केसरिया मुलम्मे में लिपटा खूनी आर्थिक एजंडा
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
राम मंदिर तो बहाना है।बाकी जनता पर हर किस्म का हर्जाना है।धर्मराष्ट्र में कारपोरेट जजिया अफसाना है।सन 1991 में सुधारों के ईश्वर मनमोहन के अवतार से पहले मंडल प्रतिरोधे निकल पड़ा था रामरथ,जो लखनऊ में केसरिया और नई दिल्ली में तिरंगे की युगलबंदी के तहत बाबरी विध्वंस को कामयबा तो रहा,लेकिन न राम मंदिर बना और न रथयात्री थमी। गौर से देखें तो इस रथ के घोड़े दिग्विजयी अश्वमेधी घोड़े हैं,जिनका असली मकसद जनपदों को कुचलना है।जन गण का सफाया है।संसाधनों से बेदखली है।वर्णी नस्ली कारपोरेट एकाधिकारवादी वर्चस्व है।असल में बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को अगर छोड़ दिया जाए तो कांग्रेस और भाजपा के आर्थिक एजेंडे में बड़ा अंतर नहीं है। दोनों दलों ने वृद्धि को गति देने, मुद्रास्फीति पर शिकंजा कसने, रोजगार सृजन, कर प्रणाली में सुधार तथा निवेशक अनुकूल माहौल को बढ़ावा देने के अलावा राजकोषीय मुद्दों से प्रभावी तरीके से निपटने का वादा किया है।
मजे की बात तो यही है कि आर्थिक सुधार के मोर्चे पर कांग्रेस और भाजपा के चुनाव घोषणापत्र में कोई मौलिक फर्क है ही नहीं। सरकार चाहे जिसकी बने,राज कारपोरेट निरंकुश होगा।आर्थिक वृद्धि दर को तेज करने और रोजगार के अवसर बढ़ाने को उच्च प्राथमिकता देने का वायदा करते हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा ) ने कहा है कि यदि वह सत्ता में आई तो महंगाई पर लगाम लगाएगी, कर व्यवस्था में सुधार करेगी, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करेगी पर मल्टीब्रांड खुदरा क्षेत्र में विदेशी कंपनियों को कारोबार की छूट नहीं दी जाएगी। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा आज यहां जारी पार्टी के 'चुनाव घोषणापत्र-2014Ó में कांग्रेस नीत संप्रग सरकार पर 'कर आतंकवाद एवं अनिश्चितता' फैलाने तथा 10 वर्षो के रोजगारविहीन विकास की स्थिति पैदा करने का आरोप लगाया गया है। भाजपा ने ऊंची मुद्रास्फीति (महंगाई दर) पर अंकुश लगाने के लिए मूल्य स्थिरीकरण कोष की स्थापना करने, राजकोषीय अनुशासन सुनिश्चित करने तथा बैंकों के वसूल नहीं हो रहे कर्जों (एनपीए) की समस्या से निपटने के लिए बैंकिंग क्षेत्र में सुधार को आगे बढ़ाने का वायदा किया है।
नमोपा ने भाजपा को हाशिये पर रख दिया है और हिंदुत्व का कारपोरेट अवतार अवतरित है।नये पुराण,नये उपनिषद,नये वेद रचे जा रहे हैं।धर्मोन्माद नरसंहार के लिए वध्यभूमि को पवित्रता देता है क्योंकि वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति।गौरतलब है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने सोमवार को पार्टी के लोकसभा चुनाव के बाद सत्ता में आने पर देश में सुशासन लाने का वादा किया। वहीं पार्टी ने 'ब्रांड इंडिया' का संकल्प लिया। भाजपा की ओर से जारी घोषणा-पत्र के बाद मोदी ने कहा कि पार्टी का लक्ष्य मजबूत और एकीकृत भारत का निर्माण करना है, जिसे विश्व का सम्मान हासिल हो।
रामंदिर की आड़ में आक्रामक हिंदू राष्ट्र के पताकातले गिलोटिन कतारबद्ध है और खून की नदियां बहेंगी।मामला धर्मनिरपेक्षता बनाम साप्रदायिकता जबरन इरादतन बनाया जा रहा है ताकि ध्रूवीकृत जनता के जनादेश से दूसरे चरण के नरमेधी सुधारों को हरी झंडी मिल जाये।
