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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Saturday, April 26, 2014

इतनी आसान नहीं दलित वोटों में सेंधमारी

[LARGE][LINK=/vividh/19250-dalit-vote-and-modi.html]इतनी आसान नहीं दलित वोटों में सेंधमारी[/LINK] [/LARGE]

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Details Category: [LINK=/vividh.html]विविध[/LINK] Created on Saturday, 26 April 2014 01:40 Written by अनिता सिंह
[B]नरेन्द्र मोदी के अम्बेडकर प्रेम के निहितार्थ[/B]

[B]अखिल[/B] हिन्दूवादी मजबूत राष्ट्र के निर्माण का सपना दिखाकर भारतीय जनता पार्टी सदैव बहुसंख्यक हिन्दूओं के भावात्मक मुद्दों की राजनीति करती रही है। लेकिन इस राजनैतिक एजेंडे के बल पर लगभग 27 दलों के गठबंधन के सहारे पहले 13 दिनों और बाद में 13 महिनों के लिए अपना राज्याभिषेक करवाकर वह पिछले दस सालों से केन्द्र की सत्ता से वनवास भोग रही है। कुर्सी से दूरी की पीड़ाएँ एवं सत्ता पाने की भाजपा की छटपटाहट अब पूरी शिद्दत से सामने आ रही है। इसी के चलते नेतृत्व के स्तर पर इस बार उसने सवर्ण हिन्दू कैंडिडेट के स्थान पर अन्य पिछड़ा वर्ग से सम्बद्ध नरेन्द्र मोदी को आगे किया है। जाति के आधार पर अन्य पिछड़ा लेकिन वफादारी के स्तर पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संध का कट्टर हिन्दूवादी सच्चा सिपाही।


[B]सत्ता[/B] प्राप्ति के लिए ब्राह्मणवादी संघ और भाजपा ने अपनी आंतरिक कलह के बावजूद भी अपनी नजरों से सही हीरे की खोज कर ली है। प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित होने के तुरन्त बाद ही इस नायाब हीरे ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया। जनता को भावनात्मक मुद्दो के आधार पर उकसाकर, अवसर के अनुकूल उनके प्रतीकों का राजनैतिक इस्तेमाल मोदी की जानी-पहचानी प्रविधि है। इसकी शुरूआत मोदी ने सरदार पटेल की सबसे बड़ी लौह-प्रतिमा बनवाने की घोषणा के साथ की।

[B]गौरतलब[/B] है कि कॉरपोरेट घरानों द्वारा संरक्षित एवं पोषित श्री नरेन्द्र मोदी चाहते तो इस प्रतिमा का निर्माण सोना-चाँदी जैसी बहुमूल्य धातु से भी करवा सकते थे। या मूर्ति-निर्माण में अधिकांशतः प्रयुक्त कांस्य धातु का भी प्रयोग किया जा सकता था। लेकिन ऐसा करके वह राजनीतिक ध्रुवीकरण किया जाना सम्भव नहीं था जो संघ और भाजपा अपने विश्वस्त सिपाही मोदी से चाहते थे। मोदी ने इस भव्य प्रतिमा के निर्माण के लिए उन तमाम मेहनतकश हाथों में चलने वाले औजारों का एक घिसा हुआ लौह का टुकड़ा दान देने की अपील की ताकि एकीकृत भारत के निर्माता लौह पुरूष सरदार पटेल की सर्वाधिक ऊँची लौह-प्रतिमा बन सके। प्रतिमा निर्माण के लिए मेहनतकश हाथों के लौह का एक टुकड़ा वस्तुतः मेहनतकश ओ.बी.सी. वर्ग का एक वोट था जिसके आधार पर भाजपा सत्ता पर काबिज होना चाहती थी। खैर प्रतिमा निर्माण की मोदी की यह महत्वाकांक्षी परियोजना अभी शुरू नहीं हो पाई है इसलिए ओ.बी.सी. वोट-बैंक भी उनके खाते में आ गया होगा उसे भाजपा का अधूरा व असंगत सपना ही समझा जाना चाहिए।

