लड़ाई जारी है ... कम से कम पिछले ढाई हजार सालों से और अब सबकुछ संस्थागत कुलीनतंत्र
पलाश विश्वास
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मित्र एके पंकज ने सही लिखा है।
आप रख सकते हैं विश्वास इस झूठे लोकतंत्र और उसके विकास पर
हमने हर रंग, हर चेहरा, हर नारा, हर नेता, हर पार्टी देखी है
हमारी लड़ाई जारी है ... कम से कम पिछले ढाई हजार सालों से
लेकिन हजारों सालों की यह लड़ाई और उसकी विरासत कहीं खो गयी लगता है।वजह यह है कि जो लड़ाई जमीनी स्तर पर आम जनता को लड़नी है,वह लड़ाई अब संस्थागत कुलीनतंत्र के कब्जे में है।
वैश्विक संस्थाओं का सीधा हस्तक्षेप है समाज, राजनीति, अर्थव्यवस्था,माध्यमों और संस्कृति से लेकर भाषा और बोलियों में।कारपोरेट इंडिया भारतीय राजनीति को नियंत्रित करती है तो वैश्विक संस्थानों ने राजनीति का एनजीओकरण कर दिया है।
आम आदमी पार्टी को हम समझ रहे थे कि कांग्रेस और भाजपाके दो दलीय भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ कारपोरेटविरुद्धे ऐलानिया जिहाद के साथ यह तीसरा विकल्प देश की उत्पादक शक्तियों और सामाजिक शक्तियों को गोलबंद करेगी।
अब आधे भारत की किस्मत ईवीएम में बंद हो जाने के बाद साफ जाहिर है कि जनांदोलनों के छलावा और प्रपंच प्रोजेक्ट वाले तमाम चमकदार उजले चेहरे दरअसल परिवर्तन राजनीति के बहाने वैश्विक पूंजी की कारपोरेट लाबिइंग का ही बंदोबस्त करने में लगी है।
वे किसी अंबानी, अडानी या टाटा के नुमाइंदे नहीं हैं यकीनन। लेकिन करीब दो सौ करोड़पतियों को चुनाव मैदान में उतारने वाली पार्टी किस आम आदमी की नुमाइंदगी कर रही है,यह अनसुलझी पहेली भी नहीं है।
जो एनजीओ संप्रदाय के लोग हैं,उनकी सारी गतिविधियां वातानुकूलित हैं,हवाई मार्ग से देश विदेश वे पूरीतरह ग्लोबल है और क्रयशक्ति उनकी महमहाती है।जमीन की कोई खुशबू कहीं नहीं है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष, विश्वबैंक, यूनेस्को, यूरोपीय संगठन, डब्लूटीओ, गैट,एडीए से जिनके तार जुड़े हैं,जिनके तमाम कामकाज इन्हीं संगठनों के प्रोजेक्ट है जो उन्हीं से वित्त पोषित हैं,वे आखिर किस किस्म का परिवर्तन ला पायेंगे।
वैश्विक जायनवादी शैतानी व्यवस्था के ये चमकदार नुमाइंदे कैसे मुक्तबाजारी जनसंहारी अर्थव्यवस्था और राजनीति के खिलाफ प्रतिरोध की ताकतों को गोलबंद करेंगे अपने अपने आकाओं के खिलाफ,यह गौरतलब है।
नमोमयभागवत पुराण रच दिया गया है,जहां सबकुछ संस्थागत कुलीनतंत्र है।क्रयशक्ति सापेक्ष।किसी नागपुर में बैठे कुछ विचारधाराप्रतिबद्ध लोग पूरे देश और देश के सारे नागरिकों के लिए नीति रणनीति बनायेंगे,बाकी सबको उन्हींको अमल में लाना है।
नतीजा चाहे कुछ भी हो।हितअहित संबंधी सारे प्रश्न अनुत्तरित नमो उपनिषद,नमो भागवत,नमो पुराण हैं।
संस्था ही अब राजनीति है।संस्था ही अब अर्थव्यवस्था।राजनीति को संस्थागत बनाना है ,इसीलिए जनसंघ और हिंदू महासभा के बाद भाजपा की विष्णुअधिष्ठाने तिलांजलि है।
सीधे संस्था ही कमान संभाल रही है।राजनीति दल की कमान संस्था को और देश की कमान भी संस्था को।
साफ जाहिर है कि कांग्रेस ने वाकओवर दे दिया है।जिनका वध किया जाना है,जन्मजात जो बहिस्कृत हैं और जिनका कोई प्रतिनिधित्व नहीं है।जिनके लिए कहीं लागू नहीं है भारत का संविधान,महज आरक्षण प्रावधान लेकिन गणतंत्र की नागरिकता से जो उसी तरह बेदखल,जैसे जल जंगल जमीन नागरिक औरमानवाधिकारों से।
न्यायप्रणाली में उनकी कोई सुनवाई नहीं है।कानून का राज उनके खिलाफ है।बुनियादी जरुरतों से वे वंचित हैं,उनके बारे में इस संस्थागत कुलीन सत्ता वर्ग की आखिर क्या राय है।
हफ्तेभर के लिए यात्रा पर था।भोपाल से वापसी के रास्ते वाया नागपुर कोलकाता की ट्रेन में मेरे दो सहयात्री रिटायर होने वाले दो बहुत बड़े अफसर थे।मेरे बारे में जाहिरा तौर पर उनकी कोई दिलचस्पी नहीं थी।
वे बेतकल्लुफ भारत की सारी समस्याओं का निदान खोज रहे थे।मजे की बात तो यह है कि वे नमोममय भी नहीं थे और न हिंदुत्व के समर्थक।उनके लिए भारत की सबसे बड़ी समस्या जनसंख्या है।
हिंदुत्ववादियों के विपरीत वे इस समस्या के लिए मुसलमानों से ज्यादा जिम्मेदार हिंदुो के पुत्रमोह और कन्याभ्रूण हत्यारा चरित्र को मानते हैं।जाहिर है कि दोनों सिरे से धर्म निरपेक्ष भी थे।
उनका मानना है कि डीपोपुलशेसन यानी गैरजरुरी जनसंख्या का सफाया एकमात्र रास्ता है।वे हर तरह की सब्सिडी और हर तरह की लोककल्याणकारी प्रकल्प के विरुद्ध हैं।वे वाणिज्यिक मूल्यों के आधार पर बिना रियायत अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने की बात करते हैं और हर तरह के आरक्षण के विरुद्ध है।
यह ऐसा ही है जैसे हमारे अनेक अंग्रेजी मीडियाकर्मियों का अभिमत है कि विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए,इसके रास्ते जो भा अवरोधक बनें,उनको उड़ा दिया जाये।
और चूंकि इस देश के आदिवासी ही विकास के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है और माओवादी जैसी चुनौतियों के भी वे जिम्मेदार है,तो उनके एकतरफा सफाये के बिना भारत महाशक्ति बन ही नहीं सकता।उनके मुताबिक इस एजंडा को मैनेजरी दक्षता और सर्जिकल विशेषज्ञता से अंजाम देना है।
