Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Saturday, April 5, 2014

लेकिन आधार के खिलाफ खामोश हैं कारपोरेट के खिलाफ जिहादी केजरीवाल? जनांदोलनों के चेहरे तो हैं,उनके मुद्दे सिर से गायब क्यों हैं?

लेकिन आधार के खिलाफ खामोश हैं कारपोरेट के  खिलाफ जिहादी केजरीवाल?

जनांदोलनों के चेहरे तो हैं,उनके मुद्दे सिर से गायब क्यों हैं?


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास



क्या सच में केजरीवाल में है इतना दम है कि वे इस चुनाव में वाकई महत्वपूर्ण किरदार निभा पायेंगे? जिस तरह से उन्हें दिल्ली का मुख्यमत्री पद छोड़ना पडा,उससे उनकी राजनीतिक साख को बट्टा लग गया है तो दूसरी ओर उन्होंने भ्रष्टाचा के मसले उठाते हुए कारपोरेट राज को बेपर्दा करते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में सवाल तो उठा दिया लेकिन कायदे से वे आर्थिक सुधारों के बारे में, विनिवेश और विदेशी पूंजी निवेश के जरिये बेदखल हो गयी अर्थव्यवस्था के बारे में मौन साध रखा है।


जनांदोलनों के तमाम चमकते चेहरे आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। यह निश्चय ही भारतीय राजनीति में निर्णायक मोड़ है कि डूब देश के प्रवक्ता मेधा पाटेकर महानगर मुंबई से चुनाव मैदान में हैं तो बस्तर में आदिवासी अस्मिता का चेहरा सोनी चेहरा आप उम्मीदवार है। अब सवाल यह है कि उन मुद्दों के बारे में केजरीवाल खामोश क्यों हैं,जिन्हें लेकर ये तमाम आंदोलन होते रहे हैं।प्राकृतिक संसाधनों की बंदरबांट पर चुनिंदा कंपनियों के खिलाफ आवाज उठाने से ही जल जंगल जमीन के हक हकूक बहाल नहीं हो जाते।जो लोग आप के मोर्चे से देश में आम आदमी का राज कायम करना चाहते हैं, उनके सरोकार पर भी वही सवाल उठाये जाने चाहिए जो अस्मिता राजनीति के झंडेवरदारों के खिलाफ उठाये जा रहे हैं। उनके उन बुनियादी मुद्दों पर उस आम आदमी पार्टी का क्या कार्यक्रम है,इसका तो खुलासा होना चाहिए।


बतौर दिल्ली के मुख्यमंत्री नागरिक और मानवाधिकार बहाल करने में अरविंद ने क्या कुछ पल की,उससे उनकी रुझान के बारे में अंदाजा मिल सकता है। दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने और दिल्ली पुलिस को दिल्ली सरकार के मातहत करने की उनकी जंग को नाजायज नहीं कहा जा सकता। इस लड़ाई में दिल्ली की जनता भी उनके साथ खड़ी थी।सड़क पर जब वे अराजकता का नारा बुलंद कर रहे थे, तब भी मीडिया और राजनीति में हंगामा बरप जाने के साथ कारपोरेट समर्थन सिरे से गायब हो जाने के बाद भी जनता उनके साथ खड़ी थी।जबकि बिजली पानी की समस्याएं दूर करने की कोई स्थाई पहल नहीं की उन्होंने,सब्सिडी मार्फत वाहवाही लूटने की कोशिश ही की।जाहिर सी बात है कि मौजूदा हालात में वे लोकपाल बिल दिल्ली विधानसभा से समर्थक कांग्रेस के प्रबल विरोध के बावजूद किसी भी सूरत में पास नहीं करा सकते थे। कारपोरेट कंपनियों के खिलाफ एफआईआर तो उन्होंने दर्ज करा दी लेकिन सरकार छोड़ कर भाग जाने से वह लड़ाई भी अधूरी रह गयी।


सबसे बड़ा करिश्मा केजरीवाल कारपोरेट आधार परियोजना को रद्द करने की मांग करके कर सकते थे।पहले ही बंगाल विधानसभा ने आधारविरोधी प्रस्ताव पास किया हुआ था, दिल्ली विधानसभा में हालांकि ऐसे किसी प्रस्ताव की गुंजाइश ती नहीं,लेकिन वे मांग  तो कर ही सकता थे।तेल और गैस घोटाले में रिलायंस के खिलाफ जिहाद करने वाले अरविंद केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट की मनाही के बावजूद जारी अाधार अभियान पर कोई ऐतराज नहीं है,बाकी आईटी कंपनियों के मुकाबले इंफोसिस की अबाध उड़ान में उन्हें कोई भ्रष्टाचार नजर नहीं आया,बिना संसदीय अनुमोदन के जरुरी सेवाओं के लिए आधार की बायमैट्रिक अनिवार्यता से उन्हें नागरिक और मानवादिकार हनन का कोई मामला नहीं दिखा, यह अचरज की बात है। तो अगर उनकी रिलायंस विरोधी जंग को कारपोरेट कंपनियों की अंदरुनी लड़ाई मान लिया जाये,इसके लिए केजरीवाल किसी को दोषी नहीं ठहरा सकते।


ईमानदारी की बात तो यह थी कि दिल्ली को अनाथ छोड़ने के बजाय वे लोकसभा चुनाव दिल्ली से ही लड़ते और मैदान में डटे रहते।दूसरे राजनेताओं की तरह महज हंगामा खड़ा करने के लिए काशी में नरेंद्र मोदी के खिलाफ खड़ा होकर साझा उम्मीदवार के विक्लप को खत्म नहीं करते।अब तो वे यह भी कहने लगे हैं कि गैस की कीमतें कम कर दी जाये तो वे भाजपा का समर्थन भी कर सकते हैं।ठीक यही सौदेबाजी अस्मिता राजनीति भी कर रही है। मान लीजिये, अगर साढ़े तीन सौ से ज्यादा सीटों पर लड़कर पंद्रह बीस सीटें आप निकाल लें तो बहुमत से पीछे रह जाने वाली भाजपा किसी भी कीमत पर जनाजदेश अपने हक में करने की गरज में उनकी हर शर्त मान लें तो क्या वे राजग खेमे में नजर आयेंगे पासवान,उदितराज से लेकर मायावती,जयलिलता,नवीनपटनायक,चंद्रबाबू नायडू,शरद पवार, मुलायम और लालू के साथ,यह बड़ा सवाल है।तो आप किस परिवर्तन की बात कर रहे हैं। राजनीतिक जमीनतैयार किये बिना कहीं से भी किसी को भी चुनाव मैदान में उतारकर किस तरह का राजनीतिक हस्तक्षेप करने जा रहे हैं केजरीवाल,यह देखना वाकई दिलचस्प होगा।


मसलन बंगाल में कोलकाता,बैरकपुर और रायगंज में जिन उम्मीदवारों को खड़ा कर दिया है आपने,बंगाल में कोई उन्हें नहीं जानता।न बंगाल में आप का संगठन है।मई तक कितने और उम्मीदवार आप के बंगाल से होंगे,यह पहेली बनी हुई है।


No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...