जे जे ईरानी का मानना है कि देश में स्टील उद्योग को सरकार से बढ़ावा नहीं मिल रहा है। कच्चे माल की कमी, जमीन अधिग्रहण में दिक्कतों से नए स्टील प्लांट नहीं लग रहे हैं।
मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवंस विश्वास
टाटा स्टील के पूर्व चेयरमैन, जे जे ईरानी का कहना है कि यूरोप में बिगड़ते हालात की वजह से कंपनी को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। टाटा स्टील के कुल कारोबार का करीब 70 फीसदी हिस्सा यूरोप से आता है।इस्पात उद्योग के लिए फिलहाल खास खबर यह है कि एस्सार स्टील ने गुजरात के हजीरा में एक करोड़ टन स्टील क्षमता वाला
प्लांट चालू कर दिया है। इस प्लांट के शुरू होने से एस्सार किसी एक लोकेशन पर फ्लैट स्टील बनाने वाली चौथी सबसे बड़ी कंपनी बन गई है। फ्लैट स्टील बनाने वाली तीन टॉप कंपनियों में चीन की बाओस्टील, कोरिया की पॉस्को और रिवा ग्रुप हैं। बाओस्टील 1.86 करोड़ टन, पॉस्को 1.81 करोड़ टन और रिवा ग्रुप 1.29 करोड़ टन फ्लैट स्टील बनाती हैं।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में मांग से अधिक आपूर्ति के चलते चीन और सीआईएस देश स्टील उत्पादों की बड़े पैमाने पर डंपिंग कर रहे हैं और भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में इनकी आपूर्ति कर रहे हैं। इसके कारण घरेलू उत्पादकों को नुकसान हो रहा है। यही कारण है कि देसी स्टील निर्माताओं ने अपना उत्पादन भी कम कर दिया। चीन, अमेरिका और यूरोपीय संघ के बाद भारत दुनिया का चौथा बड़ा स्टील उत्पादक देश है। हमारे यहां प्रतिवर्ष छह करोड़ अस्सी लाख टन स्टील का उत्पादन होता है। जो साल 2020 तक तीन गुनी से अधिक बढ़ोत्तरी के साथ 20 करोड़ टन के पार पहुंच जाएगा।
वर्ष 2011 में देश के इस्पात उत्पादन में 5.7 फीसदी की वृद्धि हुई है। इससे भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश बन गया। हालांकि इस दौरान दुनिया में 6.8 फीसदी की दर से इस्पात का उत्पादन बढ़ा है। वहीं चालू वर्ष 2012 में स्टील उत्पादन में दो फीसदी की कमी आने का अनुमान जताया गया है। विश्व इस्पात संघ (डब्ल्यूएसए) के मुताबिक वर्ष 2010 के मुकाबले 2011 में वैश्विक इस्पात उत्पादन बढ़कर 152.7 करोड़ टन के रिकॉर्ड स्तर पर रहा। इस दौरान भारत का इस्पात उत्पादन 2010 के 6.83 करोड़ टन के मुकाबले 7.22 करोड़ टन रहा। वैश्विक इस्पात उत्पादन में डब्ल्यूएसए के सदस्यों का योगदान करीब 85 प्रतिशत है। चीन ने वैश्विक इस्पात उत्पादन में सबसे अधिक 69.55 करोड़ टन का योगदान किया। दूसरे सबसे बड़े इस्पात उत्पादक जापान ने पिछले साल 10.76 करोड़ टन इस्पात का उत्पादन किया जो वर्ष 2010 के 10.96 करोड़ टन के मुकाबले कम है। वर्ष 2011 में 8.62 करोड़ टन इस्पात का उत्पादन कर अमेरिका तीसरे पायदान पर रहा। अमेरिका स्थित संगठन वर्ल्ड स्टील डायनामिक्स ने 2012 में स्टील उत्पादन घटकर 150 करोड़ टन रहने का अनुमान लगाया है।
जे जे ईरानी का मानना है कि देश में स्टील उद्योग को सरकार से बढ़ावा नहीं मिल रहा है। कच्चे माल की कमी, जमीन अधिग्रहण में दिक्कतों से नए स्टील प्लांट नहीं लग रहे हैं।ईरानी के मुताबिक घरेलू स्टील कंपनियों की जरूरतों को देखते हुए सरकार को आयरन ओर के निर्यात पर रोक लगा देनी चाहिए। आगामी बजट में सरकार के आर्थिक सुधारों की ओर अहम कदम उठाए जाने की उम्मीद है।
