उत्तराखंड में कितने मरे, सरकार को भी पता नहीं
देहरादून/ दिल्ली।। उत्तराखंड में प्रकृति के तांडव में कितने लोग मारे गए हैं, सरकार को भी इसका सही-सही अंदाजा नहीं हैं। आपदा के बाद दूसरी बार उत्तराखंड गए केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने शुक्रवार को यह बात मानी। गौरतलब है कि अभी करीब 3 हजार लोग ऐसे हैं जिनकी कोई जानकारी नहीं मिल पा रही है। यह संख्या सरकारी आंकड़े के कई गुना है।
'मलबे में कितने शव, पता नहीं': शिंदे ने भी शुक्रवार को माना कि सरकार के पास मरने वाले लोगों की सही संख्या का आंकड़ा नहीं है। उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, 'जमीन के नीचे कितने लोग फंसे हैं, पता नहीं है। मलबे में कितने शव दबे हैं, अब इस पर फोकस करना होगा।' उन्होंने साथ ही इस तबाही के पीछे चीन का हाथ होने की संभावना को पूरी तरह खारिज कर दिया। शिंदे कहा कि अब राज्य और केंद्र सरकार के बीच तालमेल बेहतर है। उन्होंने कहा कि राज्य के मुख्य सचिव को कहा गया है कि वह किसी भी समस्या को केंद्र सरकार के समन्वय अधिकारी वीके दुग्गल को बताएं। उन्होंने कहा कि इस तबाही से उबरते हुए अगले 50 सालों को ध्यान में रखते हुए प्लैनिंग के साथ काम करने की जरूरत है।
राहत कार्यों का जायजा लेने के लिए सुबह पहले आर्मी चीफ विक्रम सिंह और फिर गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे देहरादून पहुंचे। आर्मी चीफ गोचर के लिए रवाना हो गए। उन्होंने केदारघाटी का हवाई सर्वेक्षण भी किया। आर्मी चीफ ने गोचर में कहा कि आठ हजार जवान अपनी जान की बाजी लगाकर इस रेस्क्यू ऑपरेशन में लगे हुए हैं। उन्होंने बताया कि बद्रीनाथ में 2500 और हर्षिल में 500 यात्री फंसे हुए हैं। इस बीच केंद्र और उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को 29 जून तक रेस्क्यू ऑपरेशन पूरा कर लिए जाने की बात कही है।
'मलबे में कितने शव, पता नहीं': शिंदे ने भी शुक्रवार को माना कि सरकार के पास मरने वाले लोगों की सही संख्या का आंकड़ा नहीं है। उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, 'जमीन के नीचे कितने लोग फंसे हैं, पता नहीं है। मलबे में कितने शव दबे हैं, अब इस पर फोकस करना होगा।' उन्होंने साथ ही इस तबाही के पीछे चीन का हाथ होने की संभावना को पूरी तरह खारिज कर दिया। शिंदे कहा कि अब राज्य और केंद्र सरकार के बीच तालमेल बेहतर है। उन्होंने कहा कि राज्य के मुख्य सचिव को कहा गया है कि वह किसी भी समस्या को केंद्र सरकार के समन्वय अधिकारी वीके दुग्गल को बताएं। उन्होंने कहा कि इस तबाही से उबरते हुए अगले 50 सालों को ध्यान में रखते हुए प्लैनिंग के साथ काम करने की जरूरत है।
राहत कार्यों का जायजा लेने के लिए सुबह पहले आर्मी चीफ विक्रम सिंह और फिर गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे देहरादून पहुंचे। आर्मी चीफ गोचर के लिए रवाना हो गए। उन्होंने केदारघाटी का हवाई सर्वेक्षण भी किया। आर्मी चीफ ने गोचर में कहा कि आठ हजार जवान अपनी जान की बाजी लगाकर इस रेस्क्यू ऑपरेशन में लगे हुए हैं। उन्होंने बताया कि बद्रीनाथ में 2500 और हर्षिल में 500 यात्री फंसे हुए हैं। इस बीच केंद्र और उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को 29 जून तक रेस्क्यू ऑपरेशन पूरा कर लिए जाने की बात कही है।
