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Friday, December 14, 2012
आर्थिक सुधार की गाड़ी यहीं नहीं रुकने वाली!कड़वी दवा का बंदोबस्त! वाशिंगटन से भारतीय आईटी सेक्टर के उछाले की उम्मीद बनी!कैश सब्सिडी लागू करके ही मानेगी सरकार!स्पेक्ट्रम नीलामी से करीब 20,000 करोड़ रुपये का राजस्व जुटाने की उम्मीद!
आर्थिक सुधार की गाड़ी यहीं नहीं रुकने वाली!कड़वी दवा का बंदोबस्त! वाशिंगटन से भारतीय आईटी सेक्टर के उछाले की उम्मीद बनी!कैश सब्सिडी लागू करके ही मानेगी सरकार!स्पेक्ट्रम नीलामी से करीब 20,000 करोड़ रुपये का राजस्व जुटाने की उम्मीद!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
आर्थिक सुधार की गाड़ी यहीं नहीं रुकने वाली!कड़वी दवा का बंदोबस्त!अर्थव्यवस्था में जान डालने के लिए सरकार फैसले पर फैसले ले रही है। बाजार की हल्की गिरावट से घबराने की जरूरत नहीं है। बाजार में गिरावट का बहुत ज्यादा खतरा नहीं है। हालांकि जनवरी से अमेरिकी फेडरल रिजर्व की 45 अरब डॉलर की बॉन्ड खरीदारी से बाजारों में बहुत पैसा आएगा और बाजार में पूंजी की कमी नहीं रहेगी। नए साल में उभरते बाजारों में काफी जोरदार तेजी देखी जाएगी। गुरुवार को हुए 4 बड़े फैसलों के बाद सरकार यहीं नहीं रुकने वाली।वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने साफ कर दिया है कि आर्थिक सुधार की गाड़ी यहीं नहीं रुकने वावाली हैं। अगले कुछ हफ्तों में सरकार और कदम उठाएंगी।पी चिदंबरम ने माना कि हाल ही उठाए गए कदमों का असर दिखने में समय लगेगा। लेकिन, आर्थिक हालात सुधारने के लिए सख्त कदम उठाने होंगे।आने वाले समय में क्रिसमस की छुट्टियों के समय एफआईआई खरीदारी कम हो जाती है और एफएंडओ एक्सपायरी के समय थोड़ी गिरावट देखी जाएगी। सीसीआई का गठन इंफ्रा और रियल एस्टेट सेक्टर के लिए सकारात्मक है। सीसीआई 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा के प्रोजेक्ट जल्द मंजूर करने पर काम करेगी। इससे रियल एस्टेट और इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में तेजी आ चुकी है। साथ ही लंबे समय से अटके परे जमीन अधिहग्रहण बिल को मंजूरी मिलने से भी रियल्टी सेक्टर को तेजी मिल सकती है। रियल एस्टेट सेक्टर में नई खरीदारी की जा सकती है।महंगाई दर के बढ़ने के चलते 18 दिसंबर को आरबीआई के दरें घटाने की उम्मीद बहुत कम हो गई है। जनवरी या मार्च में प्रमुख दरों में कटौती हो सकती है।
वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण उत्पन्न कठिन परिस्थितियों, राजकोषीय घाटे और महंगाई को चिन्ता का विषय बताते हुए वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने शुक्रवार को कहा कि अर्थव्यवस्था की बेहतरी के लिए कुछ कड़वी दवाएं जरूरी हैं।
