लियाकत की गिरफ्तारी का सच
पहली बार विस्तार से हिंदी में
कश्मीरी नागरिक सैयद लियाकत अली शाह की दिल्ली पुलिस द्वारा संदेहास्पद गिरफ्तारी पर सवाल उठाते हुए सबसे पहली खबर जनज्वार ने'लियाकत की गिरफ़्तारी पर कुछ सवाल' प्रकाशित की. उसके बाद मीडिया के बड़े हिस्से में सवाल उठना शुरू हुआ और केंद्र सरकार को मामले पर संज्ञान लेना पड़ा. लेकिन अभी भी सरकार और पूंजी प्रायोजित मीडिया (जीसीएसएम) के ज्यादातर धडों में लियाकत से जुडी जो खबरें प्रसारित की जा रही हैं, उसमें खबर कम खुफिया एजेंसियों को बचाने की कोशिश अहम नजर आ रही है....
मनोज कुमार सिंह ये लोग सुबह नेपाल बार्डर पार करने के बाद एसएसबी सशस्त्र सीमा बल के चेक पोस्ट पर पहुंचे. जिन लोगों ने सौनौली को कभी नहीं देखा है उनके लिए बता दें कि यहां बार्डर भारत-पाकिस्तान के बाघा बार्डर जैसा नहीं है. भारत-नेपाल सीमा खुली सीमा है और यहां से दोनों देशों के लोगों को बिना-रोकटोक आवाजाही का अधिकार है.
सैयद लियाकत अली शाह पाकिस्तान से नेपाल होते हुए 20 मार्च को जब नेपाल बार्डर पार कर सोनौली पहुंचा तो वह अकेले नहीं 11 अन्य लोगों के साथ था. इनमें उसकी पत्नी अख्तर निशा और पु़त्री जुबीना थीं. इस समूह में पांच बच्चे, तीन महिलाएं और चार पुरुष थे. बाकी लोगों के नाम मोहम्मद अशरफ, मोहम्मद असलम, शहनवाज मीर, फैमिला है.
बार्डर पर तैनात सुरक्षा एजेन्सिया तस्करी या कुछ और संदेह होने पर आपके सामान की जमातालाशी जरूर लेते हैं. भारत-नेपाल के अलावा दूसरे देशों के लोगों को इम्रीगेशन आफिस पर अपने पासपोर्ट व अन्य जरूरी कागजात दिखाने होते हैं. नो मैन्स लैंड के इधर भारतीय सीमा में प्रवेश करने के लिए एक बड़ा सा गेट बना हुआ है.
इसी तरह नो मैन्स के उधर नेपाल का प्रवेश द्वार है. भारत के प्रवेश द्वार के 100 मीटर के भीतर कस्टम, इम्रीगेशन, पुलिस और एसएसबी के पोस्ट है. पूरे दिन यहां काफी भीड़ रहती है. नेपाल जाने वाले मालवाहक ट्रक व अन्य वाहन चूंकि इसी रास्ते जाते हैं, इसलिए अक्सर जाम भी लगा रहता है. यहां सड़क चौड़ी नहीं है और सड़क के दोनों तरफ बडी संख्या में दुकानें हैं. पूरे दिन बडी संख्या में नेपाली नागरिक रोजमर्रा के सामानों की खरीद के लिए आते हैं.
लियाकत अली शाह और उनके साथ के लोग जब सोनौली में एसएसबी के चेक पोस्ट पर पहुंचे तो उनके बारे में एसएसबी को पहले से जानकारी थी. यहां से इन लोगों को तुरन्त एसएसबी के डंडा हेड स्थित चेक पोस्ट पर ले जाया गया. एसएसबी के लिए यह पहला मामला नहीं था. मई और दिसम्बर 2012 में भी क्रमशः 37 और 16 कश्मीरी पुनर्वास नीति के तहत इसी रास्ते से होकर जम्मू कश्मीर गए थे.
उस वक्त स्थानीय अखबारों ने आतंकवादियों द्वारा घुसपैठ करने और सुरक्षा एजेसिंयों द्वारा इनकी साथ कड़ाई बरते जाने के बजाय आवाभगत करने की खबरें छापी थीं. इसको लेकर गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ के संगठन हिन्दू युवा वाहिनी ने सोनौली में विरोध भी किया था और उनका आरोप था कि सरकार और सुरक्षा एजेन्सिया आतंकवादियों के साथ नरमी से पेश आ रही हैं और देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है.
किसी ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि यह केन्द्र और जम्मू कश्मीर सरकार की पुनर्वास नीति के तहत हो रहा है, जिसमें एक दौर में पाकिस्तान चले गए चरमपंथियों को वापस आने की इजाजत दी गई है. चूंकि पाकिस्तान इन लोगों की अपने यहां उपस्थिति से ही इनकार करता रहा है, इसलिए वहां से वह सीधे भारत नहीं आ पा रहे थे. इसलिए भारत की सुरक्षा एजेंसियों द्वारा ही सुझाए गए उपाय के मुताबिक वे पाकिस्तान से नेपाल और फिर सोनौली बार्डर के रास्ते भारत आ रहे थे.
उनके आने की जानकारी भारतीय सुरक्षा एजेंसियां को पहले से रहती थी. ये लोग सीधे एसएसबी के पास आते और एसएसबी जरूरी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद इन्हें कश्मीर भेज देती. जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा पुनर्वास नीति के बारे में कभी कोई बात साफ तौर पर नहीं कही गई इसलिए सोनौली, गोरखपुर की मीडिया में इन कश्मीरियों की इस रास्ते से जाने के बारे में एक से एक बेसिर पैर की खबरें छपती रहीं हैं.
