इस स्टेशन का नाम कोलकाता रखा गया है। हाल ही में हावड़ा के निकट शालीमार में भी नया टर्मिनल बना है। वहां से कुछ इंटरसिटी एक्स्प्रेस ट्रेनें भी चलती हैं। कोलकाता में अपने पड़ोसी उपनगरों सहित उपनगरीय रेल प्रणाली है, जो अति विस्तृत, किन्तु भीड़-भाड़ वाली है। अधिकांश ट्रेनें इलेक्ट्रिक मल्टिपल युनिट (ई.एम.यू.) हैं। यह विस्तृत उपनगरीय रेल जाल उत्तर २४ परगना, दक्षिण २४ परगना, नदिया, हावड़ा और हुगली तक फैला हुआ है।
कोलकाता में उपनगरीय रेलवे पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी रेल मंडल द्वारा संचालित है। कोलकाता मेट्रो नगर में भूमिगत रेल सेवा उपलब्ध कराती है। नगर में एक अलग चक्रीय रेल लाइन है, जो पूर्वी रेलवे द्वारा संचालित है।

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