ब्राह्मण/द्विज वर्ण है ,जाति नहीं ,सचमुच जातियां श्रम का विभाजन का स्वरूप है ,जिनका आर्थिक उत्पादन से ही कुछ लेना देना है ,परन्तु केवल शूद्र वर्ण में जातियां होती है ब्राह्मण ,क्षत्रिय ,वैश्य वर्ण में जातियाँ नहीं होती ,बल्कि गोत्र होता है और शूद्र गोत्र विहीन क्यों ? इस विषय पर उस गोष्ठी में कुछ नहीं कहा गया है ,न ही इस विषय पर चर्चा की गयी है की वर्ण के उत्पति का उद्गम क्या था और जातियों के यानी शूद्र के बिच क्रमागत विभेद के कोई सह्त्यिक और पुरातात्विक प्रमाण नहीं मिलता है तो क्यों ?
अब चंडीगढ़ में ''जाति -प्रश्न और मार्क्सवाद '' पर गोष्ठी हुई जिसका अंततः निष्कर्ष निकल गया वह इस प्रकार व्यक्त हुआ .... 1) उत्पादन के साधन और श्रम -विश्लेषण से तय हुआ जाति व्यस्था सामंत व्यस्था की दें है ,अब पूंजीवाद इस जाति व्यस्था को जिन्दा रखे है . 2) डॉ अम्बदेकर एक विफल चिन्तक थे ,उनके पास कोई परियोजना नहीं थी जिसे जाति व्यस्था ख़त्म हो . 3) मार्क्सवाद को अब एक परियोजना तैयार करनी होगी ,जिससे जाती व्यस्था ख़त्म हो। तीनो स्थापनाओ में कोई जान नहीं है ,नहीं ये ब्राह्मण/द्विज 'मार्क्सवादी 'कोई क्रांतिकारी वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत कर पाए ,उन्हें ये तो पता नहीं है की ब्राह्मण/द्विज वर्ण है ,जाति नहीं ,सचमुच जातियां श्रम का विभाजन का स्वरूप है ,जिनका आर्थिक उत्पादन से ही कुछ लेना देना है ,परन्तु केवल शूद्र वर्ण में जातियां होती है ब्राह्मण ,क्षत्रिय ,वैश्य वर्ण में जातियाँ नहीं होती ,बल्कि गोत्र होता है और शूद्र गोत्र विहीन क्यों ? इस विषय पर उस गोष्ठी में कुछ नहीं कहा गया है ,न ही इस विषय पर चर्चा की गयी है की वर्ण के उत्पति का उद्गम क्या था और जातियों के यानी शूद्र के बिच क्रमागत विभेद के कोई सह्त्यिक और पुरातात्विक प्रमाण नहीं मिलता है तो क्यों ? और क्यों इन शूद्र जातियों के परस्पर आपस में जातिभेद पनप गया ,जाति व्यस्था पर वर्ण का शास्त्रीय वर्ण -विभेद का असर क्योंकर हुआ कोई विश्लेषण ये मार्क्सवादी नहीं प्रस्तुत कर पाए ?.डॉ आंबेडकर को बिना कारण और तर्क के विफल कहना उनके जातीय पूर्वाग्रह का नग्न पर्दर्शन क्यों न माना जाए ?.वे भविष्य कोई परियोजना बनाना चाहते है तो बनाये जिससे जाती व्यस्था ख़त्म हो जायेगी ,पहले वो परियोजन प्रस्तुत करे तब बहुजन से संवाद करे . |
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