उत्तराखंड: अब खाने के लिए हो रहा है खूनी संघर्ष
पूनम पाण्डे ।। नई दिल्ली
उत्तराखंड में आपदा के बाद अब भूख का संकट गहरा गया है। खाने को लेकर कई जगहों पर खूनी संघर्ष हो रहे हैं। सरकार के राहत पहुंचाने के दावे की पोल खुल रही है। अब भी 1,300 गांव अलग-थलग पड़े हुए हैं। यहां अनाज खत्म होने से अब लोग भूख से तड़प रहे हैं और राहत के नाम पर जो कुछ पहुंच रहा है उसे पाने के लिए मारपीट तक से परहेज नहीं कर रहे हैं।
सुदूर इलाकों में लोग भूख से लड़ने के लिए एक-दूसरे के खून के प्यासे हो रहे हैं। शांत माने जाने वाले इस राज्य में प्रकृति का कहर इस तरह बरपा कि लोगों के घर, जमीन, सामान सब कुछ जमींदोज हो गए। 16 दिनों से आपदा की मार झेल रहे लोगों का धैर्य अब जवाब देने लगा है। पिथौरागढ़ जिले के नेपाल सीमा से लगे गांव मारछा में राहत सामग्री आते ही लोग उस पर टूट पड़े। हालत यह है कि राहत सामग्री में से अपना हिस्सा पाने के लिए लोग एक-दूसरे से मारपीट पर उतारू हो गए हैं। ज्यादा मार महिलाओं पर पड़ रही है, क्योंकि उन्हें अपनी भूख के साथ ही परिवार वालों की भूख के लिए भी लड़ना पड़ रहा है। खाने के सामान को लेकर जिस तरह मारपीट हो रही है उससे सरकार के राहत पहुंचाने के दावों का अंदाजा लगाया जा सकता है।
स्थानीय निवासी बसंती मारछाल ने कहा कि हम टेंट में रहकर या टेंट में जगह न मिलने पर बाहर रहकर किसी तरह गुजारा कर रहे हैं पर अब भूख बर्दाश्त नहीं हो रही। इसलिए मैं सामान लूटने के लिए झगड़ पड़ी। पता नहीं फिर कब सामान आएगा। मैं अपने परिवार वालों को भूख से तड़पता नहीं देख सकती। मारछा गांव के अलावा बलुवाकोट, कालिका, तेजम, तवाघाट, ऐलागाड़ का भी यही हाल है। यहां जाने का रास्ता टूट गया है। जो भी एनजीओ और सामाजिक-राजनीतिक संगठन राहत सामग्री लेकर जा रहे हैं वह दूर से ही वहां फेंक रहे हैं। गांव के किसी प्रभावशाली शख्स को उसका जिम्मा सौंपने के अलावा उन्हें सामग्री बांटने का कोई रास्ता समझ नहीं आ रहा।
उत्तराखंड में आपदा के बाद अब भूख का संकट गहरा गया है। खाने को लेकर कई जगहों पर खूनी संघर्ष हो रहे हैं। सरकार के राहत पहुंचाने के दावे की पोल खुल रही है। अब भी 1,300 गांव अलग-थलग पड़े हुए हैं। यहां अनाज खत्म होने से अब लोग भूख से तड़प रहे हैं और राहत के नाम पर जो कुछ पहुंच रहा है उसे पाने के लिए मारपीट तक से परहेज नहीं कर रहे हैं।
सुदूर इलाकों में लोग भूख से लड़ने के लिए एक-दूसरे के खून के प्यासे हो रहे हैं। शांत माने जाने वाले इस राज्य में प्रकृति का कहर इस तरह बरपा कि लोगों के घर, जमीन, सामान सब कुछ जमींदोज हो गए। 16 दिनों से आपदा की मार झेल रहे लोगों का धैर्य अब जवाब देने लगा है। पिथौरागढ़ जिले के नेपाल सीमा से लगे गांव मारछा में राहत सामग्री आते ही लोग उस पर टूट पड़े। हालत यह है कि राहत सामग्री में से अपना हिस्सा पाने के लिए लोग एक-दूसरे से मारपीट पर उतारू हो गए हैं। ज्यादा मार महिलाओं पर पड़ रही है, क्योंकि उन्हें अपनी भूख के साथ ही परिवार वालों की भूख के लिए भी लड़ना पड़ रहा है। खाने के सामान को लेकर जिस तरह मारपीट हो रही है उससे सरकार के राहत पहुंचाने के दावों का अंदाजा लगाया जा सकता है।
स्थानीय निवासी बसंती मारछाल ने कहा कि हम टेंट में रहकर या टेंट में जगह न मिलने पर बाहर रहकर किसी तरह गुजारा कर रहे हैं पर अब भूख बर्दाश्त नहीं हो रही। इसलिए मैं सामान लूटने के लिए झगड़ पड़ी। पता नहीं फिर कब सामान आएगा। मैं अपने परिवार वालों को भूख से तड़पता नहीं देख सकती। मारछा गांव के अलावा बलुवाकोट, कालिका, तेजम, तवाघाट, ऐलागाड़ का भी यही हाल है। यहां जाने का रास्ता टूट गया है। जो भी एनजीओ और सामाजिक-राजनीतिक संगठन राहत सामग्री लेकर जा रहे हैं वह दूर से ही वहां फेंक रहे हैं। गांव के किसी प्रभावशाली शख्स को उसका जिम्मा सौंपने के अलावा उन्हें सामग्री बांटने का कोई रास्ता समझ नहीं आ रहा।
भूख से परेशान गांव वालों का आरोप है कि कुछ प्रभावशाली लोग सारा सामान अपने कब्जे में ले रहे हैं। कमजोर तबके के लोगों को खाने का सामान पाने के लिए ज्यादा संघर्ष करना पड़ रहा है। दलितों की संख्या गांवों में कम है ऐसे में उन्हें अपनी भूख से लड़ने के लिए पहले दूसरे लोगों से लड़कर खाना छीनना पड़ रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि हालात यहां काबू से बाहर हो रहे हैं।
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