पूंजीवाद के अंत की आहट
लेखक : नैनीताल समाचार :: अंक: 08 || 01 दिसंबर से 14 दिसंबर 2011:: वर्ष :: 35 :December 18, 2011 पर प्रकाशित
पीयूष पंत
अमेरिका के न्यूयार्क शहर की लिबर्टी स्ट्रीट स्थित जुकोटी पार्क में चल रहे 'ऑक्युपाई वाल स्ट्रीट' नामक जन विरोध प्रदर्शनों से बरबस अगस्त माह में भारत में चला जन लोकपाल बिल समर्थन आन्दोलन याद आ रहा है। अमेरिकी शेयर बाजार का अड्डा कहलाये जाने वाले वाल स्ट्रीट के खिलाफ पूरे अमेरिका में चल रहे विरोध प्रदर्शन में शामिल युवा और अन्ना हजारे के अनशन के समर्थन में दिल्ली के रामलीला मैदान में उमड़े जन हुजूम में कई समानताएँ दिखायी देती हैं, स्वतःस्फूर्त भागीदारी, स्वजनित, सोशल नेटवर्किंग, हाथों में झंडे, तरह-तरह के बैनर और नारे लिखी तख्तियाँ, शहर के कोनों और दूसरे शहरों में भी प्रदर्शन में शामिल होना। यहाँ तक कि राजनीतिक दलों के रवैये में भी समानता सी दिखायी पड़ती है। जबकि कांग्रेस अन्ना के आन्दोलन की मुखालफत करती रही और भारतीय जनता पार्टी इस आन्दोलन से फायदा उठाने का प्रयास करती रही, उसी तरह अमेरिका में भी रिपब्लिकन पार्टी 'ऑक्युपाई वाल स्ट्रीट' प्रदर्शन का घोर विरोध कर रही है, लेकिन डेमोक्रेटिक पार्टी अब खुले रूप से उसका समर्थन करने लगी है। यहाँ तक कि राष्ट्रपति ओबामा भी अपरोक्ष रूप से इसका समर्थन करते हुए वक्तव्य जारी कर चुके हैं। अमेरिका के विभिन्न शहरों में चल रहे विरोध प्रदर्शनों को देखकर यह नहीं लगता कि ऐसा एक विकसित देश में हो रहा है।
रोज लंच टाइम में प्रदर्शन स्थल पहुँचने वाली मिशैल स्नाइडर का कहना है- 'हम अमेरिकी अर्थव्यवस्था को पतन के गर्त में गिरने से रोकना चाहते हैं और सच पूछो तो हमें अपना मध्यम वर्ग का दर्जा वापिस चाहिए।' 21 वर्षीय विश्वविद्यालय का छात्र रयान रीड अपनी कक्षाएं छोड़कर इस विरोध प्रदर्शन में शामिल हो रहा है। वह कहता है-'वाल स्ट्रीट के बड़े व्यापारिक संस्थान, बड़ी तेल कम्पनियों के मालिक, कोयला कंपनियों के मालिक, बड़े सैन्य उद्योगों के मालिक हमारे शत्रु हैं। मैं यहाँ आया हूँ क्योंकि मैं और मेरे हिसाब से देश के ज्यादातर लोग अर्थव्यवस्था और पूरी व्यवस्था को ढहते हुए देख रहे हैं।' वहीं 21 वर्षीय बेरोजगार युवा सैम वुड कहता है- 'मैं यहाँ हूँ क्योंकि मैं सोचता हूँ कि गरीबों की तुलना में अमीरों को ज्यादा अवसर मिलना ठीक नहीं है।'
शनिवार, 17 सितंबर को लगभग पाँच हजार अमेरिकी निचले मैनहटन के वित्तीय जिले में पहुँचे। उनके हाथों में नारे लिखी तख्तियाँ थीं। वे हवा में बैनर हिला रहे थे, ड्रम बजा रहे थे, नारे लगा रहे थे ओर वाल स्ट्रीट की तरफ बढ़ते चले जा रहे थे। उन्होंने कसम खायी थी कि वे 'वाल स्ट्रीट' पर कब्जा करके रहेंगे।' लेकिन स्ट्रीट को चेक पाइंट्स और बैरिकेड से घेर कर न्यूयॉर्क पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के प्रयासों को अस्थायी झटका दे दिया। पुलिस की इस कार्यवाही से वे हतोत्साहित नहीं हुए। कुछ देर वे उस इलाके का चक्कर काटते रहे, फिर लिबर्टी स्ट्रीट स्थित एक पार्क में डेरा डाल दिया और एक जनसभा का आयोजन कर डाला। तीन सौ लोगों ने वहीं पार्क में रात बिताई। अगले दिन सैकड़ों दूसरे प्रदर्शनकारी वहाँ पहुँच गये। जब इन लोगों ने यह संदेश ट्वीट किया कि हम भूखे हैं तो पास ही स्थित पिजा की एक दुकान को इन लोगों तक पिजा पहुँचाने के लिये एक घंटे के अंदर 2800 डॉलर मिल गये। प्रदर्शनकारियों में हालांकि ज्यादातर युवा वर्ग के थे लेकिन अधेड़, बूढ़े, गोरे, काले, पुरुष, महिलायें सभी इसमें शिरकत करते देखे जा सकते थे। इनके नारे हवा में उछलते जाते- 'हूज स्ट्रीट्स ? आवर स्ट्रीट्स'। 