[B]भावनात्मक [/B]मुद्दों की राजनीति करने वाली कोई भी पार्टी या व्यक्ति अपना प्रायोजित ईमानदार एवं नैतिकतावादी ऐजेंडा ही सामने लाती है जिसमें खुद के अलावा तमाम दूसरे लोगों के पापी होने का अभियोजन पत्र भी शामिल रहता है। 14 अप्रैल को बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर की 123वीं जयन्ती पर नरेन्द्र मोदी ने ऐसा ही फरमाया। बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर को उन्होंने स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व का प्रतीक पुरूष बताते हुए कहा कि "कांग्रेस विगत 60 वर्षों से बाबा साहब का अपमान करती आ रही है। कांग्रेस ने हमें कोई कानून नहीं दिया है। सारे कानून हमारे संविधान निर्माता बाबा साहब की देन है। यदि एक चाय बेचने वाला आज प्रधानमंत्री बनता है तो यह बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर की देन है। ऐसे महान व्यक्ति को कांग्रेस ने भारत रत्न नहीं दिया। उनको भारत रत्न उनकी पार्टी की सरकार ने दिया है।''

[B]श्री नरेन्द्र मोदी[/B] की इस बात से कोई प्रतिबद्ध दलित-चिंतक भी असहमत नहीं हो सकता कि दलितों और पिछड़ों को मानवोचित जरूरी कानूनी अधिकार दिलाने का श्रेय केवल और केवल बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर और उनके संघर्ष को है। लेकिन सवाल उठता है कि बाबा साहब का संघर्ष किसके विरोध में था? आज दलित और पिछड़ा समाज किस व्यवस्था या विचारधारा के कारण शोषित, पीड़ित एवं अपमानित है? जाहिर है कि दलितों व पिछड़ों के शोषण और अपमान के लिए हिन्दूवादी वर्ण व्यवस्था जिम्मेदार है और बाबा साहब का समूचा संघर्ष इसी व्यवस्था व विचार के विरोध में खड़ा है। वर्तमान भारत की दलित राजनीति में इस हिन्दूवादी वर्णव्यवस्था की घोषित नुमाइंदगी विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ समर्थित भाजपा करती है। जिसके प्रतिनिधि चेहरे नरेन्द्र मोदी है। तब नरेन्द्र मोदी किस मुँह बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर की प्रशंसा कर दलित वोट-बैंक को पाने की अपेक्षा रखते है? बाबा साहब अम्बेडकर का संसद एवं सार्वजनिक राजनीति में घोर विरोध करने वाले नरेन्द्र मोदी के आदरणीय श्यामा प्रसाद मुखर्जी किस दल के सदस्य थें? दलितों और पिछड़ों को जरूरी मानवाधिकार एवं प्रतिनिधित्व देने का प्रयास करने वाले मण्डल आयोग के खिलाफ कमण्डल की राजनीति करके दंगे फैलाने वाले लोग किस दल या विचारधारा के सदस्य थे? क्यों भाजपा के घोषण पत्र में मजबूत हिन्दूवादी राष्ट्र का नाम देखकर ही दलित समुदाय की रूह काँप जाती है?

[B]14 अप्रैल[/B] को ही मोदी की सजातीय विचाराधारा के अरविन्द केजरीवाल को भी बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर की याद आ गई। उन्होंने भी 65 वर्ष बाद अम्बेडकर के संविधान के फॉलो न होने की स्थिति पर अपना अफसोस जाहिर किया। उनसे भी पूछे जाने ही जरूरत है कि जब दलितों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देकर उनका जरूरी प्रतिनिधित्व एवं न्यूनतम जीवन स्तर को सुनिश्चित करने के प्रयास हो रहे थे तब आप 'आर्ट ऑफ लिविंग' के संस्थापक श्री रविशंकर के साथ 'यूथ फॉर इक्वलिटी' की मुहिम चलाकर क्या अम्बेडकरवाद को ही मजबूत कर रहे थे? आम-आदमी के नाम पर राजनीति करने वालों के यहाँ आम-आदमी कौन है और किसी दलित, पिछड़े या स्त्री को उनकी पार्टी में क्या स्पेस है इस पर अधिक कहने की जरूरत नहीं है।

