कॉरपोरेट, मोदी, गुजरात और कांग्रेस
Author: समयांतर डैस्क Edition : April 2014
रिलायंस के हितों की रक्षा करने के लिए चाहे कांग्रेस की सरकारें रही हों या भाजपा की पिछली एनडीए सरकार रही हो या फिर गुजरात की मोदी सरकार रही हो, सभी ने बखूबी अपनी वफादारी निभाई है। बहुत सारे मौकों पर यह सच सामने भी आ चुका है, लेकिन रिलायंस और उसके मालिक मुकेश अंबानी कभी चुनाव का मुद्दा नहीं बने। यह पहला मौका है जब इस बार के लोकसभा चुनावों में मुकेश अंबानी और कॉरपोरेट का भ्रष्टाचार भी एक अहम मुद्दा है।
सुप्रीम कोर्ट ने 26 मार्च 2014 को केंद्र सरकार से कहा कि वह बायोमैट्रिक्स मार्केटिंग एंड स्ट्रासबोर्ग होल्डिंग द्वारा रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) की चार कंपनियों में किए गए 6530 करोड़ रुपए के निवेश के मामले में अब तक क्या कदम उठाए हैं, उसके बारे में रिपोर्ट पेश करे। सिंगापुर में भारतीय उच्चायोग ने अगस्त 2011 में भारत सरकार को इस फर्म द्वारा किए गए इस निवेश के बारे में जांच करने के लिए पत्र लिखा था। आरआईएल के केजी-डी 6 ब्लॉक से निकाली जा रही प्राकृतिक गैस के दाम बढ़ाने के मामले में एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने कहा, "हम जानना चाहते हैं कि उच्चायोग के पत्र के बाद इस मामले में क्या जांच हुई है।'' सिंगापुर में भारतीय उच्चायोग के पत्र के आधार पर यह कहा जा रहा है कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के जरिए मनी लॉन्ड्रिंग की गई है। उच्चायोग का कहना था कि बायोमैट्रिक्स मार्केटिंग एक कमरे वाली कंपनी थी जो प्रत्यक्ष तौर पर कोई व्यापार नहीं करती थी, उसकी कोई संपत्ति और इक्विटी नहीं थी और उसने सिंगापुर में इनकम टैक्स रिटर्न भी दाखिल नहीं किए थे। इस पर भी उसने 6530 करोड़ का इतना बड़ा निवेश किया था। सिंगापुर से यह भारत में होने वाला सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश है। फ्रंटलाइन पत्रिका के 21 मार्च 2014 अंक में प्रकाशित स्टोरी (रिलायंस फैक्टर) के मुताबिक भारतीय उच्चायोग ने यह भी कहा था कि यह एफडीआई पूरी तरह से भारत में रिलायंस समूह की कंपनियों में गई और इसका बड़ा हिस्सा रिलायंस गैस ट्रासंपोर्टेशन इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (आरजीटीआईएल) में जमा किया गया। इस कंपनी का सौ प्रतिशत स्वामित्व मुकेश अंबानी के पास है। उच्चायोग का यह भी कहना था कि बायोमैट्रिक्स मार्केटिंग अतुल शांति कुमार दयाल द्वारा नियंत्रित की जा रही थी। वहीं, आम आदमी पार्टी का कहना है कि दयाल रिलायंस के लिए काम करता है। वह रिलायंस समूह की 32 कंपनियों और प्रमोटर कंपनियों में निदेशक है। आप का कहना है कि रिलायंस को बचाने के लिए केंद्र की यूपीए सरकार उच्चायोग द्वारा उपलब्ध कराई गई सूचना को दबाए रही।