'ऑल डे, ऑल वीक, ऑक्यूपाई वॉल स्ट्रीट'। आक्युपाई वाल स्ट्रीट आंदोलन 200 से 300 लोगों की अगुवाई में चल रहा है। जो पुलिस के आतंक की परवाह न कर रोज जुकोटी पार्क में रात बिताते हैं। वॉल स्ट्रीट और कॉरपोरेट अमेरिका इनके निशाने पर हैं। इन्हें जनता का पूरा सहयोग मिल रहा है। रोज डोनेशन आ रहे हैं, लोगों के समूह और अनेक संगठन खाना, पानी, इस्तेमाल हुए कपड़े, कंबल, प्लास्टिक की चादर और कार्डबोर्ड पहुँचा कर मदद कर रहे हैं।
'ऑक्युपाई वॉल स्ट्रीट' ने अपने आंदोलन की प्रेरणा स्पेन में संपन्न हुई जन सभाओं से हासिल की और अवधारणा के रूप में इसका प्रचार एडबसटर्स मैगजीन के 97 वें अंक में छपे दो पेजी एक पोस्टर ने किया। इसकी शुरूआत तब हुई जब एडबसटर्स ने संस्कृतिकर्मियों की भीड़ के नेटवर्क से कहा कि वे निचले मैनहटन में भारी संख्या में पहुँचें, वहाँ शिविर लगायें, रसोई चलायें, शांतिपूर्ण घेराव करें और कुछ महीनों तक वॉल स्ट्रीट पर कब्जा कर लें। 'हम बीस हजार लोग अमेरिका के वित्तीय केंड वॉल स्ट्रीट पर पहुँचेंगे, शांतिपूर्ण ढंग से वहाँ पड़ाव डालेंगे, यह तय करने के लिये जनसभा का आयोजन करेंगे कि हमारी एक मांग क्या होगी और संपूर्ण परिदृश्य के अपने एजेंडे को एक ऐसे अहिंसक नागरिक अवज्ञा आंदोलन से आगे ले जायेंगे जैसा कि 1960 के स्वतंत्रता जुलूसों के बाद से अब तक देश में देखा नहीं गया है।' यह विचार तुरंत सोशल नेटवर्किंग का हिस्सा बन गया और स्वतंत्र कार्यकर्ताओं ने इस पर काम करते हुए एक खुली साइट 'ऑक्यूपाई वॉल स्ट्रीट' बना डाली। कुछ दिन बाद न्यूयॉर्क शहर में एक आम सभा आयोजित की गई जिसमें 150 लोग शामिल हुए। यही कार्यकर्ता आक्यूपेशन आंदोलन में मुख्य संगठनकर्ता बने।
अमेरिका के अनेक शहरों में फैल चुके ये विरोध प्रदर्शन बढ़ती सामाजिक अराजकता, बढ़ती बेरोजगारी (9.1 फीसदी) और जनसंख्या के बड़े हिस्से के जीवन स्तर में तेजी से हो रही गिरावट के खिलाफ है। घरों से वंचित करने में बढ़ोतरी, आसमान छूते छात्र कर्जे, वॉल स्ट्रीट तथा बैंकों को खरबों डालर की बेलआउट से भी लोगों में गुस्सा है। उनका कहना है कि वॉल स्ट्रीट के वे लोग जिन्होंने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को लगभग डुबो दिया था अमीर होते रहे हैं जबकि नौकरीपेशा लोगों को अपने खर्चे पूरे कर पाना मुश्किल हो रहा है। इसीलिये प्रदर्शनकारियों का सबसे अधिक गुस्सा बड़े-बड़े कॉरपोरेट्स और उनके हाथों बिक चुके राजनेताओं के खिलाफ दिखायी दे रहा है। यही कारण है कि वे खुद के लिये '99 फीसदी' का नारा लगा रहे हैं। वे इस नारे के माध्यम से कहना चाहते हैं कि वे अब अमरीका में एक फीसदी अमीरों के लालच और भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं करेंगे।
समकालीन तीसरी दुनिया, संपादक: आनन्द स्वरूप वर्मा, संपादकीय संपर्क: क्यू-63, नोएडा, गौतम बुद्ध नगर, 201301,
वार्षिक शुल्क: 200 रु., आजीवन शुल्क: 3000 रु., के अक्टूबर-नवम्बर 2011 के अंक से साभार
एक चिन्तित नागरिक द्वारा जनहित में जारी
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