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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Thursday, April 24, 2014

क्या सच में फिल्मी सितारों में है वोट पाने का दम?

क्या सच में फिल्मी सितारों में है वोट पाने का दम?


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास



आज जैसा एक रिवाज सा हो गया है कि फिल्मी सितारों को राजनीति में मुफ्त में बुलाया जा रहा है। यही नहीं,दीर्घकालीन संसदीय अनुभववाले राजनेताओं के विरुद्ध फिल्म कलाकारों को उतारकर बाजी पलटने का खेल इधर खूब जम रहा है।


राजीव गांधी ने कभी अपने मित्र और बालीवूड के सर्वकालीन सुपरस्टार अमिताभ बच्चन को मैदान में उतारकर धुरंधर राजनेता हेमवतीनदन को इलाहाबाद में उनके गढ़ में शिकस्त दी थी। अब बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ने हारी हुई तमाम सीटों पर फिल्म स्टार और तमाम तरह के पेज थ्री लोगों पर दांव लगाया है।


वयोवृद्ध माकपा के नेता वासुदेव आचार्य के मुकाबले बांकुड़ा के आदिवासी बहुल संसदीय क्षेत्र में बीते दिनों की फ्लाप हिरोइन मुनमुन सेन को उतारा गया है तो बहरमपुर में केंद्रीय मंत्री अधीर चौधरी के किले को ढहाने के लिए विख्यात रवींद्र संगीत गायक इंद्रनील सेन तो मालदह में गनीखां की विरासत के साथ लड़ रही मौसम बेनजीर नूर के खिलाफ लोकप्रिय बैंड भूमि के मुख्य गायक सौमित्र को उतारा है दीदी ने।इन तीनों सीटों को जीतने की सबसे बड़ी चुनौती है दीदी के सामने।


पिछले चुनावों में वीरभूम और कृष्णनगर जैसी सख्त सीटों के लिए बांग्ला फिल्मों की मशहूर जोड़ी तापस पाल और शताब्दी राय को मैदान में उतारकर मोर्चा फतह किया था दीदी ने।लेकिन वीरभूम से शताब्दी राय और कृष्णनगर से तापसपाल सांसद बनने के बाद लोकसभा में उन्होंने एक भी सवाल नहीं उठाया। उल्टे शारदा फर्जीवाड़ा मामले में शताब्दी का नाम उछला। रफा दफा समझा जा रहा यह मामला फिर चर्चा में है,लेकिन शताब्दी और तापस दोनों मैदान में हैं।इसी बीच दीदी ने बालीवूड में अब भी धूम मचा रहे मिथुन चक्रवर्ती को भी सांसद बना दिया।


इनके अलावा दीदी ने मेदिनीपुर से फिल्मस्टार संध्या राय और इसी जिले के घाटाल से बांग्ला फिल्मों के मौजूदा सुपरस्टार को उतारकर वाम किलों को निर्णायक तौर पर ध्वस्त करने की रणनीति बनायी है।


मशहूर गायक कबीर सुमन के बागी बन जाने और राज्यसभा में भेजे गये परिवर्तनपंथी सांसद कुणाल घोष के शारदा मामले में जेल में बंद हो जाने के कड़वे अनुभव के बावजूद ममता बनर्जी राज्यसभा में लगभग सारे के सारे अराजनीतिक लोगों को भेजा तो लोकसभा के लिए भी रंगकर्मी अर्पिता घोष तक को उन्होंने मैदान में उतार दिया है।हावड़ा से मशहूर फुटबालर प्रसून बनर्जी तो दार्जिलिंग से भी फुटबालर बाइचुंग भूटिया मैदान में हैं।प्रसून तो हावड़ा से संसदीय उपचुनाव भी जीत चुके हैं।


इसीतरह भाजपा ने भी बंगाल में मशहूर संगीतकार बप्पी लाहिड़ी को श्रीरामपुर में और मशहूर गायक बाबुल सुप्रिय को आसनसोल में मैदान में उतारा है।बारासात में उनकी बाजी जादूगर पीसी सरकार है तो हुगली में भगवा पत्रकार चंदन मित्र।बीते दिनों के खलनायक निमू भौमिकभाजपा उम्मीदवार हैं तो हावड़ा में प्रसून के मुकाबले भाजपा ने बांग्ला फिल्मों के पुराने हीरो जार्ज बेकर को मैदान में उतारा है।


बंगाल तक यह प्रयोग सीमाबद्ध नहीं है।तृणमूल ने बीते दिनों के बालीवूड के चाकलेटी हीरो विश्वजीत को दिल्ली की चुनावी जंग में उतार दिया है तो रायबरेली में उनकी उम्मीद एक टीवी एंकर से है।


उत्तरप्रदेश की राजनीति में अमर सिंह को श्रेय जाता है बालीवूड को ले आने का । जया बच्चन से लेकर जयाप्रदा तक वहां जनता की जनप्रतिनिधि हैं।


