ग्राम प्रहरियों का सरकारी शोषण
लेखक : जगमोहन डांगी :: अंक: 08 || 01 दिसंबर से 14 दिसंबर 2011:: वर्ष :: 35 :December 16, 2011 पर प्रकाशित
पौड़ी जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में तैनात ग्राम पहरियों की सरकार कोई सुध नहीं ले रही है। वे मात्र दो सौ रुपये मासिक वेतन पर जान जोखिम में डालकर अपना कार्य कर रहे हैं। इनकी नियुक्ति 2003-04 में जिलाधिकारी द्वारा की गई थी और तब से उनके वेतन में कोई वृद्धि नहीं की गयी।
इनके बाद नियुक्त हुई भोजन माता का वेतन दो सौ रुपये से बढा़कर एक हजार रुपये कर दिया गया। किन्तु ग्राम पहरी मात्र दो सौ रुपये में ही निर्भर हैं। यह मानदेय भी कई माह नहीं मिल पाता है, इसके बाबत तहसील के कई चक्कर काटने पड़ते हैं। पौड़ी तहसील में दो वर्ष पूर्व एक कानूनगो द्वारा ग्राम प्रहरियों के छः माह का वेतन 22 हजार रुपया गबन कर दिये जाने पर वह निलम्बित चल रहा है।
सीटू के बैनर तले ग्राम प्रहरियों का लम्बी अवधि से धरना प्रदर्शन चल रहा है। इनकी तहसील स्तर की इकाई गठित है। पूर्व में प्रहरियों ने विधानसभा का भी घेराव किया था, लेकिन सरकार इनकी कोई सुध नहीं ले रही है। इन्हें राजस्व सम्बन्धी सूचना पटवारी चौकी में देनी होती है पर मानदेय के बारे में अभी तक कुछ ठोस कार्य नहीं हुआ है।
इन्हें मुजरिम पकड़ने, वोटर कार्ड, राशन कार्ड आदि कार्यों के लिए राजस्व निरीक्षक के साथ जाना पड़ता है।
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