जाहिर है कि राजनीति को केंद्रीकृत संस्थागत बनाने का मकसद भी वही है।इसीलिए नागपुर में संस्था सीमाबद्ध थी और परदे के पीछे थी,वह सर्वजनसमक्षे हैं मुख्य कार्यकारी और सर्वजनसमक्षे जो मुख मूकाभिनय था,उसका बिना आडंबर यह पटाक्षेप,जैसा भाजपा त्रिमूर्ति को जलांजलि।
राहुल गांधी भी व्यवस्था को संस्थागत बनाने का प्रवचन दे रहे हैं।व्यवस्था का संस्थागत जो स्वरुप है,वह सर्वशक्तिमान सर्वज्ञ और सर्वत्र विराजमान सर्ववर्चस्वी जन्मजात कुलीनतंत्र है।
वहां नागरिकता अप्रासंगिक है।वहां लोकतंत्र अवांछित है।वह सीधे तौर पर गेस्टापो पद्धति का गिलोटिन है जहां सर कटाने के लिए आम जनता को बिना शोर शराबे कतारबद्ध कर दिया जाये।
जो सत्तावर्ग है,जिसमें कांग्रेस,भाजपा,रंग बिरंगे क्षत्रप और अस्मिता झंडावरदार हैं तो गांधीवादी,सामाजवादी,साम्यवादी और अंबेडकरी विचारधाराओं के झंडेवरदार भी,वे भी इस संस्थागत कुलीन तंत्र के अभिमुख देश और देश की जनता को हांक रहे हैं।
अब मजा यह है कि लड़ाई देशज सर्ववर्चस्वी कलीन तंत्र और शैतानी जायनवादी वैश्विक कारपोरेट पूंजीवर्चस्वी मुक्तबाजारी कुलीनतंत्र के मध्य है और दोनों के बीच का समन्वय और समझौता भी डीटो भारतीय राजनीति है।
कोई किसी के अधिकारक्षेत्रे अतिक्रमण कर नहीं रहा है।कोई किसी के हितविरुद्धे आचरण नहीं कर रहा है।
दोनों पक्ष जनादेश युद्ध मार्फत ऐसी संस्थागत महाविनाश का निर्माण कर रहे हैं,जिसमें अवांछित गैर जरुरी जनता का संस्थागत सफाया संभव कर दिया जाये।
यही दूसरे चरण के आर्थिक सुधारों का एजंडा है।कांग्रेस ने वाकओवर दिया है और भाजपा के खिलाप सिर्फ जुबानी जंग में निष्णात इसलिए है कि इस अश्वमेधी राजकाज में वह अपने वंशीय आनुवांशिकी साम्राज्य को दांव पर लगाना नहीं चाहती।
जाहिर है कि यह संस्थागत महाविनाश प्रकल्प भी कांग्रेस भाजपा और देशज पूंजी और अंतरराष्ट्रीय छिनाल जायनवादी कारपोरेट पूंजी का साझा शापिंग माल है,जहां सबकुछ खरीदा बेचा जा सकता है।
इस संस्थागत महाविनाश को सतजुग स्वराज और हिंदू राष्ट्र जैसे अनेक अवधारणाओं से व्याख्यायित किया जा सकता है।जिसके लिए देवमंडलमध्ये कल्किअवतार का नया भागवत पुराण है।
सतजुग के लिए वध्यजनसमूहसकलमध्ये कल्कि अवतारस्वरुप ओबीसी नमो का संस्थागत प्रारुप और प्रकल्प हमारके सामने है।लठैत और कारिंदे,पुरोहित और यजमान लामबंद हैं।चूं भी किया तो एक बालिश्त छोटा कर देने का फरमान।
पिछले बीस साल के सुधार महाकाव्य में गीता का उपदेश ही दे रहे थे श्रीकृष्ण,बाकी काम तो पक्ष विपक्ष के रथी महारथी तीरंदाज कर रहे थे।अब तो कृष्ण का कुनबा ही धनुर्धारी अर्जुन है।
कुरुक्षेत्र में अर्जुन नहीं,अब सीधे कृष्ण जनगण विरुद्धे हैं और मारे जाने वाले लोग तमाम निमित्तमात्र हैं और जन्मजात कर्मफलसिद्धांत अनुयायी मारे जाने को नियतिवद्ध है जबकि कल्कि अवतार सतयुग लाने को अवतरित हो चुके हैं और मनुअनुशासन अक्षरशः लागू होने वाला है।
सारे शंबूक जो तपस्यारत हैं,सारे एकलव्य जो दक्षता का उत्कर्ष छूने लगे हैं लोकगणराज्य के मार्फत,लोकगणराज्य अवसाने मनुसाम्राज्ये उनकी नियति शंबूक समान है।
हर सीता अब भी अग्निपरीक्षाउपरांते परित्यक्ता अंत्यज है अपवादबिना।
हाल में नरेंद्र मोदी के रैली प्रवचन और आर्थिक नीतियों संबंधी उनके उदात्त घोषणाओं
का नोट लिया जाना चाहिेए।अर्थव्यवस्था में बुनियादी परिवर्तन के संकल्पमध्ये वे देशज पूंजी और विदेशी छिनाल पूंजी दोनों को आश्वस्त कर रहे हैं कि आर्थिक नीतियों की निरंतरता बहाल रहेगी।
वे बेहिचक कह रहे हैं कि पार्टी उनकी भले ही खुदरा कारोबार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के विरुद्ध है,लेकिन बतौर भारत के भावी प्रधानमंत्री वे अबाध पूंजी प्रवाह और हर क्षेत्र में एफडीआई लागू करेेंगे।
वे विकास के नाम पर नीतिगत विकलांगकता और राजनीतिक बाध्यताओं के पार मजबूत सरकार और मजबूत भारत का स्वप्न सार्थक करेंगे। निवेश को सहज बनायेंगे।पूंजी को करमुक्त करेंगे।वाणिज्य और व्यवस्था में सरकारी हस्तक्षेप खत्म कर देंगे।निजीकरण के गुजरात माडल को पूरा देश बनायेंगे।
नीतिगत विकलांगकता और राजनीतिक बाध्यता वैश्विक पूंजी तरफे कांग्रेस के दसवर्षीयजनसंहारी सुधारविरुद्धे महाभियोग है।
अब जो पूरी कवायद है वह यही है कि मजबूत देश और मजबूत सरकार के मार्फत पूरे तंत्र और पूरी व्यवस्था को संस्थागत कर दिया जाये,जिसकी कमान जन्मजात वर्णवर्चस्वी कुलानतंत्र के हाथों में हो और जहां जनसुनवाई,जनहिस्सेदारी या जनहस्तक्षेप की किसी लोकतांत्रिक वारदात की गुंजाइश ही नहीं हो।चलो बुलावा आया है,के थीम सांग पर नाचते गाते झुंड के झुंड आम लोग अपना सर कटाने खुद ब खुद उछलते फांदते तंत्र मंत्र यंत्र मार्फत संस्थागत तौर पर अपनी मौत का जश्न मना लें।
इस अनिवार्य कार्यभार में कोई संस्थागत चूक न हो,इसके लिए वैश्विक पूंजी संस्थाओं ने अपने नुमािंदों की भी अलग पार्टी बना दी है।सीटें दो चार मिले या नहीं,वोटकाटू भूमिका से घनघोर उनका वास्तविक एजंडा है। चार प्रतिशत वोट मिला तो बतौर राष्ट्रीय पार्यी वह एक तरफ वाम भूमिका खत्म करेगी तो दूसरी तरफ देशज पूंजी के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय ग्लोबल छिनाल पूंजी के लिए कारपोरेट लाबिइंग भी।
