उत्तराखण्ड की त्रासदी को राष्ट्रीय शोक घोषित करने की उठी माँग, प्रधानमन्त्री को सौंपा ज्ञापन
पहाड़ी क्षेत्रों के विकास की अविलम्ब हो समीक्षा
पत्रकारों, बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जंतर-मंतर पर किया श्रद्धाञ्जलि सभा का आयोजन
नई दिल्ली, 30 जून। उत्तराखण्ड प्राकृतिक आपदा में हजारों लोगों की मौत पर केन्द्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय शोक घोषित करने की माँग को लेकर पत्रकारों, बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आज जंतर-मंतर पर एक श्रद्धाञ्जलि सभा का आयोजन किया। इस दौरान उन्होंने उत्तराखण्ड समेत देश के विभिन्न इलाकों में अनेक प्राकृतिक आपदाओं में मरने वाले लोगों को दो मिनट का मौन रखकर भावभीनी श्रद्धाञ्जलि दी। सभा के दौरान वक्ताओं ने उत्तराखण्ड त्रासदी को राष्ट्रीय शोक घोषित करने, पहाड़ी क्षेत्रों में विकास कार्यों की अविलम्ब समीक्षा करने और देश के विभिन्न इलाकों में चल रहे अँधाधुँध अवैध खनन पर तत्काल रोक लगाने की माँग की।
कार्यक्रम के दौरान सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता रविंद्र गढ़िया ने कहा कि मौसम विभाग की चेतावनियों की अनदेखी और राहत कार्य देर से शुरू करना भारी संवेदनहीनता के प्रमाण हैं। यह संवेदनहीनता अब भी जारी है। इसके बावजूद सरकार इस गम्भीर त्रासदी को राष्ट्रीय शोक के लायक नहीं मानती है। ना ही सरकार देश में बार-बार हो रही प्राकृतिक आपदाओं के कारणों की समीक्षा कर रही है। इसलिये हम चाहते हैं कि सरकार उत्तराखण्ड की त्रासदी को राष्ट्रीय शोक घोषित करे और घटना की समीक्षा करते हुये पीड़ितों और प्रभावितों को हुये नुकसान की रिपोर्ट सार्वजनिक करे।
उत्तराखण्ड पीपुल्स फोरम के प्रकाश चौधरी ने कहा कि ये त्रासदी प्राकृतिक संसाधनों की अँधाधुँध लूट का नतीजा है। हम नहीं चाहते कि इस तरह जान-माल के नुकसान की घटनाओं की पुनरावृत्ति हो, इसलिये हमें इससे सबक लेते हुये उत्तराखण्ड में तमाम निर्माण कार्यों को अविलम्ब रोक लगायी जाये। साथ ही सरकार पर्यावरणविदों, भूगर्भशास्त्रियों, विशेषज्ञों और स्थानीय लोगों की एक उच्च स्तरीय समिति का गठन करे और उनकी सहमति के बाद ही निर्माण/विकास कार्यों को कराये।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के मुख्य पत्र 'मुक्ति संघर्ष' के संपादक महेश राठी ने कहा कि उत्तराखण्ड की त्रासदी मानव निर्मित राष्ट्रीय तबाही है। सरकार और मीडिया जिस तरह इसे पेश कर रही है, वह एक पक्षीय है। जो मध्यवर्गीय लोग, तीर्थ यात्रा पर गये थे, उनके मारे जाने अथवा उनके नुकसान को इस त्रासदी का शिकार बताकर प्रमुखता से पेश किया जा रहा है। जबकि उत्तराखण्ड के दो सौ से ज्यादा ऐसे प्रभावित गांव हैं, जिनमें 28 से 30 की औसत से लोग लापता हैं। यह तीर्थ यात्रा उनकी आजीविका का साधन है लेकिन वे सरकार और मीडिया के चर्चे में नहीं हैं। इसके अलावा साढ़े चार हजार पंजीकृत खच्चर वाले अभी भी अपने पशुओं के साथ गायब हैं। एक हजार पालकियाँ थीं और उसके ढोने वाले करीब चार हजार लोगों का अभी