कैश सब्सिडी लागू करके ही मानेगी सरकार!सरकार मार्च के अंत में होने वाली दूसरे दौर की स्पेक्ट्रम नीलामी से करीब 20,000 करोड़ रुपये का राजस्व जुटाने की उम्मीद कर रही है। दूरसंचार विभाग में सचिव आर चंद्रशेखर ने फिक्की द्वारा आयोजित दूरसंचार सम्मेलन में आज कहा कि स्पेक्ट्रम की नीलामी यदि संशोधित आधार मूल्य पर होती है तब भी हम 20,000 करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद कर रहे हैं।इस बीच वाशिंगटन से भारतीय आईटी सेक्टर के उछाले की उम्मीद बनी है।दूसरी ओर,शुरुआती उत्साह के बाद देसी उद्योग जगत को अब एहसास हो रहा है कि प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण, पुनस्र्थापन एवं पुनर्वास विधेयक से उसकी मुश्किलें आसान नहीं होने वाली हैं। इसके उलट नए विधेयक से नई परियोजनाओं पर नकारात्मक असर पड़ेगा और भूमि अधिग्रहण की लागत में 150 फीसदी इजाफा हो सकता है। जाहिर है लागत बढऩे से रियल एस्टेट टाउनशिप और हवाई अड्डा परियोजनाएं महंगी हो जाएंगी।किसी भी परियोजना की कुल लागत का 20 से 25 फीसदी खर्च भूमि अधिग्रहण पर होता है। लेकिन सड़क, रियल्टी और हवाई अड्डा जैसी बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में भूमि अधिग्रहण व्यय की खासी हिस्सेदारी होती है। महिंद्रा ऐंड महिंद्रा के निदेशक अरुण नंदा ने कहा कि नए विधेयक के बाद भूमि अधिग्रहण की लागत में 100 से 150 फीसदी तक इजाफा हो जाएगा।
लगातार हो रहे फैसलों ने सरकार ने नया जोश भर दिया है और अब उन्हें अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत दिखने लगे हैं। प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार सी रंगराजन के मुताबिक रिफॉर्म से अर्थव्यवस्था का सेंटिमेंट बदला है। और इस साल अर्थव्यवस्था की ग्रोथ 6 फीसदी के करीब रहने की उम्मीद है।सी रंगराजन के मुताबिक अक्टूबर-मार्च में अर्थव्यवस्था अच्छा प्रदर्शन करेगी। मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर अक्टूबर-मार्च के बीच 7 फीसदी की दर से बढ़ेगा। उनके मुताबिक वित्त वर्ष 2013 में जीडीपी ग्रोथ 5.5-6 फीसदी रहने का अनुमान है।
मुख्य आर्थिक सलाहकार रघुराम राजन का कहना है कि सरकार ने निवेश का माहौल ठीक करने के लिए काफी काम कर दिया है, अब इंडस्ट्री को आगे आकर निवेश करना चाहिए। रघुराम राजन ने कहा कि घाटा कम करने के लिए सरकार ठोस कदम उठा रही है।
अमेरिकी सरकार कुल 90 करोड़ डॉलर के बड़े आईटी प्रोजेक्ट लॉन्च करने वाली है। माना जा रहा है कि अमेरिकी सरकार की ओर से 4 आईटी प्रोजेक्ट लॉन्च करने की योजना है। अमेरिकी सरकार के ज्यादातर आईटी प्रोजेक्ट घरेलू बाजार के लिए ही रहने वाले हैं।सूत्रों का कहना है कि अमेरिकी सरकार की तरफ से हेल्थकेयर सेगमेंट में आईटी इंफ्रा के लिए 40 करोड़ डॉलर के ऑर्डर के लिए बोली मंगाई जा सकती हैं। ऑनलाइन टैक्स सिस्टम के लिए 20 करोड़ डॉलर के ऑर्डर के लिए बोली मंगाई जा सकती हैं। फार्मा सेगमेंट के तहत एप्लिकेशन डेवलपमेंट सर्विसेज के लिए 10 करोड़ डॉलर का ऑर्डर दिया जा सकता है।सूत्रों की मानें तो अमेरिकी सरकार ने डिफेंस के लिए 3 साल में 20 करोड़ डॉलर का ऑर्डर देने की योजना बनाई है। डिफेंस ऑर्डर की अवधि बढ़ाई भी जा सकती है। टीसीएस, इंफोसिस, एचसीएल टेक, महिंद्रा सत्यम, माइंडट्री जैसी आईटी कंपनियों अमेरिकी सरकार के ठेकों को हासिल करने के लिए बोलियां लगा सकती हैं।हेडस्ट्रांग (जेनपैक्ट), आईगेट सॉल्यूशंस और एम्फैसिस के भी बोली लगाने की उम्मीद है। कई बडी़ विदेशी कंपनियों के साथ कैपजेमिनी, आईबीएम, एक्सेंचर और ईएमसी जैसी आईटी कंपनियां होड़ में शामिल हो सकती हैं। हालांकि पॉलिसी के मुताबिक इस संदर्भ में कोई भी आईटी कंपनियां टिप्पणी नहीं कर सकती हैं।