भगवे खेमे में धर्मेंद्र, हेमा मालिनी, शत्रुघ्नसिन्हा से लेकर विनोदखन्ना तक तमाम स्टार सांसद बन गये।क्रिकेट खिलाड़ी नवजोत सिंह  सिद्धू तक सांसद बन गये। अबकी दफा धर्मेंद्र और सिद्धू मैदान में नहीं है तो किरण खेर लड़ रही हैं। टीवी सीरियल के राम,सीता और रावण तीनों सांसद बने तो कृष्ण भी।लोकप्रिय बहू तुलसी अबकी दफा राहुल गांधी के मुकाबले में हैं।भारत सुंदरी गुल पनाग चंडीगढ़ से मजबूत दालवे के साथ किरण के मुकाबले हैं। ओलंपिंक रजत पदक विजेता राज्यवर्द्धन राठौर भी भाजपा उम्मीदवार हैं


तमाम राजनीतिक दलों में उद्योगपतियों,फिल्मस्टारों और पत्रकारों को राजनेताओं के मुकाबले तरजीह दी जा रही है।भाजपा और कांग्रेस में तो होड़ मची है।भोजपुरी फिल्मों के मनोज तिवारी भजपा उम्मीदवार हैं तो रविकिशन कांगेस के। नगमा मेरठ में लड़ रही हैं।मोहम्मद अजहरुद्दीन और मोहम्मद कैफ कांग्रेस के उम्मीदवार हैं।ऐसा पहले दक्षिण भारत में ही होता रहा है और अब सर्वत्र राजनेता हाशिये पर धकेले जा रहे हैं और सेलिब्रेटी मैदान में हैं।


परिवर्तन के वायदे के साथ देशभर में भाजपा और कांग्रेस दोनों को खारिज करने वाली आम आदमी पार्टी ने जनांदलनों के तमाम चेहरों को मैदान में उतारा है। इनमें से दो सौ करोड़पति भी हैं।कवि साहित्यकार पत्रकार सब आप का मोर्चा संभाले हुए हैं।


दूसरी तरफ राजनीति को संस्थागत कुलनतंत्र बनाने का अभियान जारी है।अगंभीर लोगों को नीति निर्धरक बनाकर कैसा संस्थाकरण हो रहा है,यह समझ से बाहर है।


गौरतलब है कि भारत में अब मौजूदा राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी जंगीपुर से लोकसभा चुनाव जीतने से पहले तक इंदिरा गांदी के जमाने से मनमोहन मंत्रिमंडल तक में लंबे समय तक मंत्री रहे राज्यसभा सदस्यता की बदौलत।तो मनमोहन सिंह दस साल तक राज्य सदस्य बतौर देश के प्रधानमंत्री बने रहे।


केंद्र और राज्य सरकारों में अर्थशास्त्रियों,न्यायविदों और दूसरे विशेषज्ञों को मंत्री बनाने के लिए सांसद विधायक बनाने की दलील तो समझी जा सकती है।अशोक सेन और मनमोहन सिंह से राजनीतिक कवायद की उम्मीद नहीं की जा सकती,जिन्होंने देश के इतिहास में विशिष्ट भूमिका अदा की है।


लेकिन अब राजनीति में जो अतिथि चमकदार लोग आ रहे हैं,उनकी अबतक कोई संसदीय भूमिका नजर नहीं आयी है।अपना पेशा छोड़कर ये संसद और विधानसभाओं में गैरहाजिर रहने और कोई सवाल न पूछने, सांसद विधायक कोटे की रकम खर्च न करने औरएकबार चुनाव जीतने के बाद अगले चुनाव तक अपने मतदाताओं से न मिलने का रिकार्ड बनाने के लिए ही मशहूर है।सुभीधे,संकट और चुनौती के मद्देनजर इनके चुनाव क्षेत्र भी अक्सर बदल दिये जाते हैं।


सत्तादल या किसी  मजबूत राजनीतिक दल के समर्थन के बिना जनता में बेहद लोकप्रिय होने के बावजूद उनका कभी कोई वोटबैंक रहा है या नहीं,ऐसा शोध अभी तक नहीं हुआ है लेकिन इस चुनाव के बाद ऐेसे शोध की बड़ी प्रासंगिकता होगी।क्योंकि विज्ञापनी माडल और खबरों की तस्वीर बतौर यह वर्ग राजनेताओं की सामाजिक राजनीतिक भूमिका को सिरे से खारिज करके अगंभीर संस्थागत कुलानतंत्र की जमीन तेजी से तैयार करने में लगा है।


गौरतलब है कि कभी वह वक्त भी रहा है जब अपने वक्त के सुपरस्टार राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर तक को चुनाव मैदान में शिकस्त मिली थी।भारतीय क्रिकेट को जीत की राह बताने वाले नवाब पटौदी को भी मतदाताओं ने घास नही डाली।


जाहिर है कि वक्त यकीनन बदल गया है।बाहुबलि से लेकर अरबपति तक हमारे भाग्यविधाता है और विज्ञापनों के माडल माध्यमों के बजाय सीधे संसद और विधानसभाओं से प्रोडक्ट लंाच कर रहे हैं और हम कृतकृतार्थ हैं मुक्तबाजारी इस कायाकल्प से।


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