रिलायंस के हितों की रक्षा करने के लिए चाहे कांग्रेस की सरकारें रही हों या भाजपा की पिछली एनडीए सरकार रही हो या फिर गुजरात की मोदी सरकार रही हो, सभी ने बखूबी अपनी वफादारी निभाई है। बहुत सारे मौकों पर यह सच सामने भी आ चुका है, लेकिन रिलायंस और उसके मालिक मुकेश अंबानी कभी चुनाव का मुद्दा नहीं बने। यह पहला मौका है जब इस बार के लोकसभा चुनावों में मुकेश अंबानी और कॉरपोरेट का भ्रष्टाचार भी एक अहम मुद्दा है। इसका श्रेय जाहिर तौर आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल को जाता है। केजरीवाल कांग्रेस और मोदी के बारे में लगातार कह रहे हैं दोनों ही कॉरपोरेट के हितों के रक्षा के लिए आपस में मिले हुए हैं। लेकिन दिलचस्प यह है कि मोदी जो चुनावी रैलियों में भ्रष्टाचार मिटाने और देश की तरक्की के नाम पर गरज रहे हैं अभी तक एक बार भी मुकेश अंबानी और अपने बहुत करीब उद्योगपति अडाणी के मामले में खामोश हैं। आम आदमी पार्टी का कहना है कि यूपीए सरकार ने प्राकृतिक गैस के केजी-डी 6 ब्लॉक पर रिलायंस के साथ समझौते के विभिन्न प्रावधानों का कंपनी के हितों के पक्ष में उल्लंघन किया है। इतना ही नहीं रिलायंस के हितों के लिए तमाम आलोचनाओं और सरकारी खजाने की कीमत पर यूपीए सरकार मुकेश अंबानी के लिए सबकुछ करने को तैयार है। वह गैस के दाम बढ़ाने पर आमदा है। रिलायंस के गैस के मामले को संसद और उसके बाहर लंबे समय तक उठाने वाले भाकपा के सांसद गुरदास दासगुप्ता ने एक साक्षात्कार में कहा कि कंपनी (रिलायंस) ने कई तरीकों से अनुबंध का उल्लंघन किया है। उसने कीमतें बढ़ाने के लिए सरकार को प्रभावित करने के लिए जानबूझकर कम गैस का उत्पादन किया। उत्पादन एक बहुत ही छोटे से दायरे तक सीमित है। कंपनी को जो गैस के फील्ड दिए गए हैं उसका बड़ा हिस्सा अभी भी ऐसे ही पड़ा है। ऐसे बहुत सारे कारण हैं जिनके आधार पर अनुबंध को खत्म किया जा सकता है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार ने प्राकृतिक गैस के दाम के मामले में पूर्व पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा, वर्तमान पेट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली, हाइड्रोकार्बन्स के पूर्व महानिदेशक वी.के. सिब्बल और रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के अध्यक्ष मुकेश अंबानी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई।
रिलायंस के प्रति कांग्रेस ही नहीं भाजपा का भी बहुत ज्यादा प्रेम है। यह कॉरपोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया के टेपों से सबके सामने आ चुका है। इस मामले में विशेषतौर पर दिलचस्प थी नीरा राडिया और एन के सिंह के बीच टेलीफोन पर हुई बातचीत। एन.के. सिंह जनता दल (यू) के राज्यसभा सदस्य और पूर्व आईएएस अधिकारी हैं। वह भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में पीएमओ में भी तैनात थे। इस बातचीत (रिकॉर्डेड) में एन.के. सिंह नीरा राडिया को बता रहे थे "कि वह मुकेश अंबानी के पक्ष में कैसे आग से खेले ताकि वे संसद में 2009 के आम बजट पर भाजपा की ओर से बहस की शुरुआत करने के लिए अरुण शौरी को रोक सकें। उनका तर्क था कि शौरी ने वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी द्वारा बजट में घोषित टैक्स छूट के पूर्वप्रभावी कार्यान्वयन का विरोध किया था। उस टैक्स में छूट की एकमात्र लाभार्थी मुकेश अंबानी की कंपनी थी। प्रस्तावित छूट थी कि पहले साल में प्राकृतिक गैस या कच्चे तेल के पाइपलाइन नेटवर्क के बिछाने और कार्यान्वित करने वाले को सौ प्रतिशत छूट दी जाएगी। और इन मापदंडों के आधार पर इस विशाल, अपूर्व और अनोखे टैक्स लाभ का एकमात्र चहेता