अर्थव्यवस्था
आप शहर में रहते हैं ! आप अमीर हैं. लेकिन ध्यान से देखिये आपके पास असल में कुछ भी नहीं है. ना सब्जी ना गेहूं ना मछली ना दूध ना सोना ना हीरा . आपके पास सिर्फ कागज का रुपया है .अपने कागज के रूपये खुद ही छाप लिये .इस कागज का एक काल्पनिक मूल्य है . कि एक सौ रूपये के बदले कितना सब्जी,गेहूं ,मछली, दूध ,सोना ,हीरा मिलेगा .
अब इन कागज के रुपयों को अगर कोई सब्जी,गेहूं ,मछली, दूध ,सोना ,हीरा से ना बदले तो आ
प के कागज़ी रूपये की कीमत जीरो है . और आप अचानक एकदम गरीब हो जायेंगे . इसलिये जब कोई आपका रुपया अपनी असली सम्पत्ति से बदलने से इनकार करता है तो आप हथियारबंद सिपाहे भेजते हैं . जैसे बस्तर में आदिवासियों ने अपनी असली दौलत ज़मीन को आपकी नकली कागज़ी दौलत से बदलने से मना किया तो आपने अपनी सेना आदिवासियों को मारने के लिये भेज दी .
गाँव गाँव में असली दौलत के मालिक किसानों पर आपकी सेना इसी नकली दौलत को स्वीकार कराने के लिये हमला कर रही है. इसे ही आप मुक्त अर्थव्यवस्था कह्ते हैं . लेकिन यह पूरी तरह से बन्दूक के दम पर ही चलाई जा सकती है . क्योंकि यह पूरी तरह अवैज्ञानिक अर्थव्यवस्था है . आपके पास इसे सही सिद्ध करने के लिये कोई तर्क नहीं है . इसलिये आप इस व्यवस्था को चुनौती देने वाले विचार को आंतरिक सुरक्षा के लिये सबसे बड़ी चुनौती कह्ते हैं .
आप पहले तो बंदूक के दम पर लोगों से असली दौलत छीन लेते हैं . फिर आप उन्हें अपने कागज़ी रुपयों के लिये काम करने को मजबूर स्तिथी में ले आते हैं . लोग आपके कागज़ी रूपये के बदले काम करें इसी में आपकी इस व्यवस्था का जीवन है .
यह व्यवस्था करोड़ों किसानो , मछुआरों , खनिकों , मजदूरों की व्यवस्था नहीं हो सकती . यह लुटेरी व्यवस्था है. यह हथियारों के बल पर ही चल सकती है . यह कभी भी अहिंसक नहीं हो सकती . यह कभी भी लोकतांत्रिक नहीं हो सकेगी . इसमें से गरीबी . गैरबराबरी , युद्ध विनाश ही निकलेगा .
गाँव गाँव में असली दौलत के मालिक किसानों पर आपकी सेना इसी नकली दौलत को स्वीकार कराने के लिये हमला कर रही है. इसे ही आप मुक्त अर्थव्यवस्था कह्ते हैं . लेकिन यह पूरी तरह से बन्दूक के दम पर ही चलाई जा सकती है . क्योंकि यह पूरी तरह अवैज्ञानिक अर्थव्यवस्था है . आपके पास इसे सही सिद्ध करने के लिये कोई तर्क नहीं है . इसलिये आप इस व्यवस्था को चुनौती देने वाले विचार को आंतरिक सुरक्षा के लिये सबसे बड़ी चुनौती कह्ते हैं .
आप पहले तो बंदूक के दम पर लोगों से असली दौलत छीन लेते हैं . फिर आप उन्हें अपने कागज़ी रुपयों के लिये काम करने को मजबूर स्तिथी में ले आते हैं . लोग आपके कागज़ी रूपये के बदले काम करें इसी में आपकी इस व्यवस्था का जीवन है .
यह व्यवस्था करोड़ों किसानो , मछुआरों , खनिकों , मजदूरों की व्यवस्था नहीं हो सकती . यह लुटेरी व्यवस्था है. यह हथियारों के बल पर ही चल सकती है . यह कभी भी अहिंसक नहीं हो सकती . यह कभी भी लोकतांत्रिक नहीं हो सकेगी . इसमें से गरीबी . गैरबराबरी , युद्ध विनाश ही निकलेगा .
मैं इसमें अपना विचार दे रहा हूं पर यह भी सही हैं कि नक्शली तर्क चाहे कुछ भी हो परन्तु आज दिशाहीन है । पूंजीवाद लोगों को गरीब बनाया और उन गरीबों को वे शौतान बना रहे हैं । लड़ने का तरीका और रणनीति सही होना जरूरी है। आपकी रणनीति सही नहीं होने कारण अपने प्रिय नेताओं को खोते जा रहे है दूसरी और आम जनता को मात्र शक के आधार पर मार डालते है । अत: मुझे पता नहीं यह ब्लाग किसका हैं फिर भी यह उचित है कि आप यदि वास्तव में बस्तर का भला चाहते है तो खूलकर सामने आए अन्यथा नक्शली से भी बड़ा ताकतवार देश के संगठित गुंडे हैं जिसे पुलिस और सेना कहते है।
Replyएस.के.राय साहब मुझे तो गांधी वादी माना जाता है . आपको नक्सली रणनीतियों के बारे में नक्सलियों से बात करनी पड़ेगी . मैं बहुत खुल कर सामने ही हूं . आप मेरा नाम गूगल में ढूँढेंगे तो आपको मेरे लेख वीडियो मिल जायेंगे
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