Thursday, 20 December 2012 10:33 |
अशोक गुप्ता भारत में वालमार्ट का ऐसा कोई विदेशी प्रतिद्वंद्वी नहीं होने वाला है। इस कारण यहां वालमार्ट के निरंकुश होने की आशंका हर हाल में बहुत ज्यादा है। इसलिए, यह रिपोर्ट बहुत बेबाक शब्दों में कहती है कि भारत जिस स्थिति में है, उसमें अगर वालमार्ट का चाल-चलन पटरी से उतर गया तो वह भारत के लिए गंभीर खतरा बन जाएगी। यह रिपोर्ट स्पष्ट रूप से यह भी बताती है कि वालमार्ट का व्यवसाय भारत के किसी भी वर्ग के लिए लाभकारी सिद्ध नहीं होगा। समृद्ध खुदरा व्यापारी, छोटे किराना वाले, थोक व्यापारी, यहां तक कि उत्पादक भी वालमार्ट के भारत आने से विपन्न हो जाएंगे। यूएनआइ की उक्त रिपोर्ट यहां तक भी कहने में नहीं हिचकती कि कानून तोड़ने के अभ्यास में वालमार्ट का इतिहास दुस्साहस भरा है, और भारत जैसा देश, जहां कानूनी ढांचा पर्याप्त प्रभावी नहीं है, वहां एफडीआइ कतई अनुकूल और हितकर नहीं हो सकता। यहां एक और दृष्टांत देना जरूरी है। वर्ष 1974 में प्रख्यात पत्रकार लिंडन ला रौश ने एक अमेरिकी साप्ताहिक पत्रिका शुरू की थी, 'एक्जीक्यूटिव इंटेलिजेंस रिव्यू', जो राजनीतिक विश्लेषणों के लिए महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। उसके नवंबर 2003 में प्रकाशित हुए एक अंक में रिचर्ड फ्रीमैन का लेख छपा था: 'वॉलमार्ट कोलैप्सेस यूएस सिटीज एंड टाउंस' (वालमार्ट अमेरिका के शहरों और कस्बों को बर्बाद कर रहा है)। यह लेख साफ तौर पर अमेरिका में वालमार्ट की वजह से हुए दुखद अनुभवों की दास्तान बताता है। और इसीलिए जिम ब्लेसिंगेम जैसे लोगों को अपना आंदोलन खड़ा करने को विवश होना पड़ता है। अब जरा इस लेख के मुख्य ब्योरों पर नज़र डालें। रिचर्ड फ्रीमैन कहते हैं कि पिछले बीस वर्षों में वालमार्ट ने, जब से उसने कदम रखा है, बर्बादी मचा कर रख दी है। इसने स्थानीय बाजार को मिटा कर रख दिया, कर-संचयन के बुनियादी ढांचे को तहस-नहस कर दिया, जिसके कारण कस्बे किसी भुतहे डेरे में बदल कर रह गए। वालमार्ट कामगारों को मामूली तनख्वाहों पर रखती है और विदेशों से लगभग बंधुआ गुलामों जैसी शर्तों पर माल खरीदती है। वालमार्ट न केवल टैक्स चुकाने में छूट हासिल करती है, बल्कि कामगारों के अधिकारों के हनन की भी छूट जबर्दस्ती ले लेती है। लोवा राज्य वालमार्ट के हाथों हुई अपनी दुर्दशा की मिसाल है। वह कभी एक तरक्की करता हुआ कृषि-प्रधान राज्य हुआ करता था, साथ ही वह उत्तर-पूर्व का औद्योगिक केंद्र भी था। 1983 में वालमार्ट ने वहां अपना पहला स्टोर खोला और साथ ही उसने लोवा के दूसरे स्थानीय स्टोरों को निगलना शुरू कर दिया। यह सिलसिला अमेरिका में बड़े पैमाने पर देखा जाने लगा। जहां कहीं वालमार्ट ने पैर फैलाया, वहां के पहले से जमे-जमाए स्वरोजगार तबाह हो गए। तोलिदो ओहियो का हाल अमेरिका के लेखक नोर्मन बताते हैं। 1924 से 1984 तक, जिन भव्य बहुमंजिला इमारतों में वहां का स्थानीय बाजार गुलजार रहता था, वहां अब उल्लू बोल रहे हैं। वे इमारतें 1984 के बाद से वीरान पड़ी हैं। नोवाता के ओकलाहोमा के पहलू में भी दर्दनाक दास्तान है। वहां चार हज़ार लोगों की आबादी वाले कस्बे में 1982 में वालमार्ट ने अपना एक स्टोर खोला। उसके बाद धीरे-धीरे वहां के स्थानीय व्यापारियों के काम पर ताला लग गया। यह एक त्रासद स्थिति थी। तभी अचानक 1994 में वालमार्ट ने वह स्टोर बंद कर दिया और वहां से तीस मील दूर, बाटर्लेस्विले में अपना नया सुपरसेंटर खोल लिया। उजाड़ा हुआ नवाता अपने हाल पर रोता रह गया। मिसिसिपी और वेरमोंट राज्यों की कहानी भी इससे कम ददर्नाक नहीं है, और यह इस सिलसिले का अंत भी नहीं है। बहुत-से राज्य वालमार्ट की धौंसपट््टी के शिकार भी हैं और वालमार्ट को अपने अर्जित राजस्व में से सबसिडी के रूप में वित्तीय दंड भी भुगत रहे हैं। इस तरह, अमेरिका में वालमार्ट की कहानी का सार यही है कि स्थानीय व्यवसायी उसका निवाला बनने को मजबूर हैं। नवंबर 2011 में अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ट्विटर पर लिखा, 'आज अपने क्षेत्र की छोटी स्थानीय दुकानों से खरीदारी करके लघु व्यवसायियों को सहयोग दीजिए और उन्हें प्रोत्साहित कीजिए।' इंटरनेट, 'स्मॉल बिजनेस सेटरडे' का हवाला देते हुए यह बताता है कि केवल एक जगह नहीं बल्कि कई जगह ओबामा ने लोगों को ऐसा ही संदेश दिया है। जो तथ्य वालमार्ट के अपने देश अमेरिका में विरोध का आधार बन रहे हैं, वे भारत में कैसे झुठलाए जा सकते हैं? |
This Blog is all about Black Untouchables,Indigenous, Aboriginal People worldwide, Refugees, Persecuted nationalities, Minorities and golbal RESISTANCE. The style is autobiographical full of Experiences with Academic Indepth Investigation. It is all against Brahminical Zionist White Postmodern Galaxy MANUSMRITI APARTEID order, ILLUMINITY worldwide and HEGEMONIES Worldwide to ensure LIBERATION of our Peoeple Enslaved and Persecuted, Displaced and Kiled.
Friday, December 21, 2012
खुदरा में अंदेशे क्यों हैं
खुदरा में अंदेशे क्यों हैं
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment