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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Sunday, June 16, 2013

पिता पर तीन कविताएं अभिषेक श्रीवास्‍तव

पिता पर तीन कविताएं

अभिषेक श्रीवास्‍तव 





1

पिता
तुम क्‍यों चले गए समय से पहले

मैं आज अपने गोल कंधों पर नहीं संभाल पा रहा
पहाड़ सा दुख
मां का
जिसमें कुछ दुख अपने भी हैं

पिता
तुम जानते हो तुम्‍हारा होना कितना जरूरी था आज
जब घेरते हैं खामोशियों के प्रेत चारों ओर से
एक अजब चुप्‍पी
निगलती जाती है शब्‍दों को
और किशोर वय के अपराध जैसा
बोध पैठता जाता है दिमाग के तहखानों में

जब जाड़े की धूप से होती है चिढ़
और ठंड जमा देती है
हर उस चीज को जिसमें जीवन को बचा ले जाने की है ताकत
पिता
तुम जान लो तो बेहतर होगा
नहीं कर सकता मैं आत्‍मघात भी
डर है एक मन में
कि जैसे घिसटता आया तुम्‍हारा दुख मां के आंचल में लिपटा आज तक
मेरा दुख भी कहीं न सालता रहे उनको
जिन्‍हें मैंने अब तक संबोधित भी नहीं किया।

पिता
तुम्‍हें आना ही होगा, लेकिन ठहरो
वैसे नहीं, जैसे तुम आए थे मां के जीवन में तीस बरस पहले
भेस बदल कर आओ
समय बदल चुका है बहुत
और मां के मन में है कड़ुवाहट भी बहुत
खोजो कोई विधि, लगाओ जुगत
और घुस जाओ मां के कमरे में बिलकुल एक आत्‍मा के जैसे

इसका पता सिर्फ तुम्‍हें हो या मुझे।

2 

मैं नहीं जानता
मांओं के पति, उनके प्रेमी भी होते हैं या नहीं
न भी हों तो क्‍या
एक कंधा तो है कम से कम मांओं के पास
बेटों का दिया दुख भुलाने के लिए
मेरी मां के पास वह भी नहीं

मुझे लगता है
विधवा मांओं को प्रेम कर ही लेना चाहिए
उम्र के किसी भी पड़ाव पर

मां को अकेले देख
अपने प्रेम पर होता है अपराध बोध
होता तो होगा उसे भी रश्‍क मुझसे

मां
तुम क्‍यों नहीं कर लेती प्रेम
और इस तरह मुझे भी मुक्‍त
उस भार से
जो मेरे प्रेम को खाए जा रहा है।

3 

पिता का होना
मेरे लिए उतना जरूरी नहीं
जितना मां के लिए था

पिता होते, तो मां
मां होती
अभी तो वह है मास्‍टरनी आधी
आधी मां
और मैं जब देखो तब
शोक मनाता हूं उस पिता का
जिसे मैंने देखा तक नहीं

सोचो
फिर मां का क्‍या हाल होगा
मैंने तो पैदा होने के बाद से नहीं पूछा आज तक
पिता के बारे में उससे

कि कहीं न फूट जाएं फफोले
अनायास।
अब लगता है
मुझे करनी ही चाहिए थी बात इस बारे में

हम दोनों ही बचते-बचाते
पिता से आज तक
एक-दूसरे से अनजान
दरअसल आ गए हैं उनके करीब इतना
कि मेरे दुख और मां के दुख
एक से हो गए हैं

दिक्‍कत है कि बस मैं ऐसा समझता हूं
और वह क्‍या समझती है, मुझे नहीं पता।

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