गोरखा राइफल्स के 125 साल
लेखक : शमशेर सिंह बिष्ट :: अंक: 08 || 01 दिसंबर से 14 दिसंबर 2011:: वर्ष :: 35 :December 18, 2011 पर प्रकाशित
2/5 गोरखा राइफल्स की 125 वीं वर्षगाँठ 10 नवम्बर 2011 को अल्मोड़ा में मनाई गई। इस आयोजन के लिये 48 वर्ष बाद यह पल्टन जुलाई 2011 में दुबारा अल्मोड़ा में आई। आजादी के बाद अल्मोड़ा में आने वाली पहली पल्टन 2/5 गोरखा राइफल्स थी। यह फौजी टुकड़ी सन् 1963 में अल्मोड़ा में स्थापित हुई थी। इसे वी.सी. पल्टन के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि शायद यह एकमात्र पल्टन है, जिसे वीरता के लिये तीन विक्टोरिया क्रास मिले थे। अल्मोड़ा में यह सीधे कांगों से आई थी। अल्मोड़ावासियों ने तब पहली बार हाथ में रख कर सुने जाने वाले ट्रांजिस्टर (रेडियो) देखे थे, क्योंकि विदेश से लौटे प्रायः सभी सैनिकों के पास ये रेडियो होते थे। इसके तत्कालीन सूबेदार मेजर (ऑनेररी कैप्टन) गजे घले अल्मोड़ा में अत्यन्त लोकप्रिय रहे। सन् 1965 में अवकाश लेने के बाद भी वे अन्तिम समय तक अल्मोड़ा में ही रहे। विक्टोरिया क्रास प्राप्त गजे घले को वीसी घले के नाम से जाना जाता था। उन्होंने नेपाल सरकार में मंत्री बनने के बजाय अल्मोड़ा में रहना बेहतर समझा। वे उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन में भी काफी सक्रिय रहे। उनके नाम से ही 2/5 जी. आर. को घले पल्टन भी कह दिया जाता था। 1996 में गजे घले का देहान्त हो गया।
अल्मोड़ा अठारहवीं शताब्दी से ही गोरखा शासकों के प्रभाव में रहा। 1815 में गोरखा शासकों का शासन समाप्त हुआ और 18वीं शताब्दी के अन्त में अल्मोड़ा 1/3 गोरखा राइफल्स का केन्द्र बना। प्रथम विश्वयुद्ध में 1/3 जी.आर. ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज भी अल्मोड़ा में 1/3 जी.आर. की अचल सम्पत्ति बनी हुई है। आज जिस क्षेत्र में कुमाऊँ विश्वविद्यालय का सोबनसिंह जीना परिसर है, उसका अधिकांश भाग 1/3 जी.आर. का ही हुआ करता था। अल्मोड़ा के पल्टन बाजार में आज भी जी.आर. के परिवार के लोग रहते हैं।
2/5 गोरखा राइफल्स का इतिहास वीरता की कहानियों से भरा है। इसकी स्थापना 10 नवम्बर 1886 में अबटाबाद में मेजर ई. मोलोए द्वारा की गयी थी। स्थापना के तुरन्त बाद यह पंजाब और उत्तर पश्चिम सीमान्त राज्य में 19 वर्ष तक तैनात रही। पल्टन ने प्रथम विश्वयुद्ध में 1915 में गेलीपोली और 1916 में मेसोपोटामिया की लड़ाइयों में भाग लिया और बहादुरी का प्रदर्शन किया और युद्ध सम्मान प्राप्त किये। 20/21 मार्च 1937 की रात को डामडिल में नम्बर 11 पिकेट की लड़ाई लड़ी गई। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पल्टन द्वारा बर्मा की लड़ाई के दौरान दिखाई वीरता के कारण सूबेदार नेत्र बहादुर थापा, हवलदार गजे घले और नायक अगन सिंह राई को विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया। स्वतंत्रता के बाद पल्टन ने 1948 में हैदराबाद में पुलिस कार्यवाही में भाग लिया। 1962 में पल्टन संयुक्त राष्ट्र शान्ति सेना के तहत कांगों में कार्यरत रही। इसके अलावा पल्टन ने और भी कई अभियानों में भाग लिया, जिनमें देश के भीतर तथा सीमाओं पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ निभाने के अतिरिक्त 1971 में बांग्लादेश के मोहनपुर ब्रिज, पीरगंज और बोगरा के युद्ध शामिल उल्लेखनीय हैं। 2/5 गोरखा राइफल्स को वीरता के लिये 2 महावीर चक्र, 3 वीर चक्र, एक शौर्य चक्र, 14 सेना मेडल, एक वार टु सेना मेडल, 4 परम विशिष्ट सेवा मेडल, 6 विशिष्ट सेवा मेडल, एक बार टु विशिष्ट सेवा मेडल, 12 मेंशन इन डिस्पेचेज, 21 सेनाध्यक्ष के प्रशंसा पत्र आदि प्राप्त हुए हैं।
पलटन की 125 वर्षगाँठ मनाने लगभग 300 पूर्व सैनिक अपने परिवारों के साथ नेपाल, देहरादून, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, दार्जिलिंग आदि से आये थे। इनमें जनरल से लेकर सिपाही तक सभी सम्मिलित थे। सभी ने मिलकर 8, 9 व 10 नवम्बर को आयोजित समारोहों में भाग लिया। समारोह के मुख्य अतिथि लेफ्टिनेंट जनरल संजय अहलूवालिया थे।
संबंधित लेख....
- आशल–कुशल : 01 दिसंबर से 14 दिसंबर 2011
इस बीच ठंड बढ़ने लगी है और कुछ समय तक पहाड़ों पर लगने के बाद अब कोहरा मैदानी हिस्सों को खिसक गया है।... - ये कैसे भाषा मंत्री हैं ?
अल्मोड़ा में आयोजित भाषा संस्थान के सरकारी कार्यक्रम में भाषा मंत्री मातबर सिंह कंडारी का रवैया बेहद... - आशल–कुशल : 1 नवम्बर से 14 नवम्बर 2011
प्रदेश मंत्रिमंडल ने सशक्त लोकायुक्त विधेयक को व पं.दीनदयाल उपाध्याय उत्तराखंड विश्वविद्यालय विधेयक ... - आशल–कुशल : 15 अक्टूबर से 31 अक्टूबर 2011
राज्य में मतदाता सूची में संशोधन का काम आरंभ हो गया। पहली जनवरी 2012 को 18 वर्ष की आयु पूरी करने वाल... - अर्द्धसैनिक बलों के साथ भेदभाव
अर्द्धसैनिक बल सरकार से खफा हैं। आईटीबीपी, बीएसएफ, असम राईफल्स, सीआरपीएफ जैसे सैन्य बलों का भारतीय र...
No comments:
Post a Comment