कैश सब्सिडी योजना लागू करने के लिए कांग्रेस और सरकार की ओर से सभी तैयारियां पूरी हो चुकी है। इसे लेकर आज कांग्रेस की बैठक भी हुई। बैठक के बाद हुई प्रेस कांफ्रेंस में केंद्रीय मंत्री जयराम ने जानकारी दी कि राहुल गांधी और गृह मंत्री पी चिदंबरम भी बैठक में शामिल हुए। उन्होंने कहा कि करीब ढाई घंटे तक चली बैठक में इस योजना के कार्यान्वयन को लेकर विस्तार से बात हुई।जयराम ने कहा कि आधार कार्ड जीवन का सबसे जरूरी दस्तावेज होगा। इसी के आधार पर कैश सब्सिडी दी जाएगी। ये योजना शुरुआती चरणों में 51 जिलों में लागू होनी है। जयराम ने बताया कि इसे लेकर राहुल ने 51 जिलों के जिलाध्यक्षों के साथ भी मुलाकात की। आपको बता दें कि पीएमओ पहले ही निर्देश जारी कर चुका है कि कैश सब्सिडी का काम युद्धस्तर पर शुरु किआ जाए।
साल 2012-13 के लिए अनुदान की अनुपूरक मांगों पर लोकसभा में हुई चर्चा का जवाब देते हुए चिदंबरम ने कहा कि राजकोषीय घाटा, महंगाई सरकार के लिए चिंता का विषय है और इसे नियंत्रित करने के लिए ठोस कदम उठाये जा रहे हैं।उन्होंने कहा कि अभी 32,119.50 करोड़ रुपये की अनुदान की अनुपूरक मांगें पेश की गई हैं उसमें बड़ा हिस्सा तेल विपणन कंपनियों और एयर इंडिया के नुकसान से जुड़ा हुआ है।
बीजेपी सदस्यों के वॉकआउट के बीच सदन ने अनुपूरक मांगों को ध्वनिमत से मंजूरी प्रदान कर दी। चिदंबरम ने कहा कि राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाये गए हैं। हालांकि दुनिया में वित्तीय संकट के कारण स्थिति थोड़ी खराब हुई। हमें प्रोत्साहन पैकेज देने पड़े।आम लोगों से जुड़ी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को आगे बढाने और समाज के कमजोर वर्ग के लोगों के हितों को ध्यान में रखने के लिए अतिरिक्त खर्च करना पड़ा।
उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ, अमेरिका, जापान, ब्राजील आदि देशों में विकास दर ठहर गई है। केवल चीन और इंडोनेशिया की विकास दर भारत से अधिक है। हमारे निर्यात में गिरावट आई है, अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है।
वित्तमंत्री ने कहा, 'लेकिन हमने जो सुधार के कदम उठाये हैं, उससे उम्मीद है कि जब मैं (अगला) बजट पेश करूंगा तो भारत का बेहतर चित्र पेश होगा।' चिदंबरम ने कहा कि तेल विपणन कंपनियां नुकसान का सामना कर रही हैं और अपने उत्पाद की लागत नहीं वसूल कर पा रही हैं। उन्होंने कहा कि इसी वजह से हम तेल विपणन कंपनियों को 28 हजार 500 करोड़ रुपये प्रदान कर हैं।उन्होंने कहा कि घरेलू रसोई गैस, कैरोसन तेल पर प्रदान की जाने वाली सब्सिडी के बारे में कुछ चिंताएं हैं।
इस पर बहस चल रही है और इनका ध्यान रखा जायेगा। वित्त मंत्री ने कहा कि एयर इंडिया का विषय एक गंभीर मुद्दा है।
इससे संबंधित मंत्री निपट रहे हैं। एयर इंडिया के कर्मचारियों और प्रबंधन को इसे सुलझाना है।