मसलन यह गौरतलब है कि वाराणसी से अरविंद केजरीवाल की नरेंद्र मोदी को चुनौती का कुल जमा नतीजा क्या है।मोदी के खिलाफ,हिंदू राष्ट्र के खिलाफ वाराणसी और भारत की उदार धर्मनिरपेक्ष गंगा जमुनी तहजीब और विरासत की हिफाजत के लिए जो साझा मोर्चा बनना था,उसे अकेले अरविंद केजरीवाल ने खंडित कर दिया है।
बाकी चुनावक्षेत्रों में जन भ्रष्ट लोगों के खिलाफ युद्धघोषणा के एजंडे के साथ हम सबको नयी दिशा का भान करा रही थी आप,आप की ही वजह से सर्वत्र उनकी जीत आसान हो रही है।चक्रव्यूह तोड़कर अगर मर्यादा पुरुषोत्तम हिंदू ह्रदयसम्राट भारत भाग्यविधात बनकर नमो राष्ट्र बनाते हैं,तो इसमें आप का भारी योगदान होगा,शायद सबसे बड़ा।
असम के कछार से हमारे मित्र सुशांत कर ने यह लिखा हैः
सौगंध हमें इस मिटटी कि, हम देश नहीं मिटनें देंगे
हम देश नहीं बिकने देंगे, हम देश नहीं झुकने देंगे ।
ये धरती हम से पूछ रही, कितना लहू बहाओगे?
ये अम्बर हम से पूछ रहा, कब सीना तान चल पाओगे?
हमने वचन दिया मानवता को, तेरा पतन न होने देंगे ।
सौगंध हमें इस मिटटी कि, मोदी को वोट नहीं देंगे
हम देश नहीं बिकने देंगे, हम देश नहीं झुकने देंगे ।
ईश्वर का नाम ले लेकर जो मार रहे हैं अपनों को,
जो दोस्त अदानी, अंबानी के, लूट रहे लाखों के सपनों को,
कलयुग के हैवान जो, निर्वस्त्र कर रहे नारी को
उन बेग़ैरत दलालों (कौरवों) को अब देश नहीं बिकने देंगे
सौगंध हमें इस मिटटी कि, मोदी को वोट नहीं देंगे
हम देश नहीं बिकने देंगे, हम देश नहीं झुकने देंगे ।
धर्म कि आड़ में वो फिर अँधेरा लायेंगे
ईश्वर नाम जपते हुए कबीर को आग लगाएंगे
लाखों कोख़ कुर्बान करेंगे मंदिर मस्जिद कि हुंकारों पर
ज़मीर हमारा जब्त करेंगे, झूठे विकास कि फ़ुंकारों पर
भाई, अब तुम ही बोलो हम चैन से कैसे सो जाए ?
बहना, अब तुम ही बोलो ख़ामोश हम कैसे हो जाए?
सौगंध हमें इस मिटटी कि, मोदी को वोट नहीं देंगे
हम देश नहीं बिकने देंगे, हम देश नहीं झुकने देंगे ।
अब घडी फैसले कि आई, हमने है कसम अब खाई
हमें फिर से दोहराना है, खुद को याद दिलाना है
१९८४,१९९३, २००२ जैसी हिंसा (महाभारत) दोबारा नहीं होने देंगे,
ना भटकेंगे, ना अटकेंगे, कुछ भी हो इस बार, देश नहीं कटने देंगे
मोदी के धर्म-दर्द-देश आडम्बर पर अब खुद को नहीं मिटने देंगे
सौगंध हमें इस मिटटी कि, मोदी को वोट नहीं देंगे
हम देश नहीं बिकने देंगे, हम देश नहीं झुकने देंगे ।
अब जनसत्ता में पुण्य प्रसून वाजपेयी ने जो लिखा है,उसपर गौर करेंः
नरेंद्र मोदी के विकास मॉडल के पीछे क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही है। क्या उसके घटते जनाधार या समाज में घटते सरोकार ने मोदी के नाम पर संघ को दांव खेलने को मजबूर किया। क्या अटल-आडवाणी युग के बाद संघ के सामने यह संकट था कि वह भाजपा को जनसंघ की तर्ज पर खत्म कर दे। और इसी मंथन में से मोदी का नाम झटके में सामने आ गया। क्या आरएसएस ने संघ परिवार के पर कतर कर मोदी को आगे बढ़ाने का फैसला किया। यानी राजनीतिक तौर पर ही संघ परिवार का विस्तार हो सकता है, यह देवरस के बाद पहली बार मोहन भागवत ने सोचा।
कांग्रेस के खिलाफ जेपी आंदोलन में जिस तरह संघ के स्वंयसेवकों की भागीदारी हुई, उसी तरह मोदी के राजनीतिक मिशन को लेकर संघ के स्वयंसेवक देशभर में सक्रिय हो चले है। ये सारे सवाल ऐसे हैं जो नरेंद्र मोदी के हर राजनीतिक प्रयोग के सामने कमजोर पड़ती संघ की विचारधारा या संघ के विस्तार के लिए मोदी की राजनीतिक ताकत का ही इस्तेमाल करने की जरूरत के साथ खड़े हो गए हंै। और जिस भाजपा में दिल्ली की सियासत से दूर करने की साजिश के तहत मोदी को अक्तूबर 2001 में गुजरात भेजा वही पार्टी 12 बरस बाद मोदी के सामने ही छोटी हो गई। इतिहास के इन पन्नों को पलटें तो कई सच नए तरीके से सामने आ जाएंगे।
दरअसल गांधीनगर सर्किट हाउस के कमरा नंबर-1 ए से गुजरात के मुख्यमंत्री पद को संभालने वाले नरेंद्र मोदी अब जिस 7-आरसीआर की उड़ान भर रहे हंै, उसका नजारा चाहे आज सरसंघचालक मोहन भागवत की खुली ढील के जरिए नजर आ रहा हो। लेकिन इसकी पुख्ता शुरुआत 2007 में तब हो गई थी, जब मोदी को हराने के लिए संघ परिवार का ही एक गुट हावी हो चला था। और उस वक्त मोदी को और किसी ने नहीं बल्कि सोनिया गांधी के मौत के सौदागर वाले बयान ने राजनीतिक आॅक्सीजन दे दी थी। सोनिया ने चुनाव प्रचार में जैसे ही मौत के सौदागर के तौर पर मोदी को रखा, वैसे ही मोदी न सिर्फ कट्टर हिंदूवादी और हिंदू आइकन के तौर पर संघ की निगाहों में चढ़ गए बल्कि राजनीतिक तौर पर भी मोदी को जबरदस्त जीत मिल गई। और मोदी को समझ में उसी वक्त आया कि 2002 में एचवी शेषाद्रि ने उन्हें गुजरात को विकास के नए मॉडल पर खड़ा करने को क्यों कहा था।
असल में मोदी को राजनीतिक उड़ान देने की शुरुआत भी भाजपा और संघ से खट्टे-मीठे रिश्तों से हुई। यह बेहद दिलचस्प है। 2001 में प्रमोद महाजन ने राष्ट्रीय राजनीति से दूर करने के लिए नरेंद्र मोदी को दिल्ली से गुजरात भेजने की बिसात बिछाई। 23 फरवरी 2002 को राजकोट से उपचुनाव जीतने के बावजूद जिस नरेंद्र मोदी को संघ परिवार में ही कोई तरजीह देने को तैयार नहीं था, चार दिन बाद 27 फरवरी 2002 को गोधरा की घटना के बाद वही मोदी संघ परिवार की निगाहों में आ गए।