संघ परिवार देशभक्ति का ठेकेदार है।अहिंदू तो क्या वे हिंदू भी जो आस्था में अंध नहीं हैं और दिलो दिमाग के दरवाजे खोलकर सहमति के विवेक और असहमति के साहस के साथ जीवनयापन करते हैं,नागरिक और मानवाधिकारों की बात करते हैं,धम्म और पंचशील की भारतीयता में आस्था रखते हैं,वर्णी लस्ली भेदभाव के विरुद्ध संघ परिवार के नजरिये से वे देश के गद्दार हैं।लेकिन भारतीय जनता पार्टी के चुनाव घोषणापत्र में संवेदनशील रक्षा क्षेत्र को निजी और विदेशी पूंजी के लिए कोल देने की जो राष्ट्रद्रोही उदात्त घोषणा हुई है,उसका असली तात्पर्य भारत अमेरिकी परमाणु संधि का अक्षरशः क्रियान्वयन है,जो मनमोहनी नीतिगत विकलांगकता की वजह से अब भी हुआ नहीं है।
तो दूसरी ओर, बगावत के दमन और आतंक के विरुद्ध परतिबद्धता का संकल्प है और उसके साथ समान नागरिक संहिता के साथ धारा 370 के खात्मे का ऐलान।
इसका भी सीधा मतलब अमेरिका और इजराइल की अगुवाई में रणनीतिक पारमाणविक जायनी युद्धक साझे चूल्हे की आग में भारत के नागरिकों के मानवाधिकार का ओ3म नमो स्वाहा है।
सशस्त्र सैन्य विशेषाधिकार कानून,आतंकवाद निरोधक कानून और सलवा जुड़ुम जैसे कार्यक्रम के जरिये भारतीय जनगण के विरुद्ध अविराम युद्ध घोषणा का संकल्पत्र है यह चुनाव घोषणापत्र।
विरोधाभास सिर्फ एक है और नहीं भी है। खुदरा कारोबार के अलावा बाकी सभी हल्कों में अबाध प्रत्यक्ष निवेश की प्रतिबद्धता है नमोमय ब्रांड इंडिया की।छिनाल पूंजी अर्थव्यवस्था की धूरी है तो खुदरा कारोबार में एफडीआई रोके जाने का सवाल ही नहीं उठता।
यूपीए दो ने खुदरा कारोबार विदेशी पूंजी के लिए पहले ही खोल दिया है।भले ही अरविंद केजरीवाल ने इस फैसले को उलट दिया है लेकिन अर्थ विशेषज्ञों और कारपोरेट नीति निर्धारकों के कहे पर गौर करें तो इस फैसले को राज्य सरकारें भी उलट नहीं सकतीं।जैसे भारत अमेरिका परमाणु समझौता अब रद्द नहीं हो सकता,यूं समझिये कि नमो घोषमाप्तर् का वादा छोटे कारोबारियों को मोर्चाबद्ध करके नमोसुनामी का सृजन भले कर दें,इस देश में अबाध विदेशी छिनाल पूंजी परिदृश्य में खुदरा बाजार के आजाद बने रहने के कोई आसार है ही नहीं। यह मतदाताओं के साथ सरासर धोखाधड़ी है पोजीं नेटवर्कीय राममंदिर फर्जीवाड़े की तरह ।
दरअसल राममंदिर संकल्प और खुदरा कारोबार में एफडीआई निषेध दोनों वोटबैंक साधने के यंत्र तंत्रमंत्र हैं।राममंदिर धर्मोन्मादी वर्चस्ववादी नस्ली वर्णी राष्ट्रवाद का महातिलिस्म है तो खुदरा कारोबार केसरिया वोटबैंक का प्राण भंवर।दोनों की पवित्रतापर आधारित है हिंदूराष्ट्र का हंसता हुआ वास्तु बुद्ध।लेकिन दोनों मुद्दे दरअसल हाथी के दांत हैं।दिखाने के और तो खाने के और।
जाहिरा तौर पर रामंदिर बनाने की संभावना के संवैधानिक रास्ते तलाशने की बात की गयी है।ऐसे आंतरिक सुरक्षा की फर्जी मुठभेड़ संस्कृतिकल्पे मोसाद सीआईए मददपुष्ट मानवाधिकारहनन के वास्ते रंग बिरंगे कानून और अभियान हैं,वैसे ही राम मंदिर निर्माण कल्पे संविधान का कायाकल्प भी केसरिया होना जरुरी है तो दूसरी ओर,ध्यान देने वाली बात है कि भारत सरकार संवैधानिक प्रावधानों और संसदीय गणतंत्र की परंपराओं के विपरीत भारत की संसद या भारत की जनता के प्रति कतई जिम्मेदार नहीं है।
राजनीति सीधे तौर पर कारपोरेट लाबिंग का नामांतर है तो नीति निर्धारण संसद को हाशिये पर रखकर,आईसीयू में डालकर विशेषज्ञता बहाने असंवैधानिक भी है और कारपोरेट भी।