इस बीच औद्योगिक संगठन एसोचैम ने स्टील उत्पादों पर निर्यात शुल्क बढ़ाने की मांग की है। संगठन ने इसे पांच फीसदी से बढ़ाकर 10 फीसदी करने को कहा है। एसोचैम का तर्क है कि इससे देसी स्टील उत्पादकों को चीन और सीआईएस (कॉमनवेल्थ ऑफ इंडिपेन्डेंट स्टेट्स) देशों के स्टील उत्पादकों से मुकाबला करने में मदद मिलेगी। संगठन के अध्यक्ष डीएस रावत की मानें तो नए वैश्विक व भयानक प्रतिस्पर्धी माहौल से कीमतों को कम करने की विशेष चुनौतियां पैदा हुई हैं, जिसके कारण घरेलू निर्माताओं का बाजार में टिके रहना मुश्किल हो गया है। इसलिए बेहतर होगा कि आयात शुल्क में बढ़ोत्तरी की जाए।
कमजोर अंतर्राष्ट्रीय संकेतों की वजह से घरेलू बाजारों ने भी 0.75 फीसदी की गिरावट के साथ शुरुआत की है। सेंसेक्स 96 अंक गिरकर 17138 और निफ्टी 42 अंक गिरकर 5163 पर खुले हैं।स्टरलाइट इंडस्ट्रीज, एलएंडटी, डीएलएफ, टाटा स्टील, आईसीआईसीआई बैंक, हिंडाल्को, एसबीआई, टाटा पावर, जिंदल स्टील, एनटीपीसी, टाटा मोटर्स 2-1 फीसदी कमजोर हैं।
कोयला कीमत तय करने का कोल इंडिया का नया फार्मूला आने वाले दिनों में बिजली दरों के साथ ही देश में स्टील व सीमेंट की कीमतें भी बढ़ा सकता है। इसके महंगाई पर पड़ने वाले असर को देखते हुए ही केंद्र सरकार कंपनी पर यह दबाव बनाने की कोशिश कर रही है कि कोयले की कीमत में वृद्धि चरणबद्ध तरीके से हो। वैसे कोकिंग कोल की कीमत में कोई बदलाव नहीं होगा। यह फार्मूला एक जनवरी, 2012 से लागू किया गया है।उद्योग सूत्रों का कहना है कि कोल इंडिया का फार्मूला कोयले का इस्तेमाल करने वाली स्टील, अल्युमिनियम और सीमेंट कंपनियों की लागत भी बढ़ा देगा।
जे जे ईरानी के मुताबिक यूरोप में सप्लाई के मुकाबले स्टील की मांग कम है, जिससे टाटा स्टील अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल नहीं कर पा रही है। साथ ही, यूरोप में हालत जल्द सुधरने की संभावना काफी कम है।
वहीं, देश में भी स्टील सेक्टर मुश्किलों से जूझ रहा है। मांग होने के बावजूद स्टील कंपनियां अपना उत्पादन नहीं बढ़ा पा रही हैं। देश स्टील उत्पादन क्षमता काफी कम है, जबकि में कम से कम सालाना 10 करोड़ टन स्टील का उत्पादन होना चाहिए।
एस्सार ने कहा है कि उसकी प्रति टन स्टील की लेबर कॉस्ट चीन की बाओस्टील के बाद सबसे कम है। एस्सार स्टील ने बताया कि कंपनी का प्रति टन स्टील उत्पादन पर लेबर खर्च 8.2 डॉलर है। इसके अलावा एस्सार स्टील भारत में आयरन ओर पैलेट्स बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी के तौर पर उभर रही है। साथ ही, कंपनी इस मामले में दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में शुमार होने की दिशा में भी आगे बढ़ रही है।
उड़ीसा के पारादीप में तैयार हो रहे प्रोजेक्ट के पूरा होने के साथ ही कंपनी इन नई उपलब्धियों को हासिल कर लेगी। एस्सार ग्रुप की पैलेट्स की कम्बाइंड कैपेसिटी 2.7 करोड़ टन होगी, जिसमें से 2 करोड़ टन की कैपेसिटी भारत में और बाकी अमेरिका में होगी ।
पैलेट कैपेसिटी के मामले में पूरी दुनिया में वैले और क्लिफ्स ही ऐसी कंपनियां हैं जो एस्सार स्टील से आगे हैं। कंपनी उड़ीसा यूनिट के 60 लाख टन के पहले फेज को मार्च-अप्रैल 2012 में चालू कर देगी, जबकि दूसरा फेज मार्च 2013 से ऑपरेशनल हो जाएगा।
वाइजैग में कंपनी की मौजूदा कैपेसिटी को जोड़ने के साथ ही मार्च 2013 में कंपनी की पैलेट प्लांट कैपेसिटी दो करोड़ टन हो जाएगी। इस तरह से कंपनी स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया, जेएसडब्ल्यू स्टील और जेएसपीएल से कहीं आगे निकल जाएगी। इसके अतिरिक्त एस्सार स्टील अमेरिका के मिनोसोटा में 70 लाख टन पैलेट प्रोजेक्ट को वित्त वर्ष 2012-13 में पूरा करने की राह पर आगे बढ़ रही है।
Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/
No comments:
Post a Comment