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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Sunday, December 2, 2012

भाजपा ने मोदी के प्रधानमंत्रित्व पर मुहर लगा दी​, सुधार होंगे तेज अब और धार्मिक राष्ट्रवाद ही देश की नियति!

भाजपा ने मोदी के प्रधानमंत्रित्व पर मुहर लगा दी​, सुधार होंगे तेज अब और धार्मिक राष्ट्रवाद ही देश की नियति!

वामपंथी जो राष्ट्रपति चुनाव के वक्त से काग्रेस के साथ फिर गठबंधन के लिए मरे जारहे हैं, उन्हें साम्प्रदायिक शक्तियों के मुकाबले कांग्रेस का साथ देने का बहाना मिल जायेगा, जिसके लिए बंगाल माकपा का जोर ममता के साथ कांग्रेस के अलगाव के बाद बहुत बढञ गया है। इसके साथ ही अंबेडकरवादियों और समाजवादियों के कांग्रेस के साथ रहने की मजबूरी बताने में सहूलियत हो जायेगी।दूसरी जो बड़ी संभावना है कि  सत्ता के लिे कारपोरेट और बाजार को खुश करने की गरज से एफडीआई पर युद्धविराम के बाद अब संघी खेमा सुधार समर्थक रवैय्या अपनायेगा तो​ ​ दूसरी ओर, भाजपा को रोकने के लिए वामपंथी सहमति भी कांग्रेस के साथ नत्थी हो जायेगी। इससे संसद के चालू सत्र में वित्तीय विधेयकों को पास कराने में चिदंबरम को भारी सुविधा होगी, जो अब मनमोहन के बदले बाजार और कारपोरेट के प्रधानमंत्रित्व के सबसे प्रबल उम्मीदवार हैं क्योंकि समीकरणों के मुताबिक भाजपा अभी सत्ता से बहुत दूर है। लब्बोलुआब कुल मिलाकर यह है कि जनसंहार की नीतियां जारी रहेंगी और जारी रहेगा अश्वमेध अभियान भी। इस परिदृश्य में धार्मिक राष्ट्रवाद ही इस देश की नियति है।

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
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​भाजपा के पास कांग्रेस के उग्रतम हिंदुत्व के मुकाबले के लिए  और इससे बढ़कर भाजपा और संघ परिवार में मचे घमासान से निपटने के​ ​ लिए धर्मनिरपेक्षता और तथाकथित वैविध्य और समरसता का मुलम्मा उतार फेंककर नरेद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व की दावेदारी पर मुहर लगाने के अलावा कोई दूसरा चारा ही नहीं बचा था।पिछले लोकसभा चुनाव में हिंदुत्ववादी शक्तियों के कांग्रेस के पक्ष में ध्रुवीकरण के अनुभव को देखते​​ हुए संघियों की अपनी पुरानी आक्रामक धार्मिक राष्ट्रवाद की राह पकड़ना बहुत स्वाभाविक है।भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज के उस बयान का समर्थन किया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री पद के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी योग्य हैं। पार्टी ने मोदी को सबसे लोकप्रिय और सफल मुख्यमंत्री बताया है।

राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, 'गुजरात के मुख्यमंत्री बहुत सफल और लोकप्रिय हैं। हम निश्चित तौर पर उनकी प्रशंसा करेंगे।' जेटली ने लगे हाथ कांग्रेस को भी आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को मोदी फोबिया हो गया है इसलिए वह उन पर हमले करती रहती है।जेटली ने हालांकि सुषमा की तरह सीधे तौर पर मोदी को पीएम पद का उम्‍मीदवार तो नहीं बताया लेकिन एक सवाल के जवाब में उन्‍होंने इतना जरूर कहा, 'मोदी बेहद सफल लोकप्रिय मुख्‍यमंत्री हैं। बीजेपी में उनका आकर्षण है और पार्टी को उनको आगे रखने में फायदा होता है। चूंकि मोदी हमारे पार्टी के नेता है, तो हम उनकी तारीफ नहीं करेंगे तो कौन करेगा?'