लेकिन सरसंघचालक सुदर्शन भी उस वक्त दिल्ली के झंडेवालान से मोदी से ज्यादा विश्व हिंदू परिषद और संघ के स्वयंसेवकों पर ही भरोसा किए हुए थे। क्रिया की प्रतिक्रिया का असल सच यह भी है कि मोदी कुछ भी समझ पाते उससे पहले संघ परिवार का खेल गुजरात की सड़कों पर शुरू हो चुका था। मोदी दिल्ली को जवाब देने से ज्यादा कुछ कर नहीं पा रहे थे। लेकिन उसके तुरंत बाद अक्तूबर 2002 में वाजपेयी के अयोध्या समाधान के रास्ते से विहिप को झटका लगा। वाजपेयी सुप्रीम कोर्ट के जरिए अयोध्या का रास्ता संघ के लिए बनाना चाहते थे। लेकिन हुआ उल्टा। विहिप को अयोध्या की जमीन भी छोड़नी पड़ी। संघ पहले ही आर्थिक नीतियों से लेकर उत्तर-पूर्व में संघ के स्वयंसेवकों पर हमले से नाराज था। अयोध्या की घटना के बाद तो उसने पूरी तरह खुद को अलग कर लिया। 2004 में संघ परिवार ने खुद को चुनाव से पूरी तरह दूर कर लिया। लेकिन इसी दौर में मोदी को आसरा एचवी शेषाद्रि ने लगातार दिया। मोदी को विकास मॉडल के तौर पर गुजरात को बनाने का सोच दिया।
यह अजीबोगरीब संयोग है कि राजनीतिक तौर पर मोदी ने पटेल समुदाय के जिस केशुभाई और प्रवीण तोगड़िया को निशाने पर लिया, उसी पटेल समुदाय के युवाओं को ग्लोबल बिजनेस का सपना देकर मोदी ने अपने साथ कर लिया। असल में 2004 के चुनाव में संघ ने एक तरह की खामोशी बरती और एनडीए सरकार वाजपेयी-आडवाणी की अगुवाई में दोबारा सत्ता में आए , इसे लेकर कोई रुचि नहीं दिखाई। इसके बाद संघ के भीतर का एक धड़ा 2007 में मोदी को भी हराने में लग गया। आर्थिक नीतियों से लेकर राममंदिर तक के मुद्दे पर रूठे दत्तोपंत ठेगड़ी से लेकर अशोक सिंघल और तब एमजी वैद्य तक नहीं चाहते थे कि नरेंद्र मोदी की वापसी सत्ता में हो। लेकिन पहले शेषाद्रि और उसके बाद 2007 में सरकार्यवाह मोहन भागवत ने ही नरेंद्र मोदी को संभाला।
मोहन भागवत ने मोदी के रास्ते के कांटों को अपने अधिशासी अधिकारों के जरिए हटाया। उग्र पटेल गुट के प्रवीण तोगड़िया को विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय मॉडल पर काम करने के लिए गुजरात से बाहर किया गया, तो एमजी वैद्य के बेटे मनमोहन वैद्य को भी अखिल भारतीय स्तर पर काम देकर गुजरात से बाहर किया गया।
दरअसल 2007 में सोनिया के मौत के सौदागर वाले बयान के बाद पहली बार मोहन भागवत ने ही इस हालात को पकड़ा कि मोदी का गुजरात मॉडल अगर गांधी परिवार को परेशान कर सकता है तो फिर मोदी के जरिए ही आरएसएस दिल्ली की राजनीति को भी साध सकता है। इसी के बाद मोहन भागवत ने खुले तौर पर मोदी के हर प्रयोग को हवा देनी शुरू की।
ध्यान दें, 2012 में संघ परिवार में से सबसे पहले विहिप के उसी अशोक सिंघल ने मोदी को प्रधानमंत्री पद के लायक बताया जो 2007 से पहले मोदी का विरोध करते थे। गांधीनगर में तो मंदिरों के तोड़े जाने पर 2004 में सिंघल मोदी को गजनी कहने से नहीं चूके थे।
दरअसल मोहन भागवत ने बतौर सहसरकार्यवाह अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर न सिर्फ गुजरात को संघ परिवार की बंदिशों से मुक्त किया और 2009 में सरसंघचालक बनते ही भाजपा के कांगे्रसीकरण से परेशान होकर मोदी को ही तैयार किया कि वे वाजपेयी-आडवाणी के हाथ से भाजपा को निकालें। लेकिन 2009 में मोदी ने 2012 तक का वक्त मांगा जिससे गुजरात में जीत की तिकड़ी बनाकर दिल्ली जाएं। इस दौर में संघ का प्लान मोदी के लिए भविष्य का रास्ता बनाने का था। प्लान सीधा था। दिल्ली में भाजपा का कांगे्रसीकरण रोका जाए , वाजपेयी-आडवाणी युग को खत्म करना जरूरी है। संघ को सक्रिय करने के लिए राजनीतिक मिशन से जोड़ना जरूरी है और विकास मॉडल के जरिए दिल्ली की सत्ता की व्यूह रचना करना जरूरी है। चूंकि अयोध्या सामाजिक मॉडल था और उस प्रयोग से भी भाजपा अपने बूते सत्ता तक पहुंच नहीं पाई थी। तो राजनीतिक मशक्कत करने के लिए एक चेहरा भी चाहिए था।
सरसंघचालक भागवत का मानना रहा कि मोदी ही इसे अंजाम देने में सक्षम हैं। तो 2009 में सरसंघ चालक मोहन भागवत हर हाल में दिल्ली की भाजपा चौकड़ी को ठिकाना लगाना चाहते थे और नरेंद्र मोदी 2012 से पहले गुजरात छोड़ना नहीं चाहते थे तो नितिन गडकरी की बतौर भाजपा अध्यक्ष लाकर संघ ने पहला निशाना आडवाणी के दिल्ली साम्राज्य पर साधा। उसके बाद मोहन भागवत ने मोदी के विकास मॉडल को ही भाजपा की भविष्य की राजनीति को साधने के लिए , संघ परिवार के भीतर ही राजनीतिक प्रयोग करने शुरू कर दिए। सबसे पहले अयोध्या में राममंदिर को लेकर सक्रिय विहिप को ठंडा करने के लिए संघ प्रचारक देना ही बंद कर दिया। इसके समांतर धर्म जागरण का निर्माण किया। धर्म जागरण के जरिए संघ के उन कार्यों को अंजाम देना शुरू किया जो पहले विहिप करती थी। यानी संघ के प्रचारक, जो अलग-अलग संघ के सहयोगी संगठनों में काम करते थे, वे विहिप के बदले धर्म जागरण में जाने लगे। इससे मोदी के धुर विरोधी प्रवीण तोगड़िया की शक्ति भी खत्म हो गई और वे विहिप के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष बने भी रहे।
