बस भी करो कि लड़की का नया नाम नहीं है
लेखक : नैनीताल समाचार :: अंक: 08 || 01 दिसंबर से 14 दिसंबर 2011:: वर्ष :: 35 :December 18, 2011 पर प्रकाशित
http://www.nainitalsamachar.in/why-they-need-to-bring-a-girl-name-in-song/
बस भी करो कि लड़की का नया नाम नहीं है
लेखक : नैनीताल समाचार :: अंक: 08 || 01 दिसंबर से 14 दिसंबर 2011:: वर्ष :: 35 :December 18, 2011 पर प्रकाशित
देवेश जोशी
लड़कियों के नाम नहीं मिल रहे हैं। 1001 से लेकर 5001 नामों वाली किताब में नहीं, पंडित जी के पातड़़े में नहीं, कान्वेट से पढ़ी भाभी के पास नहीं और गाय-बाछियों के मौलिक नाम रखने में सिद्धहस्त दादी के पास भी नहीं। नामों का ये अकाल पड़ा है हमारे उन तथाकथित लोकगायकों की कृपा से, जिनके गीत सृजन के भावों का छोया सूख गया है, कल्पना की रोड पर जाम लगा हुआ है और उर्वरता गायब हो गयी है। एकमात्र चीज जो दिमाग में बच गयी है वो है लड़की। लड़की पर भी बहुत सुंदर गीत लिखे गए हैं, लिखे जा रहे हैं और लिखे जाते रहेंगे। किन्तु समस्या यह है कि लड़की की भी तो कोई तस्वीर इनके दिमाग में साफ नहीं है। मात्र आउटलाइन, वो भी धुंधली-सी। अब इस बोरिंग आउटलाइन को नया कैसे दिखायें ? भाव, कल्पना और उर्वरता की तमाम लाइनें व्यस्त होने के कारण जो एकमात्र लाइन गीतकार महोदय को मिलती है, वो है लड़की का नया नाम लेकर कुछ किया जाए। नयी बोतल पुरानी शराब सा कुछ समझ लीजिए।
पिछले कुछ समय से विद्यालयों में अभिभावकों द्वारा अपनी किशोर वय लड़कियों के नाम परिवर्तन के बढ़ रहे आवेदनों की पड़ताल करने पर पता चला कि ये बालिकाएँ अपने नाम का हल्के पहाड़ी गीतों में प्रयोग देख अपमानित महसूस करती हैं। कुछ मनचलों को भी बैठे बिठाये फिकरे मिल जाते हैं। बालिकाएँ सारा गुस्सा निकालती हैं अपने अभिभावकों पर कि कैसा नाम रखा है आपने मेरा। ये नाम बदलवाइए नहीं तो कल से स्कूल जाना बंद। अब अभिभावक कैसे समझाये कि बेटी का वो नाम तलाशा था उसने, जो गाँव भर और पूरी रिश्तेदारी में किसी का नहीं था। एक पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी ऐसे गीतों को सुनके बिफर पड़ते थे। बेटियों का नाम रखना मुश्किल कर दिया इन शोहदों ने। अरे मैं पूछता हूँ बिना लड़की का नाम दिए क्या सुनने वाले को गीत समझ में नहीं आएगा। शीला की जगह टीला और मुन्नी की जगह चुन्नी होने से गीत को तो कोई असर नहीं पड़ता किन्तु शीला और मुन्नी के माँ-बाप की फजीहत तो कर ही दी इन्होंने।
