'कबीर कला मंच' के कलाकारों की रिहाई के लिये संस्कृतिकर्मियों-बुद्धिजीवियों का प्रतिवाद मार्च
नई दिल्ली। बुद्धिजीवियों-संस्कृतिकर्मियों-छात्रों ने अपने आन्दोलनों के बल विनायक सेन से लेकर सीमा आजाद तक को रिहा करने के लिये सरकारों और अदालतों पर जन-दबाव बनाने में सफलता हासिल की। जसम-आइसा ने पटना, इलाहाबाद, गोरखपुर, रांची समेत देश के विभिन्न हिस्सों में शीतल साठे और सचिन माली तथा सुधीर ढवले व जीतन मरांडी की गिरफ्तारी के खिलाफ आवाज उठायी है। अब महाराष्ट्र सरकार और पुलिस-प्रशासन के जनविरोधी रुख के खिलाफ एक मजबूत प्रतिवाद दर्ज करने और अपने संस्कृतिकर्मी-बुद्धिजीवी साथियों के अविलम्ब रिहाई के आन्दोलन को तेज करने के लिये संस्कृतिकर्मियों-बुद्धिजीवियों का प्रतिवाद मार्च आगामी 2 मई को दिल्ली में 2 बजे दिन, श्रीराम सेंटर (मंडी हाउस) से महाराष्ट्र सदन तक आयोजित होगा।
विगत 2 अप्रैल को कबीर कला मंच की मुख्य कलाकार शीतल साठे और सचिन माली को महाराष्ट्र विधानसभा के समक्ष सत्याग्रह करते हुये गिरफ्तार कर लिया गया था। उसके बाद गर्भवती शीतल साठे को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया और सचिन माली को पहले एटीएस के सौंपा गया, बाद में न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था।
संगवारी, संगठन, द ग्रुप (जन संस्कृति मंच) और ऑल इंडिया स्टूडेण्ट्स एसोसिएशन (आइसा) ने कहा है कि (महाराष्ट्र) की चर्चित सांस्कृतिक संस्था 'कबीर कला मंच' के संस्कृतिकर्मियों पर पिछले दो वर्षों से राज्य दमन जारी है। मई 2011 में एटीएस (आतंकवाद निरोधक दस्ता) ने कबीर कला मंच के सदस्य दीपक डेंगले और सिद्धार्थ भोसले को दमनकारी कानून यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया था। दीपक डांगले और सिद्धार्थ भोसले पर आरोप लगाया गया कि वे माओवादी हैं और जाति उत्पीड़न और सामाजिक-आर्थिक विषमता के मुद्दे उठाते हैं। इस आरोप को साबित करने के लिये उनके द्वारा कुछ किताबें पेश की गयीं और यह कहा गया कि कबीर कला मंच के कलाकार समाज की खामियों को दर्शाते हैं और अपने गीत-संगीत और नाटकों के जरिए उसे बदलने की जरूरत बताते हैं। राज्य के इस दमनकारी रुख के खिलाफ प्रगतिशील-लोकतान्त्रिक लोगों की ओर से दबाव बनाने के बाद गिरफ्तार कलाकारों को जमानत मिली। लेकिन प्रशासन के दमनकारी रुख के कारण कबीर कला मंच के अन्य सदस्यों को छिपने के लिये विवश होना पड़ा था, जिन्हें 'फरार' घोषित कर दिया गया था। शीतल साठे और सचिन माली पर भी वही आरोप हैं, जिन आरापों के मामले में दीपक डेंगले और सिद्धार्थ भोसले को जमानत मिल चुकी है।
प्रतिवाद मार्च के आयोजकों ने कहा है कि, इस देश में साम्राज्यवादी एजेंसियाँ और सरकारी एजेंसियाँ संस्कृति कर्म के नाम पर जनविरोधी तमाशे करती हैं। वे संस्कृतिकर्मियों को खैरात बाँटकर उन्हें शासक वर्ग का चारण बनाने की कोशिश करती हैं। ऐसे में गरीब-मेहनतकशों के बीच से उभरे कलाकार जब सामाजिक भेदभाव, उत्पीड़न, आर्थिक शोषण, भ्रष्टाचार, प्राकृतिक संसाधनों की लूट और राज्य-दमन के खिलाफ जनता के लोकतान्त्रिक अधिकारों के पक्ष में प्रतिरोध की संस्कृति रचते हैं, तो उन्हें अपराधी करार दिया जाता है। कबीर कला मंच के कलाकार भी इसीलिये गुनाहगार ठहराये गये हैं।
संगवारी, संगठन, द ग्रुप (जन संस्कृति मंच) और ऑल इंडिया स्टूडेण्ट्स एसोसिएशन (आइसा) ने कहा है, "शीतल और सचिन ने एटीएस के आरोपों से इनकार किया है कि वे छिपकर माओवादियों की बैठकों में शामिल होते हैं या आदिवासियों को माओवादी बनने के लिये प्रेरित करते हैं। दोनों का कहना है कि वे डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर, अण्णा भाऊ साठे और ज्योतिबा फुले के विचारों को लोकगीतों के माध्यम से लोगों तक पहुँचाते हैं। सवाल यह है कि क्या इस देश में अंबेडकर या फुले के विचारों को लोगों तक पहुँचाना गुनाह है? क्या भगत सिंह के सपनों को साकार करने वाला गीत गाना गुनाह है? संभव है शीतल साठे और सचिन माली को भी जमानत मिल जाये, पर हम सिर्फ जमानत से संतुष्ट नहीं है, हम माँग करते हैं कि कबीर कला मंच के कलाकारों पर लादे गये फर्जी मुकदमे अविलम्ब खत्म किये जायें और उन्हें तुरन्त रिहा किया जाये, संस्कृतिकर्मियों पर आतंकवादी या माओवादी होने का आरोप लगाकर उनकी सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों को बाधित न किया जाये तथा उनके परिजनों के रोजगार और सामाजिक सुरक्षा की गारंटी की जाये।"
इन संगठनों द्वारा जारी परिपत्र में कहा गया है, "महाराष्ट्र में इसके पहले भी भगतसिंह की किताबें बेचने के कारण बुद्धिजीवियों को पुलिस द्वारा परेशान करने की घटनाएं घटी हैं। 2011 में मराठी पत्रिका 'विद्रोही' के सम्पादक सुधीर ढवले को भी कबीर कला मंच के कलाकारों की तरह 'अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रेवेंशन एक्ट' के तहत गिरफ्तार किया गया। इसी तरह झारखंड में जीतन मरांडी लगातार राज्य और पुलिस प्रशासन के निशाने पर हैं। हम पूरे देश में संस्कृतिकर्मियों की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के हिमायती हैं और माँग करते हैं कि उन पर राज्य दमन अविलम्ब बन्द किया जाये।"
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