तक पता नहीं है। इस तरह से देखें तो करीब 20000 से ज्यादा लोग मारे गये हैं लेकिन सरकार केवल 1000 सैलानियों और मध्यवर्गीय लोगों के गायब होने अथवा मरने की बात कर रही है। सरकार राहत एवम् बचाव कार्य को स्थानीय लोगों पर केन्द्रित करे। साथ ही वह उत्तराखण्ड की त्रासदी को राष्ट्रीय शोक घोषित करे और प्रभावित लोगों के पुनर्वास और आजीविका का स्थाई प्रबंध करे। इसके अलावा उत्तराखण्ड को पर्यावरण संरक्षित राज्य घोषित करे।
कार्यक्रम के आयोजक एवं पत्रकार महेंद्र मिश्र ने कहा कि एक आँकड़े के मुताबिक उत्तराखण्ड में इस जल प्रलय ने 2000 गाँवों को लील लिया। लोगों के 8000 आशियाने तबाह हो गये। लोगों को जोड़ने वाली 1520 सड़के क्षतिग्रस्त हो गयी हैं। 743 गांवों का सड़क सम्पर्क बिल्कुल टूट गया है। कुल 154 पुल बह गये। तकरीबन 12 हजार करोड़ रुपये के नुकसान की आशंका जतायी जा रही है। विभीषिका ने 16 लाख जिन्दगियों को अस्त-व्यस्त कर दिया है। एक अनुमान के मुताबिक हर साल तकरीबन तीन करोड़ पर्यटक उत्तराखण्ड जाते हैं जिनमें 25 लाख चार धाम यात्रा पर आने वाले होते श्रद्धालु हैं। यहाँ के तकरीबन एक चौथाई लोग इसी पर आश्रित हैं। राहत और बचाव के नाम पर नेताओं की लफ्फाजियाँ ज्यादा हैं ठोस योजना और कार्रवाई कम। शुक्र है हमारे बहादुर जवान हैं। कमियाँ देखकर उन्हें हल करने की जगह सरकार ने अब दूसरा रास्ता अख्तियार कर लिया है। इस लिहाज से मीडिया तक को भी प्रभावित करने की कोशिश की जा रही है।
उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड की ये त्रासदी कुदरती कम इंसानी ज्यादा है। पिछले 40 सालों में हमारी सरकारों ने पहाड़ के विकास का जो रास्ता चुना है, वह काफी खतरनाक है। पहाड़ी इलाकों में सुरक्षा मानकों की अनदेखी कर पहाड़ों का अँधाधुँध अवैध खनन किया जा रहा है। नदियों की धाराओं को मोड़कर घातक बाँध बनाये जा रहे हैं। उत्तराखण्ड की घटना ऐसे ही गैरजिम्मेदाराना कार्यों का नतीजा है। अतः सरकार पहाड़ी इलाकों में विकास कार्यों के लिये होने वाले निर्माण और उसके दुष्परिणामों की गंभीरता से समीक्षा करे।
कार्यक्रम के दौरान पत्रकारों, बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की ओर से प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह को संबोधित एक ज्ञापन भी दिया गया। इसमें उत्तराखण्ड त्रासदी को राष्ट्रीय घोषित करने और पहाड़ी क्षेत्रों के विकास की समीक्षा अविलम्ब करने की माँग प्रमुखता से की गयी। श्रद्धाञ्जलि सभा के दौरान बचपन बचाओ आंदोलन के ओम प्रकाश, सामाजिक कार्यकर्ता शैलेंद्र गौड़, पत्रकार अरविंद कुमार सिंह, प्रदीप सिंह, शशिकांत त्रिगुण, शिव दास प्रजापति, सामाजिक कार्यकर्ता राकेश सिंह, अरुण कुमार, भास्कर शर्मा, जीवन जोशी, दिनेश सामवाल, गिरिजा पाठक, पन्ना लाल, कृष्ण सिंह, रविंद्र पटवाल, आजाद शेखर, सामाजिक कार्यकर्ता संजय कुमार, धनराम सिंह समेत दर्जनों लोग मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन पत्रकार राहुल पांडे ने किया।
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