इस बार लियाकत अली शाह और उनके साथ के लोग जब एसएसबी के पास पहुंचे तो एक नई बात हुई. पहले सरेंडर करने आए पूर्व चरमपंथियों के बारे में एसएसबी बार्डर पर दूसरी सुरक्षा एजेन्सियों जैसे पुलिस, एलआईयू व अन्य खुफिया एजेन्सियों को भी सूचना दे देती थी, लेकिन इस बार किसी को नहीं बताया गया. फिर भी स्थानीय पत्रकारों को इसके बारे में पता चल गया और वे एसएसबी से इस बारे में जानकारी मांगने लगे, लेकिन एसएसबी की ओर से उन्हें कोई सूचना नहीं दी गई.
इससे खिसियाए कुछ पत्रकारों ने यह जानकारी हिन्दू युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं को दे दी. हिन्दू युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं ने सोनौली में प्रदर्शन करते हुए रास्ता जाम कर दिया और कहने लगे कि आतंकवादियों को छोड़ा जा रहा है. बार्डर पर जाम लगने से एसएसबी परेशान हो गई. एसएसबी के कमांडेट केएस बनकोटी मौके पर आए और हियुवा कार्यकर्ताओं से कहा कि पकड़े गए लोगों को छोड़ दिया गया है. इस बारे में स्थानीय अखबारों में खबरें भी छपीं .
दो दिन बाद दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल ने दिल्ली में दावा किया उसने हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकवादी लियाकत को गोरखपुर में तब पकड़ा जब वह दिल्ली के लिए ट्रेन पर बैठने जा रहा था. उसकी निशाननदेही पर दिल्ली के जामा मस्जिद इलाके में एक गेस्ट हाउस से एके -56 और विस्फोटक बरामद किया गया. दिल्ली पुलिस स्पेशल पुलिस ने यह भी दावा किया कि उसने लियाकत अली की गिरफतारी से दिल्ली में होली पर बड़ी आतंकवादी कार्रवाई को विफल कर दिया जो अफजल गुरू को फांसी दिए जाने के बदले में अंजाम दी जानी थी.
दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के इस दावे की पोल अगले ही दिन खुल गई जब लियाकत अली शाह के परिजनों ने अपने बयान में बताया कि वह सरेंडर करने आ रहा था. जम्मू कश्मीर पुलिस ने भी यही बात कही कि उसकी जानकारी में लियाकत अली शाह सरेंडर करने आ रहा था और उसका नाम सरेंडर करने वाले चरमपंथियों की सूची में शामिल है. इसके बाद जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला द्वारा केन्द्रीय गृह मंत्री के सामने इस मामले को उठाए जाने और मामले की जांच एनआईए को सौंपे जाने के घटनाक्रम से सभी अवगत हो चुके हैं.
दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल इस मामले में पहले दिन से ही कई झूठ बोल रही है.
1-लियाकत अली शाह जब 11 अन्य लोगों के साथ सोनौली पहुंचा और दोपहर करीब दो बजे दिल्ली पुलिस स्पेशल पुलिस उसे अपने साथ ले गई तो उसने उसकी गिरफ्तारी गोरखपुर से होनी क्यों दिखाई ?
2-दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल ने लियाकत अली शाह की गिरफ्तारी के बारे में मीडिया के सामने जब खुलासा किया तब उसने क्यों नहीं कहा कि लियाकत सरेंडर करने आ रहा था ? जब जम्मू कश्मीर पुलिस ने यह बात कही तब स्पेशल सेल यह कहने लगी कि वह सरेंडर करने के आड़ में आतंकवादी कार्रवाई को अंजाम देने आ रहा था.
3- लियाकत अली शाह के साथ आए अन्य लोगों के बारे में दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल मौन क्यों है ? उसने तो यही कहा कि खुफिया सूचना के आधार पर उसने लियाकत को गिरफ्तार किया और गिरफ्तारी के वक्त वह अकेला था तो सोनौली में एसएसबी ने किन लोगों को रोका था ? दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के लोग सौनौली एसएसबी के पास क्यों गए थे ?
दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल इन सवालों का जवाब नहीं दे पाएगी, क्योंकि उसने पूरे मामले को पहले से तय एक प्लाट (होली प्लाट) में फिट करने की कोशिश की और इस कोशिश में उसे पूरा विश्वास था कि कोई सवाल खड़ा नहीं होगा. पुलिस के इस अति आत्मविश्वास के अपने कारण भी हैं क्योंकि मीडिया का एक बड़ा हिस्सा उसकी इस तरह की कहानियों पर आंख मूद कर विश्वास ही नहीं करता बल्कि उसे और तार्किक बनाने के लिए तथ्य भी गढ़ता है.
गोरखपुर के अखबारों ने यही काम किया. उधर दिल्ली में लियाकत की गिरफ्तारी की खबर आई और उन्होंने एक से एक अतिरंजित खबरे छपनी शुरू हो गईं, जिसका सिलसिला अब तक जारी है. यह सभी ख़बरें यह बताती हैं कि यदि लियाकत पकड़ा नहीं गया होता तो दिल्ली में तबाही मच जाती.
यह भी बताया जा रहा है कि नेपाल बार्डर आंतकवादियों की आवाजाही का सबसे मुफीद जगह बन गया है. काठमांडू में हिज्बुल के बहुत से आतंकवादी बैठे हुए हैं और भारत में घुसपैठ की फिराक में हैं. अब इन खबरों पर क्या कहा जाए ? यदि इन्ही अखबारों ने दो दिन पहले अपने द्वारा ही छापी गई खबरों का संज्ञान लिया होता तो दिल्ली पुलिस के दावों पर सबसे पहले सवाल उठाने का श्रेय इन्हें मिलता, लेकिन ये तो अभी भी दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के प्लाट को सही ठहराने में लगे है.
मनोज कुमार सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं.
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