इसी तर्ज पर किसान संघ, भारतीय मजदूर संघ, आदिवासी कल्याण संघ सरीखे एक दर्जन से ज्यादा संगठनों को नरेंद्र मोदी के विकास मॉडल के अनुसार काम करने पर ही लगाया गया। इतना ही नहीं पहली बार संघ ने स्वयंसेवकों को खुले तौर पर राजनीतिक तौर पर सक्रिय करने का दांव भी खेला। संजय जोशी को दरकिनार करने के लिए मोदी ने जो बिसात बिछाई, उस पर आंखें भी संघ ने मूंद लीं। संजय जोशी खुद नागपुर के हैं, बावजूद इसके संघ ने जोशी को खामोश करने के लिए मोदी को ढील भी दी और स्वयंसेवकों को संदेश भी दिया कि मोदी की राजनीतिक बिसात में कोई कांटे न बोए।
सरसहकार्यवाह भैयाजी जोशी ने चुनाव के साल भर पहले से ही खुले तौर पर कमोबेश हर मंच पर यह कहना शुरू कर दिया कि हिंदू वोटरों को घर से वोट डालने के लिए इस बार चुनाव में निकालना जरूरी है क्योंकि बिना उनकी सक्रियता के सत्ता मिल नहीं सकती। इसे खुले तौर पर बीते 10 अप्रैल को नागपुर में भाजपा उम्मीदवार गडकरी को वोट डालने निकले सरसंघचालक और सरसहकार्यवाह ने जाहिर किया। वे कैमरे के सामने यह कहने से नहीं चूके कि इस बार बड़ी तादाद में वोट पडेंगे, क्योंकि परिवर्तन की हवा है।
तो मोदी के जरिए परिवर्तन की लहर का सपना संघ ने पहले भाजपा में, फिर संघ परिवार में और उसके बाद देश में देखा था। लेकिन जिस तेजी से संघ की चौसर को अपनी बिसात में मोदी ने बदला है, उसके बाद संघ भी समझ रहा है कि परिवर्तन देश की राजनीतिक सत्ता में पहले होगा और उसके बाद भाजपा और संघ परिवार भी बदल जाएगा।
काला धन करदाताओं को देंगे,एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में मोदी ने कहा
नई दिल्ली, विशेष प्रतिनिधि
First Published:23-04-14 09:35 AM
Last Updated:23-04-14 01:53 PM
अन्य फोटोआतंकवाद पर नरमी की जगह भाजपा के पीएम उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी कठिन रुख की वकालत करते हैं और आर्थिक उन्नति के लिए नीतियों में बदलाव का संकल्प भी।
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'आंतरिक सुरक्षा के मुद्दे पर आपकी क्या प्राथमिकता होगी?'-'हिन्दुस्तान' ने पूछा। इस पर मोदी ने कहा- 'आतंकवाद और माओवाद के खिलाफ नरम रवैया अख्तियार करने का समय अब नहीं रहा। इनको करारा जवाब देने के लिए दरअसल कानूनी रूप से मजबूत आतंकवाद विरोधी ढांचा तैयार करना पड़ेगा। मैं समझता हूं कि केंद्र एवं राज्य सरकारों को कंधे से कंधा मिलाकर कदम उठाना चाहिए।'
मोदी से अगला सवाल था- 'आपकी सरकार को लेकर देशभर में जो इतनी ज्यादा उम्मीदें बांधी जा रही हैं, उससे आपको कभी डर नहीं लगता?' जवाब मिला- 'मुझे लगता है कि सभी नागरिकों को सपने संजोने का हक है, आशावादी होने का अधिकार है। उम्मीदें बांधने की इजाजत होनी चाहिए, इसमें कुछ बुरा नहीं है। इन सभी बातों का हमें पूरी तरह ध्यान है और उसी के अनुसार कठिन से कठिन परिश्रम करने की मानसिक तैयारी हम कर चुके हैं।
'पड़ोसी देशों, खासकर चीन और पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने के लिए क्या आपकी कोई तत्काल योजना है?' -सीमा पर पसरे तनाव पर 'हिन्दुस्तान' का प्रश्न। उत्तर मिला- 'देश का हित सर्वोपरि रखा जाना चाहिए। हम न किसी को आंख दिखाना चाहते हैं और न ही चाहते हैं कि कोई हमें आंख दिखाए। हम चाहते हैं आंख से आंख मिलाकर बात करें। जरा सोचिए, जब तक कोई भी पड़ोसी देश हमारे देश के खिलाफ आतंकवाद को बढ़ावा देगा तब तक उसके साथ अच्छे रिश्ते बनाना तो मुश्किल होगा ही न।'
गठबंधन राजनीति के खट्टे-मीठे अनुभवों पर सवाल- 'साझा सरकार की एक धारणा बन गई है कि इसका प्रधानमंत्री मजबूर प्रधानमंत्री होता है। इस धारणा को कैसे बदलेंगे?' मोदी का मत है- 'गठबंधन धर्म क्या है एवं उसे कैसे निभाया जाता है, इसका अटल जी ने सर्वश्रेष्ठ उदाहरण दिया। हम उसी भावना के साथ आगे बढ़ेंगे। हमारा मानना है कि यदि नीतियां स्पष्ट हों एवं नीयत साफ हो तो अच्छे परिणाम मिल सकते हैं। यह भी महत्वपूर्ण है कि साथियों के प्रति अविश्वास नहीं होना चाहिए।'
'क्या आप मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट से आपको जो क्लीनचिट मिली है वह पर्याप्त है? अल्पसंख्यकों का दिल जीतने के लिए क्या इससे आगे कुछ करने की जरूरत नहीं है?' -गुजरात दंगों पर लंबे समय से जारी विवाद से जुड़े इस सवाल पर उनका जवाब था- 'जो लोग अपने देश की कानून व्यवस्था, न्याय व्यवस्था का सम्मान करते हैं एवं उसमें विश्वास रखते हैं, उनके लिए तो मुझे क्लीनचिट मिलना पर्याप्त है। परन्तु जिन लोगों के जीवन का एकमात्र उद्देश्य मोदी को बदनाम करना, उसे नीचा दिखाना रह गया है, उन्हें तो चाहे मुझे दुनिया की हर कोर्ट, हर संस्था से क्लीनचिट मिले, संतोष नहीं ही होगा।'
व्यक्ति केंद्रित राजनीति पर 'हिन्दुस्तान' ने प्रश्न किया- 'पहली बार प्रचार पार्टी से हटाकर व्यक्ति केंद्रित किया है, अबकी बार मोदी सरकार। इससे लोकतंत्र मजबूत होगा या कार्यकर्ताओं की पार्टी को एक व्यक्ति के हवाले से जाना जाएगा?' भाजपा दिग्गज ने स्पष्ट किया- 'इस बार का चुनाव पार्टी या व्यक्ति नहीं लड़ रहा, देश की जनता लड़ रही है। देश की जनता ने इस बार भाजपा सरकार बनाने का मन बना लिया है। पार्टी ने मुझे नेतृत्व का अवसर प्रदान किया है। मैं अपनी पूरी शक्ति एवं क्षमता लगाकर लोगों की आशाओं को पूरा करने का प्रयास कर रहा हूं।'
आरोपों की पीड़ा मेरे लिए दवा बन जाती है...
