मणिपुर
पलाश विश्वास
कोहिमा बहुत दूर नहीं है और नगालैंड
को छूते उत्तर के पहाड़ों में बारुदी हवाएं तेज
युद्ध अभी खत्म नहीं हुआ पूर्वोत्तर में कहीं
युद्ध अपनी अस्मिता के लिए, प्रतिष्ठानिक
सत्ता के विरुद्ध,जो सिर्फ जानती है
दमन की भाषा और कुछ भी नहीं
युद्ध लोकतंत्र की आड़ में
फौजी शासन के खिलाफ
दिल्ली में हुए युद्धविराम की परवाह किसे है
पहाड़ी पगडंडियों और पत्थरों पर
खिले फूल और आर्किड से पूछो
पूछो अरण्य से, वनस्पतियों से
लोकताक झील और नगा पहाड़ से
पूछो बराक नदी से, क्योंकि अशांत
हैं घाटियां और क्योंकि उसके किनारे
तैनात राकेट लांचर सक्रिय इतने
क्योंकि चारों तरफ बिछी हैं बारुदी सुरंगें
गुरिल्ला युद्ध में संलग्न मां से पूछो
जिसकी पीठ पर अबोध शिशु
दूध के लिए रोता हरदम
और जिसके हाथों में एके 47
शहादत का यह सिलसिला क्यों नहीं थमता?
अगर मुख्यधारा में शामिल होता मणिपुर?
छब्बीस जनवरी की परेड में
पूर्वोत्तर की झांकी की स्वतंत्रता है
पुलिस फायरिंग से मौतें और अनवरत मुठभेड़,
छापामार युद्ध गारंटी है
राष्ट्रीय एकता और अखंडता की
और सामूहिक बलात्कार से
मजबूत होते हैं एकता के सूत्र
क्या जवाब देंगे महामहिम राष्ट्रपति?
मणिपुरी शास्त्रीय नृत्य की
ध्रूपद विभंगिमाओं में
स्थगित अनंत विस्पोट
हजारों ज्वालामुखी...
लोकताक की लहरों में
नृत्यरत नगा कन्यायों के
दिलों में बिजली के तार
क्या जानते नहीं प्रधानमंत्री?
रंग बिरंगे परिधान और
कबीलों की विभिन्न पोशाक
उन्मुक्त हंसी और धीरे से
बहती बराक नदी, भूगोल
के सीने में छटफटाता है
इतिहास और पहाड़ों की
कोख में उमड़े बादलों
के मानिंद विद्रोह घनघोर
हमारे कामरेड कहां हैं पूर्वोत्तर में?
सर्वहारा के मसीहा कहां हैं?
कहां है विचारधारा की आग?
लाल चीन के सामान से से अटा
पड़ा है लाल चीन की सामा से सटा
पूर्वोत्तर का बाजार
और चारों तरफ चीनी हथियार
सिर्फ लापता है विचारधारा
जबकि जनयुद्ध जारी
लौहमानवी इरोम शर्मिला के
बारह साल के अनशन की तरह
नगंन माताओं का सौन्दर्य
अभिव्यक्त तो हो गया सेना के यथेच्छ
बलात्कार के विरुद्ध, फिरभी दिल्ली में,
कोलकाता में या फिर
मुंबई में, देश के अन्यत्र कहीं
कभी नहीं जलती कोई मोमबत्ती
मणिपुर में राष्ट्रशक्ति के बलात्कार
की निरंतरता के विरुद्ध
क्योंकि इस भारत में सबसे अकेली
औरत का नाम कोई अकेली
निर्वासित तसलिमा नसरीन नहीं,
इरोम शर्मिला है, जो पूरे मणिपुर के साथ
निर्वासित है नग्न माताओं की तरह
उग्र धर्मोन्मादी भारत राष्ट्र के
नक्शे से हमेशा के लिए
जब मणिपुर को हम इस देश का हिस्सा नहीं मानते
जब मणिपुर की माताएं हमारी माताएं नहीं है
जब सशस्त्र सैन्य बल अधिनियम से हमारा कुछ लेना देना नहीं
तो क्यों हम आंतरिक सुरक्षा के बहाने
मणिपुर में तैनात रखते हैं सेनाएं?
क्यों हम इरोम और दूसरी मणिपुरी स्त्रियों को जीने नहीं देते
एक सहज स्वतंत्र जीवन?
क्यों मणिपुर इस देश का राज्य
होते हुए उससे हम करते हैं शत्रु राष्ट्र का जैसा सलूक,
जिसके विरुद्ध युद्ध कभी खत्म नहीं होता
न खत्म होता है प्रतिरोध में जनयुद्ध?
हम भारतीय देशभक्त नागरिक सकल अत्यंत धर्मनिरपेक्ष है
नस्लभेदी, जो राष्ट्र के युद्ध को लोकतंत्र मानते हैं और
प्रतिरोध में जनयुद्ध को लोकतंत्र पर निर्लज्ज हमला!
