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Author: समयांतर डैस्क Edition : April 2013
मारुति-सुजुकी के श्रमिकों की जेल से अपील
हम मारुति सुजुकी के श्रमिक हैं, जो 18 जुलाई 2012 के बाद से बिना किसी ईमानदार न्यायायिक जांच के, एक षडय़ंत्र के हिस्से के बतौर सलाखों के पीछे हैं। हममें से 147 गुडग़ांव सेंट्रल जेल के अंदर हैं। जुलाई के बाद से हमारे लगभग 2,500 स्थायी और ठेका श्रमिक साथियों को नौकरियों से निकाल दिया गया है। इन पिछले आठ महीने से अधिक समय में, हमने लगभग सभी प्रशासनिक अधिकारियों और निर्वाचित प्रतिनिधियों, जिनमें मुख्यमंत्री हरियाणा और भारत के प्रधानमंत्री भी शामिल हैं, को अपनी अपील भेजी है। लेकिन न तो हमारी अपील सुनी गई है और न ही हमें जमानत दी गई। हरियाणा पुलिस द्वारा न्यायालय में दाखिल आरोप-पत्र अधूरा है क्योंकि इसमें किसी भी गवाह का नाम नहीं है। यह केवल मनमाने आधार पर हमारे लोकतांत्रिक अधिकारों पर निरंतर हमले की एक झलक है और हमने देखा कि कैसे कानून कंपनी के मालिकों की तरफ झुका हुआ है। हममें से कई साथी श्रमिक, माता-पिता या अभिभावक के बिना काम कर रहे हैं और घर का पूरा बोझ उठा रहे हैं। जब हमें सलाखों के पीछे डाला गया, तब कई कर्मचारियों की पत्नियां गर्भवती थीं। और जब उनके प्रसव का समय आया, उन्हें जमानत नहीं दी गई यहां तक कि पैरोल हिरासत भी नहीं मिली। हम नहीं जानते कि किन परिस्थितियों में उनका प्रसव हुआ। हम कुछ उदाहरण दे रहे हैं :
1.हमारे साथी श्रमिकों में से एक हैं- सुमित पुत्र स्वर्गीय छत्तर सिंह, जिनके परिवार में उसकी पत्नी के अलावा कोई नहीं है। फिर भी, जब उसकी पत्नी को गुडग़ांव के एक अस्पताल में दिनांक 12 जून 2012 को प्रसव हुआ, सुमित की जमानत याचिका या पैरोल हिरासत की दलील को अस्वीकार कर दिया गया।
2. हमारे दूसरे श्रमिक साथी विजेन्द्र पुत्र दलेल सिंह, अपने परिवार में अकेले कमाऊं सदस्य हैं। उनकी मां अधिकांशत: बीमार रहती हैं और झज्झर के एक अस्पताल में जब उनकी बहू दिनांक 10 जनवरी 2013 को मां बनी तब वह मदद करने में अक्षम थीं। फिर भी, विजेन्द्र को न तो जमानत दी गई और न ही पैरोल पर छोड़ा गया।
3. एक अन्य साथी रामविलास पुत्र स्वर्गीय श्री सिलक राम, के मामले में उसकी दादी रामविलास से अत्यधिक प्रेम के कारण, रामविलास की गिरफ्तारी के बाद बीमार पड़ गई और दिनांक 26 फरवरी 2013 को उन का निधन हो गया। रामविलास को दादी के अंतिम संस्कार में भाग लेने के लिए पैरोल पर भी नहीं छोड़ा गया। कुछ दिनों के बाद अपनी पत्नी के प्रसव के समय भी जमानत या पैरोल के लिए उसके अनुरोध को ठुकरा दिया गया।
4.एक अन्य साथी प्रेमपाल पुत्र श्री छिद्धिलाल, पर उनके परिवार को अकेले देखने की जिम्मेदारी थी। मनमाने ढंग से उसे जेल में ठूंस दिए जाने से, उसकी दो साल की बेटी पिता की अनुपस्थिति का शोक न सह सकी और बीमार होकर उसने दम तोड़ दिया। यह घाव अभी भरा भी न था कि प्रेमपाल की मां बेटे के जेल जाने और पोती की मौत से पीडि़त होकर चल बसी। इसके बाद भी प्रेमपाल की अल्प पैरोल- एक सप्ताह की छुट्टी की अनुमति खारिज कर दी गई और उसे अपनी दादी के अंतिम संस्कार के अगले दिन केवल एक घंटे की यात्रा की अनुमति दी गई। अब घर में उसकी पत्नी, अपनी बेटी और सास की मौत के शोक में बीमार पड़ी हुई है और उसे अस्पताल में भर्ती किए जाने की जरूरत है। यह प्रेमपाल के लिए भयानक मानसिक पीड़ा का कारण है।