बीजेपी में पीएम पद की उम्‍मीदवारी को लेकर जारी बयानबाजी के बीच कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने चुटकी ली है। उन्‍होंने सवालिया लहजे में कहा, 'क्‍या आडवाणी ने पीएम बनने की उम्‍मीद छोड़ दी है।'

सुषमा ने शनिवार को वड़ोदरा में कहा था कि मोदी निश्चित तौर पर इसके (प्रधानमंत्री) लिए योग्य हैं और इसमें कोई संदेह नहीं है। इस बारे में विस्तार से बताने के लिए पूछे जाने पर उन्होंने कहा, 'मोदी काबिल और योग्य दोनों हैं। उनकी प्रशंसा करने में कुछ भी गलत नहीं है।'जहां कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में पीएम पद के दावेदारों के नाम उछल रहे हैं तो उधर बीजेपी में भी पीएम पद के उम्मीदवार को लेकर धुंआ काफी दिनों से उठ रहा है। बीजेपी नेताओं की पूरी पलटन चुनाव प्रचार में कूद पड़ी है। कांग्रेस पर कारपेट बाम्बिंग हो रही है। इन सबके बीच दिल्ली पर मोदी के दावे को सुषमा ने समर्थन की हवा दे दी है। वडोदरा में सुषमा ने कहा-मोदी प्रधानमंत्री बनने के काबिल हैं।सुषमा स्वराज साफगोई से नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद की काबलियत का सर्टिफिकेट दे रही हैं। सवाल ये है कि सुषमा के इस बयान का क्या मतलब निकाला जाए। क्या सुषमा स्वराज मोदी को पीएम बनाने पर वाकई सहमत हैं? क्या बीजेपी में मोदी के नाम पर ध्रुवीकरण होने लगा है? या महज एक रस्मी और औपचारिक बयान है?जाहिर है कि यह न सुषमा और  न जेटली के निजी विचार है, इसके पीछे संघ मुख्यालय की सोची समझी रणनीति है। जिसकी अवमानना न सुषमा कर सकती हैं और न जेटली कोई जोखिम उठा सकते हैं।जब लौह पुरुष लालकृष्म आडवानी तक ने प्रधानमंत्रित्व के सपने को तिलांजलि दे दी , तब सुषमा और जेटली की क्या बिसात मालूम हो कि मृत्यु से पहले बालासाहेब देवरस ने सुषमा में बेहतरीन प्रधानमंत्री बनने की संबावना बतायी थी। जाहिर कि संघ परिवार में इस मसले पर विचार तक नहीं हुआ। सुषमा के पास आत्मसमर्पण के अलावा कोई उपाय बचता है क्या?

इसके साथ ही सत्ता समीकरण में घनघोर बदलाव के आसार नजर आते हैं।वामपंथी जो राष्ट्रपति चुनाव के वक्त से काग्रेस के साथ फिर गठबंधन के लिए मरे जारहे हैं, उन्हें साम्प्रदायिक शक्तियों के मुकाबले कांग्रेस का साथ देने का बहाना मिल जायेगा, जिसके लिए बंगाल माकपा का जोर ममता के साथ कांग्रेस के अलगाव के बाद बहुत बढ़ गया है। इसके साथ ही अंबेडकरवादियों और समाजवादियों के कांग्रेस के साथ रहने की मजबूरी बताने में सहूलियत हो जायेगी।दूसरी जो बड़ी संभावना है कि  सत्ता के लिए कारपोरेट और बाजार को खुश करने की गरज से एफडीआई पर युद्धविराम के बाद अब संघी खेमा सुधार समर्थक रवैय्या अपनायेगा तो​ ​ दूसरी ओर, भाजपा को रोकने के लिए वामपंथी सहमति भी कांग्रेस के साथ नत्थी हो जायेगी। इससे संसद के चालू सत्र में वित्तीय विधेयकों को पास कराने में चिदंबरम को भारी सुविधा होगी, जो अब मनमोहन के बदले बाजार और कारपोरेट के प्रधानमंत्रित्व के सबसे प्रबल उम्मीदवार हैं क्योंकि समीकरणों के मुताबिक भाजपा अभी सत्ता से बहुत दूर है। लब्बोलुआब कुल मिलाकर यह है कि जनसंहार की नीतियां जारी रहेंगी और जारी रहेगा अश्वमेध अभियान भी। इस परिदृश्य में धार्मिक राष्ट्रवाद ही इस देश की नियति है।डेढ़ साल पहले भोपाल गैस त्रासदी मामले में अदालत का फैसला आने के बाद केन्द्र और मध्य प्रदेश की सरकार ने वादा किया कि किडनी और कैंसर के गंभीर मरीजों को दो-दो लाख रुपये मिलेंगे। मगर त्रासदी के 28 साल बाद भी हजारों मरीज मुआवजे से महरूम हैं। आपको बता दें कि 3 दिसंबर 1984 को भोपाल यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से जहरीली गैस निकलने से 15 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी, जबकि हजारों लोग गंभीर बीमारियों की चपेट में आ गए।देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर में लगातार आ रही गिरावट के बीच कारोबारी जगत को अभी हालात और बिगडने की चिंता सताने लगी है।

