इस युग का कथाशिल्पी मार्केज
Posted by Reyaz-ul-haque on 4/19/2014 07:02:00 PMपंकज सिंह
गाब्रिएल गार्सिया मार्केज का 87 वर्ष की उम्र में निधन हो गया, यह समाचार सारी दुनिया के उन तमाम लोगों के लिए आघात पहुंचाने वाली एक बड़ी खबर है जो साहित्य-कला-संस्कृति की मानवीय संपदा को मनुष्य के लिए एक जरूरी और गतिमान निधि मानते हैं। मार्केज को 1982 में उनके महाकाव्यात्मक उपन्यास 'एकांत के सौ बरस' पर साहित्य का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था।
लेकिन नोबेल पुरस्कार से विभूषित होने के बहुत पहले से मार्केज को स्पेनी भाषा का ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर का कालजयी कथाशिल्पी माना जा चुका था। 23 वर्ष की उम्र में अपना पहला लघु उपन्यास लिखने के बाद मार्केज दक्षिण अमरीका के स्पेनी लेखकों में चर्चा का विषय बन चुके थे।
उस काल में उन्होंने 'लीफ स्टार्म' और 'नो वन राइट्स टू द कोलोनेल'नाम के दो लघु उपन्यास लिखे थे। उन उपन्यासों का प्रभाव ऐसा था कि नये सिरे से इस मुद्दे पर बहस छिड़ गयी थी कि मार्केज की इन दो कृतियों को लंबी कहानी माना जाए या लघु उपन्यास। मार्केज ने अपने कथाकार जीवन के आरंभ से ही अपनी निजी कथा शैली की पहचान बनानी शुरू कर दी थी जिसके विकास के साथ उन्हें 'जादुई यथार्थवाद' का आविष्कारक होने का श्रेय दिया गया। हालांकि स्वयं गाब्रिएल गार्सिया मार्केज ने जादुई यथार्थवाद नाम की विशिष्ट शैली का जनक होने का कोई दावा कभी नहीं किया परंतु उनके लेखन में लातीन अमरीकी समाजों और परंपराओं के यथार्थ में चमत्कारों और अजीबोगरीब किस्म की घटनाओं, अनोखी चीजों और जीव जगत की अविश्वसनीय स्थितियों का जो मनोहारी मिश्रण और सामंजस्य पैदा हुआ उसने न सिर्फ उनकी कृतियों को विश्व साहित्य की अमूल्य धरोहर का दर्जा दिलाया बल्कि सारी दुनिया में अनेकानेक भाषाओं के लेखन पर गहरा प्रभाव छोड़ा। 'एकांत के सौ बरस' का प्रथम प्रकाशन 1967 में हुआ था। तब से लेकर अब तक उस महान उपन्यास का दुनिया की लगभग तीन दजर्न भाषाओं में अनुवाद हो चुका है और उसकी पांच करोड़ से ज्यादा प्रतियां साहित्य प्रेमियों के घरों में पहुंच चुकी हैं। सिर्फ उस एक उपन्यास के आंकड़ों के आधार पर यह बात प्रमाणित हो चुकी है कि मार्केज इतिहास में लातीन अमरीका के सभी लेखकों से ज्यादा पढ़े जाने वाले लेखक रहे। गाब्रिएल गार्सिया मार्केज मूलत: कोलंबिया के थे जहां उनका जन्म हुआ और उन्होंने शिक्षा और संस्कार पाने के बाद वहां अपने जीवन का आधी सदी का सफर तय किया। पिछले तीस वर्षो से मार्केज मेक्सिको की राजधानी मेक्सिको सिटी में अपने परिवार के साथ रहते आए थे। 1999 में उन्हें कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी ने ग्रस लिया था, लेकिन मार्केज उचित चिकित्सा के कारण उसके चंगुल से बाहर आ गये थे। लेकिन उसके बाद उन्हें एक दूसरी खतरनाक बीमारी 'अल्जाइमर्स' ने अपना निशाना बना लिया और मार्केज की स्मृति क्रमश: गायब हो गयी।
लातीन अमरीका के महान कवि पाब्लो नेरुदा ने कहा था कि स्पेनी भाषा में मिगुएल द सर्वातेस के क्लासिक उपन्यास, 'दोन किहोते' के बाद मार्केज का उपन्यास 'एकांत के सौ बरस'उस भाषा की महानतम अभिव्यक्ति है। 1982 में जब मार्केज को स्वीडन के राजा एक भव्य समारोह में नोबेल पुरस्कार से विभूषित कर रहे थे तो पुरस्कार की निर्णायक समिति की ओर से पढ़े जा रहे प्रशस्ति पत्र में कहा गया कि गाब्रिएल गार्सिया मार्केज ऐसे लेखक हैं जिनकी हर नयी कृति के आने पर उस कृति के विषय में जो समाचार बनता है वह अंतरराष्ट्रीय स्तर का होता है और दुनिया की सभी भाषाओं में उसकी गूंज-अनुगूंज सुनायी देने लगती है।
कहना न होगा कि मार्केज के देहांत पर सारी दुनिया में जो शोक की लहर छायी है उससे केवल साहित्यिक-सांस्कृतिक समुदायों के लोग ही प्रभावित नहीं हुए हैं, बल्कि पढ़े-लिखे समाजों में जीवन के हर क्षेत्र के महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों ने उनकी स्मृति में श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए शोक-संदेश जारी किए हैं। अमरीका के वर्तमान राष्ट्रपति ओबामा के शोक संदेश से ज्यादा भावपूर्ण भाषा में अमरीका के भूतपूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने बड़ी विनम्रता से मार्केज के साथ अपनी बीस साल पुरानी दोस्ती का हवाला देते हुए कहा है कि उन्हें इस बात का गर्व महसूस होता रहा है कि मार्केज उनके मित्र रहे।