[B]नरेन्द्र मोदी[/B] जहाँ अपने भाषणों में लच्छेदार और अलोकतांत्रिक भाषा प्रयोग के लिए कुख्यात हैं उतने ही ऐतिहासिक तथ्यों के विकृतिकरण और उनकी असंगत प्रस्तुती के लिए भी। मुझे लगता है कि भाषा-प्रयोग कि दृष्टि से यह चुनाव आज तक का सर्वाधिक भ्रष्ट और लिजलिजा चुनाव है। स्थान और अवसर विशेष की जरूरतों के अनुसार नरेन्द्र मोदी अपनी लच्छेदार भाषा में अपने परिष्कृत इतिहास ज्ञान का परिचय भी देते रहते है। कभी वे तक्षशिला को बिहार में बताते है तो कभी श्यामा प्रसाद मुखर्जी को 1930 में लंदन में मरा हुआ बताते है। कभी चन्द्रगुप्त मौर्य को गुप्त वंश का मशहूर शासक बताते हैं तो कभी सिकन्दर को गंगा नदी के किनारे से भगा दिया गया बताते है और भगत सिंह को अण्डमान जेल में फाँसी दिया गया कहते है। ऐसी ही गलती उन्होंने 14 अप्रैल को भी कर दी। उन्होंने खुद की पार्टी की सरकार द्वारा अम्बेडकर को 'भारत रत्न'देने की बात कह दी। इतना सच अवश्य है कि वी.पी. सिंह की सरकार को भाजपा का समर्थन था। लेकिन अम्बेडकर को भारत-रत्न देने वाली वहीं वी.पी. सिंह सरकार जब दलितों को मजबूत कर रही थी तो कमण्डल और रथयात्रा के साथ वी.पी. सिंह की सरकार गिराने वाले भी तो मोदी ही की पार्टी के थे।

[B]प्रसंगवश[/B] एन.डी.टी.वी. के कार्यक्रम 'प्राइम टाईम' में उत्तर-प्रदेश की बसपा रैली का रविश का एक कवरेज मुझे याद आ रहा है। जिसमें दलित महिलायें दिन में कठोर मजदूरी करने के बाद शाम को रैली में शामिल होते हुए अपने घरों से थैले में खाना लाना नहीं भूलती है। वे जानती हैं कि जिस पार्टी की रैली में वे शामिल होने जा रही है उसे कॉरपोरेट घरानों का समर्थन हासिल नहीं है। जिसकी बदौलत रैलियों में बिसलेरी का पानी व पाँच सितारा होटलों का खाना उपलब्ध होता है। रविश द्वारा मोदी की लहर के बारे में पूछे जाने पर वे स्पष्ट जबाव देती है कि 'उनका व उनके वर्ग का कल्याण केवल बहन जी से ही सम्भव है।' आज के दिन दलित वोटर इतना सजग है कि वह अपना हित और राजनीतिक ताकत समझता है। केवल अम्बेडकर जयन्ती पर बाबा साहब का नाम ले लेने वालों के साथ वह नहीं जाने वाला है। यह बात नरेन्द्र मोदी व केजरीवाल को समझ लेनी चाहिए। उदित राज और रामविलास पासवान के साथ आ जाने से यह समझने की भूल मोदी को नहीं करनी चाहिए कि उन्होंने दलित वोटर को भी साथ लिया है। उदित राज और पासवान रास्ता भूले हुए लोग है जिनकी शीघ्र घर-वापसी की प्रतिक्षा आज भी उनके दलित बन्धुओं को है।

[B]अनिता सिंह
मो- 8447787065
ई-मेलः [LINK=-singhdharmveeranita1981@gmail.com]-singhdharmveeranita1981@gmail.com[/LINK][/B]

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