नरेन्द्र मोदी से 'हिन्दुस्तान' ने ई-मेल के जरिए उनसे जुड़े तमाम विवादों और सवालों पर सीधे सवाल किए। जवाब भी वैसे ही मिले...सपाट पर बेहद संयत। वे कठिन परिश्रम का वादा कर देश को आगे बढ़ाने की इच्छा जताते हैं। आतंकवाद पर नरमी की जगह कठिन रुख की वकालत करते हैं और आर्थिक उन्नति के लिए नीतियों में बदलाव का संकल्प भी। विपक्ष के आरोपों को वे अपने लिए दवा मान रहे हैं, लेकिन देश को चलाने में सभी से विचार विमर्श का संकेत भी देते हैं। भाजपा के कद्दावर नेताओं की तल्खी को वे आंतरिक लोकतन्त्र मानते हैं। पेश है 'हिन्दुस्तान' द्वारा पूछे गए सवालों पर नरेन्द्र मोदी के जवाब:
हिन्दुस्तान: आपकी सरकार को लेकर देश भर में जो इतनी ज्यादा उम्मीदें बांधी जा रही हैं, उससे आपको कभी डर नहीं लगता?
नरेन्द्र मोदी: मुझे अहसास है कि भाजपा से देश भर में बहुत उम्मीदें बांधी जा रही हैं लेकिन मुझे लगता है कि सभी नागरिकों को सपने संजोने का हक है, आशावादी होने का अधिकार है। इन बातों का हमें पूरा ध्यान है और उसी के अनुसार कठिन से कठिन परिश्रम करने की मानसिक तैयारी हम कर चुके हैं।
हिन्दुस्तान: क्या आप तत्काल नतीजे देने के लिए दो महीने, तीन महीने या सौ दिन जैसा कोई लक्ष्य बनाएंगे? काले धन पर आप क्या प्रयास करेंगे?
नरेन्द्र मोदी: जो काम जितने समय में किया जा सकता है, वो काम उतने ही समय में किया जाएगा। मुझे इस देश की 125 करोड़ लोगों के सपनों को पूरा करने का यदि समय मिलेगा तो सिर्फ 60 महीने का। मैं हर पल, हर दिन मेहनत करने से पीछे नहीं हटूंगा। काला धन सिर्फ कर चोरी नहीं बल्कि देशद्रोही प्रवृत्ति भी है। काला धन विदेशों में जमा होकर गैरकानूनी एवं देशद्रोही गतिविधियों में खर्च होता है। इसे वापस लाना मेरी व्यक्तिगत प्रतिबद्धता है। हम टास्क फोर्स का गठन करेंगे और जरूरी कानूनी सुधार तथा कानूनी फ्रेमवर्क में बदलाव भी लाएंगे। इतना ही नहीं, काला धन वापस लाकर उसका आंशिक हिस्सा ईमानदार करदाताओं, खासकर वेतनभोगी करदाताओं को देंगे। यह जरूरी है कि हमारी कर-व्यवस्था ईमानदार करदाताओं को प्रोत्साहन देने वाली हो।
हिन्दुस्तान: आर्थिक मोर्चे पर देश बहुत सी समस्याओं से गुजर रहा है, सरकार बनाते ही आप तुरंत कौन से आर्थिक कदम उठाएंगे?
नरेन्द्र मोदी: अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए रैपिड ग्रोथ चाहिए और इसके लिए निवेश जरूरी है। निवेश तभी आएगा जब व्यवस्था में निवेशकों का भरोसा लौटा पाएं। एनडीए की पुरानी सरकारों एवं भाजपा की वर्तमान राज्य सरकारों का ट्रैक रिकार्ड ध्यान में रखते हुए यह भरोसा लौटाना मुश्किल नहीं होगा। यही नहीं, हम इंफ्रास्ट्रक्चर एवं मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बड़े पैमाने पर प्रोत्साहित करेंगे। मैन्युफैक्चरिंग पर जोर देकर बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन कर युवाओं को रोजगार देना भी हमारी प्राथमिकता होगी। वहीं, यूपीए के शासनकाल में उपेक्षित स्किल डेवलपमेंट जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र पर हमारा जोर रहेगा। भारत के विकास पर ब्रेक लगने की प्रमुख वजहों में से एक जो Policy Paralysis... यानी नीतियों को लकवे की स्थिति अभी है, उसमें से तुरंत बाहर निकलना है।
हिन्दुस्तान: इसी तरह आंतरिक सुरक्षा के मुद्दे पर आपकी प्राथमिकताएं क्या होंगी?
नरेन्द्र मोदी: आतंकवाद एवं माओवाद के खिलाफ नरम रवैया अख्तियार करने का समय नहीं रहा। आज हम न सिर्फ आतंकवाद के प्रति नरम रवैया अपना रहे हैं बल्कि आतंकवाद को लेकर ज्यादा नरमी बरतने की कोशिश करते हुए भी दिखना चाह रहे हैं। आतंकवाद और माओवाद जैसे उपद्रव से टक्कर लेने के लिए हमें मानसिकता में जड़ से परिवर्तन लाना होगा। संस्थानों को ज्यादा कारगर बनाने के अलावा राजनीतिक विचारधारा तथा राजनीतिक पहचान से उठकर कार्य करना होगा। कानूनी रूप से मजबूत आतंकवाद विरोधी ढांचा बनाना होगा। मैं समझता हूं कि सर्वाधिक अहम है कि केन्द्र एवं राज्य सरकार साझा सोच के साथ कदम उठाएं ताकि वर्तमान चुनौती का दृढ़ता से मुकाबला किया जा सके।
हिन्दुस्तान: पड़ोसी देशों, खासकर चीन और पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने के लिए आपकी कोई तत्काल योजना है?
