पंचायत चुनाव जीतने के लिए धार्मिक आयोजनों में तृणमूल प्रत्याशियों की भागेदारी अनिवार्य!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
कम्युनिस्ट विचारधारा में धर्म को अफीम बताया गया तो भारतीय रंग बिरंगे वामपंथी निजी आस्था में चाहे कितने अविचल हों, सार्वजनिक जीवन में वे नास्तिक बने रहते हैं। दिवंगत माकपा नेता सुभाष चक्रवर्ती ने जनमानस में धर्म के असर के ख्याल से जबभी धर्मस्थल गये, बहुत बवाल हुआ। हालांकि कर्मकांड में सुभाष दा की आस्था नहीं थी। वे ब्राह्मण संतान होते हुए पूजा पाठ नहीं करते थे और न जनेऊ धारण करते थे। अब तृणमूस कांग्रेस की रणनीति धर्म से वामपंथियों की एलर्जी का भरपूर फायदा उठाने है। पार्टी नेतृत्व ने सभी तृणमूल प्रत्याशियों को हिदायत दी है कि अपने इलाकों में धार्मिक आयोजनों में अवश्य ही वे शामिल हों। खासकर गांवों में हरिसभा, मतुआ सम्मेलन, शनिपूजा और सत्यनारायण की कथा के मौके पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है और ऐसे मौकेपर राजनीतिक संदेश पहुंचाने का काम बहुत आसानी से हो सकता है। जबकि वामपंथी धर्म से एलर्जी के कारण ऐसे आयोजनों से कतराते हैं। भाजपा का जनाधार उतना प्रबल नहीं है, इसलिए भाजपाई अगर इस नीति पर तृणमूल की देखादेखी अमल करने लगे तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं है। इस मामले में तृणमूल कांग्रेस की प्रतिद्वंद्विता सिर्फ कांग्रेस के साथ है।
भले ही हाईकोर्ट ने पंचायत चुनाव के मामले में राज्य चुनाव आयोग के फैसले को ही अंतिम बता दिया है, लेकिन इससे विरोधियों को कोई कास मदद नहीं मिलने वाली। केंद्रीय वाहिनी आने में अभी देर है। लेकिन तृणमूल की बाइक वाहिनी के आतंक से मैदान में विपश्क्षी उम्मीदवार उतर ही नहीं रहे हैं और उतर रहे हैं तो मैदान छोड़ने पर मजबूर हो रहे हैं। निर्विरोध चुने जाने का रिकार्ड तृणमूल कांग्रेस लगातार बेहतर बनाती जा रही है। हालांकि निर्विरोध जीते उम्मीदवारों को चुनाव आयोग ने अभी प्रमाणपत्र जारी नहीं किये हैं और जांच के बाद ही सर्टिफिकेट दिये जाएंगे। लेकिन निर्विवाद रुप से पंचायत चुनाव मे सत्तादल का वर्चस्व कायम हो चुका है।
ऐसी हालत में बाकी चुनावों में धर्म का इस्तेमाल करके तृणमूल कांग्रेस विपक्ष का सफाया करना चाहती है और कम से कम वामपंथियों के पास इस हथियार की कोई काट नही है।
गौरतलब है कि तृणमूल प्रत्याशियों को धार्मिक आयोजनों, पूजा पाठ और प्रवचन के दौरान अंतिम वक्त तक रहने का निर्दश जारी किया गया है। प्रत्याशियों को कहा गया है कि किसी तरह की अनास्था का प्रदर्शन न करे और प्रसाद ग्रहण करने के बाद ही वहां से निकले। वहां जितनी भीड़ वोटरों की होती है, उसमें सभी दलों के समर्थक होते हैं। जबकि चुनाव सभाओं में अपने ही समर्थक होते हैं।अटल आस्था के प्रदर्शन से बड़ी संख्या में विपक्षी वोटों को भी तोड़ने मे कामयाब हो सकती है यह जुगत।
प्रत्याशियों से कहा गया है कि ऐसे आयोजनों में मां माटी मानुष की सरकार की दो साल की उपलब्धियों का मौका पाते ही खूब बखान किया जाये। इसके सात ही विपक्ष की जमकर खबर ली जाये।
चुनाव मैदानों में मौजूद हो या न हो, वामपंथी ऐसे अनुष्ठानों में उपस्थित नहीं होंगे और तृणमूली प्रचार का जवाब भी नहीं दे सकेंगे।
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