मौद्रिक नीतियां सीधे बाजार के दबाव में तथाकथित स्वायत्त रिजर्व बैंक द्वारा तय होती हैं,जिनपर भारत सरकार का कोई नियंत्रण है ही नहीं और वित्तीयनीतियां भी वित्तीय पूंजी के हिसाब से होती है।
रेटिंग एजंसियां विदेशभूमि से भारत की आर्थिक सेहत तय करती हैं।
परिभाषाएं और मनचाहे आंकड़े दिग्भ्रामक हैं।
आर्थिक सुधारों का पूरा किस्सा यही है।
कारपोरेट लाबिइंग के मार्फत कैबिनेट में फैसला और कारपोरेट लाबििंग के मार्फत ही सर्वदलीय सहमति से उनका संसदीय अनुमोदन।
तमाम अल्पमत और खिचड़ी सरकारों ने बिन विचारधारा आर्थिक सुधारों की निरंतरता जारी रखा हुआ है।जो कार्यक्रम अति संवेदनशील है,उसके लिए भारत सरकार के शासकीय आदेश से लेकर अध्यादेश तक प्रावधान हैं।
अध्यादेश का अंततः संसदीय अनुमोदन होना अनिवार्य है और अध्यादेश को अदालत में चुनौती दी भी जा सकती है।लेकिन शासकीय आदेश दशकों तक बिना संसदीय अनुमोदन के बहाल और कार्यकारी रह सकते हैं।
सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून,पूर्वी बंगाल से आने वाले शरणार्थी निषेध शासकीय आदेश 1971 इसके ज्वलंत उदाहरण हैं।
फिर संसद के अनुमोदन के बिना दूसरे देशों से संधि,समझौता और अनुबंध का मामला है,जिसमें संसद की कोई भूमिका ही नहीं होती।
तमाम वाणिज्यिक समझौते भारतीयसंसद के दायरे के बाहर हैं।
वैसे भी अमेरिकी दांव खुदरा कारोबार के भारतीय बाजार पर है और मोदी इसके लिए रजामंद हैं और इसी रजामंदी के तहत उन्हें अमेरिकी समर्थन हैं।
मियां बीवी राजी तो क्या करेगा काजी संघ परिवार।
जाहिर है कि संसदीय फ्रेम के बाहर सर्वशक्तिमान धर्मोन्मादी कारपोरेट प्रधानमंत्री अंततः संघ परिवार के भी नियंत्रण में नहीं होंगे।हमे नहीं मालूम कि संघ में ऐसे कौन विष्णु भगवान हैं जो किसी भस्मासुर को आइना दिखाने के लिए मोहिनी अवतार ले सकें।
संघी साइबार अभियान में जो करोड़ों युवा दिलोदिमाग रात दिन चौबीसों घंटे निष्णात हैं,उनके लिए रोजगार के मोर्चे पर संघी नमो चुनाव गोषमापत्र खतरे की घंटी है।रोजगार कार्यालय भारत सरकार के शरणार्थी मंत्रालय की तरह खत्म होने को हैं।
यानी सरकार की तरफ से किसी को भी नौकरी नहीं मिलने वाली है।
यानी निजीकरण और विनिवेश मार्फत सरकारी क्षेत्र का अवसान।रोजगार कार्यालयों को कैरियर सेंटर बना दिया जायेगा।
जब रिक्तियां ही खत्म हैं और आवेदनों से नौकरियां नहीं मिलनेवाली हैं,सारी नियुक्तियां ठेके पर होनी है,नियोक्ताओं की जरुरत के मुताबिक ऊंची फीस वे चुनिंदा संस्थानों में कैंपस रिक्रूटिंग के माध्यम से होनी है तो जैसे कि आम तौर पर कैरियर सेंटरों और कोचिंग सेंटरों में होता है,वहीं होना है।
इसमें संघ परिवार की ओर से मंडल से लेकर अंबेडकर के खाते पूरी तरह बंद करने के दरवाजे खुल जायेंगे और दलित असुरों का स्वर्गवास का अंजाम भी यही होगा।
स्वरोजगार और स्वपोषित रोजगार में कोई फर्क नहीं है।सत्तादल की स्वयंसेवकी ौर एनजीओ समाजकर्म भी आखिरकार स्वरोजगार है।बाकी उद्यम के लिए बड़ी एकाधिकार पूंजी के खुले बाजार में क्या भविष्य है और कितने युवा हाथों,दिलों और दिमागों के लिए वहां कितनी गुजािश बन सकेंगी,यह देखने वाली बात है।
गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी ने कहा है, "इस मुद्दे पर कोई कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। यदि मुझे अपने घोषणा-पत्र को दो शब्दों में परिभाषित करना पड़े, तो मैं कहूंगा- सुशासन और विकास।"