नरेन्द्र मोदी: हमारी विदेश नीति आपसी सम्मान एवं भाईचारे पर आधारित होनी चाहिए— Mutual Respect and Cooperation.. मेरा मतलब है, एक-दूसरे के प्रति सम्मान और सहयोग। इसी तरह हमारे अन्य देशों के साथ संबंध बराबरी एवं परस्परता पर आधारित होने चाहिए.. Equality and Reciprocity हम न आंख दिखाना चाहते हैं और न ही चाहते हैं कि कोई हमें आंख दिखाए। जरा सोचिए, जब तक कोई पड़ोसी देश हमारे खिलाफ आतंकवाद को बढ़ावा देगा, तब तक उससे अच्छे रिश्ते बनाना तो मुश्किल होगा ही न।
हिन्दुस्तान: चुनाव प्रचार की तल्खी में कई तरह के ध्रुवीकरण, कई तरह के वैमनस्य बन जाते हैं। नतीजों के बाद सद्भाव का माहौल बने इसके लिए क्या करेंगे?
नरेन्द्र मोदी: अब तो आदत-सी हो गई है। हां, शुरुआत में बहुत पीड़ा होती थी। एक दशक से जैसे बेबुनियाद आरोप लगाए गए, जैसा कीचड़ मुझ पर उछाला गया, जैसा गाली—गलौज मुझे सहन करना पड़ा, वह था तो बहुत पीड़ादायक। वैसे तो सार्वजनिक जीवन में आरोप लगते हैं और कह सकते हैं कि यह एक Professional Hazard है ..पेशागत जोखिम। लेकिन जैसे आरोप मुझे झेलने पड़े वो मानसिक यातना एवं जुल्म की पराकाष्ठा थी। शायद डिक्शनरी में कोई भी ऐसा गंदा शब्द न होगा, जो मेरे विरोधियों ने मेरे बारे में न कहा हो। ..लेकिन जैसा कहते हैं न कि कभी—कभी दर्द ही दवा बन जाता है। मैंने भी कई वर्षों से यह तय कर लिया कि मन को जनता की सेवा में ऐसे समर्पित कर दूं कि मुझे ये सारी नकारात्मकता छू भी न सकें। विरोधी ऐसा क्यों करते हैं, शायद इसकी एक ही वजह है कि उनके पास अपनी उपलब्धियों के बारे में कहने को कुछ नहीं है एवं मेरे खिलाफ भी कोई गंभीर आरोप नहीं है। ऐसे में उनकी मजबूरी है कि वो झूठे आरोप लगाएं। मुझे लगता है कि हिन्दुस्तान की जनता ने मेरी इस प्रतिक्रिया की सराहना की है एवं उसका समर्थन किया है।
हिन्दुस्तान: विवादस्पद मुद्दों और विदेश नीति वगैरह पर आम सहमति बनाने को प्राथमिकता देंगे या सैद्धांतिक नजरिया अपनाएंगे?
नरेन्द्र मोदी: देशहित के अधिकांश मुद्दों पर या तो सहमति के आधार पर कार्य किया जाए अथवा सभी मुख्य हितधारकों के साथ विचार कर निर्णय लिए जाएं तो परिणामों की स्वीकार्यता बढ़ती है। चर्चा, बहस, परामर्श.. ये सब लोकतंत्र में निहित हैं। मेरी और मेरी पार्टी की विचारधारा सबको साथ लेकर चलने, सबको जोड़ने की है। पहले अच्छी परंपरा थी। राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर दलगत राजनीति से ऊपर उठकर काम होता था। दस वर्षों में इसे चोट पहुंची है। प्रयास होगा कि इस परंपरा को फिर समृद्ध बनाएं।
हिन्दुस्तान: साझा सरकार की एक धारणा बन गई है कि इसका प्रधानमंत्री मजबूर प्रधानमंत्री होता है। इसे कैसे बदलेंगे? अलग-अलग विचारधाराओं के गठबंधन की सरकार चलाने की स्थिति आती है, तो आप अपना एजेंडा कहां तक चला पाएंगे?
नरेन्द्र मोदी: देखिए पहले कह चुका हूं, हम सभी को साथ लेकर चलने में यकीन रखते हैं। हम सभी साथी दलों के साथ परामर्श की स्वस्थ परंपरा का पालन करेंगे। गठबंधन धर्म क्या है एवं उसे कैसे निभाया जाता है, इसका अटल जी ने सर्वश्रेष्ठ उदाहरण दिया। हम उसी भावना से बढ़ेंगे। हमारा मानना है कि यदि नीतियां स्पष्ट एवं नीयत साफ हो तो अच्छे परिणाम मिल सकते हैं। यह भी अहम है कि साथियों के प्रति अविश्वास न हो।
हिन्दुस्तान: आपने गुजरात के लिए जो विकास मॉडल अपनाया क्या उसे उसी रूप में पूरे देश पर लागू किया जा सकता है?
नरेन्द्र मोदी: जो गुजरात में संभव, वह पूरे देश में संभव है। ..हां, जरूरत है तो बस इच्छाशक्ति एवं निर्णायक नेतृत्व की। ध्यान रहे, निवेश वहीं जाएगा जहां - प्रक्रियाएं सरल, निर्णय त्वरित हों और व्यवस्था पारदर्शी हो। भारत विशाल है एवं यहां बहुत विविधताएं हैं। हर राज्य की, हर क्षेत्र की अलग समस्याएं हैं एवं उनके समाधान भी अलग हैं। यहां तक कि गुजरात में भी हर जिले की अपनी लाक्षणिकताएं हैं। मेरा ये मानना है कि "One Shoe fits all" अप्रोच लागू नहीं की जा सकती.. एक जूते में सबके पैर कभी फिट नहीं होते। हमारा लक्ष्य एक होना चाहिए— जनता की खुशहाली परन्तु आवश्यकतानुसार नीतियां एवं कार्ययोजनाएं बनाना जरूरी है।
हिन्दुस्तान: क्या आप मानते हैं कि 2002 के गुजरात दंगों पर सुप्रीम कोर्ट से आपको जो क्लीन चिट मिली वह पर्याप्त है? अल्पसंख्यकों का दिल जीतने को इससे आगे कुछ करने की जरूरत नहीं?