लाभार्थी था रिलायंस गैस ट्रांसपोर्टेशन इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (आरजीटीआईएल)। एन के सिंह नीरा राडिया के साथ बातचीत में यह स्वीकार करते हैं कि अगर शौरी ने बहस शुरू की होती तो उसके कारण मुकेश अंबानी के लिए इस छूट के मामले में समस्याएं खड़ी हो जातीं और वह कोशिश कर रहे थे कि शौरी को मुख्य वक्ता से बदलें। इसके बाद भाजपा में हुई घटनाएं उस परिवर्तन की साक्षी रहीं जो एन. के. सिंह अंबानी के पक्ष में करना चाहते थे। पूर्व भाजपा अध्यक्ष एम. वेंकैया नायडू ने शौरी के स्थान पर मुख्य वक्ता के रूप में बहस की शुरुआत की। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है उन्होंने उस छूट के पक्ष में बहुत ही मजबूती से दलील दी। बाद में शौरी ने खुलेआम कहा था कि यह कॉरपोरेट हितों के लिए की गई लॉबिंग का परिणाम था। राडिया टेपों की अन्य रिकॉर्डिंग में मुकेश अंबानी ने कांग्रेस के बारे में कहा था कि कांग्रेस तो अपनी दुकान ने है। लेकिन राज्यसभा की बहस की घटना यह दिखाया कि भाजपा भी उनके लिए दुकान से कम नहीं थी।'' (फ्रंटलाइन 21 मार्च 2014, रिलायंस फैक्टर)।
यह तो मुकेश अंबानी के लिए कांग्रेस और भाजपा के प्रेम के चंद उदाहरण हैं। रिलायंस के साथ सरकारों के प्रेम की एक लंबी गाथा है, जो विशेष तौर से बीते तीन दशकों में काफी परवान चढ़ी है। इसका एक उदाहरण रिलायंस की गुजरात में जामनगर रिफाइनरी का है। 1999 में इसे तीन हजार हेक्टेयर में बनाया गया था। सन् 2006 में कंपनी इसके विस्तार के लिए चार हजार हेक्टेयर जमीन और चाहती थी। इसके लिए उसने मोदी सरकार की मदद मांगी। कंपनी की योजना यहां स्पेशल इकोनॉमिक जोन (एसईजेड) बनाने की थी। यह जमीन रिफाइनरी के निकट के पांच गांवों की थी। किसान इस अधिग्रहण के खिलाफ थे। कंपनी खेती वाली जमीन अधिग्रहीत करना चाह रही थी। लेकिन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने कंपनी के पक्ष में चंद महीनों में ही मामले को सुलटा लिया। उन्होंने किसानों के सामने इतना ही विकल्प छोड़ा कि वे मुआवजा ले लें और जो कुछ भी थोड़े लाभ दिए जा रहे हैं उन्हें चुपचाप ले लें। कंपनी कुछ किसानों की तोडऩे में कामयाब हो गई। जिसके चलते किसानों को कानूनी लड़ाई में कामयाबी नहीं मिली। उनका आंदोलन भी गति नहीं पकड़ सका। राज्य में विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने भी इस लड़ाई को नहीं लड़ा। यहां यह गौर करने वाली बात है कि भारत के एसईजेड एक्ट 2005 के तहत इस जोन में कंपनियों को सीमा शुल्कों और बिक्री तथा आयकर पर बड़े पैमाने पर छूट दी जाती है।
कॉरपोरेट के लिए मोदी क्या मायने रखते हैं इसे इस उदाहरण से भी समझा जा सकता है। मोदी ने अपने चहेते उद्योगपति अडाणी को कच्छ में 14306 एकड़ जमीन दी। यह जमीन एक रुपए प्रति वर्ग मीटर से लेकर 32 रुपए प्रति वर्ग मीटर की कीमत पर दी गई। इसमें से अधिकतर जमीन मुंद्रा गांव में दी गई। जहां औद्योगिक इस्तेमाल के लिए जमीन का बाजार मूल्य दो सौ रुपए से 315 रुपए प्रति वर्ग मीटर था और वाणिज्यिक इस्तेमाल के लिए एक हजार रुपए से 1575 रुपए प्रति वर्ग मीटर था। मोदी सरकार ने गुजरात के कई हिस्सों में अडाणी को कौडिय़ों के भाव जमीन दी है। मोदी देशभक्ति और जवानों की वीरता