केदारनाथ मंदिर में पूजा की तैयारियां: केदारनाथ मंदिर में पूजा की तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। पूरी तरह तबाह हो चुकी केदारघाटी में सेना और आईटीबीपी के जवान शवों के अंतिम संस्कार और मंदिर के आसपास सफाई में जुटे हुए हैं। दूसरी तरफ केदारनाथ मंदिर समिति ने भी 29 जून से मंदिर की सफाई शुरू करने का फैसला किया है। इसके लिए एक दल केदारनाथ जाएगा। इसके बाद मंदिर का शुद्धिकरण कर पूजा शुरू कर दी जाएगी। गौरतलब है कि केदारनाथ मंदिर में पूजा को लेकर मंदिर के रावल और स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती में ठन गई थी। मंदिर समिति के इस फैसले के बाद शंकराचार्य ने केदारनाथ कूच कर वहां पूजा शुरू करने का निर्णय टाल दिया है।
जवान ही बने पुजारीः केदारनाथ में मारे गए लोगों का अंतिम संस्कार जवानों के लिए दोहरी चुनौती बन गया है। एक तो मौसम इसमें रुकावट डाल रहा है, वहीं दूसरी तरफ इसके लिए पंडित नहीं मिल रहे हैं। गुरुवार को जवानों को खुद ही पंडित बनकर अंतिम संस्कार का विधान पूरा करना पड़ा। दरअसल केदारनाथ घाटी में मौत के तांडव के बाद अब कोई पंडित वहां जाना नहीं चाहता है। गुरुवार को सेना के जवानों ने गौरीकुंड में एक पुजारी को इसके लिए बड़ी मुश्किल से मनाया भी, लेकिन वह आखिरी वक्त पर मुकर गया। इसके बाद पुरोहित का काम जानने वाले एनडीआरएफ और पुलिस को दो जवानों को अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी करनी पड़ी। (तस्वीरों में: इन जवानों को सलाम)
करीब 3 हजार लोग लापता: उत्तराखंड में आई इस प्राकृतिक आपदा में गुमशुदा लोगों की तादाद कई गुना होने की आशंका है। राज्य के मुख्य सचिव सुभाष कुमार ने गुरुवार को माना कि गुमशुदा लोगों की संख्या 3 हजार तक हो सकती है। बचाव अभियान के अपने अंतिम चरण में पहुंचने के साथ ही लापता लोगों के परिजनों की उम्मीद की डोर उनके हाथ से छूट रही है। परिजनों को आस है कि उनके परिजन कभी न कभी वापस लौट आएंगे। इसके लिए उनकी नजर सेना के रेस्क्यू ऑपरेशन पर लगी हुई हैं। (तस्वीरों में:केदारनाथ को यह क्या हो गया)
2200 लोग अभी भी फंसे हैं: रेस्क्यू ऑपरेशन में लगी सेना का ध्यान अब बद्रीनाथ, हर्षिल और गंगोत्री में फंसे 2,200 लोगों को वहां से निकालने पर है। इसके अलावा अब स्थानीय लोगों तक राहत पहुंचाने पर भी फोकस किया जा रहा है। गुरुवार को अभियान पूरी तरह से बद्रीनाथ और हर्षिल पर फोकस रहा। दोनों इलाकों में फंसे लोगों को निकालने के लिए 13 हेलिकॉप्टर की मदद ली गई। खराब मौसम की वजह से बद्रीनाथ में फंसे लोगों को अब हेलिकॉप्टर से लाने के बजाय आर्मी और अन्य एजेंसियां छोटे-छोटे ग्रुपों में टूटी हुई सड़कों और पहाड़ी रास्तों से निकाल रही हैं। गुरुवार को सेंट्रल आर्मी कमांडर अनिल चैत के नेतृत्व में करीब 500 लोगों को बद्रीनाथ से निकाला गया। हनुमान चट्टी पर 560 लोग तो खुद चलकर पहुंचे। आईटीबीपी के डीजी अजय चड्ढा ने बताया कि बद्रीनाथ और हर्षिल में अभी भी 2200 लोग फंसे हुए हैं। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि केदारनाथ में रेस्क्यू और रिलीफ ऑपरेशन अब खत्म हो चुका है।(तस्वीरों में: इनमें से आपका कोई अपना तो नहीं है)
भूकंप का खौफ: गुरुवार को मामूली भूकंप से लोग थोड़ी देर के लिए डरे लेकिन फिर सब सामान्य हो गया। रिक्टर स्केल पर 3.5 तीव्रता वाले इस भूकंप का केंद्र पिथौरागढ़ था। सरकार ने गुरुवार को कहा कि उत्तराखंड में किसी तरह की कोई महामारी नहीं फैली है। हेल्थ मिनिस्ट्री की टीम देहरादून में मौजूद है और वह हालात पर लगातार नजर रख रही है।
राहुल पर सफाई : आईटीबीपी के डीजी ने इन दावों को खारिज किया कि गोचर में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के दौरे के वक्त फोर्स के जवानों को मेस से हटाना पड़ा। चड्ढा ने कहा कि राहुल अगर हमारे किसी इलाके में आएंगे तो उनकी सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी है। कई मुख्यमंत्री, वीआईपी भी अपने दौरे के वक्त मेस में रुके, लेकिन किसी भी जवान को वहां से हटाया नहीं गया।