नरेन्द्र मोदी: निहित स्वार्थ से प्रेरित लोगों ने दंगों के बाद खूब आरोप लगाए एवं मुझे बदनाम करने का अथक प्रयास किया। कुछ लोगों ने तो मुझे नीचा दिखाने के लिए दंगापीड़ितों के घावों को भी कुरेदने से परहेज नहीं किया। कुछ तो विदेशों में भी भारत को बदनाम करने से नहीं हिचके। जो लोग अपने देश की कानून व्यवस्था, न्याय व्यवस्था का सम्मान करते हैं, उनके लिए तो मुझे क्लीन चिट मिलना पर्याप्त है। परन्तु जिनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य मोदी को बदनाम करना, उसे नीचा दिखाना है, उन्हें तो तब भी संतोष नहीं होगा जब दुनिया की हर कोर्ट, हर संस्था क्लीन चिट दे दे। अल्पसंख्यकों का दिल जीतने के लिए यदि कुछ करने की जरूरत है तो वह है सर्वसमावेशक विकास। हमारा नारा भी है— 'सबका साथ, सबका विकास' मैं तो कहता हूं कि अल्पसंख्यकों को सेकुलरिज्म की खोखली बातें नहीं चाहिए, उन्हें भी शिक्षा, स्वास्थ्य की सुविधाएं एवं रोजगार के अवसर चाहिएं। 125 करोड़ भारतीयों का विकास ही हमारा ध्येय होगा। धर्म एवं जाति के गणित के मुताबिक वोटबैंक को पुख्ता करने के मलिन इरादे के साथ कार्य करना भाजपा की राजनैतिक संस्कृति नहीं रही है। हमारे लिए देश सर्वप्रथम है, और सारे देशवासी सर्वोपरि हैं। ..वैसे इस मामले में मैं सभी लोगों के सभी सवालों के जवाब बार-बार दे चुका हूं। फिर भी मानो एक टोली ऐसी है जिसका मीडिया पर भी इतना दबाव बन चुका है कि जब तक हर अखबार मुझसे इस बारे में सवाल न पूछे, कोई साक्षात्कार पूरा नहीं हो सकता। लगता है आपका अखबार भी इस दबाव में है।
हिन्दुस्तान: आपकी घोषणाओं से लगता है कि कर घटाएंगे, महंगाई कम करने के उपाय करेंगे, ऐसे में विकास के लिए पैसे कहां से आएंगे?
नरेन्द्र मोदी: मेरा गुजरात का 12 साल का अनुभव बताता है कि अमूमन सरकारों के पास पैसों की कमी नहीं होती। पैसे भ्रष्टाचार या घोटाले की भेंट चढ़ते हैं या वोटबैंक की राजनीति के लिए बर्बाद हो जाते हैं। यदि नीतियां सही एवं अमलीकरण व्यवस्था मजबूत हो, तो पैसे की कमी आड़े नहीं आती।
हिन्दुस्तान: पहली बार पूरे प्रचार को पार्टी से हटाकर व्यक्ति केंद्रित किया गया है, अबकी बार मोदी सरकार। इससे लोकतंत्र मजबूत होगा या कार्यकर्ताओं की पार्टी को एक व्यक्ति के हवाले से जाना जाएगा?
नरेन्द्र मोदी: इस बार का चुनाव पार्टी या व्यक्ति नहीं लड़ रहा, देश की जनता लड़ रही है। लोग भाजपा सरकार बनाने का मन बना चुके हैं। पार्टी ने मुझे नेतृत्व का अवसर दिया है। मैं अपनी पूरी शक्ति एवं क्षमता से लोगों की आशाओं को पूरा करने का प्रयास कर रहा हूं। 10-12 साल से एक व्यक्ति को इतनी गालियां दी गई, इतनी अपमानजनक भाषा उसके खिलाफ इस्तेमाल की गई। यदि मोदी को सेंटर स्टेज में लाने का श्रेय किसी को दिया जाना है या इसका दोष भी किसी को देना है तो वे हैं मेरे राजनीतिक विरोधी, जिन्होंने एक दशक में एक व्यक्ति की आलोचना में इतनी ऊर्जा लगाई। शायद इसी की प्रतिक्रिया है कि मुझे जनता का इतना स्नेह मिल रहा है।
हिन्दुस्तान: बुलेट ट्रेन चलाने के लिए अहमदाबाद से मुंबई तक के लिए ही 72 हजार करोड़ चाहिए। इतनी खर्चीली योजना के लिए पैसे कहां से आएंगे?
नरेन्द्र मोदी: यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि अब तक जिस प्रकार सरकारें चलाई गईं, उसमें मानों गरीबी एक अभिशाप नहीं बल्कि एक वरदान हो, एक आवश्यकता हो। भले वह वोटबैंक की राजनीति के लिए हो या सत्तारूढ़ दूरदृष्टि के अभाव के कारण। अटल जी की सरकार में स्वर्णिम चतुर्भुज जैसी योजनाओं को लागू कर यहां भी वर्ल्ड क्लास इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध कराने की कोशिश हुई। मेरा मानना है कि हमारा विजन बड़ा हो एवं उसके अनुरूप पुरुषार्थ करने की क्षमता तथा तैयारी हो तो हमारा देश भी प्रगति के पथ पर शीघ्रता से आगे बढ़ सकता है। रही पैसों की बात मुझे नहीं लगता कि वर्तमान समय में ऐसी योजनाओं के लिए पैसे जुटाना मुश्किल है।
हिन्दुस्तान: पार्टी के कद्दावर नेताओं की आपको लेकर तल्खी जाहिर होती रही है। क्या सत्ता में आने पर पार्टी के अंदर आप इसे चुनौती नहीं मानते?
नरेन्द्र मोदी: देश के बुद्धिजीवियों से एवं राजनीतिक विश्लेषकों से मेरी एक अपील है। कृपया विश्लेषण कीजिए कि क्या इस समय बीजेपी में जैसी इंटरनल डेमोक्रेसी है वैसी किसी और पार्टी में है? DISCUSSION IS NOT DISSENT. DISSENT IS NOT DISOBEDIENCE.... यानी चर्चा करना विरोध नहीं है और विरोध करना भी कोई अवज्ञा नहीं है। क्या हमें राजनैतिक दलों के अंदर ऐसी संस्कृति को बढ़ावा नहीं देना चाहिए, जहां सामूहिक नेतृत्व हो न कि एक परिवार की हुकूमत? क्या निर्णय प्रक्रिया में मतभेद हो, चर्चा हो ये बुरी बात है? रही बात सत्ता में आने के बाद इस तथाकथित चुनौती की, तो मेरा मानना है कि भाजपा के भीतर आंतरिक लोकतंत्र की जो स्वस्थ परंपरा रही है, वह सत्ता में आने के बाद भी बरकरार रहेगी। सामूहिक निर्णय का फलसफ़ा भाजपा के डीएनए में है। हमारी पार्टी में हरेक विषय पर लंबी चर्चा होती है, लंबा मंथन होता है और उसी के बाद निर्णय किए जाते हैं। केवल एक व्यक्ति या एक परिवार के द्वारा निर्णय लिए जाने का शाही अंदाज भाजपा की पहचान नहीं है। लिहाजा, जिसे आप तल्ख़ी और चुनौती जैसे शब्दों से बयां कर रहे हैं, दरअसल वह सामूहिक निर्णय की भाजपा की अपनी प्रक्रिया है।
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