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Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Tuesday, June 18, 2013

चन्द्रशेखर करगेती अब क्या विकल्प बचा है ?

अब क्या विकल्प बचा है ?

प्राकृतिक आपदा में फंसे भाईयो, राहत के लिए सरकारी मदद की बाट न देखो ! अपने आस पास बेघर हुए लोगों को अपने घरों में शरण दो, मलबे में या पानी में फंसे लोगों को बाहर निकालो l रेता-बजरी के ठेकेदारों और स्टोन क्रेशर मालिकों तथा बांधों के ठेकेदारों-कित्किनेदारो को पकड़ कर मुर्गा बनाओ, कंडाली लगाओ, दौड़ा-दौड़ा कर पिटाई करो, यह आपदा उन्ही के लालच के कारण आई है l 

विधायक सांसदों की गाडी की चाबी छीन कर उसे भी राहत और बचाव कार्य में लगाओ l संकल्प करो कि अब भविष्य में किसी रेता-बजरी, डैम, होटल-रिजोर्ट, लकडी और भू माफिया और उनके चेले अपातो और हिमायतियो को वोट नहीं दोगे l राहत सामग्री छुपाने या बेचने वाले अफसर-बाबू पर भी नज़र रखो, घबराहट न फैलने दो, संयम से काम लो l मोटर सड़कों के अत्यधिक मोह से बाज़ आओ, जब तुम्हारी घर-कुडी ही बह जायेगी तो मोटर सड़क से कहाँ जाओगे ? 

वातावरण बनाओ कि विकास का अधिकाँश धन सड़क की बजाय नदियों और गाड-गदेरों के जलागम में वृक्षा रोपण पर खर्च हो ! पहले भी बाढ़ आती थी भूस्खलन और तबाही भी होती थी या तो वो पूरी तरह कवर नहीं हो पाती थी या फिर आज लोगों ने नाले, सूखे बरसाती गधेरे, छीड़े (बरसाती झरने वाले स्थान) में सड़क बनाते वक्त प्राकृतिक बहाव के क्षेत्र बाधित कर जहां-तहां मकान बना दिये हैं !ग्लेशियर पहाड़ आदि तक लोग धमाधम पहुंच रहे हैं, डायनामाइट लगे पहाड़ रड़ने-भसकने को तैयार बैठे हैं l वरना क्या बात जो सतझड़ (सात दिन की लगातार बारिश) पर शेरदा अनपढ़ की "चौमासै ब्याव"(सावन की संध्या) कविता लिखी जाती थी ? 

उत्फुल्लित प्रकृति पानी से भीगा भीगा पहाड़ गरजते पतनाले बमकते सूखे गधेरे हम भी देखते थे l गाय भैंसों के गोठ में कीचड़ और पैरोँ में कद्या (खुजली वाला फंगस) लग जाता था, मौतें भी होतीं थी पर आज की तरहा नहीं कि अभी हिंदी फिल्मों का हीरो "पहाड़ों को चंचल किरन चूमती है, हवा हर नदी का बदन चूमती है।" गा रहा हो और अगले दृश्य में उसकी माँ मर जाये और एकदम भावुक सीन बन जाये । पिछले 48 घंटों में उत्तराखंड में ऐसा ही कुछ नजारा दिखा है ।

पहाड़ के बारे में गंभीरता से विचार करने की जरुरत है इनमें क्या बदलाव आये हैं l पिछले 50 सालोँ में आया बदलाव 5000 साल के धीमे बदलावोँ पर भारी है । खड़क सिंह वल्दिया जी कहां हैं ? कुछ तो मुंह खोलें ! कहां है वो पहाड़ का जानकार जो 50 साल से शार्प राकेट बना पहाड़ को रुमानी यात्राओं में पिरोये सपनीली दुनिंया में ले गया है । 

अलबत्ता नैनीताल समाचार वाले राजीव लोचन शाह हैं जो हर बार कहीं न कहीं से विघ्नसंतोषी पहाड़ी की तरहा नाक निचोड़े हुए टोकते रहते हैं, चेताते रहते हैं । सरकार के तो क्या कहने, इस बार ये बेशरम सीएम बहुगुणा भजन गाने की सलाह दे तो ढोल मंजीरा इसके गले में डालना । 

साभार : Deep Pathak
 — with Rajiv Lochan Sah and 19 others.

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