Rajiv Lochan Sah 48 घंटे से अधिक समय तक सहमा रहा कि अब बहा नैनीताल..तब बहा.
48 घंटे से अधिक समय तक सहमा रहा कि अब बहा नैनीताल..तब बहा. १८८० की पुनरावृत्ति को अब कोई नहीं रोक सकता. कल श्री माँ नयना देवी का प्रतिष्ठा दिवस था. ट्रस्टी और १२९ वर्ष पूर्व मंदिर की स्थापना करने वाले परिवार का दामाद होने के नाते विशिष्ट पूजा में बैठे हुए और हवन करने में कच्छा-बंडी तक भीगते हुए यही मना रहा था कि हे माँ बचा लो मेरे शहर को! हालाँकि कोई ऐसा श्रद्धालु नहीं हूँ और मजबूरी और औपचारिकता के तहत ही कभी पूजा करता हूँ. जितने लोग श्रध्दा भाव से मंदिर में जाते हैं, वे कायदे-कानून मानने वाले भी होते तो क्या पृथ्वी का यह स्वर्ग नरक बना होता ? मगर विवश और डरा हुआ आदमी ईश्वर से ही तो त्राण माँगता है.
और लो एक बार फिर बच गया नैनीताल! हमारे सारे पाप देवी ने माफ़ कर दिये. अब हम और खुल कर..और बेशर्म होकर नैनीताल के साथ बलात्कार कर सकेंगे.
मगर बाकी उत्तराखंड में तो ऐसा नहीं हुआ. मानसून के पहले झटके के साथ ही प्रकृति ने हमें हमारी औकात बता डाली. हमारी और हमारी अब तक की सरकारों की करतूतों का फल हमारे स्थायी निवासियों ने ही नहीं भोगा, उन्होंने भी झेला, जो मौज-मस्ती करने या परलोक सुधारने हमारे प्रदेश में आये थे. हमें कोई बताने वाला, रोकने-टोकने वाला नहीं होगा और हम गलत जगहों पर बस जायेंगे, मकान बना लेंगे...नदियों का स्वाभाविक प्रवाह छेंक लेंगे...बगैर भूगर्भीय परिस्थतियों को ध्यान में रखे डायनामाइट लगा कर और जेसीबी मशीनों से सड़कें और परियोजनाएँ बनायेंगे तो ईश्वर भी हमें कब तक और क्यों बचाएगा ?
अलबत्ता एक ईमानदार राजनीति, जिसके पास विकास का सर्व हितकारी सोच हो, जो कड़क प्रशासन पैदा कर सके, वही आये दिन की इन यातनाओं से मुक्ति दिला सकती है. मगर वह राजनीति है कहाँ?
...जैंता एक दिन त आलो उ दिन यो दुनी में...चाहे हम नि ले सकूँ चाहे..
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