दस रुपये रोज पर आशा वर्कर!
लेखक : इंद्रेश मैखुरी :: अंक: 24 || 01 अगस्त से 14 अगस्त 2011:: वर्ष :: 34 :August 16, 2011 पर प्रकाशित
18 जुलाई देहरादून की सड़कों पर मूसलाधार बारिश के बीच हाथों में लाल झण्डे थामे हजारों महिलाओं ने घंटाघर से मुख्यमंत्री कार्यालय तक जलूस निकाला। यह हुजूम आशा कार्यकर्त्रियों का था, जो ऑल इण्डिया सेन्ट्रल काउन्सिल ऑफ ट्रेड यूनियन्स से सम्बद्ध उत्तराखण्ड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन से जुड़ी हैं।
दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों से लेकर मैदानों तक गर्भवती महिलाओं के सुरक्षित प्रसव कराने से लेकर टीकाकरण तक रात-दिन अपने काम पर लगी आशा कार्यकर्तियाँ चरम सरकारी उपेक्षा की शिकार हैं। वेतन तो दूर, उन्हें श्रम कानूनों के तहत निर्धारित न्यूनतम मजदूरी जितना पारिश्रमिक भी नहीं मिलता। राज्य कर्मचारियों के लिए छठा वेतन आयोग सबसे पहले लागू करने का दावा करने वाली सरकार ने आशा कार्यकर्तियों को ग्रामीण क्षेत्रों में संस्थागत प्रसव के लिए मिलने वाले पारिश्रमिक को 600 रु. से घटाकर 350 रु. कर दिया है। शहरी क्षेत्रों में तो यह राशि 200 रु. मात्र है। इस तुच्छ राशि के लिए वक्त-बेवक्त काम पर तैनात रहने की अपेक्षा करना एक तरह से बेगार करवाना है। तीन साल पहले 2008 में रमेश पोखरियाल 'निशंक', जो उस समय स्वास्थ्य मंत्री थे, ने घोषणा की थी कि आशा कार्यकर्तियों को मासिक वेतन दिया जायेगा। निशंक मुख्यमंत्री हो गए, पर उनकी घोषणा फाइलों में धूल फाँक रही है।
इस शोषण के खिलाफ ऐक्टू ने उन्हें संगठित करना शुरू किया। पिथौरागढ़ से शुरू हुई यह प्रक्रिया अल्मोड़ा, नैनीताल सभी क्षेत्रों में फैल रही है। विभिन्न वैचारिक, राजनीतिक व नीतिगत सवालों पर समझदारी विकसित करने के लिए पिथौरागढ़ में एक आशा कार्यकर्त्रियों की कार्यशाला आयोजित की गई। 7 जून को सभी जिला एवं ब्लाक मुख्यालयों पर प्रदर्शन किए गए। इसी क्रम में 18 जुलाई को देहरादून में मुख्यमंत्री कार्यालय पर प्रदर्शन किया गया। पुलिस द्वारा रोके जाने पर भारी बारिश के बीच ही प्रदर्शनकारी राज्य सचिवालय, जहाँ मुख्यमंत्री कार्यालय स्थित है के सामने ही धरने पर बैठ गए। वहीं पर जन सभा की गई।
सभा को संबोधित करते हुए ऐक्टू के राष्ट्रीय सचिव कामरेड राजीव डिमरी ने कहा कि पूँजीपतियों को भारी मुनाफा दिलवाने के लिए देश भर में सरकारें ठेका प्रथा को बढ़ावा दे रही हैं। आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन की राज्य संयोजक कामरेड हेमलता सौन ने कहा कि आशा वर्कर्स के प्रति सरकारी रवैया उसके महिला विरोधी चेहरे को ही उजागर करता है। आशा कार्यकर्त्रियों की 10 रु. प्रतिदिन की आमदनी भी नहीं हो पा रही है। विधानसभा के भीतर किसी भी पार्टी ने राज्य सरकार की फिजूलखर्ची और मजदूर विरोधी रुख पर कोई सवाल नहीं उठाया। सभा को उत्तराखण्ड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन की अल्मोड़ा जिलाध्यक्ष जानकी गुर्रानी, रानीखेत की सचिव गीता सजवाण, बागेश्वर की नेता गंगा आर्य, चंपावत की जिलाध्यक्ष सरस्वती पुनेठा, टनकपुर की अध्यक्ष मीना कश्यप, नैनीताल की जिलाध्यक्ष कमला कुंजवाल, उधमसिंह नगर की ममता दानू, खटीमा से गनेस आदि ने संबोधित किया। अखिल भारतीय किसान महासभा के पुरुषोत्तम शर्मा, जगत मर्तोलिया, आनंद नेगी, ऐक्टू के कैलाश पांडेय, आइसा की मालती हालदार ने भी सभा को संबोधित किया। अध्यक्षता ऐक्टू के प्रदेश अध्यक्ष कामरेड निशान सिंह ने की तथा संचालन ऐक्टू के प्रदेश सचिव के.के.बोरा ने किया। बाद में सिटी मजिस्ट्रेट के माध्यम से मुख्यमंत्री को भेजे गए ज्ञापन में माँग की गई कि आशा वर्कर्स को सरकारी कर्मचारी घोषित कर श्रम कानूनों के तहत तथा सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार प्रति माह 6000 रु. वेतन दिया जाये, पारिश्रमिक कटौती वापस लेते हुए इसे 1000 रु. प्रति प्रसव किया जाए, सभी अस्पतालों में आशा विश्राम गृहों का निर्माण किया जाये, आशा वर्कर्स को सरकारी अस्पतालों में राज्य कर्मचारियों की तरह निःशुल्क स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध करवायी जाये तथा 20 लाख रु. का दुर्घटना बीमा करवाया जाये तथा वर्ष भर में 20 दिन का अवकाश दिया जाये।
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