तथा उनके साहस की गाथाओं पर अपनी रैलियों में काफी कुछ कह रहे हैं। उनकी राष्ट्रभक्ति क्या है इसका उदाहरण आम आदमी पार्टी ने दिया है। आम आदमी पार्टी का कहना है कि भारतीय वायु सेना ने मोदी से जमीन मांगी थी। इसके लिए भारतीय वायु सेना से बाजार मूल्य से आठ गुना ज्यादा पैसा मांगा गया था। वायु सेना को सौ एकड़ जमीन 8800 प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से प्रस्तावित की गई थी। बाद में प्रधानमंत्री के खुद हस्तक्षेप करने पर कीमत कम की गई।
मोदी के कॉरपोरेट प्रेम का एक और उदाहरण सामने है। आम आदमी पार्टी ने इसकी जो कहानी बताई है वह कुछ इस प्रकार है, जो उसने पूरे दस्तावेजों और ठोस तथ्यों के साथ सामने रखी है। गुजरात सरकार की तेल और गैस की खोज करने वाली कंपनी का नाम है गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (जीएसपीसी)। जीएसपीसी ने अगस्त 2002 में केजी बेसिन में गैस ब्लॉक हासिल किए। सरकार के खुद के आकलनों के अनुसार जीएसपीसी को गैस के जो फील्ड आवंटित किए गए वे 20 अरब डालर के थे। मोदी सरकार ने जियो ग्लोबल और जुबिलंट एनप्रो लिमिटेड के साथ उत्पादन साझीदारी समझौता किया। मोदी ने इन दोनों कंपनियों को दस-दस प्रतिशत पार्टिसिपेटिंग इंट्रेस्ट (दस-दस हजार करोड़ रुपए) दिया। इसके बदले जियो ग्लोबल को कथित तौर पर तकनीकी सहायता उपलब्ध करानी थी। सवाल यह है कि इसके लिए इन्हीं दो कंपनियों को क्यों चुना गया। रिकॉर्डों के अनुसार यह किसी भी तरह की प्रतिस्पर्धी बोली के जरिए नहीं हुआ। अरविंद केजरीवाल का कहना है कि इन दोनों कंपनियों को इन गैस फील्डों में पार्टिसिपेटिंग इंट्रेस्ट बिना किसी कीमत के दे दिया गया। मजेदार बात यह है कि जियो ग्लोबल कंपनी जीएसपीसी के साथ अपने इस समझौते से छह दिन पहले ही स्थापित की गई थी। समझौते के दिन इसकी कुल पूंजी 64 डालर (3200 रुपए) मात्र थी। इस कंपनी का स्वामित्व किसी जां पॉल रॉय के पास है। तो 3200 रुपए वाली यह कंपनी छह दिन में 10,000 करोड़ रुपए की पूंजी वाली कंपनी बन गई। मोदी सरकार ने जियो ग्लोबल के साथ समझौते का यह कहकर बचाव किया कि जियो ग्लोबल तकनीकी विशेषज्ञता मुहैया करा रही है। जब खुद जियो ग्लोबल ने यूएस में सिक्यूरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन के सामने यह स्वीकार किया कि उसके पास जरूरी विशेषज्ञता नहीं है। कैग ने जियो ग्लोबल की तकनीकी योग्यता पर गंभीर संदेह व्यक्त किया था। जब कैग ने ऑडिट शुरू किया तो मोदी सरकार ने जियो ग्लोबल के साथ अनुबंध रद्द करने के लिए 18 अगस्त 2010 को केंद्र की यूपीए सरकार को पत्र लिखा। मजेदार बात यह है कि इसके बाद मोदी सरकार द्वारा लिखे गए पत्रों के बाद यूपीए सरकार ने जियो ग्लोबल के साथ करार रद्द करने की इजाजत नहीं दी। इसमें दिलचस्प बात यह है कि जां पॉल रॉय को न केवल मोदी के गुजरात में लाभ मिला बल्कि केंद्र में यूपीए सरकार की ओर से भी उसे अवैध लाभ प्राप्त हुए। केजरीवाल जुबिलियंट एनप्रो के बारे में कहते हैं कि इसके मालिक श्याम सुंदर भरतिया हैं। श्याम सुंदर भरतिया शोभना भरतिया के पति हैं। शोभना भरतिया को कांग्रेस ने राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया है और वह कांग्रेस और गांधी परिवार की काफी करीबी हैं। केजरीवाल सवाल करते हुए कहते हैं कि यह आश्चर्यजनक है कि मोदी उस व्यक्ति को अवैध लाभ देते हैं जो कि कांग्रेस का करीबी है। क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है कि कांग्रेस बीते कई वर्षों से मोदी के घोटालों पर खामोश है।