किसी फिल्म विशेष के गीतों में व्यक्तिवाचक नामों का प्रयोग तो फिर भी समझा जा सकता है, क्योंकि जब शीला का जिक्र गाने में आए तो कहा जा सकता है कि आशय फलां फिल्म की शीला से है (हालाँकि इससे भी लड़कियों की फिकरे सुनने की समस्या में कोई कमी नहीं आती), किन्तु बिना किसी कहानी के स्वतंत्र रूप से लिखे गए गीतों में लड़कियों के नामों का प्रयोग एक दुष्प्रवृत्ति है जिस पर रोक लगाए जाने के लिए गायकों-गीतकारों-निर्माताओं पर सामाजिक दबाव बनाया जाना चाहिए। यह विवेचन विशुद्ध रूप से उत्तराखण्डी गीतों के संदर्भ में किया जा रहा है। फिर भी किसी गीतकार या गीत में प्रयुक्त लड़कियों के नाम का जिक्र यहाँ इसलिए नहीं किया जा रहा है कि इससे अनावश्यक उपहास प्रक्रिया में मैं भी सम्मिलित हो जाउँंगा।
मैं स्वयं गीतों के क्षेत्र में थोड़ी-बहुत दखल रखता हूँ। सौ से अधिक गीत लिख चुका हूँ, जिनमें अच्छा खासा प्रतिशत प्रेमगीतों का भी है। पर मुझे अभी तक किसी गीत में किसी लड़की के नाम का सहारा नहीं लेना पड़ा। आज गीतों की स्थिति यह हो गयी है कि उनमें अंतर मात्र लड़की के नाम से ही किया जा सकता है। बाकी कथ्य, भाव, शब्द, जुमले तो सारे पुराने होते हैं, जिन्हें फेंट-फाँट कर परोस दिया जाता है। बस-टैक्सियों के सफर में माँ-बहिनों और संवेदनशील नागरिकों की मजबूरी की चुपचाप सुनते रहें ये बिना सिर पैर के गीत, क्योंकि पहाड़ी मार्ग पर पाइलट साहब का मूड खराब करने का रिस्क कोई नहीं लेना चाहता।
अभी हाल में एक हिन्दी फिल्म के गीत में अपने ब्राण्ड नाम का प्रयोग होने पर कम्पनी वाले पहले तो खूब आग बबूला हुए थे, बाद में मुनाफे में साझेदारी की शर्त पर फिल्म और कम्पनी मालिक में समझौता हो गया। समाज और नैतिकता के जो तर्क पहले तक कम्पनी गिना रही थी, कांचनगुणों के प्रभाव में वे सब हवा हो गए। लेकिन जनाब लड़कियाँ तो कोई निर्जीव उत्पाद नहीं हैं। उन्हें एक बार ठेस पहुँचती है तो जीवन भर के लिए ग्रंथि पाल लेती हैं।
…..छोरी से प्रारम्भ गीतों की भरमार देखकर ही समझा जा सकता है कि गीतकारों के पास गीत के पहले शब्द का ही कितना अकाल है। शायद उनका तर्क और धारणा ये होती हो कि पहले ही शब्द पे तो लोग ध्यान देते हैं। आगे कुछ भी घुसा दो क्या फर्क पड़ता है। 'वेल बिगन' की शक्ति से अपरिचित ही ऐसा कर सकता है। धुन-संगीत की हेराफेरी भी सामान्य बात हो गयी है किन्तु वो विषयांतर है।
नामों का ऐसा अकाल मेल आईडी या साइट एड्रेस रजिस्टर्ड करने में ही देखने में आता था, जहाँ कितने भी मौलिक और नए से नाम को प्रस्तुत कीजिए, जवाब मिलता है, चेंज कीजिए ये पहले से बुक है। पंडितों ने भी नामकरण संस्कार के लिए अब 5001 नाम वाला गुटका पोथी के साथ रखना शुरू कर दिया है, क्योंकि जागरूक माता-पिता कन्याओं के नामकरण के दिन से ही सजग दिखायी देते हैं। नहीं, पंडितजी ये नहीं इस पर पहाड़ी गीत बन चुका है। दस साल से छोटे बच्चों के नामों पर आप ध्यान दें तो पायेंगे कि नयेपन की तलाश और ओछे गायकों के भय से हिन्दुओं ने मुस्लिम नाम रखने शुरू कर दिये हैं। लेकिन वहाँ भी नाम एक सीमित संख्या में ही हैं। उधर भी इन गायकों की वक्रदृष्टि हो गयी तो फिर क्या करें ?
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