उन्होंने कहा कि दुनिया के कई देशों में एयरलाइनें अच्छा काम कर रही हैं. अगर एयर इंडिया की स्थिति ठीक नहीं होगी तो विमान किराया बढेगा। चिदंबरम ने कहा कि पेट्रोल पर सब्सिडी नहीं प्रदान की जाती है।
कई देशों के संबंध में पेट्रोल की कीमतों में असमानता का कारण उस पर लगने वाला कर है। इस पर 14 से 15 प्रतिशत कर लगता है। इसके अलावा सभी राज्य सरकारें भी कर लगाती हैं जो उनकी आय का स्रोत है। उन्होंने कहा कि सरकार स्वच्छ पेयजल और मिड डे मिल योजना पर पूरा ध्यान दे रही है।
1999.2004 के बीच (यूपीए के कार्यकाल) स्वच्छ पेयजल के मद में 10,900 करोड़ रुपये आवंटित किये गए जबकि 2004 से 2009 के बीच 25,924 करोड़ रुपये और 2009 से 2013 के बीच 43,700 करोड़ रुपये आवंटित किये गए हैं।
विपक्ष के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए चिदंबरम ने कहा, 'कोई भी यह नहीं कह सकता है कि हम काम नहीं कर रहे हैं।' उन्होंने हालांकि कहा कि देश के कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहां भूजल में आर्सेनिक एवं अन्य तरह का प्रदूषण है। लेकिन इस दिशा में राज्य सरकारों को अधिक काम करने की जरूरत है।
केंद्रीय कैबिनेट ने गुरुवार को तीन सर्किलों- दिल्ली, मुंबई और कर्नाटक में संशोधित आधार मूल्य पर 1,800 मेगाहट्ïर्ज बैंड में स्पेक्ट्रम की दोबारा नीलामी करने की मंजूरी दे दी है। इसके तहत नवंबर नीलामी के मुकाबले आरक्षित मूल्य 30 फीसदी कम रखने की बात कही गई है। नवंबर में आरक्षित मूल्य अधिक होने के कारण इन सर्किलों में एक भी बोलीदाता सामने नहीं आया था।
सरकार ने दिल्ली, मुंबई और कोलकाता सर्किल में 900 मेगाहट्ïर्ज बैंड के स्पेक्ट्रम की भी नीलामी करने का निर्णय लिया है। इसके लिए आधार मूल्य 1,800 मेगाहट्ïर्ज बैंड के स्पेक्ट्रम के आरक्षित मूल्य (या नीलामी से निर्धारित मूल्य) का दोगुना होगा। इन दोनों बैंडों के स्पेक्ट्रम की नीलामी मार्च 2013 के अंत तक साथ-साथ हो सकती है। दिल्ली, मुंबई और कोलकाता सर्किल में ऑपरेटरों के 20 वर्ष वाले लाइसेंसों का नवीनीकरण भी 2013 में ही होना है।
सरकार ने नवंबर में हुई नीलामी के दौरान 1,800 मेगाहट्र्ज बैंड के तहत दिल्ली में प्रत्येक 1.25 मेगाहट्ïर्ज ब्लॉक के लिए आरक्षित मूल्य 693.06 करोड़ रुपये रखा था। जबकि मुंबई में आधार मूल्य 678.45 करोड़ रुपये और कर्नाटक में 330.12 करोड़ रुपये रखा गया था। कोलकाता के लिए 900 मेगाहट्ïर्ज बैंड के लिए आधार मूल्य दोगुना यानी 113.72 करोड़ रुपये (1.25 मेगाहट्ïर्ज के स्लॉट के लिए) हो सकता है जो शहर में नीलामी द्वारा निर्धारित मूल्य है। नवंबर में 1,800 मेगाहट्ïर्ज बैंड के स्पेक्ट्रम नीलामी से सरकार महज 9,407.64 करोड़ रुपये ही जुटा पाई थी।
रीफार्मिंग नीति के तहत सरकार ने 900 मेगाहट्ïर्ज बैंड के स्पेक्ट्रम पहले से ही हासिल कर चुके अवलंबित ऑपरेटरों को केवल 2.5 मेगाहट्ïर्ज स्पेक्ट्रम बरकरार रखने की ही अनुमति दी है। शेष स्पेक्ट्रम के लिए उन्हें नीलामी में भाग लेना होगा। अवलंबित ऑपरेटरों को 1,800 मेगाहट्ïर्ज बैंड के तहत भी 2.5 मेगाहट्ïर्ज स्पेक्ट्रम बरकरार रखने की अनुमति दी गई है। लेकिन उन्हें बाजार द्वारा निर्धारित मूल्य का भुगतान करना होगा। बहरहाल, सरकार ने सीडीएमए सेवाओं के लिए 800 मेगाहट्ïर्ज बैंड के स्पेक्ट्रम के लिए अभी कोई निर्णय नहीं लिया है। नवंबर नीलामी में इसके लिए एक भी बोलीदाता सामने नहीं आया था।