कांग्रेस की इस खामोशी की वजह कॉरपोरेट घराने रहे हैं। जिसका साफ मतलब निकलता है कि कॉरपोरेट घराने नहीं चाहते थे और नहीं चाहते हैं कि कांग्रेस गुजरात में मोदी को परेशान करे। यह शीशे की तरह की साफ है कि कांग्रेस ने शब्दाडंबरों के अलावा गुजरात में कोई ठोस और सतत् आंदोलन मोदी के खिलाफ नहीं चलाया। जबकि गुजरात में विशेष निवेश क्षेत्रों (एसआईआर) के लिए बड़े पैमाने पर किसानों की उपजाऊ जमीन अधिग्रहीत की जा रही है। किसान आंदोलनरत हैं लेकिन उनको समर्थन करने वाली वहां कोई राजनीतिक ताकत नहीं है। फिर भी कई स्थानों पर किसान लड़ाई लड़ रहे हैं। कईं स्थानों पर जमीन अधिग्रहण की अधिसूचना के खिलाफ किसानों के आंदोलनों के बाद सरकार को अपने कदम पीछे खींचने पड़े हैं। लेकिन राष्ट्रीय मीडिया इसे हमेशा अनदेखा करता रहा है। मीडिया के एक छोटे से हिस्से में मोदी के विकास की वास्तविकता की कुछ खबरें जरूर आती हैं। मोदी के तथाकथित विकास की पोल कांग्रेस ने कभी नहीं खोली। जबकि एनएसएसओ, अन्य विकास संबंधी रिपोर्टों और आर्थिक सर्वे और 2011 की जनगणना के आंकड़ों से यह साफ हो चुका है कि गुजरात का साक्षरता, रोजगार, शिक्षा, लिंग अनुपात, असमानता, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, मनरेगा के तहत मिलने वाले न्यूनतम वेतन, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक, वेतन, ग्रामीण योजना, स्वास्थ्य, आहार सहित अन्य मानव सूचकांकों में प्रदर्शन बहुत बेहतरीन नहीं है। बहुत से मामलों में तो गुजरात अन्य राज्यों से काफी पीछे है। महिलाओं के स्वास्थ्य के मामले में सर्वे के अनुसार 15 से 49 आयु वर्ग की 55.5 प्रतिशत महिलाएं रक्ताल्पता पीडि़त (अनीमिक) हैं। इसी आयु वर्ग की 60.8 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं कुपोषित और अनीमिक हैं। एनएसएसओ के ताजा आंकड़ों के मुताबिक गुजरात में बाल श्रमिकों (पांच से 14 वर्ष आयु के) की संख्या घटने के बजाय बढ़ी है। निवेश और खासकर विदेशी निवेश के मामले में भी मोदी का प्रचार वास्तविकता कम झूठ का पुलिंदा ज्यादा है। वरिष्ठ पत्रकार किंगशुक नाग ने अपनी किताब नमो स्टोरी : अ पॉलिटिकल लाइफ में लिखा है, "मोदी और उनके आर्थिक कौशल के चारों ओर फैले हुए मिथक का आधार आधा सच और आधा केवल अतिश्योक्ति है। उदाहरण के लिए मोदी के बढ़ा-चढ़ाकर पेश किए गए वाइब्रेंट (गतिशील) गुजरात प्रदर्शन पर यह प्रभाव डालते हैं कि विदेशी निवेश को आकर्षित करने में गुजरात अन्य राज्यों से आगे है। किंतु सत्य यह है कि पिछले बारह वर्षों में भारत में गुजरात केवल पांच प्रतिशत ही विदेशी निवेश ला पाया है। महाराष्ट्र और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली उससे बहुत आगे हैं।'' यह नहीं भूलना चाहिए कि गुजरात आर्थिक रूप से मोदी के आने के पहले से ही समृद्ध था। मोदी के आने से वहां कोई चमत्कार नहीं हुआ है। हां, इतना जरूर हुआ है कि मोदी ने कॉरपोरेट घरानों के लिए हर तरह का