खंडूरी जी पहुँचे 'ससुराल'
लेखक : राजीव लोचन साह :: अंक: 05 || 15 अक्टूबर से 31 अक्टूबर 2011:: वर्ष :: 35 :October 30, 2011 पर प्रकाशित
दूसरी बार मुख्यमंत्री पद पर आसीन होने के बाद रिटायर्ड मेजर जनरल भुवन चन्द्र खंडूरी 6 अक्टूबर 2011 को पहली बार अपनी 'ससुराल' नैनीताल आये। उनके लगभग पाँच घंटों के इस दौरे पर कुछ टिप्पणियाँ करने की गुंजाइश बनती है।
6 अक्टूबर को दशहरा था। हमेशा की तरह खंडूरी ठंडी सड़क के रास्ते पाषाण देवी गये, वहाँ पर हो रही श्रीमद्भागवत की कथा के बीच पूजा की और फिर मल्लीताल नयना देवी मंदिर पहुँचे। हालाँकि नैनीताल में नयना देवी का माहात्म्य ज्यादा माना जाता है, इस नगर का नाम ही नयना देवी के नाम पर पड़ा है, मगर निजी कारणों से श्री एवं श्रीमती खंडूरी को पाषाण देवी में ज्यादा आस्था है। खंडूरी की इस आस्था का फायदा उठाते हुए उनके पिछले कार्यकाल में पाषाण देवी मंदिर से सटा कर, निहायत खतरनाक स्थान पर अवैध रूप से एक धर्मशाला भी बन गई। अतिक्रमणकारियों ने सोचा होगा, और बिल्कुल ठीक सोचा कि खंडूरी दम्पत्ति की इस आस्था के मद्देनजर झील परिक्षेत्र विकास प्राधिकरण अथवा वन विभाग उनका बाल भी बाँका नहीं कर सकेंगे। इस धर्मशाला के सफल निर्माण से उत्साहित होकर ठंडी सड़क पर ही लगभग आधा किमी आगे एक और खतरनाक स्थान पर स्थित शनिदेव के मंदिर ने भी आधी सड़क घेर कर फटाफट विशालकाय रूप धारण कर लिया। मैं कई बार सोचता हूँ कि अवैध निर्माणों के बाद 'मंदिर मार्ग' हो चुकी इस ठंडी सड़क पर यदि एक मस्जिद भी बन जाये तो नैनीताल की धर्मप्राण जनता की क्या प्रतिक्रिया होगी!
इस बार खंडूरी के ठंडी सड़क के रास्ते पाषाण देवी जाने के दौरान एक उल्लेखनीय घटना हुई। ज्ञातव्य है कि ठंडी सड़क पर यातायात पूरी तरह निषिद्ध है। खंडूरी भी हमेशा ही वहाँ से पैदल जाते हैं। इस बार भी गये। लेकिन इस बार उनके पीछे-पीछे चार अदद सफेद एम्बैसेडर गाडि़याँ पाषाण देवी मंदिर तक पहुँच गईं। यह एक खतरनाक शुरूआत है। आज एक मुख्यमंत्री के नाम पर गईं, कल किसी मंत्री के नाम पर जायेंगी और परसों किसी बड़े नौकरशाह के नाम से। फिर हो सकता है कि जो पिछले 170 सालों में नहीं हुआ, नैनीताल की ठंडी सड़क मोटर यातायात के लिये खुल जायेगी। नैनीताल की मालरोड पर यही हुआ। जहाँ पचास साल पहले मोटर साइकिल को भी लोग धकेलते हुए ले जाते थे, उस पर सवार होकर नहीं, उस मालरोड पर पैदल चलना अब एक तरह का एडवेंचर है। यही हालत तल्लीताल-मल्लीताल बाजारों की है। कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था, लेकिन इन दस सालों में वहाँ इतने स्कूटर और मोटर साइकिल धड़धड़ाते हुए चलते हैं कि आप अपने साथ चल रहे किसी छोटे बच्चे को वहाँ पर नहीं छोड़ सकते। इसलिये यदि भविष्य में कभी ठंडी सड़क पर यातायात की शुरूआत होगी तो इतिहास में यह दर्ज किया जायेगा कि इसके लिये 'ट्रायल' 6 अक्टूबर 2011 को कर लिया गया था।
बहरहाल……
एक बजे मुख्यमंत्री की प्रेस वार्ता थी। दो दर्जन के करीब मीडियाकर्मी इन्तजार में थे। वक्त की पाबंदी के लिये जाने जाने वाले खंडूरी जी समय पर ही कान्फ्रेंस रूम में आये। लेकिन तभी उनकी कड़कती हुई फौजी आवाज गूँजी, ''यह मीटिंग नहीं होगी। इसे कैंसिल कर दें।'' फिर एक मिमियाती हुई आवाज आई, ''सर, ये प्रेस कांफ्रेंस है।'' पत्रकार भी चौंके कि ये अचानक मुख्यमंत्री को उनसे एलर्जी क्यों हो गई है। तभी मालूम पड़ा कि वे अपने पीछे आ रही, उन्हें ठेलती हुई निगरगंड भाजपाइयों की भीड़ से आपा खो बैठे थे। उनके गुस्से का असर पड़ा और वह भीड़ हॉल के बाहर ही ठिठक गई। ''इसी राजनैतिक संस्कृति के सहारे आप सरकार चलायेंगे ?'' मैंने उन्हें चिढ़ाने के लिये पूछा। ''नहीं, मुख्यमंत्री बनने पर कार्यकर्ताओं की उम्मीदें कुछ बढ़ ही जाती हैं,'' वे सहज हो गये थे।
खंडूरी शायद समझ गये हैं कि कार्यकर्ताओं को कैसे नियंत्रित करना है। इस भीड़ में, जिसमें ज्यादातर छोटे-बड़े ठेकेदार हैं, कुछ दलाल और माफिया, पिछली बार उनसे संरक्षण न पाकर उनको कुर्सी से बाहर फेंकने के लिये एकजुट हो गये थे। इस बार चुनाव में समय इतना कम रह गया है कि खंडूरी को न इन कार्यकर्ताओं का ज्यादा भय होगा और न केन्द्रीय नेताओं का। दो-अढ़ाई महीने तक कोई उन पर अनावश्यक दबाव नहीं डालेगा। 'अण्णा-अण्णा' का जाप वे इन दिनों कर ही रहे हैं। कोशिश करें तो जल्दबाजी में कुछ अच्छे काम कर सकते हैं। उसके बाद की भली चलाई। भाजपा के वापस सत्ता में लौटने की ही कौन सी उम्मीद है और लौट भी गई तो कौन इस बात की गारंटी देगा कि खंडूरी को फिर से मौका मिलेगा ही!
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