जमीन अधिग्रहण बिल को मंजूरी बिल को कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है। लेकिन अब प्राइवेट सेक्टर के लिए जमीन लेना मुश्किल हो जाएगा क्योंकि इसके बाद निजी प्रोजेक्ट्स के लिए 80 फीसदी जमीन मालिकों की मंजूरी जरूरी होगा। साथ ही जनहित के प्रोजेक्ट्स के लिए 70 फीसदी जमीन मालिकों की मंजूरी जरूरी होगी।
फीडबैक इंफ्रा के चेयरमैन विनायक चैटर्जी का कहना है कि जमीन अधिग्रहण बिल के कैबिनेट से पास होने के बाद भी अड़चने बाकी हैं। इस बिल का संसद से पारित होना मुश्किल है।
शोभा डेवलपर्स के एमडी जे सी शर्मा का कहना है कि जमीन अधिग्रहण बिल के पीछे सरकार की मंशा अच्छी है। लेकिन इसके बाद डेवलपरों का खर्च काफी बढ़ जाएगा।
कंपनियां किसानों से जमीन खरीदती हैं और इस नए नियम के बाद जमीन का इंतजाम करना काफी मुश्किल हो जाएगा। इसके बाद जमीन खरीदने में लागत भी ज्यादा होगी और समय भी ज्यादा लगेगा। अगर सरकार देश की 8 फीसदी की जीडीपी ग्रोथ हासिल करना चाहती है तो इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर को इस तरह की आने वाली परेशानियों से बचाने के कुछ उपाय करने होंगे।
जे सी शर्मा के मुताबिक इस फैसले के बाद रियल एस्टेट प्रोजेक्ट का खर्च बढ़ेगा जिसका भार कंपनियां ग्राहकों पर डालेंगी।
महिंद्रा एंड महिंद्रा के डायरेक्टर अरुण नंदा का कहना है कि जमीन अधिग्रहण बिल पास होने से डेवलपरों का खर्च बढ़ेगा। निजी प्रोजेक्ट के लिए 80 फीसदी जमीन मालिकों की अनुमति लेना लगभग नामुमकिन हो सकता है।
अरूण नंदा के मुताबिक जमीन अधिग्रहण बिल से इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर पर असर पडे़गा। हालांकि ऑटो कंपनियों पर इसका असर नहीं पड़ेगा। इसके बाद जमीन अधिग्रहण की लागत 50 फीसदी तक बढ़ जाएगी। साथ ही पुनर्वास लागत भी बढ़ेगी।
अरुण नंदा के मुताबिक जमीन अधिग्रहण बिल के जरिए सरकार किसानों के हित तो सुरक्षित कर रही है लेकिन रियल्टी सेक्टर के हितों की अनदेखी की गई है। निजी प्रोजेक्ट के लिए 80 फीसदी जमीन मालिकों की मंजूरी के बजाए 2 तिहाई जमीन मालिकों की मंजूरी का आंकड़ा शायद ज्यादा सही होता।
कोल्टे पाटिल के सीईओ सुजय कलेले का कहना है कि जमीन अधिग्रहण बिल आने से सरकार की ओर से बड़े प्रोजेक्ट पर स्पष्टता आ गई है। इसके बाद जमीन खरीदने को लेकर कोई संशय नहीं रहेगा।
कोल्टे पाटिल को फिलहाल और जमीन खरीदने की जरूरत नहीं है। कंपनी के पास 2.5 करोड़ वर्गफुट जमीन मौजूद है। हर सला कंपनी 25-40 लाख वर्गफुट जमीन और खरीदती है। इस साल कंपनी ये जमीन खरीद चुकी है।
जमीन अधिग्रहण बिल के पारित होने से रियल्टी कंपनियों का खर्च बढ़ेगा। इस ग्राहकों और डेवलपरों को मिलकर उठाना होगा।
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