जवान ही बने पुजारीः केदारनाथ में मारे गए लोगों का अंतिम संस्कार जवानों के लिए दोहरी चुनौती बन गया है। एक तो मौसम इसमें रुकावट डाल रहा है, वहीं दूसरी तरफ इसके लिए पंडित नहीं मिल रहे हैं। गुरुवार को जवानों को खुद ही पंडित बनकर अंतिम संस्कार का विधान पूरा करना पड़ा। दरअसल केदारनाथ घाटी में मौत के तांडव के बाद अब कोई पंडित वहां जाना नहीं चाहता है। गुरुवार को सेना के जवानों ने गौरीकुंड में एक पुजारी को इसके लिए बड़ी मुश्किल से मनाया भी, लेकिन वह आखिरी वक्त पर मुकर गया। इसके बाद पुरोहित का काम जानने वाले एनडीआरएफ और पुलिस को दो जवानों को अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी करनी पड़ी। (तस्वीरों में: इन जवानों को सलाम)
करीब 3 हजार लोग लापता: उत्तराखंड में आई इस प्राकृतिक आपदा में गुमशुदा लोगों की तादाद कई गुना होने की आशंका है। राज्य के मुख्य सचिव सुभाष कुमार ने गुरुवार को माना कि गुमशुदा लोगों की संख्या 3 हजार तक हो सकती है। बचाव अभियान के अपने अंतिम चरण में पहुंचने के साथ ही लापता लोगों के परिजनों की उम्मीद की डोर उनके हाथ से छूट रही है। परिजनों को आस है कि उनके परिजन कभी न कभी वापस लौट आएंगे। इसके लिए उनकी नजर सेना के रेस्क्यू ऑपरेशन पर लगी हुई हैं। (तस्वीरों में:केदारनाथ को यह क्या हो गया)
2200 लोग अभी भी फंसे हैं: रेस्क्यू ऑपरेशन में लगी सेना का ध्यान अब बद्रीनाथ, हर्षिल और गंगोत्री में फंसे 2,200 लोगों को वहां से निकालने पर है। इसके अलावा अब स्थानीय लोगों तक राहत पहुंचाने पर भी फोकस किया जा रहा है। गुरुवार को अभियान पूरी तरह से बद्रीनाथ और हर्षिल पर फोकस रहा। दोनों इलाकों में फंसे लोगों को निकालने के लिए 13 हेलिकॉप्टर की मदद ली गई। खराब मौसम की वजह से बद्रीनाथ में फंसे लोगों को अब हेलिकॉप्टर से लाने के बजाय आर्मी और अन्य एजेंसियां छोटे-छोटे ग्रुपों में टूटी हुई सड़कों और पहाड़ी रास्तों से निकाल रही हैं। गुरुवार को सेंट्रल आर्मी कमांडर अनिल चैत के नेतृत्व में करीब 500 लोगों को बद्रीनाथ से निकाला गया। हनुमान चट्टी पर 560 लोग तो खुद चलकर पहुंचे। आईटीबीपी के डीजी अजय चड्ढा ने बताया कि बद्रीनाथ और हर्षिल में अभी भी 2200 लोग फंसे हुए हैं। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि केदारनाथ में रेस्क्यू और रिलीफ ऑपरेशन अब खत्म हो चुका है।(तस्वीरों में: इनमें से आपका कोई अपना तो नहीं है)
भूकंप का खौफ: गुरुवार को मामूली भूकंप से लोग थोड़ी देर के लिए डरे लेकिन फिर सब सामान्य हो गया। रिक्टर स्केल पर 3.5 तीव्रता वाले इस भूकंप का केंद्र पिथौरागढ़ था। सरकार ने गुरुवार को कहा कि उत्तराखंड में किसी तरह की कोई महामारी नहीं फैली है। हेल्थ मिनिस्ट्री की टीम देहरादून में मौजूद है और वह हालात पर लगातार नजर रख रही है।
राहुल पर सफाई : आईटीबीपी के डीजी ने इन दावों को खारिज किया कि गोचर में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के दौरे के वक्त फोर्स के जवानों को मेस से हटाना पड़ा। चड्ढा ने कहा कि राहुल अगर हमारे किसी इलाके में आएंगे तो उनकी सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी है। कई मुख्यमंत्री, वीआईपी भी अपने दौरे के वक्त मेस में रुके, लेकिन किसी भी जवान को वहां से हटाया नहीं गया।
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