5. श्रमिक साथी राहुल पुत्र श्री विनोद रतन, अपनी बहन के साथ माता-पिता का एकमात्र बेटा है। दिनांक 16 नवंबर 2012 को उसकी बहन का विवाह हुआ। लेकिन उसे कन्यादान के लिए, शादी में भाग लेने के लिए पेरोल कस्टडी नहीं दी गई।
6. साथी श्रमिकों में सुभाष पुत्र श्री लाल चंद, अपनी दादी के बहुत करीब था। पोते को जेल होने के बाद, दादी ने अपने पोते के बारे में सोचते हुए खाना लेना लगभग बंद कर दिया और कुछ दिन बाद इस दु:ख में दम तोड़ दिया। लेकिन सुभाष को भी पैरोल हिरासत पर उसके अंतिम संस्कार में भाग लेने की अनुमति नहीं मिली।
हमारे जीवन में हर रोज घट रही ऐसी अनेकों घटनाएं हैं जो एक पूरी किताब के पन्ने भरने के लिए पर्याप्त हैं।
हम सभी मजदूरों और किसानों के बच्चे हैं। हमारे माता-पिताओं ने कठिन प्रयास और बलिदान से हमें 10 वीं,12 वीं कक्षा या आईटीआई शिक्षा दिलायी, ताकि हम अपने पैरों पर खड़े हो सकें, और जरूरत में अपने परिवारों की मदद कर सकें। कंपनी द्वारा तय की गई शर्तों व निबंधन के अनुसार लिखित व मौखिक परीक्षा उत्तीर्ण कर हम मारुति सुजुकी कंपनी में शामिल हुये। कंपनी में शामिल होने से पहले कंपनी ने हमारे बारे में सभी प्रकार की जांच की। हममें से किसी का भी पिछला आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था।
जब हम कंपनी में शामिल हुए तब कंपनी का मानेसर संयंत्र निर्माणाधीन था। उस समय हमने संयंत्र की प्रगति के साथ अपने भविष्य को देखते हुए, कंपनी के मानेसर संयंत्र को एक नई ऊंचाई पर ले जाने के लिए भरपूर ऊर्जा और श्रम झोंका। जब पूरी दुनिया आर्थिक संकट से जूझ रही थी, हमने प्रतिदिन दो घंटे अतिरिक्त काम कर एक साल में 10.5 लाख कारों के उत्पादन को हकीकत में बदल दिया। हम कंपनी के बढ़ते लाभ के एकमात्र रचनाकार थे पर आज हम अपराधियों और हत्यारों के रूप में फंसाये जा रहे हैं और हमें "नासमझ आगजनी" में संलग्न बताया जा रहा है।
लगभग हम सभी गरीब मजदूर या किसान परिवारों से हैं, जो हमारी नौकरी पर निर्भर हैं। हम अपने व अपने परिवारों के भविष्य के सपनों के लिए संघर्ष कर रहे थे ताकि उनका भविष्य उज्जवल हो। हम चाहते थे कि अपने माता पिता के लिए एक आरामदायक जीवन सुनिश्चित कर सकें।
लेकिन बदले में, कंपनी के अंदर, सभी संभव तरीकों से हमारा शोषण किया जाता रहा है, जैसे कि :
1. काम के दौरान, अगर कोई श्रमिक बीमार हो, उसे डिस्पेंसरी जाने की अनुमति नहीं थी और उसे काम जारी रखने के लिए मजबूर किया जाता था।
2. हमें शौचालय जाने की अनुमति नहीं थी, केवल चाय या दोपहर के भोजन के समय वहां जाने की अनुमति थी।
3 श्रमिकों के साथ प्रबंधन बहुत बुरा व्यवहार, अभद्र भाषा के साथ करता था। यहां तक कि उन्हें दंडित करने के लिए थप्पड़ मारना या उन्हें मुर्गा तक बनाया जाता था।
4. यदि अपने बीमार स्वास्थ्य या किसी दुर्घटना की वजह से या परिवार में मौत की वजह से किसी श्रमिक को 3-4 दिन अवकाश के लिए बाध्य होना पड़ता था, तो कंपनी उसके वेतन से आधी राशि, जो लगभग रुपए 9000 बनती है, काट लेती थी।