मार्केज की वैचारिकता सदा बहुत स्पष्ट रही। उन्होंने लातीन अमरीकी समाजों के जिस संष्टि यथार्थ को अपने कथा साहित्य में रूपायित किया उसमें यह साफ दिखाइ देता है कि साधारण से लेकर विशिष्ट जन तक की जीवन शैलियों, मनोविज्ञान, क्रिया-प्रतिक्रिया और जीवन के व्यापक विस्तार पर उनकी जो सूक्ष्म और पैनी निगाह लगातार बनी रही उसमें उनकी प्रगतिशील-जनवादी प्रतिबद्धता का सहज स्पर्श हर कहीं महसूस होता है। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित उनकी पुस्तक ' एकांत के सौ बरस ' के विस्मयजनक प्रभाव से यह स्थिति बनी कि उन्होंने जिस काल्पनिक दक्षिण अमरीकी गांव माकोंदो और वहां रहने वाले बुएंदिया खानदान की जिन कई पीढ़ियों का चित्रण सैकड़ों पात्रों के साथ किया वह सब दक्षिण अमरीका की रहस्यमयी और अल्पज्ञात परंपराओं के श्रेष्ठ और अत्यंत प्रामाणिक रूपों की तरह अमिट रूप से साहित्यिक इतिहास में दर्ज हो चुका है। इस उपन्यास की रचना-प्रक्रिया से जुड़ी हुई अनेक कथाएं हैं। इसकी शुरुआत यूं हुई कि मार्केज अपनी गाड़ी में कहीं जा रहे थे और बीच के नीरव और सुनसान इलाके में उनकी कल्पना में उपन्यास की कथा का आरंभ उभरने लगा। उन्होंने कहीं रुककर उपन्यास के पहले अध्याय को लिपिबद्ध किया। कुछ ही समय बाद जब वे अपने घर गये तो उन्होंने अपनी प्रिय सिगरेट के बहुत सारे पैकेट अपने कमरे में भर लिए और पूरी तरह तल्लीन होकर, तन्मय भाव से लिखने में जुट गये। लंबी अवधि के बाद जब वे उपन्यास को पूरा करके निकले तो उनके पास तेरह सौ पृष्ठों की सामग्री थी। यह बात और है कि उस पूरी अवधि में किसी आर्थिक आय का कोई अता-पता नहीं था और वे तथा उनका परिवार बारह हजार डॉलर के कर्ज में डूब चुके थे। अपने कार्य जीवन की शुरुआत मार्केज ने एक पत्रकार के रूप में की थी। पत्रकारिता भी उन्होंने जमकर की थी। बाद के दौर में उन्होंने फिल्म पटकथा लेखन सहित कई तरह का ऐसा गद्य लेखन किया जिससे उन्हें ठीकठाक आय हुई। परंतु इस दौर में पत्रकारिता से लगभग विमुख होकर उन्होंने सिर्फ रचनात्मक लेखन पर खुद को केन्द्रित कर लिया था। उस दौर में अपने घर के प्रवेश द्वारा पर ताला लगाकर वे छिपकर पिछले दरवाजे से अपने घर में आते- जाते थे, ताकि उन्हें कर्ज देने वाले घर में घुसकर अपने पैसे वापस न मांगने लगें।
क्यूबा के क्रांतिकारी जननायक और भूतपूर्व राष्ट्रपति फीदेल कास्त्रो से मार्केज की दोस्ती निरंतर चर्चा और विवाद का विषय बनी रही। मार्केज ने अमरीकी साम्राज्यवाद के विरुद्ध काफी तीखे वक्तव्य समय-समय पर दिये थे। संयुक्त राज्य अमरीका की सरकार उन्हें विध्वंसक व्यक्ति मानती रही और उन्हें अमरीका यात्रा के लिए वीजा देने से इनकार करती रही। वह तो बिल क्लिंटन के राष्ट्रपति बनने के बाद ही संभव हुआ कि इस महान प्रतिभा पर लगा अमरीकी यात्रा-प्रतिबंध समाप्त हुआ। फीदेल कास्त्रो के बारे में मार्केज का कहना था कि फीदेल अत्यंत सुसंस्कृत व्यक्ति हैं और मिलने पर वे दोनों साहित्यिक वार्तालाप किया करते हैं।
मार्केज के अन्य बहुचर्चित उपन्यासों में 'हैजा के दिनों में प्यार' ,'पूर्व घोषित मौत का सिलसिलेवार ब्योरा','अपनी भूल-भुलैया में जनरल','प्रभु पुरुष का पतझड़' आदि बहुख्यात कृतियां हैं। उनकी अन्य दो उल्लेखनीय कृतियों में एक तो कोलंबिया में मादक द्रव्यों का अवैध कारोबार चलाने वाले मेदेलिन कार्तेल नामक भयावह संगठन द्वारा किए गए अपहरणों पर एक पत्रकारीय पुस्तक है और दूसरी पुस्तक उनकी आत्मकथा है जिसे उन्होंने 'कथा कहने के लिए जीते हुए' नाम दिया था।
क्या उनकी मृत्यु के दुख का दंश हमें इस बात से कम महसूस होगा कि वे कैंसर से लड़कर जीते, मगर दु:साध्य रोग अलजाइमर्स ने उनकी स्मृति छीन ली थी और आखिरकार न्यूमोनिया ने उनके दैहिक विनाश की भूमिका बना दी थी?
शायद नहीं।
कल्पतरु एक्सप्रेस से साभार
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