रास्ता खोला है और जनता वहां अपनी जायज मांगों के लिए भी आवाज नहीं उठा सकती है। इसका ताजा उदाहरण है लार्सन एंड टूब्रो की सूरत में हजीरा फैक्ट्री का मामला। इस फैक्ट्री के 980 स्थायी कर्मचारी 16 दिसंबर से हड़ताल पर हैं। इन कर्मचारियों की मांग है कि उन्हें भी महाराष्ट्र में पवई में काम कर रहे कंपनी के कर्मचारियों के समान वेतन मिले। गुजरात की मोदी सरकार ने कर्मचारियों की इस हड़ताल को गैर कानूनी घोषित कर दिया। हाल ही में गुजरात हाईकोर्ट ने कंपनी का 'तुष्टीकरण' करने के लिए राज्य सरकार को फटकार लगाई।
गुजरात के इस पूरे परिदृश्य के मद्देनजर यह सवाल लगातार उठता रहा है कि आखिर वहां कांग्रेस इतनी निष्क्रिय क्यों है। जबकि राजनीतिक ताकत के बतौर वह उतनी हाशिए पर नहीं जितनी दिखाई देती है। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को गुजरात में 26 सीटों में से 11 सीटें मिली थी और उसका वोट प्रतिशत 43.38 था। वहीं 2002 के बाद से 2007 और 2012 में विधानसभा चुनाव में उसकी सीटें कम होने के बजाय बढ़ी हैं। क्या इसका जवाब गुजरात में कॉरपोरेट घरानों के हितों की डील में तो नहीं छिपा है कि गुजरात में दखल मत दो। वैसे भी नई आर्थिक नीतियों के मामले में कांग्रेस और भाजपा के चरित्र में कोई अंतर नहीं है। कॉरपोरेट घराने कांग्रेस से भी लाभ बटोरते रहे हैं और मोदी ने भी उनके हितों की पूरी तरह से रक्षा की है। कांग्रेस ने कॉरपोरेट हितों के लिए मोदी के गुजरात में अपने को निष्क्रिय कर दिया और जिसका खामियाजा उसे इस बार के लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ रहा है। अब कॉरपोरेट घराने पूरी तरह से मोदी के पीछे हैं। उन्हें लग गया है कि अब कांग्रेस नहीं मोदी ही उनके हितों की खूब अच्छी तरह से रक्षा कर सकते हैं। कांग्रेस से फिलहाल वे जितना हासिल कर सकते थे कर चुके हैं। अब उन्हें नई आर्थिक नीतियों के तीसरे चरण का 'राष्ट्रीय नायक' चाहिए जो उन्हें मोदी के रूप में दिखाई दे रहा है। मोदी का यह उभार पूरे विपक्ष और खासकर कांग्रेस की असफलता का परिचायक है। यह कांग्रेस की ही देन है कि कॉरपोरेट घराने इस देश में राजनीति से बड़े ही नहीं हो गए बल्कि पूरी राजनीति को नियंत्रित भी करने लगे हैं। उनके लिए अपने हित पहले हैं चाहे उन्हें कोई फासीवादी पूरा करे या कोई अन्य। जिसके लिए वे कुछ भी कर सकते हैं। भाजपा के प्रचार पर जिस तरह से पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है वह साफ बतलाता है कि कॉरपोरेट घरानों ने मोदी के लिए पूरी तिजोरी खोल दी है। यह अतिश्योक्ति नहीं है कि आजाद भारत में अपने प्रचार पर इतने बड़े पैमाने पर पैसा नहीं बहाया गया है। भाजपा का 2004 का इंडिया शाइनिंग अभियान भी 150 करोड़ रुपए का था,लेकिन इस बार का मोदी अभियान अरबों रुपए का है। जिसे अभी तक करीब पांच सौ करोड़ रुपए का बताया जा रहा है। इंटरनेशनल कम्युनिकेशन कंसल्टेंसी एपको वल्र्डवाइड 2007 से ही मोदी की छवि चमकाने के काम में लगी है। अब मोदी ने सोहो स्क्वेयर और विज्ञापन एजेंसी ओ एंड एम की सेवाएं भी ली हैं। गुजरात में कांग्रेस और कॉरपोरेट 'डील' ने कांग्रेस को लाभ देने के बजाय उसकी जमीन हिला दी है।
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