तो विकास का उनका मतलब गुजरात है।
जाहिर है किगुजरात के मुख्यमंत्री ने सच ही कहा कि वह भाजपा की तरफ से दी गई जिम्मेदारी को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।उन्होंने यह भी कहा कि वह निजी तौर पर अपने लिए कुछ नहीं करेंगे और न ही बदले की भावना से कोई काम करेंगे।
इससे पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने घोषणा-पत्र जारी करते हुए कहा कि इसमें अर्थव्यवस्था व आधारभूत संरचना को मजबूत करने और भ्रष्टाचार मिटाने पर जोर दिया गया है। जोशी ने कहा, "हमने घोषणा-पत्र में देश के आर्थिक हालात को सुधारने की योजना बनाई है। जहां तक आधारभूत संरचना का सवाल है, विनिर्माण में सुधार महत्वपूर्ण है। साथ ही इसका निर्यातोन्मुखी होना भी जरूरी है। हमें 'ब्रांड इंडिया' बनाने की जरूरत है।"
भाजपा ने सोमवार को घोषणापत्र जारी किया जिसमें कहा गया है कि वह अर्थव्यवस्था के पुनरूद्धार तथा रोजगार सृजन के लिये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का स्वागत करेगी। भाजपा के घोषणापत्र में कहा गया है, बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्र को छोड़कर उन सभी क्षेत्रों में एफडीआई की अनुमति होगी जहां रोजगार एवं संपत्ति सृजन, बुनियादी ढांचा तथा अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी एवं विशेषीकृत विशेषज्ञता की जरूरत है। वहीं कांग्रेस ने कहा कि बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्र में एफडीआई की अनुमति देने के संप्रग के निर्णय से कृषि अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण बदलाव आएंगे और किसानों को बेहतर रिटर्न मिलेगा।
भविष्य की आर्थिक योजनाओं का अनावरण करते हुए भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में कहा है, 'कांग्रेसनीत संप्रग सरकार ने देश को 10 वर्षो तक रोजगार विहीन वृद्धि के दौर में फंसा रखा है। भाजपा वृहद आर्थिक पुनरोद्धार के तहत रोजगार सृजन और उद्यमशीलता के लिए अवसरों के निर्माण को उच्च प्राथमिकता देगी। कृषि क्षेत्र के संदर्भ में इसमें घोषणा पत्र में 'एकल राष्ट्रीय कृषि बाजार' के सृजन और कृषि क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश बढ़ाने का वायदा किया गया है। कर प्रणाली में सुधार के संदर्भ में पार्टी ने कहा है कि संप्रग सरकार ने देश में 'कर आतंकवाद' और 'अनिश्चितता' की स्थिति पैदा कर दी है। इससे न केवल व्यवसायी वर्ग चिंतित है बल्कि निवेश का माहौल बिगड़ गया है तथा देश की साख पर भी बट्टा लगा है।'
कर सुधार का वादा करते हुए भाजपा ने कहा है कि उसकी कर नीति में कर व्यवस्था को वैर-भाव से मुक्त व कर वातावरण को सहज बनाने पर ध्यान होगा। पार्टी कर विवाद निपटान व्यवस्था को दुरूस्त करेगी, माल एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू करने में सभी राज्यों को साथ लेगी और निवेश बढ़ाने के लिए कर-प्रोत्साहन देगी।
पार्टी के घोषणापत्र में कहा गया है, कांग्रेस ऐसे निवेश माहौल को लेकर प्रतिबद्ध है जो एफडीआई को आकषिर्त करने वाला तथा उसके अनुकूल हो। कर सुधारों के मुद्दे पर भाजपा तथा कांग्रेस वस्तु एवं सेवा कर :जीएसटी: को क्रियान्वित करने का वादा किया है। हालांकि, भाजपा घोषणापत्र में प्रत्यक्ष कर संहिता :डीटीसी: मुद्दे पर चुप है जो आयकर कानून 1961 का स्थान लेगा।