गुजरात विधानसभा चुनावों में बीजेपी के तीन दिग्गज लालकृष्ण आडवाणी, अरुण जेटली और नितिन गडकरी आज मोदी के पक्ष में प्रचार करने राज्य में पहुंचे हैं। लेकिन कांग्रेस के लिए एक बुरी खबर है। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से टिकट न मिलने से नाराज नरहरि अमीन पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम सकते हैं। इस मामले में केंद्र सरकार में मंत्री राजीव शुक्ला दखल दे रहे हैं। इस बीच, खबर है कि कांग्रेस 18, 19 और 20 जनवरी को जयपुर में मंथन करेगी।

दुनिया की मशहूर पत्रिका द इकोनॉमिस्ट ने देश के मौजूदा वित्त मंत्री पी चिदंबरम को 2014 में कांग्रेस का प्रधानमंत्री पद का प्रबल दावेदार बताया है। पत्रिका के मुताबिक पिछले दिनों सरकार को तमाम मुसीबतों से निकालने में चिदंबरम की बड़ी भूमिका रही है। पत्रिका के मुताबिक जब से चिदंबरम पिछले साल अगस्त में वित्त मंत्रालय में लौटे हैं तब से उनकी किस्मत चमक गई है।पत्रिका ने दो बड़े राजनैतिक घटनाक्रम का हवाला दिया है। पहला जब ममता बनर्जी ने एफडीआई के मुद्दे पर समर्थन वापस लिया तब चिदंबरम ने एफडीआई के फायदों को बाकी पार्टियों को बताया और डीएमके जैसे नाराज सहयोगी को मनाने में कामयाब रहे। दूसरा पिछले महीने 27 नवंबर को वित्त मंत्री ने कैश सब्सिडी योजना का ऐलान किया।जानकारों का मानना है कि कैश सब्सिडी योजना 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए तुरूप का पत्ता साबित हो सकती है। हालंकि ये योजना बीजेपी सरकार की सोच थी लेकिन चिदंबरम ने इसे लागू किया। पत्रिका का ये भी मानना है कि पिछले दिनों चिदंबरम ने जिस तरह आधार कार्ड का समर्थन किया और वो भी उनके हक में जाता है।

चिदंबरम आधार कार्ड का विरोध करते थे। और तो और पिछले दिनों उन्होंने कैश सब्सिडी योजना के ऐलान के वक्त हिंदी में भी भाषण दिया। पत्रिका का ये कहना है कि चिदंबरम हिंदी में जिस तरह संबोधित कर रहे हैं उसका मकसद उत्तर भारतियों के दिल में जगह बनानी है।पत्रिका का मानना है कि इस वक्त चिदंबरम कांग्रेस के सबसे ताकतवर मंत्री हैं। क्योंकि उनको टक्कर देने वाले प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति भवन पहुंच चुके हैं। और कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी फिलहाल कोई बड़ी जिम्मेदारी उठाने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में चिदंबरम ही पीएम पद के प्रबल दावेदार नजर आ रहे हैं।वहीं कांग्रेस प्रवक्ता राशिद अल्वी ने कहा कि वो इस मामले में टिप्पणी नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि वो बस इतना ही कहेंगे कि प्रधानमंत्री कांग्रेस पार्टी ही तय करेगी, कोई दूसरी पार्टी तय नहीं करेगी। कांग्रेस पार्टी 2014 के चुनाव के लिए पूरी तरह से तैयार है। 2014 में सरकारी बनेगी और जो नए सांसद चुन के आएंगे उनके फैसले से देश का प्रधानमंत्री पार्टी हाईकमान तय करेंगी। जबकि कांग्रेस नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी ने इन खबरों का खंडन किया है।

सरकार ने आधार कार्यक्रम के सहारे 1 जनवरी से लाभार्थी को सीधे नकदी हस्तांतरण करने की महत्त्वाकांक्षी योजना बनाई है। राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान (एनआईपीएफपी) के विश्लेषण के अनुसार इस योजना से सरकार को 52.85 फीसदी की दर से फायदा हो सकता है।

एनआईपीएफपी के अनुमान के मुताबिक यूनिक आइडेंटिटी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (यूआईडीएआई) के नेतृत्व वाली पहल को सरकार के मौजूदा कार्यक्रमों-सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस), महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा), उर्वरक और रसोई गैस (एलपीजी) सब्सिडी, सर्व शिक्षा अभियान और मध्याह्न भोजन (मिड डे मिल), इंदिरा आवास योजना, जननी सुरक्षा योजना, अधिकृत सामाजिक स्वास्थ्य गतिविधियां, एकीकृत बाल विकास योजना, पेंशन और छात्रवृत्ति योजना में शामिल करने की लागत करीब 37,186 करोड़ रुपये आ सकती है। विश्लेषण से पता चलता है कि 2012-13 में आधार की लागत 2,265 करोड़ रुपये है जो 2020-21 में बढ़कर 4,835 करोड़ रुपये हो जाएगी। इसी दौरान इस योजना से लाभ मौजूदा 425 करोड़ रुपये से बढ़कर 2021 में 25,100 करोड़ रुपये हो जाएगी।