यही हमारा मूल्यबोध है, जो कश्मीर से लेकर मणिपुर और
दंडकारण्य में भी कानून के राज के नाम पर
हर दमन का समर्थन करता है, मजबूती से खड़ा हो जाता है
अनंत मानवाधिकार हनन के पक्ष में
क्योंकि इरोम शर्मिला हमारी कोई नहीं होती!
म्यांमार के सैन्य शासन से बस घंटे भर की दूरी पर है
हमारा लोकतंत्र महान, बस, घंटाभर देर से चलती है घड़ी की सुई
और बीच में टंग गयी एक सीमारेखा, वरना
मणिपुर और म्यांमार में कोई फ्रक नहीं है मित्रों। हम आंग सान सु
के गौरवगान में गदगद हैं और
हमारे लिए अजनबी अनपेक्षित और राष्ट्रद्रोही हैं
इरोम शर्मिला और मणिपुर में बरबर सैन्य शासन के विरुद्ध
नंग्न प्रदर्शन तक के लिए मजबूर मणिरपुर की माताएं!
हम विश्वभर में लोकतंत्र के संकट पर
तुरंत हरकत में आ जाते हैं पर शातिराना चुप्पी साध लेते हैं
कश्मीर, पूर्वोत्तर और दंडकारण्य में लोकतंत्र के सवाल पर
लोकतंत्र के ध्वजावाहकों, धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद की महान पैदल सेनाओं,
लो, तुम्हें बताते हैं असलियत कि
येंगुन और इंफाल में फर्क नहीं कोई
मैरेह के बाजार और तामू के बाजार में मुद्रा और
परमिट के सिवाय फर्क नहीं है कोई
वहां भी सैन्य शासन और यहां भी
मणिपुर और पूरे पूर्वोत्तर के लिए
चीन और म्यांमार जितना विदेश है,
उससे कहीं ज्यादा विदेशी हैं हम
क्योंकि अब उन्हें भारतीय सामान से भी
ठीक उतनी ही नफरत है, जितनी की
पूर्वोत्तर में तैनात हत्यारी बलात्कारी सेना से
पहाडों से टकराती सूरज की किरणे
और आइने की तरह चमकता
इंफाल और समूचा मणिपुर
जिसे हम सिर्फ हवाई यात्रा से छू सकते हैं
लेकिन कभी देख नहीं सकते अपनी नस्ली आंखों से कि
उसके रिस रहे जख्मों पर कोई मलहम नही है
रोशनी की ज्वालामुखी के आर पार
भारत उदय और भारत निर्माण से चौंधियाये आंखों से देखो,
मुक्त बाजार से बाहर भारतीय लोक गणराज्य में कहीं नहीं है
ममिपुर, कश्मीर या फिर दंडकारण्य
यह भौगोलिक अस्पृश्यता है और
इसके खिलाफ अभीतक कोई आंदोलन हुआ नही है
मणिपुर के चेहरे में कहीं नहीं है भारत
पश्चिम में बहती नंबुल नदी
लहरों के शोर में अभिव्यक्त
बिहू के छंद, उस पार असम है और
इसपार लाई हरोबा और मार्शल आर्ट
चैतन्य महाप्रभु अब भी जीवित हैं मणिपुर में
मैती वैष्मव जीवन में प्रेममय
लेकिन हम वहां कभी थे नहीं और
न हो सकते हैं, क्यों?
सिर्फ हवाई यात्राओं, सलवा जुड़म और आफसा
से कब तक राष्ट्र को सुरक्षित रखोगे,
माननीय रक्षा मंत्री महोदय?
वरनम वन की तरह चहलकदमी के साथ
बढ़ने लगा है सुकमा का जंगल
जो हमें चारों तरफ से घेर रहा है
कितने सुरक्षित हो सकते हैं हम?
बहुत वैष्णव जन हैं मणिपुर में
निरंतर युद्ध के बावजूद
बहुत शांत है मैती जनगण
शात है सिव उपासना केंद्र
नोङ माइजिङ पर्वत
धर्म परिवर्तन से ही क्या
वे हमारे शत्रु हो गये
हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्र के?
राजमहल लङथबाल अब भी चीख चीखकर कहता है
मणिपुर का बारत में विलय वैध है, फैसला कायम है अब भी
लेकिन महाशय, मणिपुर को मणिपुर तो रहने दें!
मोइराङ में नेताजी स्मारक बेदखल ,
जहां बीएसएफ की छावनी है
हर सड़क पर, हर घर पर
मुठभेड़ का इंतजार करते लोग
फोन पर होता सामाजिक अनुष्ठान
सांध्य कर्फ्यू, धमाके अनवरत, फायरिंग,
बिना वारंट तलाशी, गिरफ्तारी,
मुठभेड़, देखते ही गोली मारो
और बलात्कार का नाम है मणिपुर
स्वतंत्रता के नेताजी के उद्घोष कहां हैं?
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