इस निरंतर शोषण की वजह से श्रमिकों ने एक यूनियन बनाने की जरूरत महसूस की। मारुति सुजुकी कंपनी यूनियन के विचार के खिलाफ थी, और इसी कारण 2011 में श्रमिकों की तीन हड़तालें हुयीं। तीसरी हड़ताल के बाद, हमारे तीस साथी श्रमिकों को हड़ताल में भाग लेने के कारण इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया। लेकिन फरवरी, 2012 के अंत में हम यूनियन रजिस्टर कराने में सफल रहे, जिसमें तत्कालीन मानव संसाधन प्रबंधक, स्वर्गीय अवनीश कुमार देव ने हमारी मदद की। हमारी ओर सहायतापूर्ण रवैये के कारण कंपनी देव से नाराज थी और परिणामस्वरुप उन्होंने कंपनी से इस्तीफा दे दिया। लेकिन कंपनी ने उनके इस्तीफे को स्वीकार नहीं किया क्योंकि उन्हें अपने कुकर्मों के उजागर होने का डर था। संघ को कुचलने और देव को रास्ते से हटाने के लिए कंपनी ने एक पहले से तैयार योजना के साथ कारखाने में बाउंसरों और गुंडों को बुलाया और 18 जुलाई, 2012 को परिसर में 'दुर्घटना' को अंजाम दिया।
बिना किसी ईमानदार जांच के हम कुल 147 श्रमिकों को सलाखों के पीछे डाल दिया गया है और हमें यहां 8 महीनों से ज्यादा समय हो चुका है। जेल के अंदर हम जबरदस्त मानसिक तनाव में हैं। हममें से कई तपेदिक, बवासीर, मानसिक असंतुलन और कई अन्य बीमारियों से पीडि़त हैं।
लगभग हम सभी अपने परिवार के कमाऊ सदस्य थे और हम अब जेल में हैं। इस वजह से हमारे परिवार भूख से मरने की स्थिति में हैं। परिवार की महिला सदस्यों और बच्चों की शिक्षा को बंद कर दिया गया है, जबकि यह उनके मौलिक अधिकार हैं। हमारा और हमारे परिवारों का भविष्य अंधेरे में डूब गया है। हमारे परिवारों के सदस्य मानसिक रूप से अत्यधिक परेशान हैं। हमें डर है, ऐसा न हो कि वे मानसिक दबाव की वजह से कोई गलत कदम न उठा लें।
147 श्रमिकों को जेल में डालने के अलावा, किसी भी आंतरिक जांच के बिना लगभग 2,500 नियमित और ठेका श्रमिकों की सेवाओं को कंपनी द्वारा समाप्त कर दिया गया है। इन बेरोजगार श्रमिकों के परिवारों की हालत भी बहुत गंभीर है। स्थिति यह है कि उनके पास कार्य-अनुभव का कोई सबूत नहीं है, उनका कैरियर बर्बाद है। यही नहीं जो कोई भी हमारे समर्थन में आगे आता है, उसे गिरफ्तार कर तुरंत जेल में बंद कर दिया जाता है। (ईमान खान, जो एसएमडब्ल्यूयू की अस्थायी कार्यकारी समिति के सदस्य थे, जिसका नाम एफआईआर, आरोप-पत्र या एसआईटी रिपोर्ट में नहीं था, की गिरफ्तारी और अन्य 65 श्रमिकों के नाम गैरजमानती गिरफ्तारी वारंट के तहत हैं )।
इन सभी विपरीत स्थितियों के बावजूद, हमारे साथी श्रमिकों द्वारा न्याय के लिए बाहर चलाया जा रहा संघर्ष हमें सलाखों के पीछे ऊर्जा और आशा दे रहा है। इस संघर्ष में, जो कारखाने के बाहर आठ महीने से अधिक समय से जारी है, देश के विभिन्न भागों से श्रमिकों, मेहनतकशों और आम लोगों से एकजुटता की खबरों ने हमें उम्मीद दी है।
इन 8 महीनों में किसी भी निर्वाचित प्रतिनिधि का कोई ऐसा दरवाजा नहीं है जो हमने न खटखटाया हो। लेकिन सरकार हम श्रमिकों को सुनने के बजाय कंपनी के प्रबंधन और मालिकों का पक्ष लेने की कोशिश में लगी है। हम सरकार से अंतिम अपील करते हैं कि इससे पहले कि हमें आत्महत्या या दूसरों की हत्या करने की स्थिति में धकेल दिया जाय, हमें न्याय दिया जाय जिसके हम हकदार हैं।
हमें आपकी राय और एकजुटता की उम्मीद है।
मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन
पंजी. सं. 1923,
आई एम टी मानेसर
(मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन के सारे सदस्य गुडग़ांव सेंट्रल जेल में सलाखों के पीछे हैं। यह अपील वहीं से भेजी गई है।)
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