कांग्रेस ने सत्ता में आने के एक साल बाद जीएसटी के साथ-साथ डीटीसी को एक साल के भीतर क्रियान्वित करने का वादा किया है। आम सहमति के अभाव में दोनों कर सुधार विधेयक संसद में लंबित हैं। दोनों दलों ने राजकोषीय मजबूती तथा फंसे कर्ज के संदर्भ में बैंकिंग क्षेत्र में सुधार का संकल्प जताया है। शहरी ढांचागत सुविधा में सुधार पर कांग्रेस ने 100 शहरी संकुल गठित करने की मांग की है वहीं भाजपा की इतनी ही संख्या में नये शहर स्थापित करने की योजना है।
असल नौटंकी तो यह है कि भाजपा के घोषणा पत्र को अपने घोषणा पत्र की कापी बताते हुए कांग्रेस ने भाजपा पर तीखा हमला किया है। पार्टी ने भाजपा पर उसके घोषणा पत्र के मुद्दों को चोरी करने का आरोप लगाया है। पार्टी मतदान के दिन घोषणा पत्र जारी करने के लिए भाजपा की शिकायत चुनाव आयोग से करेगी। घोषणा पत्र में राम मंदिर मुद्दा शामिल करने के लिए कांग्रेस आयोग में आपत्ति भी दर्ज कराएगी।
गांवों में इंटरनेट सुविधाओं, स्वास्थ्य, सबको मकान, शिक्षा, आर्थिक सुधार और इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर कांग्रेस ने भाजपा पर उसके घोषणा पत्र की नकल का आरोप लगाया है। पार्टी प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, भाजपा ने ऐसी अंधी नकल की है कि कांग्रेस घोषणा पत्र की तारीख तक नहीं बदली।
दरअसल, भाजपा के घोषणा पत्र में मुरली मनोहर जोशी ने जो प्रस्तावना लिखी है उसमें 26 मार्च की तारीख है। कांग्रेस का घोषणा पत्र इसी दिन जारी हुआ था। उन्होंने कहा, भाजपा ने हर गांव को इंटरनेट से जोड़ने और हर राज्य में एम्स बनाने की बात कही है। जबकि, संप्रग सरकार इन पर काम भी शुरू कर चुकी है। सबको मकान देने की बात भी कांग्रेस ने पहले कही है।
आर्थिक सुधारों को लेकर भी पार्टी ने जो अपने घोषणा पत्र में कहा है, भाजपा ने शब्दों को बदल कर उन्हें दोहराया भर है। बुनियादी ढांचे को लेकर कांग्रेस के विजन पत्र में जो कहा गया है भाजपा ने उसे भी कापी पेस्ट कर दिया है। हमने वादा किया था कि कांग्रेस 10 लाख की आबादी वाले शहरों में हाईस्पीड ट्रेन चलाएगी। वेस्टर्न-ईस्टर्न फ्रेट कॉरीडोर पूरा करेगी। जलमार्ग का विस्तार किया जाएगा। भाजपा ने सिर्फ नाम बदला है और कहा है कि वह स्वर्णिम चतुर्भुज बुलेट ट्रेन लेकर आएगी।
टीम राहुल के अहम सदस्य माने जाने वाले जयराम रमेश ने भी दावा किया कि भाजपा के घोषणा पत्र में शामिल कुछ योजनाएं तो 10 साल से मौजूद हैं। कांग्रेस की विधि इकाई के प्रमुख केसी मित्तल ने भाजपा पर चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों की अवहेलना का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि पहले चरण का मतदान शुरू होने के बाद घोषणा पत्र जारी करने को लेकर वे आयोग से भाजपा की शिकायत करेंगे।
कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने भाजपा द्वारा उर्दू और मदरसों को सहायता देने की बात पर चुटकी लेते हुए कहा, 'मुझे खुशी है कि भाजपा जैसी पार्टी भी मदरसों को मदद की बात कर रही है, यह देश के लिए शुभ संकेत है।'
राम मंदिर मुद्दे पर भाजपा को निशाने पर लेते हुए उन्होंने कहा, 'मुझे मालूम था कि इन लोगों में राम के प्रति निष्ठा नहीं है। 2004 में भी इन्होंने कहा था कि विशाल मंदिर बनाया जाएगा, फिर बात करनी छोड़ दी।'
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