एनआईपीएफपी के मुताबिक सरकारी योजनाओं की राशि पूरी तरह लाभार्थी तक नहीं पहुंच पाती है लेकिन इस तरह की योजना से इस खामी को भी दूर किया जा सकता है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में 8.3 फीसदी, मनरेगा में 5 फीसदी और उर्वरक एवं एलपीजी सब्सिडी में 7 से 10 फीसदी राशि लाभार्थी तक नहीं पहुंच पाता है।

हालांकि इन अनुमानों पर पूरी तरह यकीन करना अभी जल्दबाजी हो सकती है क्योंकि सरकार नकदी हस्तांतरण योजना को टुकड़ों-टुकड़ों में लागू करने जा रही है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ओर से मंजूर प्रारूप के मुताबिक 1 जनवरी से आधार के जरिये 51 जिलों में 29 योजनाओं के लाभार्थियों को सीधे नकदी हस्तांतरण शुरू किया जाएगा, 1 अप्रैल 2013 तक 17 राज्यों में यह योजना शुरू की जाएगी जबकि 1 अप्रैल 2014 से इसे पूरे देश में लागू करने का लक्ष्य है।

विकास पुरुष होने का दावा करने वाले गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार पर घोटाले के आरोप लगे हैं। समाचार पत्रिका तहलका की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मोदी सरकार ने गुजरातियों को 20 हजार करोड़ रुपये का चूना लगाया है। रिपोर्ट के मुताबिक नरेंद्र मोदी की सरकार ने साल 2003 में कृष्णा गोदावरी बेसिन में गैस ब्लॉक की दस प्रतिशत हिस्सेदारी एक ऐसी कंपनी को बेच दी जो डील के कुछ दिन पहले ही मात्र 64 डॉलर की पूंजी के साथ बनी थी। रिपोर्ट के मुताबिक इस कागजी कंपनी पर गुजरात सरकार अब तक 20 हजार करोड़ लुटा चुकी है।

जिस समय जियोग्लोबल नाम की कंपनी और गुजरात सरकार के बीच सौदा हुआ था उस वक्त गुजरात और केंद्र दोनों में भाजपा की सरकार थी। इस सौदे का सबसे चौंकाने वाला पहलू यह है कि दस प्रतिशत हिस्सेदारी के लिए बारबाडोस में बनी इस गुमनाम कंपनी ने सरकार को एक पैसा भी नहीं चुकाया। यही नहीं गैस की खोज का खर्चा भी गुजरात सरकार की सार्वजनिक कंपनी गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कार्पोरेशन ने उठाया। गुजरात सरकार के साथ सौदा करने के चंद दिनों के भीतर ही जियोग्लबोल ने अपनी हिस्सेदारी  का 50 प्रतिशत मारिशस में बनी एक अन्य कंपनी को बेच दिया।

उद्योग एवं वाणिज्य संगठन एसोचैम ने भारतीय कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों के बीच कराए गए एक सर्वेक्षण पर आधारित रिपोर्ट में कहा है कि चालू वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में हालात बेहतर हो सकते हैं, लेकिन उसके पहले घरेलू और वैश्विक वजहों से अर्थव्यवस्था की मुश्किलें काफी बढ सकती हैं।

सर्वेक्षण में शामिल 76 फीसदी मुख्य कार्यकारी अधिकारियों और मुख्य वित्त अधिकारियों ने कहा कि ऊंची ब्याज दरों, बढ़ती महंगाई और कई यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्था में गिरावट का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पडे़गा। उनका मानना है कि ऐसा होने पर भारतीय अर्थव्यवस्था के हालात और भी खराब हो सकते हैं।

लेकिन चालू वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में निर्यात बढने से हालात कुछ संभलने की उम्मीद भी है। खास तौर पर मल्टी ब्रांड खुदरा कारोबार में विदेशी निवेश को मंजूरी देने के फैसले पर संसद में चर्चा कराने के लिए सहमति बन जाने से इस संवेदनशील मुद्दे पर आगे बढने की उम्मीद जगी है।

