माओवादियों ने मांगी माफ़ी
जंगल में प्रेस वार्ता कर कहा, पत्रकार के हत्यारों को देंगे सजा
अपने आन्दोलन का आईना सरकार और पूंजी प्रायोजित मीडिया (जीसीएसएम) के अंग्रेजी सेक्शन में देखने को आदी हो चुके, माओवादियों -वामपंथियों के शहरी समर्थकों को कई बार जनज्वार जैसी जनपक्षधर मीडिया का सच उतना ही गड़ता है, जितना सरकार को. 12 फरवरी को छत्तीसगढ़ में माओवादियों की कांगेर घाटी एरिया कमिटी द्वारा पत्रकार नेमीचंद की मुखबिरी के आरोप में हत्या की गयी थी. इस खबर को सबसे पहले जनज्वार ने 'माओवादियों ने की पत्रकार की हत्या' साक्ष्य समेत प्रकाशित किया और माओवादियों के ख्यात समर्थक वरवर राव से माफ़ी की अपील की. लेकिन जनज्वार को माओवादियों या उनके समर्थकों की ओर से कोई जवाब नहीं आया. उस पर तुर्रा यह कि खबर ही फर्जी है. कुछ पत्रकार सरीखे लोगों ने कहा कि जनज्वार अपनी बाजारू मजबूरियों और पूर्वग्रह के कारण ऐसा लिख रहा है ,तो कुछ ने कहा 'खबर सही होती तो 'हिन्दू' या 'तहलका' में जरूर छपती', मानो ये दोनों मीडिया माध्यम वामपंथियों के चंदे से चलते हैं. बहरहाल, बस्तर क्षेत्र की मीडिया ने पत्रकार नेमीचंद की हत्या के खिलाफ अपना आन्दोलन जारी रखा. आन्दोलन का असर हुआ और माओवादियों को अपनी गलती स्वीकार करनी पड़ी. माओवादियों को पत्रकारों को 24 मार्च को जंगल में बुलाकर माफ़ी मांगनी पड़ी... संपादक
कमल शुक्ला
हिंदी दैनिक 'नई दुनिया' से जुड़े रहे पत्रकार नेमीचंद की माओवादियों द्वारा की गयी हत्या के खिलाफ स्थानीय पत्रकारों के बहिष्कार से परेशान नक्सलियों ने अंततः दक्षिण बस्तर के पत्रकारों को जंगल बुलाकर न केवल तोंगपाल के पत्रकार नेमीचंद की हत्या की गलती स्वीकारी, बल्कि हत्यारों को सजा देने की बात भी कही.
गौरतलब है कि 12-13 फरवरी को नक्सलियों के दरभा डिवीजन कमेटी के अंतर्गत कांगेर घाटी एरिया कमेटी ने मुखबिरी का आरोप लगा कर नेमीचंद की हत्या कर दी थी. तब बस्तर के पत्रकारों ने इस घटना के विरोध में नक्सलियों के वार्ता, विज्ञप्ति आदि का बहिष्कार करने का निर्णय लिया था. घटना के बाद नक्सलियों ने क्षेत्र के पत्रकारों से संपर्क साधा और इस मुददें में बातचीत के लिए आमंत्रित किया.
होली के पूर्व 24 मार्च को दंतेवाडा-बीजापुर जिले के मध्य जंगल में आयोजित प्रेस वार्ता में पश्चिम बस्तर डिवीजन कमेटी मेंबर कमलु कुंजाम एवं महिला कमाण्डर ज्योति ने स्वीकार किया कि नेमीचंद की हत्या उच्च कमेटी को अँधेरे में रखकर कांगेर घाटी दलम के संघम सदस्यों व ग्रामीणों द्वारा बिना किसी पडताल के और सफाई का मौका दिये जाने बिना किये जाने की सूचना है. उन्होंने इस घटना की उच्चस्तरीय नेताओं द्वारा जांच किये जाने और इसके बाद दोषियों को सजा दिये जाने की बात कही.
उन्होंने यह भी कहा कि हत्यारों के अब तक चिन्हित नहीं हो पाने की वजह से ही उन्हें सजा नहीं दी जा सकी है और मीडिया को जवाब देने में विलम्ब हो रहा है. एक पत्रकार ने जब उनसे पूछा कि 'क्या हत्यारों को मृत्युदंड दिया जायेगा?" तो नक्सली नेता ने इंकार करते हुए कहा कि उन्हें पार्टी से निकाला जा सकता है. उन्होंने कहा कि नक्सली हत्या के बदले हत्या के पक्ष में नहीं हैं. हत्या की आवश्यकता वे तभी समझते हैं, जब जनयुद्ध के लिए व्यक्ति खतरा बन जाए. नक्सली प्रवक्ता ने पत्रकारों से आवेश में आकर कथित जनयुद्ध का बहिष्कार न करने की अपील की है. पत्रकार वार्ता में सात पत्रकार मौजूद थे और यह खबर कई मीडिया माध्यमों में प्रकाशित हुई है.
उनका कहना था कि यह वे बड़े नेताओें के निर्देश पर कर रहे हैं. नक्सली नेताओं ने पत्रकारों के समक्ष जेलबंदियों को मैनुअल में हिसाब से सुविधाए देने, अदालती कार्यवाही में लापरवाही करने वाले जजों को पद से हटाने, आदिवासियों को अपमानित करने वाले कथित जस्टिस के विरूद्ध आदिवासी एक्ट के तहत मामला चलाने व जेल में बंद नक्सली नेता मरकाम गोपन्ना, निर्मला, मीना, मालती, पदमा, जमली, रेखा, सगुना आदि पर दर्ज प्रकरण रदद करने की मांग रखते हुए सरकार को कलेक्टर अपहरण जैसी कार्यवाही दुहराये जाने की चेतावनी दी.
कमल शुक्ला छत्तीसगढ़ में पत्रकार हैं.
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