इसके बावजूद इन कंपनी अधिकारियों का कहना है कि इस वित्त वर्ष में भारत की आर्थिक विकास दर दशक के निम्नतम स्तर पांच से 5.5 फीसदी पर ही रहेगी। एसोचैम के अध्यक्ष राजकुमार धूत ने कहा कि अगले छह-सात महीनों में हालात बेहतर होने के संकेत दिख रहे हैं।

मल्टी ब्रांड खुदरा कारोबार पर कोई सहमति बन जाने से देश की अर्थव्यवस्था को फायदा होगा। इसके अलावा एशियाई देशों को निर्यात में बढ़ोतरी होने से भी मदद मिलेगी।

देश में 2012-13 में प्रमुख फसलों के उत्पादन में 2.8 प्रतिशत की गिरावट आने का अनुमान है। आर्थिक शोध संस्थान सेंटर फॉर मानिटरिंग इंडियन इकनामी (सीएमआईई) ने कहा है कि बुवाई क्षेत्र में कमी से प्रमुख फसलों का उत्पादन घट सकता है।

सीएमआईई की मासिक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2012-13 में प्रमुख फसलों का उत्पादन 2.8 प्रतिशत घटने का अनुमान है। पहले सीएमआईई ने उत्पादन में 2.3 प्रतिशत की गिरावट आने का अनुमान लगाया था।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अक्टूबर में खरीफ बुवाई समाप्त होने के साथ बुवाई क्षेत्रफल उम्मीद से कम रहा है। 2012-13 में धान उत्पादन 3.4 प्रतिशत घटने का अनुमान है। 2 नवंबर तक इसका बुवाई क्षेत्र 4.1 प्रतिशत घटकर 375 लाख हेक्टेयर रह गया है।

सीएमआईई ने कहा है कि चूंकि बुवाई ने रफ्तार नहीं पकड़ी ऐसे में धान उत्पादन घटकर 10.08 करोड़ टन रहने का अनुमान है। इसी तरह गेहूं का उत्पादन 0.1 प्रतिशत घटकर 9.38 करोड़ टन रहने का अनुमान रिपोर्ट में लगाया गया है।

इसमें कहा गया है कि 2012-13 में मोटे अनाज का उत्पादन 9.8 प्रतिशत घटकर 3.76 करोड़ टन रहेगा। इसमें सबसे ज्यादा 28.4 फीसदी की गिरावट बाजरा के उत्पादन में आएगी। वहीं दलहन उत्पादन 1.5 प्रतिशत घटकर 1.69 करोड़ टन रहेगा।

निवेशकों की नजर इस हफ्ते मल्टी-ब्रांड खुदरा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश [एफडीआइ] केमुद्दे पर संसद में होने वाली गतिविधियों पर रहेगी। संसद के दोनों सदनों में यह मुद्दा छाया रहेगा। लोकसभा और राज्यसभा में इस पर शक्ति परीक्षण देखने को मिल सकता है। राच्यसभा में इस मुद्दे पर छह और सात दिसंबर को बहस होनी है, जिसमें मतदान का प्रावधान है। लोकसभा में इस पर चार और पांच दिसंबर को बहस होगी। बीते सप्ताह बंबई शेयर बाजार [बीएसई] का सेंसेक्स 833.33 अंक चढ़ा और 19 माह के उच्च स्तर पर पहुंच गया। इस कारण बाजार में आगे मुनाफावसूली भी देखने को मिल सकती है।

विशेषज्ञों के मुताबिक, भारतीय बाजार के लिए इस सप्ताह संसद की कार्यसूची में मल्टी-ब्राड खुदरा में एफडीआइ पर वोटिंग एक बड़े बाजार उत्प्रेरक के तौर पर काम कर सकता है। यदि सरकार को संसद में इस मुद्दे पर सफलता मिलती है तो निश्चित ही बाजार की कारोबारी धारणा सुधरेगी। ग्रीस को मिलने वाले राहत पैकेज पर भी फैसला इसी हफ्ते होगा। यह भी बाजार की कारोबारी धारणा को प्रभावित करेगा। शेयर बाजार में तेजड़िया रुख के कारण विदेशी संस्थागत निवेशकों की ओर से मजबूत धन प्रवाह बना हुआ है। यह निवेश इस वर्ष अब तक एक लाख करोड़ रुपये के स्तर को लाघ गया है। बीते हफ्ते रही तेजी के कारण ही सेंसेक्स की शीर्ष दस कंपनियों का बाजार पूंजीकरण 66,590 करोड़ रुपये बढ़ गया। सबसे ज्यादा फायदा सार्वजनिक क्षेत्र की ऊर्जा कंपनी ओएनजीसी को हुआ।




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